कुतुब मीनार पर निबंध (Qutub Minar Essay in Hindi)

कुतुब मीनार

भारत में बहुत सी अद्भुत ईमारते हैं जिनमें से एक कुतुब मीनार है। कुतुब मीनार भारत की राजधानी दिल्ली के दक्षिण में महरौली भाग में स्थित है। कुतुब मीनार का निर्माण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 12 वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ। परंतु यह मीनार उस के शासन काल में पूरी नहीं हो सकी जिसकी वजह से इस के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण पूरा किया था। कुतुब मीनार (जिसे कुतुब मीनार या कतब मीनार भी कहा जाता है) प्रसिद्ध भारतीय ऐतिहासिक स्मारक है, जो भारत की दूसरी सबसे बड़ी मीनारों में (पहली मीनार फतेह बुर्ज (चप्पड़ चिड़ी, मौहाली) है, 100 मीटर लम्बी) में गिनी जाती है।

कुतुब मीनार पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Qutub Minar in Hindi, Qutub Minar par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना

कुतुब मीनार एक भारतीय ऐतिहासिक स्मारक है, जो भारत के अन्य ऐतिहासिक स्मारकों के बीच एक प्रमुख आकर्षण के रूप में अकेला खड़ा है। कुतुब का अर्थ न्याय का स्तम्भ है। यह भारत की राजधानी अर्थात् दिल्ली में स्थित है। कुतुब मीनार दुनिया की सबसे बड़ी और प्रसिद्ध टावरों में से एक बन गई है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में सूचीबद्ध की गई है। यह मुगल वास्तुकला की उत्कृष्ट कृति का एक बड़ा उदाहरण है। यह एक 73 मीटर लम्बी, 13वीं सदी की स्थापित्व शैली (इंडो-इस्लामिक वास्तुकला) में लाल बलुआ पत्थर से बनी मीनार है।

कुतुब मीनार की विशेषता

इस मीनार को सबसे ऊंचे गुंबद वाली मीनार भी कहा जाता है। इस पर ज्यादातर लाल रंग के बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है। यह 12वीं और 13वीं सदी में कुतुब-उद्दीन ऐबक और उसके उत्तराधिकारियों द्वारा राजपूतों के ऊपर मुहम्मद गौरी की जीत का जश्न मनाने के लिए निर्मित की गई थी। इससे पहले, यह तुर्क-अफगान साम्राज्य और इस्लाम की सैन्य शक्ति का प्रतीक थी।

कुतुब मीनार

यह शंक्वाकार आकार में 14.3 मीटर के आधार व्यास और 2.7 मीटर के शीर्ष व्यास वाली सबसे ऊँची मीनारों में से एक है। इसके अंदर 379 सीढ़ियाँ और पाँच अलग मंजिलें हैं। मीनार की ऊपरी मंजिल से शहर का एक शानदार दृश्य दिखाई देता है। इसकी पहली तीन मंजिलें लाल बलुआ पत्थरों से निर्मित हैं हालांकि, चौथी और पाँचवीं मंजिल का निर्माण संगमरमर और लाल बलुआ पत्थरों के प्रयोग से हुआ है।

निष्कर्ष

इस मीनार के नजदीक कई और इमारतों का निर्माण करवाया गया था जैसे अलाई मीनार इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा करवाया गया था माना जाता है के वह कुतुब मीनार से भी ऊँची मीनार बनाना चाहते थे किन्तु खिलजी की मौत के बाद यह काम अधूरा ही रह गया।


निबंध 2 (400 शब्द)

प्रस्तावना

कुतुब मीनार एक सबसे प्रसिद्ध और भारत की सबसे ऊँची मीनारों में से एक है। यह अरबिन्द मार्ग, महरौली पर स्थित है और विश्व धरोहरों में जोड़ी जा चुकी है। यह भारत की दूसरी सबसे ऊँची इमारत है, जिसका निर्माण 1192 में कुतुब-उद्दीन-ऐबक के द्वारा शुरु कराया गया था और बाद में उसके उत्तराधिकारी इल्तुतमिश के द्वारा पूरा कराया गया। यह एक शंक्वाकार इंडो-इस्लामिक अफगान स्थापित्व शैली में बनाई गई मीनार है। यह 379 सीढ़ियों को रखने वाली 73 मीटर (23.8 फिट) की ऊँचाई वाली मीनार है।

