“स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है” कहावत का अर्थ है कि स्वच्छता भक्ति या देवत्व के मार्ग की ओर ले जाती है। पर्याप्त स्वच्छता के माध्यम से हम स्वयं को शारीरिक और मानसिक रुप से स्वच्छ रख सकते हैं। जो हमें वास्तव में अच्छा, सभ्य और स्वस्थ मनुष्य बनाती है। स्वच्छता हममें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक भलाई की भावना को भी उत्पन्न करती है और एक अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करने में हमारी सहायता करती है।
प्रस्तावना
हमारे जीवन में स्वच्छता का होना हमारे लिए काफी आवश्यक है जो हमें हमारे दैनिक जीवन में अच्छाई की भावना को प्राप्त करने तथा स्वच्छता को बढ़ाये रखने का बढ़ावा देती है। यह हमारे जीवन में स्वच्छता के महत्व को प्रदर्शित करती है और हमें जीवन भर स्वच्छता की आदत का पालन करने की सीख देती है। साफ सफाई के लिए हमें समझौता नहीं करना चाहिए क्योंकि ये हमारे स्वास्थ को प्रत्यक्ष रुप से प्रभावित करता है।
व्यक्तिगत स्वच्छता
स्वच्छता में केवल स्वयं को स्वच्छ रखना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ व्यक्तिगत स्वच्छता और सकारात्मक विचारों को लाने के द्वारा शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार की स्वच्छता बनाए रखना है। “स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है”, जिसका अर्थ है, स्वच्छता बनाए रखना और अच्छा सोचना व्यक्ति को भगवान के करीब लाता है। अच्छे स्वास्थ्य और नैतिक जीवन जीने के लिए स्वच्छ रहना बहुत महत्वपूर्ण है।
एक साफ और अच्छी तरह से तैयार हुआ व्यक्ति प्रभावशाली आदतों के साथ अच्छे व्यक्तित्व और अच्छे चरित्र को इंगित करता है। एक व्यक्ति के अच्छे चरित्र का मूल्यांकन साफ कपड़ों और अच्छे व्यवहार के द्वारा किया जाता है। शरीर और मन की स्वच्छता किसी भी व्यक्ति के आत्म सम्मान में सुधार करती है। हर नगर निगम द्वारा अपने शहर को स्वच्छ रखने और लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाने के लिए काफी कठिन प्रयास किया जाता हैं।
निष्कर्ष
शरीर, मन और आत्मा की स्वच्छता भक्ति की ओर ले जाती है, जो अन्ततः शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से एक व्यक्ति में अच्छाई की भावना लाती है। एक व्यक्ति को अपने दैनिक जीवन में स्वच्छता बनाए रखनी चाहिए। जिसके लिए उसे जीवन में कड़े अनुशासन और निश्चित सिद्धान्तों का पालन करने की आवश्यकता होगी। एक स्वच्छ व्यक्ति काफी धार्मिक होता है, जिससे उसका मन प्रसन्नचित्त रहता है और उसे दूसरों से कभी भी नफरत तथा जलन महसूस नहीं होती है।
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प्रस्तावना
