लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री से जुड़ें तथ्य

भारत के दूसरे प्रधानमंत्री:
(जवाहर लाल नेहरु के बाद और गुलजारी लाल नंदा (कार्यकारी) से पहले)
कार्यकाल: 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 तक।
राष्ट्रपति: सर्वपल्ली राधाकृष्णन।
विदेश मंत्रालय के मंत्री या विदेश मंत्री:
(गुलजारी लाल नंदा से बाद में और सरदार स्वर्ण सिंह से पहले)
कार्यकाल: 9 जून 1964 से 18 जुलाई 1964 तक।

गृह मंत्रालय के मंत्री या गृह मंत्री:
(गोविन्द बल्लभ पंत के बाद और गुलजारी लाल नंदा से पहले)
कार्यकाल: 4 अप्रैल 1961 से 29 अगस्त 1963 तक।
प्रधानमंत्री: पं. जवाहर लाल नेहरु।
व्यक्तिगत विवरण:
जन्मदिन: 2 अक्टूबर 1904, मुगलसराय, संयुक्त प्रांत, ब्रिटिश भारत (वर्तमान में उत्तर प्रदेश, भारत)
मृत्यु: 61 की आयु में 11 जनवरी 1966, ताशकंद, सयुंक्त संघ (वर्तमान में उज्बेकिस्तान)
राजनीतिक पार्टी: भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
परिवार:
पत्नी: ललिता देवी, मिर्जापुर
पिता: शारदा श्रीवास्तव प्रसाद
माता: रामदुलारी देवी
बहनें: 2
पौत्र: आदर्श शास्त्री (अनिल शास्त्री के पुत्र), जो एप्पल कंपनी से नौकरी छोड़कर 2014 में आम आदमी पार्टी से जुड़ गए
बड़ी बेटी: कुसुम
बेटे: हरि कृष्ण शास्त्री, अनिल शास्त्री, सुनील शास्त्री, अशोक शास्त्री
शिक्षा: पूर्वी केन्द्रीय रेलवे इंटर कॉलेज; काशी विद्यापीठ, ग्रेजुऐट
कार्य: शैक्षणिक; आन्दोलनकारी
धर्म: हिन्दू
पुरस्कार: भारत के राष्ट्रपति के द्वारा भारत रत्न से सम्मानित

 

लाल बहादुर शास्त्री की जीवनी

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन परिचय

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म सन् 1904 में 2 अक्टूबर को मुगल सराय (काशी से 7 किलोमी. दूर), उत्तर प्रदेश के एक साधारण परिवार में हुआ था और इनकी मृत्यु 10 जनवरी 1966 में हुई थी। इनके पिता का नाम शारदा प्रसाद और माता का नाम रामदुलारी देवी था। जब ये केवल एक वर्ष के थे, तभी इनके पिता का देहान्त हो गया था। यह जाति से श्रीवास्तव थे, किन्तु इन्होंने कभी भी अपने नाम के साथ इसे नहीं जोड़ा क्योंकि, ये कभी भी अपनी जाति की तरफ संकेत नहीं करना चाहते थे। इनके पिता एक स्कूल में अध्यापक थे, जो बाद में इलाहाबाद में राजस्व कार्यालय में क्लर्क बने।

जब ये केवल तीन वर्ष के थे इनकी माता ने इन्हें खो दिया था। वह इनके साथ गंगा में नहाने के लिए गई थी और भीड़ में उन्होंने अपना बेटा खो दिया क्योंकि वह इनके हाथों से फिसलकर ग्वाले की टोकरी में गिर गए थे। वह बहुत दुखी थी और उन्होंने अपने बेटे के गुम हो जाने की सूचना पुलिस को दी। अन्ततः, पुलिस ने बच्चे को खोज लिया। ग्वाला बच्चे की शीघ्र वापसी पर रोने लगा था।