क़ुतुब मीनार की शोभा

कुतुब मीनार के चारों ओर एक आकर्षक हरा बगीचा है, जो आगन्तुकों के ध्यान को खींचता है। यह भारत के सबसे प्रसिद्ध और आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है। यह भारत का सबसे अधिक देखा जाने वाला स्मारक है, जिसे देखने के लिए पूरी दुनिया के कोने-कोने से लोग आते हैं। यह 14.3 मीटर के आधार व्यास और 2.7 मीटर के शीर्ष व्यास वाली सबसे अलग शैली में निर्मित पाँच मंजिल (इसकी पहली तीन मंजिल लाल बलुआ पत्थरों का प्रयोग करके और ऊपर की दो मंजिल संगमरमर और बलुआ पत्थर का उपयोग करके बनाई गई है) की मीनार है।

कुतुब मीनार से सटी हुई एक और लम्बी मीनार अलाई मीनार है। कुतुब मीनार इस्लाम की विजय और ताकत के प्रतीक के साथ ही कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद में प्रार्थना करने के लिए लोगों को बुलाने की सेवा का कार्य करने का भी प्रतीक है। यह दिल्ली में आकर्षक पर्यटक गंतव्य है और इसका गर्मियों व सर्दियों की छुट्टियों में सबसे अधिक बच्चों और विद्यार्थियों द्वारा दौरा किया जाता है।

निष्कर्ष

हिंदु के लोगों का मानना है कि वर मिहिर जो कि चंद्र गुप्त विक्रमादित्य के नौ रत्नों में से एक थे उन्होंने इसका निर्माण करवाया था और जिसका नाम विष्णु ध्वज था। कुतुब मीनार में कला को देखा जा सकता है। इसे देखने देश विदेशों से लोग आते हैं। कुतुब मीनार समय के साथ टेढ़ी हो चुकी है। यह ऐसा पहला मकबरा है जो किसी मुगल शासक द्वारा अपने जीवित रहते बनवाया गया था। यह पर्यटकों के आकर्षण का प्रसिद्ध स्मारक है जिसमें इसके पास अन्य संरचनाएं शामिल हैं। प्राचीन समय से, ऐसा माना जाता है कि जो उसके पीछे खड़े होकर हाथों से लोहे के खंभे को घेर लेता है, वह उसकी सारी इच्छाओं को पूरा करेगा। इस ऐतिहासिक और अद्वितीय स्मारक की सुंदरता देखने के लिए दुनिया के कई कोनों से पर्यटक हर साल यहां आते हैं।

Essay on Qutub Minar in Hindi

निबंध 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना

कुतुब मीनार दक्षिण दिल्ली में अरबिन्द मार्ग मौहाली पर स्थित है। यह लाल बलुआ पत्थर से बनी एक प्रसिद्ध शानदार संरचना है। यह भारत की दूसरी सबसे ऊँची मीनार है, जो 800 सालों से भी अधिक प्राचीन है। इस मीनार का निर्माण कार्य 1192 में कुतुब-उद्दीन-ऐबक (जो प्रथम सबसे सफल मुस्लिम शासक के रुप में जाना जाता है, जिसने भारत में इस इस्लामिक राजवंश को बनाया था) के द्वारा शुरु कराया गया था। यह माना जाता है कि, यह मीनार भारत में राजपूतों को हराने के प्रतीक के रुप में बनवाई गई थी। इस मीनार का कार्य इसके उत्तराधिकारियों में से एक इल्तुतमिश के द्वारा पूरा कराया गया था।

क़ुतुब मीनार किसने बनवाया था?

