डॉ संपूर्णानंद

डॉ संपूर्णानंद की जीवनी

एक शिक्षक और भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के राजनेता, डॉ संपूर्णानंद का जन्म 1 जनवरी 1891 में वाराणसी शहर में हुआ था। और उनकी मृत्यु 7 मार्च 1969 में वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुई थी। वह बनारस के अच्छे परिवार से संबंधित थे और उन्होंने अपने जीवन की शुरुआत शिक्षक के रुप में की थी। वह एक भावुक स्वतंत्रता सेनानी थे और उनकी बचपन से संस्कृत और खगोल शास्त्र में विशेष रुचि थी। वह उत्तर प्रदेश की विधान सभा में चुने गए और 1954-1960 तक उत्तर प्रदेश राज्य के 6 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे। वह हिन्दी और संस्कृत भाषा के विद्वान थे।

डॉ संपूर्णानंद का जीवन

कमलापति त्रिपाठी और सी.बी गुप्ता के द्वारा उत्तर प्रदेश में कुछ राजनीतिक संकट उत्पन्न होने के कारण यूपी के मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद ये राजस्थान के राज्यपाल बन गए।

बनारस शहर में पंड़ित मदन मोहन मालवीय के द्वारा चलाए जा रहे असहयोग आन्दोलन में इन्होंने भागीदारी की थी। और फिर से नेशनल हेराल्ड और कांग्रेस सोशलिस्ट में भाग लिया और वह 1922 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति में चुने गए। वह भारत की स्वतंत्रता के बाद क्षेत्रीय शिक्षा मंत्री बने थे।

शिक्षा मंत्री पद पर रहने के दौरान इन्होंने स्वंय को अपने खगोलीय शास्त्र के सपने को पूरा करने में लगा दिया और इसी समय इन्होंने सरकारी संस्कृत कॉलेज (अब संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के रूप में जाना जाता है) में खगोलीय वेधशाला स्थापित करने की योजना बनाई। और इसके बाद इन्होंने 9 वर्षों 1946-1951 तक और 1951-1954 तक के लिए संघीय मंत्री के पद की जिम्मेदारी को ग्रहण किया।

डॉ संपूर्णानंद, 8 फरवरी 1962 में यूपी सरकार के सांस्कृतिक विभाग के द्वारा स्थापित, “राज्य ललित कला अकादमी” उत्तर प्रदेश के प्रथम अध्यक्ष बने। वह सदैव स्वंय को देश सेवा के महान कार्यों में व्यस्त रखते थे। राजस्थान में इनके राज्यपाल पद के दौरान, इन्होंने “सांगनेर की बिना सलाखों की जेल” के विचार को बढ़ावा दिया। जिसका अर्थ है, अपराधियों के लिए एक खुली हुई जेल, जिसमें कि अपराधी अपने परिवार के साथ रह सके और बिजली व पानी के बिलों का भुगतान करने बाहर जा सके।

वह हमेशा से ही अपराधियों के लिए कड़ी सजाओं के खिलाफ थे। इनका अपराधियों के लिए बयान था कि, अपराधियों को दंडित प्रतिशोध के रुप में नहीं, बल्कि नवीनीकरण के रुप में किया जाना चाहिए। इनके समय में, 1963 में राजस्थान की सरकार के द्वारा श्री सम्पूर्णानंद खुला बंदी शिविर शुरु किया गया था।