इनके बचपन (जब ये केवल 6 वर्ष के थे) की एक और घटना हमें जीवन का बहुत महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है। एकबार ये अपने मित्रों के साथ स्कूल से वापस आ रहे थे और घर जाने के रास्ते में पड़ने वाले बाग में चले गए। इनके मित्र पेड़ से आम तोड़ने के लिए पेड़ों पर चढ़ गए और ये पेड़ के नीचे खड़े हो गए। इसी समय, बाग का माली वहाँ पहुँच गया और गलती से इन्हें मारने लगा। इन्होंने माली से बहुत अधिक मिन्नतें की और उससे आजाद होने के लिए उससे कहा कि वह अनाथ है। इतना सुनकर माली ने लाल बहादुर शास्त्री से कहा कि, “क्योंकि तुम अनाथ हो, तो यह तुम्हारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है कि, तुम अधिक बेहतर संस्कार सीखो।” इस घटना से वह बहुत अधिक प्रभावित हुए और भविष्य में अच्छा व्यवहार करने का निर्णय लिया।

इन्होंने अपनी शिक्षा पूर्वी केन्द्रीय रेलवे इंटर कॉलेज, मुगल सराय, वाराणसी से प्राप्त की। इन्होंने काशी विद्यापीठ, वाराणसी से 1926 में अपनी ग्रेजुएसन पूरी की और इन्हें शास्त्री (विद्वान) की पदवी से पुरस्कृत किया गया। वह भारत के महान नेताओं, जैसे- महात्मा गाँधी, बाल गंगाधर तिलक आदि से बहुत अधिक प्रभावित थे। हरि कृष्णन शास्त्री, अनिल शास्त्री, सुनील शास्त्री (जो कांग्रेस में नेता हो गए) और अशोक शास्त्री (जो बीजेपी में नेता बने) सहित 6 बच्चों के पिता बने।

उन्होंने आजीवन सदस्य के रुप में सर्वेंट ऑफ द पीपल सोसायटी (हरिजनों के विकास के लिए कार्य करने वाली संस्था) से जुड़ गए और उसके अध्यक्ष भी बने।

इनका जीवन काल

विवाह

इनकी शादी 16 मई 1928 को मिर्जापुर की ललिता देवी से हुई थी और शादी के उपहार के रुप में इन्होंने एक चरखा और कुछ गज खादी ली थी।

असहयोग आन्दोलन

दस साल की आयु तक ये अपने दादा जी के घर पर रहे और छठी कक्षा उत्तीर्ण की। इन्होंने बनारस से अपनी उच्च शिक्षा पूरी की। ये 1921 में महात्मा गाँधी के द्वारा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाए गए अहसहयोग आन्दोलन से जुड़ गए, उस समय इनकी आयु मात्र 17 साल थी। आन्दोलन के दौरान ये गिरफ्तार भी हुए, लेकिन अपने निर्णय पर अडिग रहे। अपनी माँ और रिश्तेदारों की इस आन्दोलन में भाग न लेने की सलाह के बाद भी इन्होंने इसमें भाग लिया था।

 

द सर्वेंट ऑफ द पीपल सोसायटी

रिहाई के बाद ये काशी विद्यापीठ आए और अपने दर्शन की शिक्षा को पूरा किया। इन्होंने 1926 में शास्त्री की डिग्री प्राप्त की और काशी विद्यापीठ को छोड़ने के बाद ये 1921 में लाला लाजपत राय द्वारा स्थापित “द सर्वेंट ऑफ द पीपल सोसायटी” से जुड़ गए। “द सर्वेंट ऑफ द पीपल सोसायटी” का उद्देश्य युवाओं के देश के प्रति उनके कर्तव्यों के बारे में जागरुक करना था।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन

1930 में, महात्मा गाँधी के बुलावे पर ये सविनय अवज्ञा आन्दोलन से जुड़ गए। वह इस आन्दोलन से जुड़ने के लिए इसलिए बुलाए गए, ताकि वह लोगों को सरकार को भूमि का लगान और कर का भुगतान न करने के लिए प्रेरित करें। इसके लिए इन्हें 2 वर्ष 6 महीने के लिए जेल में भी रहना पड़ा। वह जेल में पश्चिमी दर्शनशास्त्रियों, कान्तिकारियों के साथ ही समाज सुधारकों के सभी कार्यों से परिचित हुए।