स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है”, एक प्रसिद्ध कहावत है, जो हमारे लिए बहुत कुछ प्रदर्शित करती है। यह इंगित करती है कि, स्वच्छता स्वस्थ जीवन का एक महत्वपूर्ण भाग है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि, स्वच्छता की आदत हमारी परंपरा और संस्कृति है। हमारे बुजुर्ग हमें हमेशा सही तरह से साफ-सुथरा रहना सिखाते हैं और हमें भगवान की प्रार्थना करने के साथ ही सुबह नहाने के बाद नाश्ता करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। वे हमें सही ढंग से हाथ धोने के बाद भोजन करना, और पवित्र किताबों या अन्य वस्तुओं को छूना सिखाते हैं। यहाँ तक कि, कुछ घरों में रसोई घर और पूजा घर में बिना नहाए जाने पर प्रतिबंध होता है।
स्वच्छ पर्यावरण
व्यक्तिगत स्वच्छता और एक व्यक्ति के नैतिक स्वास्थ्य के बीच में बहुत करीबी संबंध है। व्यक्तिगत स्वच्छता को शरीर और आत्मा की शुद्धता माना जाता है, जो स्वस्थ और आध्यात्मिक संबंध को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
वे लोग जो प्रतिदिन स्नान नहीं करते हैं या गन्दे कपड़े पहनते हैं, वे आमतौर पर आत्मविश्वास, आत्म-सम्मान और अच्छाई की भावना को खो देते हैं। इसलिए हम कह सकते हैं कि, व्यक्तिगत स्वच्छता हमें बेईमानी से सुरक्षित करती है। पुजारी भगवान के सामने उपस्थित होने या किसी भी पूजा या कथा में शामिल होने से पहले सही ढंग से नहाने, हाथ धोने और स्वच्छ कपड़े पहनने के लिए कहते हैं।
यहूदियों में भोजन ग्रहण करने से पहले हाथ धोने की कड़ी परंपरा है। घर हो, ऑफिस हो, कोई पालतू जानवर हो या आपका अपना स्कूल, कुआँ, तालाब, नदी आदि सहित स्वच्छता रखना एक अच्छी आदत है जो स्वच्छ पर्यावरण और स्वस्थ जीवनशैली के लिए हर किसी को अपनानी चाहिए।
निष्कर्ष
स्वच्छता के कारण होने वाले यह लाभ इस सवाल का जवाब देने का कार्य करते हैं कि, धार्मिक लोगों और धर्म के प्रवर्तकों ने स्वच्छता की प्रथा को धार्मिक कार्यक्रमों के दौरान इतना आवश्यक क्यों बताया है। नियमित और सही ढंग से की गई स्वच्छता हमारे शरीर को लम्बे समय तक रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करता है और हमारे अच्छे स्वास्थ को बरकरार रखता है।
प्रस्तावना
स्वच्छता के विषय में एक काफी प्रसिद्ध कहावत है कि “स्वच्छता भक्ति से भी बढ़कर है”” यह कहावत इस बात को प्रमाणित करती है कि स्वच्छता देवत्व तथा भक्ति के समान है और इसके बिना हम ईश्वर को प्राप्त नही कर सकते हैं। भारत में बहुत से महान लोग और समाज सुधारकों (जैसे- महात्मा गाँधी, आदि) ने शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक, और आस-पास की स्वच्छता को बनाए रखने के लिए व्यक्तिगत रुप से काफी कठिन परिश्रम किया था। आजकल, स्वच्छ भारत अभियान, भारत के प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी के द्वारा भारत में आसपास के वातावरण को स्वच्छ बनाने के लिए चलाया जा रहा है।
आम जनता में स्वच्छता के जागरुकता का प्रयास