कुतुब मीनार का निर्माण गुलाम वंश के शासक कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा 12 वीं शताब्दी में प्रारंभ हुआ। परंतु यह मीनार उस के शासन काल में पूरी नहीं हो सकी जिसकी वजह से इस के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने कुतुब मीनार का निर्माण पूरा किया था।

कुतुब मीनार की संरचना

कुतुब मीनार लाल पत्थरों से बनी है। जिनमें लगाए पत्थरों पर कुरान की आयतें तथा मुहम्मद गौरी और कुतुबुद्दीन की प्रशंसा की गई है। कुतुब मीनार के आधार का व्यास 14.3 मीटर और शीर्ष का व्यास 2.7 मीटर है। इसकी 379 सीढ़ियाँ है। इसका निर्माण कुतुब-उद्दीन-ऐबक के द्वारा 1193 में शुरु हुआ था हालांकि, इसे इल्तुतमिश नामक उत्तराधिकारी के द्वारा पूरा किया गया। इसकी पाँचवीं और आखिरी मंजिल 1368 में फिराज शाह तुगलक के द्वारा बनवाई गई थी। कुतुब मीनार के परिसर के आसपास कई अन्य प्राचीन और मध्य युगीन संरचनाओं के खंडहर हैं।

क़ुतुब मीनार एक पर्यटन स्थल

यह मुगल स्थापित्व कला का शानदार नमूना है और भारत में एक पर्यटन स्थल के रुप में प्रसिद्ध है। यह हर साल लाखों पर्यटकों, विशेषरुप से छात्रों को आकर्षित करती है। यह यूनेस्को की विश्व धरोहरों में शामिल है। प्राचीन समय में, कुतुब-उद्दीन ऐबक भारत आया और उसने राजपूतों के साथ युद्ध किया और उन्हें हराने में सफल हो गया।

राजपूतों के ऊपर अपनी विजय की सफलता को मनाने के लिए, उसने इस अद्भुत मीनार को बनाने का आदेश दिया। इसका निर्माण कार्य बहुत सी शताब्दियों में खत्म हुआ हालांकि, समय-समय पर इसके निर्माण कार्य में कुछ परिवर्तन (अन्तिम परिवर्तन सिकन्दर लोदी के द्वारा किया गया था) भी किए गए। मूल रुप से, यह सबसे पहले केवल एक मंजिल ऊँची थी और बाद के शासकों द्वारा इसमें और मंजिलें जोड़ी गई।

इसके आधार का व्यास 14.3 मीटर और शीर्ष व्यास 7.3 मीटर है। यह 73 मीटर लम्बी है, जिसमें 379 सीढ़ियाँ है। यह माना जाता है कि, यह सात मंजिल की थी हालांकि, ऊपरी दो मंजिल भूकम्प में गिर गई। कुछ अन्य अद्वितीय संरचनाएं, जैसे- अलाई-दरवाजा, इल्तुतमिश का मकबरा, दो मस्जिदें, आदि इस मीनार के आस-पास होने के साथ ही इसके आकर्षण को बढ़ाती है। यह इंडो-इस्लामिक स्थापित्व शैली में बनाया गया है।

निष्कर्ष

इस मीनार पर ऐबक और तुगलक के काल की वस्तु शैली के नमूनों को देखा जा सकता है , इस मीनार के निर्माण में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग किया गया है जो इसकी सुन्दरता को बढ़ाता है और इस पर कुरान की आयतों के अलावा फूल पत्तियों की कला का नमूना देखने को मिलता है। कुतुब मीनार 73 मीटर लम्बी है, जो इन्डो-इस्लामिक शैली में बनाई गई है। यह यूनेस्को के द्वारा विश्व विरासत में जोड़ी गई है।

निबंध 4 (600 शब्द)

प्रस्तावना

भारत की दूसरी सबसे बड़ी, आकर्षक और ऐतिहासिक स्मारक कुतुब मीनार, अरबिंद मार्ग, महरौली दिल्ली में स्थित है। यह लाल बलुआ पत्थर और संगमरमर का उपयोग कर अनूठी स्थापत्य शैली में बनाई गई है। यह माना जाता है कि, मुगलों ने राजपूतों पर अपनी जीत का जश्न मनाने के लिए इस विजय मीनार का निर्माण कराया था। इसकी दुनिया की प्रसिद्ध मीनारों में गिनती होती है और विश्व धरोहर स्थलों में इसे जोड़ा जाता है। यह 73 मीटर लम्बी, 14.3 मीटर आधार व्यास, 2.7 मीटर शीर्ष व्यास, 379 सीढ़ियाँ और पाँच मंजिल वाली मीनार है।