वैयक्तिक सत्याग्रह

वैयक्तिक सत्याग्रह की शुरुआत द्वितीय विश्व युद्ध 1939 के तुरंत बाद स्वतंत्रता की माँग के लिए 1940 में कांग्रेस के द्वारा की गई थी। इसी दौरान इन्हें वैयक्तिक सत्याग्रह में भागीदरी के लिए 1 वर्ष की सजा और हुई। इन्हें गाँधी जी ने फिर से, 8 अगस्त 1942 को, भारत छोड़ों आन्दोलन से जुड़ने के लिए बुलाया। इन्होंने बहुत सक्रिय होकर इसमें भागीदारी की और लम्बे समय के लिए गिरफ्तार कर लिए गए। इसी दौरान इनकी मुलाकात गोविन्द बल्लभ पंत से हुई और 1946 के प्रदेशीय चुनावों के दौरान अपने कठिन परिश्रम के लिए पंत ने इनकी बहुत सराहना भी की। ये पंडित गोविन्द बल्लभ पंत (जब पंडित गोविन्द बल्लभ पंत उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री थे) के संसदीय सचिव नियुक्त हुए। ये 1947 में पंत की कैबिनेट में कानून और परिवहन मंत्री बने।

जैसे ही भारत गणतंत्र देश बना, ये कांग्रेस पार्टी के जनरल सैक्रिटैरी (महासचिव) बन गए। जवाहर लाल नेहरु के द्वारा इन्हें फिर से केन्द्रीय कैबिनेट में रेलवे और परिवहन मंत्री बनाया गया। तृतीय श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्रियों के लिए किए गए इनके प्रयास अविस्मरणीय है, क्योंकि इन्होंने प्रथम श्रेणी और तृतीय श्रेणी के बड़े अन्तर को कम किया। रेलवे में दुर्घटना के बाद इन्होंने 1956 में रेलवे से इस्तीफा दे दिया।

दुबारा, जब कांग्रेस सत्ता में आई, ये परिवहन और संचार मंत्री बने और बाद में वाणिज्य और उद्योग मंत्री बने। 1961 में, गोविन्द बल्लभ पंत की मृत्यु के बाद ये गृह मंत्री बने। इन्होंने 1962 में भारत चीन युद्ध के दौरान भारत की आन्तरिक व्यवस्था को बहुत अच्छे से बनाए रखा था।

ये बाल गंगाधर तिलक का बहुत अधिक सम्मान करते थे और बहुत देर तक उन्हें देखने के साथ ही सुना करते थे। एक बार बाल गंगाधर तिलक बनारस आए और लाल बहादुर शास्त्री बनारस से 50 मिल दूर, अपने गाँव में थे। इन्होंने बनारस आने के लिए अपने मित्र से टिकट के लिए रुपये लिए और ट्रेन से यात्रा करके तिलक को देखने और उनका भाषण सुनने के लिए वाराणसी पहुँचे थे। तिलक के भाषण इनके कानों में गूँजते थे और इन भाषणों का इनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इनके जीवन पर महात्मा गाँधी का भी बहुत अधिक प्रभाव पड़ा और इसके कारण इन्होंने अपना पूरा जीवन देश सेवा में समर्पित कर दिया।

 

लाल बहादुर शास्त्री का राजनीतिक जीवन

राज्य-मंत्री के रुप में

भारत की स्वतंत्रता के बाद, ये अपने ही राज्य, उत्तर प्रदेश के संसदीय सचिव के रुप में चुने गए। वर्ष 1947 में 15 अगस्त को, मुख्य मंत्री गोविन्द बल्लभ पन्त के अधिनस्थ कानून और परिवहन के मंत्री नियुक्त किए गए। ये पहले परिवहन मंत्री थे, जिन्होंने महिला कंडेक्टर को नियुक्त किया था और कानून मंत्री, जिन्होंने आन्दोलनकारी भीड़ को हटाने के लिए लाठी के स्थान पर पानी के जेट्स को प्रयोग करने का आदेश दिया था।