इससे भी पहले बहुत से स्वच्छता कार्यक्रमों को चलाया गया था हालांकि, आम जनता का सही सहयोग न मिलने के कारण सभी असफल रहे। स्वच्छता के समान उद्देश्यों के साथ विश्व पर्यावरण दिवस को हर साल मनाया जाता है। हमने पश्चिमी सभ्यता से बहुत कुछ ग्रहण किया है हालांकि, उनके शिष्टाचारों और साफ-सफाई व स्वच्छता से संबंधित आदतों को नहीं अपना पाए हैं। स्वच्छता नजरिये का मामला है, जो सिर्फ आम जनता में स्वच्छता के बारे में पर्याप्त जागरूकता के माध्यम से ही संभव है। स्वच्छता एक गुण है, जिस पर पूरी तरह से नियंत्रण करने के लिए सभी आयु वर्ग और पद के लोगों द्वारा बढ़ावा देना चाहिए। पर्याप्त और नियमित स्वच्छता अच्छा मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, आत्मा और मन की पवित्रता लाती है। शरीर और मन की स्वच्छता आध्यात्मिक और सकारात्मक सोच के साथ ही आसानी से प्रकृति से जुड़ने में भी हमारी सहायता करती है।
स्वच्छता का मनोवैज्ञानिक असर
दूषित वातावरण हमें सिर्फ शारीरिक रूप से अस्वस्थ नहीं करता, बल्कि मनोवैज्ञानिक तौर पर भी असर डालता है। गंदे माहौल में जाने से इंसान भी हिचकिचाता है तो फिर यह उम्मीद कैसे की जाए कि वहां भगवान का वास हो सकता है। व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखें तो पाएंगे कि जो देश साफ-सफाई का ध्यान रखते हैं, वे तेजी से विकास कर रहे हैं। यह भी सच है कि जिन देशों में जितनी गंदगी देखने को मिलती है वह विकास की सूची में उतने ही नीचे पाए जाते हैं। वातावरण इंसान के चरित्र और दिमाग का आईना भी है। इसलिए कहा गया है कि स्वच्छ वातावरण यानी, स्वस्थ दिमाग यहीं कारण है कि स्वच्छता का महत्व हमारे जीवन में इतना ज्यादे है।
निष्कर्ष
वे लोग जो अपनी स्वच्छता को बनाए नहीं रखते हैं, वे आमतौर पर बहुत से परेशानियों जैसे- शारीरिक समस्याओं, मानसिक परेशानियाँ, बीमारियाँ, नकारात्मक सोच आदि से परेशान रहते हैं। वहीं दूसरी ओर, वे लोग जो व्यक्तिगत साफ-सफाई से रहते हैं, वे हमेशा खुश रहते हैं, क्योंकि वे सकारात्मक सोच को विकसित करते हैं जो शरीर, मन और आत्मा को सन्तुलित करने में हमारी सहायता करता है।
प्रस्तावना
स्वच्छता हमारे जीवन के लिए काफी महत्वपूर्ण है, यह वह वस्तु है जो हमारे जीवन में तमाम तरह की सफलताओं को प्रभावित करती है। लोगों को अपनी स्वस्थ जीवन शैली तथा जीवन को बनाए रखने के लिए स्वयं को स्वच्छ रखना बहुत ही आवश्यक है। स्वच्छता एक ऐसा मार्ग है जो हमें तरक्की तथा अपने लक्ष्यों के प्राप्ति के प्रति अग्रसित करता है। स्वच्छ होने का अर्थ है, स्वयं को शारीरिक तथा मानसिक रुप से स्वच्छ रखना।
अपने शरीर को साफ, स्वच्छ और सही तरीके से तैयार करके रखना। हममें आत्मविश्वास और सकारात्मक विचारों को पैदा करने का कार्य करता है। अच्छी तरह से तैयार होने के साथ ही स्वच्छता की आदत दूसरों पर अच्छा प्रभाव डालती है और यह समाज में हमारी अच्छी प्रतिष्ठा को बढ़ाने का भी कार्य करती है क्योंकि स्वच्छता एक व्यक्ति के साफ चरित्र को भी प्रदर्शित करती है।
स्वच्छता क्यों जरूरी है?
