निबंध

चुनाव पर निबंध (Election Essay in Hindi)

चुनाव या फिर जिसे निर्वाचन प्रक्रिया के नाम से भी जाना जाता है, लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा है और इसके बिना तो लोकतंत्र की परिकल्पना करना भी मुश्किल है क्योंकि चुनाव का यह विशेष अधिकार किसी भी लोकतांत्रिक देश के व्यक्ति को यह शक्ति देता है कि वह अपने नेता को चुन सके तथा आवश्यकता पड़ने पर सत्ता परिवर्तन भी कर सके। एक देश के विकास के लिए चुनाव बहुत अहम प्रक्रिया है क्योंकि यह देश के राजनेताओं में इस बात का भय पैदा करता है कि यदि वह जनता का दमन या शोषण करेंगे तो चुनाव के समय जनता अपनी वोटों के ताकत द्वारा उन्हें सत्ता से बाहर कर सकती है।

चुनाव पर छोटे तथा बड़े निबंध (Long and Short Essay on Election in Hindi, Chunav par Nibandh Hindi mein)

चुनाव पर निबंध – 1 (250 – 300 Words)

प्रस्तावना

चुनाव किसी भी लोकतंत्र का सबसे अहम भाग है चुनाव के द्वारा हम अपने अधिकार का प्रयोग करके अपना नेता चुनते है। अतः चुनाव ही तय करता है की राष्ट्र विकास की ओर अग्रसर होगा या पतन की ओर। 

भारत में चुनाव प्रक्रिया

भारत में पार्षद पद से लेकर प्रधानमंत्री जैसे विभिन्न प्रकार के चुनावों का आयोजन होता है। हालांकि इनमें से जो सबसे महत्वपूर्ण चुनाव होते है वह होते है लोकसभा और विधानसभा के चुनाव क्योंकि इन चुनावों द्वारा केंद्र तथा राज्य में सरकार का चयन होता है। चुनाव में मतदान करने की उम्र को 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया था।

चुनाव का महत्व

किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव काफी महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और क्योंकि भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रुप में भी जाना जाता है, इसलिए भारत में चुनावों को काफी अहम माना जाता है। आजादी के बाद से भारत में कई बार चुनाव हो चुके और इन्होंने देश के विकास को गति देने का एक महत्वपूर्ण कार्य किया। यह चुनाव प्रक्रिया ही है, जिसके कारण भारत में सुशासन, कानून व्यवस्था तथा पारदर्शिता जैसी चीजों को बढ़ावा मिला है। यह चुनाव प्रक्रिया है जिसने दिन-प्रतिदिन भारत में लोकतंत्र के नींव को और भी मजबूत किया है। यहीं कारण है कि भारतीय लोकतंत्र में चुनाव इतना महत्वपूर्ण स्थान रखते है।

निष्कर्ष

चुनाव का संवैधानिक रूप में होना हरे राष्ट्र के लिए नितांत आवश्यक है। जहाँ एक ओर यह हमारे लिए गर्व की बात है वही यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम चुनाव का सही  प्रयोग करें और राष्ट्र निर्माण में योगदान करें।

निबंध – 2 (400 Words)

प्रस्तावना

चुनाव के बिना लोकतंत्र की परिकल्पना भी नही की जा सकती है, एक तरह से लोकतंत्र और चुनाव को एक-दूसरे का पूरक माना जा सकता है। चुनावों में अपने मतदान की शक्ति का प्रयोग करके एक नागरिक कई बड़े परिवर्तन ला सकता है और इसी के कारण लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को उन्नति का समान अवसर प्राप्त होता है।

लोकतंत्र में चुनाव की भूमिका

लोकतंत्र में चुनाव की एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि इसके बिना एक स्वस्थ और स्वच्छ लोकतंत्र का निर्माण संभव नही है क्योंकि नियमित अंतराल पर होने वाले निष्पक्ष चुनाव ही लोकतंत्र को और भी मजबूत बनाने का कार्य करते है। भारत के एक लोकतांत्रिक देश होने के कारण यहां की जनता अपने सांसदों, विधायकों तथा न्यायपालिकाओं का चुनाव कर सकती है। भारत का वह प्रत्येत नागरिक जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है वह अपने मतदान की शक्ति का प्रयोग कर सकता है और लोकतंत्र का पर्व माने जाने वाले चुनावों में अपने पसंद के उम्मीदवार को अपना मत दे सकता है।