कैबिनेट मंत्री के रुप में

1951 में जब जवाहर लाल नेहरु प्रधानमंत्री थे, इन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का जनरल सैक्रिटैरी चुना गया था। एक जनरल सैक्रिटैरी (महासचिव) के रुप में, वह उम्मीदवारों के चयन और सभी चुनाव से संबंधित गतिविधियों के लिए प्रभारी थे। 30 अप्रैल 1952 को, वह उत्तर प्रदेश से राज्य सभा के नामांकित हुए और 13 मई 1952 से 7 दिसम्बर 1956 तक, केन्द्रीय कैबिनेट में रेलवे और परिवहन मंत्री नियुक्त किए गए। सितम्बर 1956 में, महबूबनगर की रेलवे दुर्घटना के बाद, इन्होंने रेलवे और परिवहन मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया, जो नेहरु के द्वारा अस्वीकृत कर दिया गया। तमिलनाडु के अरियापुर स्थान में दूसरी दुर्घटना के बाद, इन्होंने इस्तीफा दे दिया।

1957 में वह फिर से कैबिनेट में, परिवहन और संचार मंत्री और बाद में वाणिज्य और उद्योग मंत्री के रुप में वापस आए। 1961 में वह केन्द्रीय गृह मंत्री भी बने और इन्होंने भारत में भ्रष्टाचार की रोकथाम पर काम किया।

भारत के प्रधानमंत्री के रुप में

1964 में, जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु के बाद, यह भारत के दूसरे प्रधानमंत्री बने और 1965 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में भारत का सफलता की ओर नेतृत्व किया। वह देश के लिए बहुत अधिक कठिनाई का समय था और सभी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे थे। देश खाद्य भंडारण की समस्या से जूझ रहा था और उसी समय पर पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण कर दिया। वह महान वीर और दृढ इच्छाशक्ति के व्यक्ति थे और उस समय देश में युद्ध के दौरान देशवासियों का समर्थम इकट्ठा करने के लिए इन्होंने “जय जवान जय किसान” का नारा दिया। इनके नेतृत्व की पूरे विश्व में प्रशंसा हुई। वह अपना जीवन बहुत सादगी और सच्चाई के साथ जीते थे और भारतीयों के प्रोत्साहन के महान स्रोत थे।

इनके प्रधानमंत्री काल के दौरान भारत-पाक युद्ध और इनकी रहस्यमयी मृत्यु सहित बहुत से अच्छी-बुरी घटनाए हुई। कुछ घटनाओं का विवरण इस प्रकार है:

मद्रास हिंदी विरोधी आंदोलन को सुलझाने के माध्यम से घरेलू नीतियों में इनका योगदान

जब वह पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु के बाद 27 मई 1964 को प्रधानमंत्री नियुक्त किए गए, इन्होंने जवाहर लाल नेहरु की परिषद के बहुत से सदस्यों को बरकरार रखा; जैसे- भारत के रक्षा मंत्री के रुप में यशवंतराव चव्हाण, विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह, सूचना एंव प्रसारण मंत्री के रुप में इंदिरा गाँधी, भारत के गृह मंत्री के रुप में गुलजारी लाल नंदा, वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी आदि।

इन्होंने 1965 में मद्रास में हिन्दी विरोधी आन्दोलन का समाधान किया। भारत की मातृ-भाषा हिन्दी है, इसका हिन्दी न बोले जाने वाले कुछ राज्यों के द्वारा विरोध किया गया। इस स्थिति को संभालने के लिए, इन्होंने इंदिरा गाँधी के साथ हुई बैठक में गैर-हिन्दी भाषी राज्यों में कार्यकारी भाषा के रुप में अंग्रेजी को ही जारी रहने का फैसला किया था। इनके सकारात्मक आश्वासन के बाद दंगों को शान्त किया जा सका।