यह माना जाता है कि स्वच्छता की आदत को बनाए रखने वाले और अच्छी तरह से तैयार होने की आदत को विकसित करने वाले लोग, साफ चरित्र और आमतौर पर पवित्र और भगवान से डरने वाले होते हैं। इस तरह के लोग धार्मिक होने के द्वारा अपने जीवन में कुछ निश्चित नैतिकता और साफ हृदय रखते हैं। हम कह सकते हैं कि, भक्ति साफ हृदय से शुरु होती है और साफ हृदय वाला व्यक्ति अच्छे चरित्र वाला व्यक्ति हो सकता है। यही वह कारण है, जिसके कारण किसी भी धर्म का पुजारी पूजा करने से पहले शरीर और मन को साफ करने के लिए कहते हैं। भगवान के करीब रहने के लिए स्वच्छता सबसे पहली और महत्वपूर्ण चीज है।
वहीं दूसरी ओर, स्वच्छ रहना हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करता है और हमें बहुत सी भयंकर और गंभीर बीमारियों से सुरक्षित करता है। फिर भी, साफ लोग गन्दें लोगों के संपर्क में बीमार हो सकते हैं, लेकिन वे छोटी समस्याओं का सामना करने के लिए काफी मजबूत होते हैं। वे गरीब और गंदे लोगों को स्वच्छता के बारे में निर्देश देने सहित स्वच्छता से संबंधित अपने आस-पास की चीजों का प्रबंध कर लेते हैं।
शारीरिक स्वच्छता से आन्तरिक स्वच्छता
समुचित साफ-सफाई के साथ रहने वाले लोग गन्दे चेहरे, हाथों, गन्दे कपड़ों और बुरी तरह से महकने वाले कपड़ों वाले लोगों से मिलने में शर्म महसूस करते हैं, क्योंकि इस तरह के लोगों से मिलने में वे अपना अपमान महसूस करते हैं। शरीर की स्वच्छता वास्तव में अच्छे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए बहुत आवश्यक है। वहीं दूसरी ओर, शारीरिक स्वच्छता आन्तरिक स्वच्छता प्रदान करती है और हृदय और मन को साफ रखती है। मन की स्वच्छता हमें मानसिक रुप से स्वच्छ रखती है और मानसिक परेशानियों से बचाती है। इसलिए, पूरी स्वच्छता हमें गंदगी और बीमारियों से दूर रखती है, क्योंकि ये दोनों (गंदगी और बीमारियाँ) साथ में चलती है क्योंकि जहाँ गंदगी होगी वहाँ बीमारियाँ भी होंगी।
स्वच्छता : हमारे भीतर और आसपास
महात्मा गाँधी सफाई पर बहुत जोर देते थे उन्हें साफ-सफाई काफी प्रिय थी। उनका विश्वास था कि स्वच्छता हर व्यक्ति की स्वयं तथा सामूहिक सहयोग द्वारा निभायी जाने वाली जिम्मेदारी है। उनके आश्रमों में प्रत्येक व्यक्ति का ये कर्तव्य होता था कि वह न केवल अपने आपको साफ-सुथरा रखे बल्कि अपने शरीर, आत्मा, मस्तिष्क और हृदय के साथ-साथ अपने आवास और आश्रम परिसरों को स्वच्छ रखने के लिये भी प्रयास करें।
परन्तु स्वयं और आश्रम परिसरों की साफ-सफाई करते हुए उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होता था कि आश्रम के बाहर गन्दगी और कूड़ा न छोड़े। बापू ने स्वच्छता को भक्ति के समतुल्य माना। महात्मा गांधी ने साफ-सफाई पर कभी समझौता नही किया। उन्होंने हमारे देश आजादी दिलाने का कार्य किया, इसलिए यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम उनके स्वच्छ भारत के सपने को साकार करें।
निष्कर्ष
बीमारी का कारण कीटाणुओं की कई प्रकार की किस्में हैं और ये गंदगी के कारण उत्पन्न होते हैं, जिसके कारण तेजी से संक्रमण फैलता है। जिससे हैजा तथा प्लेग जैसी बहुत सी गंभीर बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए, स्वस्थ, सुखी और शान्तिपूर्ण जीवन जीने के लिए हम सभी को जीवन के हरेक पहलू में स्वच्छता की आदत को विकसित करना चाहिए क्योंकि गंदगी नैतिक बुराई का रुप है, वहीं स्वच्छता नैतिक शुद्धता का प्रतीक है।
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