वास्तव में चुनाव के बिना लोकतंत्र की कल्पना भी नही की जा सकती है और यह लोकतंत्र की शक्ति ही है, जो देश के हर नागरिक को अपने अभिव्यक्ति के आजादी की स्वतंत्रता प्रदान करता है। यह हमें एक विकल्प देता है कि हम योग्य व्यक्ति को चुन सके और उन्हें सही पदों पर पहुंचाकर देश के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान दे सके।

चुनाव की आवश्यकता

कई बार कई लोगों द्वारा यह प्रश्न पूछा जाता है कि आखिर चुनाव की आवश्यता क्या है, यदि चुनाव ना भी हो तो भी देश में शासन चलाया जा सकता है। लेकिन इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि जहां भी शासक, नेता या फिर उत्तराधिकारी चुनने में भेदभाव तथा जोर-जबरदस्ती हुई है। वह देश या स्थान कभी विकसित नही हुआ और उसका विघटन अवश्य हुआ है। यहीं कारण था कि राजशाही व्यवस्थाओं में भी राजपद के लिए राजा के सबसे योग्य पुत्र का ही चुनाव किया जाता था।

इसका हमें सबसे अच्छा उदहारण महाभारत में मिलता है, जहां भरतवंश के राजसिंहासन पर बैठने वाले व्यक्ति का चुनाव ज्येष्ठता (उम्र में बड़ा होना) के आधार पर ना होकर श्रेष्ठता के आधार पर होता था लेकिन अपनी भीष्म ने सत्यवती के पिता को वचन देते हुए इस बात की प्रतिज्ञा ली की वह कुरुवंश के राजगद्दी पर कभी नही बैठेंगे और सत्यवती का ज्येष्ठ पुत्र ही हस्तिनापुर के सिहांसन का वारिस होगा। इस गलती का परिणाम तो सब ही जानते हैं कि इस एक प्रतिज्ञा के कारण कुरुवंश का नाश हो गया।

वास्तव में चुनाव हमें विकल्प देते है कि हम किसी चीज में बेहतर विकल्प को चुन सके। यदि चुनाव ना हों तो समाज में निरंकुशता और तानाशाही का बोलबाला हो जायेगा। जिसके परिणाम सदैव ही विध्वंसक रहे है। जिन देशों में लोगों को अपने नेताओं को चुनने की आजादी होती है, वह सदैव ही प्रगति करते है। यहीं कारण है कि चुनाव इतने महत्वपूर्ण और आवश्यक है।

निष्कर्ष

चुनाव और लोकतंत्र एक दूसरे के पूरक है, एक बिना दूसरे की कल्पना भी नही कि जा सकती है। वास्तव में लोकतंत्र के विकास के लिए चुनाव बहुत ही आवश्यक हैं। यदि एक लोकतांत्रिक देश में निश्चित अंतराल पर चुनाव ना कराये जायें तो वहां निरंकुशता और तानाशाही का बोलबाला हो जायेगा। इसलिए एक लोकतांत्रिक देश में निश्चित अंतराल पर चुनावों का होना काफी आवश्यक है।

निबंध – 3 (500 Words)

प्रस्तावना

लोकतंत्र एक ऐसी व्यवस्था है, जिसमें लोगों को स्वतंत्रता और मानवाधिकारों की प्राप्ति होती है। वैसे तो विश्व भर में साम्यवाद, राजशाही तथा तानाशाही जैसे तमाम तरह की शासन प्रणालियां है, लेकिन लोकतंत्र को इन सभी से श्रेष्ठ माना गया है। ऐसा सिर्फ इसलिए क्योंकि लोकतंत्र में जनता के पास चुनावों द्वारा अपनी सरकार स्वयं चुनने की शक्ति होती है।

चुनाव का महत्व

एक लोकतांत्रिक देश में चुनाव व्यवस्था का काफी महत्व होता है क्योंकि इसी के द्वारा जनता अपने देश के सरकार का चुनाव करती है। चुनाव लोकतंत्र को सुचारु रुप से चलाने के लिए बहुत ही आवश्यक है। एक लोकतांत्रिक देश के हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह चुनाव में मतदान करके लोकतंत्र की रक्षा का महत्वपूर्ण कार्य करें। हमें कभी भी यह नही सोचना चाहिए कि यदि मैं वोट नही दूंगा/दूंगी तो क्या फर्क पड़ेगा लेकिन लोगों को यह बात समझनी चाहिए कि कई बार चुनावों में एक ही वोट द्वारा हार-जीत का फैसला होता है।