श्वेत क्रांति और हरित क्रांति अभियान के माध्यम से आर्थिक नीतियों में इनका योगदान

अपने प्रधानमंत्री काल के दौरान, इनके द्वारा किए गए कार्यों में इनकी महान नीतियों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखना और इसे बढ़ावा देना शामिल है। इन्होंने भारत की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अपनी स्वंय की नीति बनाई और साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री की समाजवादी आर्थिक नीतियों को भी जारी रखा। इन्होंने दूध की आपूर्ति और उत्पादन को बढ़ाने वाले श्वेत क्रान्ति के भारत के सबसे प्रसिद्ध राष्ट्रीय अभियान को बहुत सी दूध डेरियों, जैसे- गुजरात में आनंद की अमूल सहकारी कंपनी और राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड की स्थापना के माध्यम से बढ़ावा दिया।

भारत में खाद्य आपूर्ति की सबसे पुरानी समस्या के सामाधान में इनकी भागीदारी को कभी भी नहीं भुलाया जा सकता है। इन्होंने पूरे भारतवर्ष के लोगों से दिन के एक समय के भोजन को अपनी इच्छा से छोड़ने के लिए कहा था, ताकि जिन क्षेत्रों में भोजन की कमी थी वहाँ के लोगों के लिए भोजन बचाया जा सके। इन्होंने पूरे भारत में खाद्य उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए हरित क्रान्ति अभियान को (अपना “जय जवान जय किसान” का स्वंय का नारा देकर) 1965 में 22 दिन तक चले भारत-पाक के युद्ध के दौरान खाद्य भंडारण के लिए बढ़ावा दिया।

‘जय जवान जय किसान’ नारे के माध्यम से देश के लिए इनका योगदान

वह भारत के महान प्रधानमंत्री थे, क्योंकि इन्होंने भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए उत्कृष्ट समर्थन और योगदान दिया था। यह पूरे देश में लोगों के द्वारा इनके जन्मदिन और मृत्यु के दिन को याद रखने के द्वारा सदैव याद किए जाते है। साधारण भारतीय व्यक्ति होने के बाद भी इन्होंने एक असाधारण व्यक्ति की तरह अपने देश का नेतृत्व करने के लिए बहुत महान कार्य किए।

यह भारत के सबसे सफल प्रधानमंत्री माने जाते हैं, क्योंकि इन्होंने भारत का सफल नेतृत्व भारत की सबसे भयानक स्थितियों, जैसे- भारत-पाक युद्ध, खाद्य आपूर्ति समस्या आदि में किया था। इन्होंने 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान पूरे भारत में खाद्य आपूर्ति की समस्या का समाधान करने के लिए “जय जवान जय किसान” का स्वंय का नारा दिया था।

विदेश नीतियों में इनका योगदान

इन्होंने 1962 में भारत-चीन युद्ध के बाद देश की विनाशकारी स्थिति में देश के रक्षा बजट को सोवियत संघ के साथ घनिष्ट संबंधों में वृद्धि करने के द्वारा बढ़ाने में बहुत बड़ी भागीदारी की थी। चीनी गणराज्य और पाकिस्तान की सैन्य संधि के बाद इन्होंने देश के सशस्त्र सैनिकों के रक्षा बजट में वृद्धि करने का निर्णय लिया।

इन्होंने 1964 में भारतीय तमिलों की स्थिति पर विचार करने के लिए श्रीलंका के प्रधानमंत्री (श्रीमानवो भंडारनायके) के साथ श्रीमानवो-शास्त्री संधि (भंडारनायके-शास्त्री संधि) के समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के दौरान भारत व श्रीलंका के बीच बहुत बड़ा समाधान किया गया था, इस समझौते में लगभग 600,000 भारतीय तमिलों को श्रीलंका ने मुक्त करने और लगभग 375,000 लोगों को श्रीलंका की नागरिकता प्रदान करने की संधि की गई थी। हालांकि, लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद, 1981 में 31 अक्टूबर को, यह समझौता रद्द हो गया और केवल 3000,000 भारतीय तमिलों का प्रत्यावर्तन किया गया और केवल 185,000 लोगों को श्रीलंका की नागरिकता प्रदान की गई।