कुतुब मीनार का इतिहास

कुतुब मीनार का निर्माण कुतुब-उद्दीन ऐबक के द्वारा शुरू कराया गया था हालांकि, इसे इल्तुतमिश द्वारा पूरा किया गया। इस मीनार का निर्माण कार्य 1200 ईस्वी में पूरा हुआ था। यह मुगल स्थापत्य कला की सबसे महान कृतियों में से एक है, जो सुन्दर नक्काशी के साथ बहुत सी मंजिलों की इमारत है। यह आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है, जो हर साल एक बड़ी भीड़ को दुनिया भर के कोनों से इसे देखने के लिए आकर्षित करती है। इसने भूकम्प के कारण बहुत से विनाशों को झेला है हालांकि, उसी समय इसे शासकों द्वारा पुनर्निर्मित भी कराया गया है।

फिरोज शाह ने इसकी ऊपरी दो मंजिलों का पुनर्निर्माण कराया था, जो भूकम्प में नष्ट हो गई थी। एक अन्य पुनर्निर्माण का कार्य सिकन्दर लोदी के द्वारा 1505 में और मेजर स्मिथ के द्वारा 1794 में मीनार के नष्ट हुए भागों में कराया गया था। यह सप्ताह के सभी दिनों में सुबह 6 बजे खुलती है, और शाम 6 बजे बन्द होती है।

मीनार का निर्माण बहुत समय पहले लाल बलुआ पत्थरों और संगमरमर का प्रयोग करके किया गया था। इसमें बहुत से बाहरी किनारे और बेलनाकार या घुमावदार रास्ते हैं और इसकी बालकनियाँ इसकी मंजिलों को अलग करती हैं। कुतुब मीनार की पहली तीन मंजिलों का निर्माण लाल बलुआ पत्थरों का प्रयोग करके हुआ है हालांकि, चौथी और पाँचवीं मंजिल का निर्माण संगमरमर और बलुआ पत्थरों से हुआ है।

इस मीनार के आधार में एक कुव्वत-उल-इस्लाम (जिसे भारत में निर्मित पहली मस्जिद माना जाता है) मस्जिद है। कुतुब परिसर में 7 मीटर की ऊँचाई वाला एक ब्राह्मी शिलालेख के साथ लौह स्तंभ है। मीनार की दिवारों पर कुरान (मुस्लिमों का पवित्र पौराणिक शास्त्र) की बहुत सी आयतें भी लिखी गई हैं। यह देवनागरी और अरेबिक रुप में लिखे अपने इतिहास को भी रखता है।

पर्यटकों के आकर्षण का कारण

यह पर्यटकों के आकर्षण का प्रसिद्ध स्मारक है, जिसके आस-पास अन्य स्मारक भी हैं। प्राचीन समय से ही, यह माना जाता है कि, यदि कोई व्यक्ति इसकी ओर पीठ करके इसके सामने खड़े होकर अपने हाथों से इस (लौह स्तम्भ) के चक्कर लगाता है, तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। हर साल दुनिया भर के कोनों से, पर्यटक यहाँ इस ऐतिहासिक और अद्भुत स्मारक की सुन्दरता को देखने के लिए आते हैं।

कुतुब मीनार इमारत की मंजिलें

यह 73 मीटर लम्बी, 14.3 मीटर आधार व्यास, 2.7 मीटर शीर्ष व्यास, 379 सीढ़ियाँ और पाँच मंजिल वाली मीनार है। प्राचीन काल में इस इमारत की सात मंजिलें थी। जिनमें से अब केवल 5 मंजिले शेष है। पाँचवीं मंजिल से दिल्ली का शहरी दृश्य भली-भांति देखा जा सकता है।

निष्कर्ष

इस ऐतिहासिक मीनार को देखने के लिए भारत के अलावा दुनिया भर के पर्यटकों  के लिए  यह आकर्षण का स्मारक है। इस मीनार के नजदीक कई और इमारतों का निर्माण करवाया गया था जैसे अलाई मीनार इसका निर्माण अलाउद्दीन खिलजी के द्वारा करवाया गया था माना जाता है के वह कुतुब मीनार से भी ऊँची मीनार बनाना चाहते थे किन्तु खिलजी की मौत के बाद यह काम अधूरा ही रह गया।