इस तरह से लोकतंत्र में चुनाव पक्रिया एक सामान्य नागरिक को भी विशेष अधिकार प्रदान करती है क्योंकि चुनाव में मतदान करके वह सत्ता और शासन के संचालन में हिस्सेदार बन सकता है। किसी भी लोकतांत्रिक देश में होने वाले चुनाव उस देश के नागरिकों को यह शक्ति प्रदान करते है क्योंकि चुनाव प्रक्रिया के द्वारा नागरिक स्वार्थी या फिर विफल शासकों और सरकारों का तख्ता पलट करते हुए उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा सकती है।

कई बार चुनावों के दौरान नेताओं द्वारा लुभावने वादे या फिर उन्मादी बातें करकर जनता का वोट हांसिल करने का प्रयास किया जाता है। हमें इस बात को लेकर सजग रहना चाहिए कि हम चुनावों के दौरान ऐसे झांसो में ना आये और साफ-सुधरे तथा ईमानदार छवि वालें लोगों को राजनैतिक पदों के लिए चुनें क्योंकि चुनाव के दौरान अपने मत का जागरुक रुप से प्रयोग करना ही चुनाव के सार्थकता का प्रतीक है।

लोकतंत्र की सफलता के लिए यह काफी आवश्यक है कि राजनीतिक शासकीय पदों पर स्वच्छ तथा ईमानदार छवि के लोग चुनकर जायें, जोकि सिर्फ जनता के बहुमूल्य वोटों के ताकत द्वारा ही संभव है। इसलिए हमें हमेशा इस बात का प्रयास करना चाहिए कि हम अपने वोट का सही उपयोग करें और कभी भी जाति-धर्म या फिर लोकलुभावन वादों को देखते हुए चुनावों में मतदान ना करें क्योंकि यह लोकतंत्र के लिए हितकर नही है। जब शासकीय पदों पर सही लोग चुनकर जायेंगे तभी किसी भी देश का विकास संभव है और ऐसा होने पर ही चुनाव का वास्तविक अर्थ सार्थक हो पायेगा।

निष्कर्ष

चुनाव लोकतंत्र का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है, इसके बिना लोकतंत्र का सुचारु रुप से कार्यन्वन संभव नही है। हमें इस बात को समझना होगा कि चुनाव वह अवसर होता है, जब हमें अपने मतदान का सही उपयोग करना चाहिए क्योंकि चुनाव के दौरान जनता अपने मत का सही उपयोग करते भ्रष्ट तथा विफल सरकारों को सत्ता से बाहर कर सकती है। यही कारण है कि लोकतंत्र में चुनाव को इतना महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है।

निबंध – 4 (600 Words)

प्रस्तावना

किसी भी देश में चुनाव के दौरान होने वाली राजनीति उस देश के लोकतंत्र का एक अहम हिस्सा होती है। राजनीति के सुचारु और स्वच्छ कार्यन्वन के लिए यह काफी आवश्यक है कि हम चुनावों में साफ-सुधरी छवि वाले लोगों को अपना नेता चुने क्योंकि चुनाव के दौरान व्यक्तिगत स्वार्थ या फिर जातिवाद के नाम पर दिया गया वोट आने वाले भविष्य में हमारे लिए कई गुना हानिकारक हो सकता है।

चुनाव और राजनीति

किसी भी देश की राजनीति उस देश के संवैधानिक ढांचे पर कार्य करती है जैसे कि भारत में संघीय संसदीय, लोकतांत्रिक गणतंत्र प्रणाली लागू है। जिसमें राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है और प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है। इसके अलावा भारत में विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री जैसे विभिन्न पदों के लिए भी चुनाव होते रहते है। लोकतंत्र में इस बात की आवश्यकता नही होती है कि लोग सीधे तौर से शासन करें, इसलिए एक निश्चित अंतराल पर जनता द्वारा अपने राजनेताओं तथा जनप्रतिनिधियों का चुनाव किया जाता है।