भारत-पाक युद्ध

वह एक महान योद्धा थे, जिन्होंने 1965 में भारत-पाक युद्ध के दौरान भारत का विजय की ओर नेतृत्व किया था। इन्होंने देश के आर्थिक विकास के दौरान अपने बयान में कहा था कि, हम आवश्यकता अनुसार लम्बे समय तक गरीबी में जिंदा रह सकते हैं, लेकिन अपनी स्वतंत्रता को हानि नहीं पहुँचने देंगे। भारत-पाक युद्ध का उद्देश्य कश्मीर था, हालांकि, लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी सेनाओं को भेजकर यह स्पष्ट कर दिया कि हम केवल सेना से ही जबाव देंगे। युद्ध संघर्ष विराम का शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए संयुक्त राष्ट्र की भागीदारी के साथ लम्बे समय के बाद 23 सितम्बर 1965 को भारत-पाक युद्ध खत्म हुआ।

भारत-पाक के बीच युद्ध की समाप्ति के बाद, भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पाकिस्तान के राष्ट्रपति मौहम्मद अयूब खान से बैठक करने के लिए ताशकंद के लिए गए, जहाँ दोनों को 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करने थे।

लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु का रहस्य

10 जनवरी 1966 में संधि हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद, जिसमें कि समझौता किया गया था कि, भारत और पाकिस्तान की एक राय है, एक दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के साथ ही दोनों के बीच विवादों का समाधान शान्तिपूर्ण तरीके से किया जाएगा न कि बल के माध्यम से, इनकी मृत्यु 1966 में 10 जनवरी को हुई थी।

लाल बहादुर शास्त्री की उपलब्धियाँ

इन्होंने भारत की आजादी में महान और अग्रणी भूमिका निभाई थी। वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविन्द बल्लभ पंत के संसदीय सचिव बने। पंत की कैबिनेट में वह कानून मंत्री के साथ ही केन्द्रीय मंत्रालय में परिवहन और रेलवे मंत्री भी नियुक्त किए गए। इन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल में वाणिज्य और उद्योग, परिवहन और संचार, साथ ही गृह मंत्री के रुप में भी कार्य किया था।

भारत रत्न:

वह भारतीय इतिहास के चमकदार सितारे थे। भारत के राष्ट्रपति के द्वारा इन्हें मृत्यु के बाद भारत रत्न के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

लाल बहादुर शास्त्री के कथन

  • “यह सच है कि, लोकतंत्र या स्वराज कुटिल या हिंसक साधनों के माध्यम से कभी नहीं आ सकता, सामान्य सा कारण है कि, इनके प्रयोग के दमन या विरोध के खात्मे के माध्यम से सभी विपक्षियों का हटना प्राकृतिक परिणाम होंगे।”
  • “देश के लिए वफादारी अन्य सभी वफादारियों में सबसे पहले आती है। और यह एक पूर्ण निष्ठा है जिसे कभी भी, क्या प्राप्त किया?, इसके द्वारा नहीं मापा जा सकता है।”
  • “जो लोग शासन करते हैं, उन्हें यह अवश्य देखना चाहिए, कि लोग उनके प्रशासन पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं। (क्योंकि शासन के लिए) अंततः लोग ही तो अन्तिम पैरोकार होते हैं।”
  • “विज्ञान और वैज्ञानिक काम में सफलता असीमित या बड़े संसाधनों के प्रावधान के माध्यम से नहीं आती है, बल्कि समस्याओं और उद्देश्यों के देखभाल व बुद्धिमत्तापूर्ण चुनाव से आते हैं। इन सबसे भी ऊपर कठिन निरंतर प्रयासों और लगन की आवश्यकता होती है।”
  • “हमारा न केवल स्वंय के लिए बल्कि पूरे विश्व के लोगों के लिए शान्ति और शान्तिपूर्ण विकास में विश्वास है। हमारा सबसे प्राथमिक कार्य विदेशों में शान्ति और मित्रता के साथ घरेलू आर्थिक और सामाजिक विकास है।”
  • “एक धर्मनिरपेक्ष राज्य में धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों को परिभाषित करना पूर्ण रुप से विरोधाभास है। आप सभी जानते हैं, और मेरा भी विश्वास है कि, धर्म का उद्देश्य बटवारा नहीं है। वहीं दूसरी ओर, सभी वास्तविक धर्मों का आधार एकता है।”
  • “हमारे इस विशाल देश में, लोगों के द्वारा विभिन्न धर्मों के दावे, विभिन्न भाषाओं का बोला जाना, विभिन्न तरह की पोशाक पहनना और विभिन्न परंपराओं को माना जाता है; लेकिन फिर भी हम एक राष्ट्र है; स्वतंत्रता के लिए हमारा संघर्ष और भविष्य में अपने विकास में विश्वास ही, हमारे एक जैसे उद्देश्य है।”
  • “भ्रष्टाचार को मापना बहुत कठिन कार्य है, बल्कि मैं इसे गंभीरता से इसलिए कहता हूँ कि, यदि हमने इस समस्या से निपटने के दृढ़ संकल्प को गंभीरता से नहीं लिया तो हम अपने कर्तव्य में असफल हो जाएगें।”
  • “यदि भारत में एक भी व्यक्ति ऐसा रह गया जिसे अछूत कहा जाए तो, भारत का सिर शर्म से झुक जाएगा।”
  • “यदि पाकिस्तान यह सोचता है कि, वह हमारे किसी भी प्रदेश के हिस्से को बल द्वारा हासिल कर लेगा, तो उसे नए सिरे से सोचना चाहिए। मैं स्पष्ट करना चाहता हूँ कि, बल का बल के साथ और आक्रमकता के साथ सामना किया जाएगा और कोई भी हमें सफल होने से नहीं रोक पाएगा।”

भारत में लाल बहादुर शास्त्री के स्मारक

लाल बहादुर शास्त्री पूरे भारत में अपनी महान प्रधानमंत्री समय और देश के लिए उत्कृष्ट कार्यों के कारण प्रसिद्ध है। उनकी महान उपलब्धियों और कार्यों के कारण उन्हें मत्युपर्यंत भारत रत्न के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनके जाने के बाद देश के लिए उनके उत्कृष्ट समर्थन और कार्यों को मनाने के लिए भारत की सरकार के द्वारा पूरे देशभर में बहुत से स्मारकों का निर्माण किया गया। उनके पीछे उनकी याद में बनवाए गए कुछ स्मारकों के नाम व स्थान निम्नलिखित है:

  • दिल्ली में विजयघाट।
  • लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन एकेडमी मसूरी, उत्तराखंड।
  • शास्त्री इंडो-कनेडियन संस्थान।
  • 2011 में भारत सरकार के द्वारा रामनगर, वाराणसी में इनके पैतृक घर को जीवनी संग्रहालय बनाने की घोषणा की गई।
  • लाल बहादुर शास्त्री अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा, बाबतपुर, वाराणसी (बनारस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा)।
  • जनपथ-10 पर लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय मेमोरियल ट्रस्ट, मोतीलाल नेहरु प्लेस, नई दिल्ली।
  • ताशकंद में एक सड़क, बाद में उसका नाम उज्बेकिस्तान कर दिया गया।
  • लाल बहादुर शास्त्री सागर (अलमाट्टी धाम), उत्तरी कर्नाटक।
  • एक मालवाहक जहाज को एमवी लाल बहादुर शास्त्री नाम दिया गया।
  • 2004 में लाल बहादुर शास्त्री की जन्मदिवस की 100वीं वर्षगांठ पर आरबीआई के द्वारा लाल बहादुर शास्त्री की तस्वीर के साथ, “लाल बहादुर शास्त्री का सालगिरह” लिख कर 5 रुपये के सिक्के को जारी किया गया था।