एक लोकतांत्रिक देश के अच्छे विकास तथा कार्यन्वन के लिए चुनाव और राजनीति का होना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि इसके द्वारा उत्पन्न होने वाली चुनावी प्रतिद्वंदिता जनता के लिए काफी लाभदायक होती है। हालांकि चुनावी प्रतिद्वंदिता के फायदे के साथ नुकसान भी है। इसके कारण लोगों में आपसी मतभेद भी पैदा हो जाता है। वर्तमान राजनीति आरोप-प्रत्यारोप का दौर है, इसमें सभी राजनेताओं द्वारा एक-दूसरे पर विभिन्न प्रकार के आरोप लगाये जाते है। जिसके कारण कई सीधे और साफ छवि के लोग राजनीति में आने में संकोच करते है।

चुनावी प्रणाली

किसी भी लोकतंत्र की राजनीति में इस बात का सबसे अधिक महत्व होत है कि आखिरकार उसकी चुनावी प्रणाली क्या है। भारत में लोकसभा तथा विधानसभा जैसे चुनाव हर पांच वर्ष के अंतराल पर होते हैं। पांच साल बाद चुने हुए सभी प्रतिनिधियों का कार्यकाल समाप्त हो जाता है। जिसके बाद लोकसभा और विधानसभा भंग हो जाती है और फिर से चुनाव करवाये जाते हैं।

कई बार कई सारे प्रदशों के विधानसभा चुनाव एक साथ होते है। जिन्हें विभिन्न चरणों में समपन्न कराया जाता है। इसके विपरीत लोकसभा चुनाव देशभर में एक साथ संपन्न होते है, यह चुनाव भी कई चरणों में संपन्न होते है, आधुनिक समय में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों का उपयोग होने के कारण चुनाव परिणाम चुनाव संमपन्न होने के कुछ दिन बाद ही जारी कर दिये जाते है।

भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को उसके पसंद के प्रतिनिधि को मतदान करने का अधिकार देता है। इसके साथ ही भारत के संविधान में इस बात का भी ध्यान रखा गया है कि देश के राजनीति में हर वर्ग को समान अवसर मिले, यहीं कारण है कि कमजोर तथा दलित समुदाय के व्यक्तियों के लिए कई क्षेत्रों के निर्वाचन सीट आरक्षित रहते हैं, जिन पर सिर्फ इन्हीं समुदाय के लोग चुनाव लड़ सकते हैं।

भारतीय चुनावों में वही व्यक्ति मतदान कर सकता है, जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक है। इसी तरह यदि कोई व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे अपना नामांकन कराना होता है, जिसके लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष है। भारत में कोई भी व्यक्ति दो तरीकों से चुनाव लड़ सकता है, किसी दल का उम्मीदवार बनकर उसके चुनाव चिन्ह पर जिसे सामान्य भाषा में ‘टिकट’ के नाम से भी जाना जाता है और दूसरा तरीका है निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर दोनो ही तरीकों में उम्मीदवारों द्वारा नामांकन पत्र भरना और जमानत राशि जमा करना अनिवार्य होता है।

इसके साथ ही वर्तमान समय में चुनावी प्रक्रियाओं में विभिन्न प्रकार के परिवर्तन किये जा रहे हैं ताकि अधिक से अधिक ईमानदार तथा स्वच्छ छवि के लोगों को राजनीति में आने का मौका मिल सके। इसी के तरह सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश देते हुए सभी उम्मीदवारों के लिए घोषणा पत्र भरना अनिवार्य कर दिया है। जिसमें उम्मीदवारों को अपने खिलाफ चल रहे गंभीर आपराधिक मामलो, परिवार के सदस्यों की संपत्ति तथा कर्ज का ब्यौरा तथा अपनी शैक्षिक योग्यता की जानकारी देनी होती है।

निष्कर्ष

किसी भी लोकतांत्रिक देश में चुनाव और राजनीति एक-दूसरे के पूरक का कार्य करते है और लोकतंत्र के सुचारु कार्यन्वन के लिए यह आवश्यक भी है। लेकिन इसके साथ ही हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए चुनावों के दौरान उत्पन्न होने वाली प्रतिद्वंदिता लोगो के बीच विवाद तथा दुश्मनी का कारण ना बनें और इसके साथ ही हमें चुनावी प्रक्रिया को और भी पारदर्शी बनाने की आवश्यकता है ताकि अधिक से अधिक साफ-सुथरे तथा ईमानदरी छवि के लोग राजनीति का हिस्सा बन सके।

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Yogesh Singh

Yogesh Singh, is a Graduate in Computer Science, Who has passion for Hindi blogs and articles writing. He is writing passionately for Hindikiduniya.com for many years on various topics. He always tries to do things differently and share his knowledge among people through his writings.

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