लाल बहादुर शास्त्री की टाइमलाइन (तथ्य)

1904: मुगलसराय, भारत में 2 अक्टूबर को जन्म।

1926: काशी विद्यापीठ से प्रथम श्रेणी में स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी की और जिसके सम्मान में इन्हें शास्त्री ( “विद्वान”) के शीर्षक के साथ सम्मानित किया।

1921: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए।

1928: मिर्जापुर में, 16 मई को ललिता देवी को शादी की।

1930: महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह में भाग लेना शुरू किया।

1937: यूपी के संसदीय बोर्ड के सचिव आयोजन के रूप में चुने गए।

1940: भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी की वजह से एक साल के लिए जेल गए।

1942: छोड़ो-भारत आंदोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए 1946 तक कई सालों के लिए जेल में रहे।

1947: उत्तर प्रदेश में संसदीय सचिव के रूप में चुने गए और 15 अगस्त को वह उत्तर प्रदेश राज्य के गृह मंत्री चुने गए थे।

1951: पंडित जवाहर लाल नेहरू के प्रधानमंत्री पद में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव के रूप में चयनित किए गए थे।

1952: यूपी से चुनाव जीतने के बाद राज्यसभा में प्रवेश किया और रेलवे और परिवहन मंत्री बने।

1956: माह सितंबर में एक बड़ी रेल दुर्घटना के बाद रेलवे मंत्रालय के पद से इस्तीफा दे दिया, जो पंडित नेहरू के द्वारा अस्वीकृत कर दिया था।

1956: दिसंबर महीने में फिर से तमिलनाडु में एक और रेल दुर्घटना के बाद में इसी पद से इस्तीफा दे दिया है हालांकि, इसे बाद में स्वीकार कर लिया गया।

1957: फिर से मंत्रिमंडल में प्रवेश किया।

1961: वह फिर से गृह मंत्री के रूप में चुने गए।

1964: 9 जून को, वह भारत के सबसे सम्माननीय प्रधानमंत्री बने।

1964: 11 जून को, उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में अपना पहला भाषण दिया था।

1964: उन्होंने भारतीय तमिलों की स्थिति के बारे में श्रीलंका के प्रधानमंत्री (श्रीमानवो-भंडारनायके) के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए।

1965: उन्होंने एक आधिकारिक भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा की निरंतरता के बारे में लोगों को आश्वस्त द्वारा मद्रास हिंदी विरोधी आंदोलन को हल किया।

1965: देश में भोजन की कमी को दूर करने के लिए उन्होंने लोगों से कम से कम दिन के एक समय के भोजन छोड़ करने के लिए के अनुरोध किया साथ ही भारत में एक राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड बनाने के द्वारा अमूल और श्वेत क्रांति का समर्थन किया था।

1965: अगस्त और सितंबर के महीने में उन्होंने हिम्मत से पाकिस्तान के साथ युद्ध का सामना किया और “जय जवान – जय किसान” का नारा देकर भारत के लोगों को प्रोत्साहित किया।

1965: 23 सितंबर को, उनके प्रधानमंत्रित्व में संयुक्त राष्ट्र द्वारा युद्ध विराम अनिवार्यता के साथ पाकिस्तान के साथ युद्ध समाप्त हो गया था।

1966: 10 जनवरी को, उन्होंने पाकिस्तान के अयूब खान के साथ ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किए।

1966: 11 जनवरी को, ताशकंद में दिल के दौरे की वजह से उनकी मृत्यु हो गई।

1966: वे भारत रत्न से सम्मानित किए जाने वाले भारत के पहले व्यक्ति बने।

1966: उनके सम्मान में, भारत की राष्ट्रीय प्रशासन एकेडमी का नाम “लाल बहादुर शास्त्री नेशनल एकेडमी” कर दिया गया था।