नैतिकता आचरण/व्यवहार की एक शाखा है जो समाज के भीतर सही और गलत की अवधारणा को परिभाषित करता है। विभिन्न समाजों द्वारा परिभाषित नैतिकता बहुत हद तक समान हैं। यह अवधारणा सरल है क्योंकि प्रत्येक इंसान एक-दूसरे से अलग है इसलिए कई बार यह संघर्ष का कारण भी हो सकता है। नैतिकता और सौंदर्यशास्त्र दोनों ही एक्सायोलॉजी नामक फिलोस्फी की शाखा की उप-शाखाएं हैं। नैतिकता की अवधारणा मुख्यतः एक समाज की संस्कृति और धर्म पर आधारित है।
प्रस्तावना
शब्द नैतिकता प्राचीन ग्रीक शब्द एथोस से बना है जिसका अर्थ है आदत, कस्टम या चरित्र। वास्तविकता में नैतिकता यह है। एक व्यक्ति की आदतें और चरित्र उन नैतिक मूल्यों के बारे में बताते हैं जो उसके पास हैं। दूसरे शब्दों में एक व्यक्ति के नैतिक मूल्य उसके चरित्र को परिभाषित करते है। हम सभी को समाज द्वारा निर्धारित नैतिक मानदंडों के आधार पर क्या अच्छा है और क्या बुरा है इसके बारे में बताया गया है।
नैतिकता की फिलोस्फी
नैतिकता की फिलोस्फी जितनी सतह स्तर पर दिखाई देती है वास्तविकता में वह बहुत गहरी है। यह नैतिकताओं के तीन भागों में विभाजित है। ये मानक नैतिकता, लागू नैतिकता और मेटा-नैतिकता हैं। इन तीन श्रेणियों पर यहां एक संक्षिप्त नज़र डाली गई है:
जहाँ नैतिक यथार्थवादियों का मानना है कि व्यक्ति पहले से मौजूद नैतिक सत्यों को मानते हैं वहीँ दूसरी तरफ गैर-यथार्थवादियों का मानना है कि व्यक्ति अपने स्वयं की नैतिक सच्चाई को खोजते और ढूंढते हैं। दोनों के पास अपने विचारों को सत्य साबित करने के अपने तर्क है।
निष्कर्ष
ज्यादातर लोग समाज द्वारा परिभाषित नैतिकता का पालन करते हैं। वे नैतिक मानदंडों के अनुसार अच्छे माने जाने वालों को मानते हैं और इन मानदंडों को ना मानने वालों से दूर रहना चाहते हैं। हालांकि ऐसे कुछ ऐसे लोग हैं जो इन मूल्यों पर सवाल उठाते हैं और वे सोचते हैं कि क्या सही है और क्या गलत है।
प्रस्तावना
नैतिकता को नैतिक सिद्धांतों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो अच्छे और बुरे तथा सही और गलत मानकों का वर्णन करते हैं। फ्रांसीसी लेखक अल्बर्ट कैमस के अनुसार, “इस दुनिया में नैतिकता के बिना व्यक्ति एक जंगली जानवर के समान है”।
नैतिकता के प्रकार
नैतिकता को मोटे तौर पर चार अलग-अलग श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है। इन पर एक संक्षिप्त नजर इस प्रकार है:
विभिन्न संस्कृतियों में नैतिकता भिन्न होती है
कुछ के अनुसार नैतिकता वे मूल्य हैं जिन्हें बचपन से सिखाया जाना चाहिए और लोगों को उनका कड़ाई से पालन करना चाहिए। एक व्यक्ति जो इन मूल्यों को नहीं मानता है वह नैतिक रूप से गलत माना जाता है। नैतिक कोड का पालन करने के लिए कुछ लोग काफी सख्त होते हैं। वे अपने व्यवहार के आधार पर लगातार दूसरों की समीक्षा करते हैं। दूसरी तरफ कुछ ऐसे लोग हैं जो नैतिकता के प्रति ढीला-ढाला रवैया रखते हैं और मानते हैं कि नैतिकता के आधार स्थिति के हिसाब से कुछ हद तक बदल सकते हैं।
व्यक्तियों से अपेक्षाकृत आचार संहिता और नैतिकता लगभग सभी देशों में समान है। हालांकि कुछ ऐसे नैतिक व्यवहार हो सकते हैं जो कुछ संस्कृतियों के अनुसार ठीक हो सकते हैं लेकिन उन्हें दूसरों में स्वीकारा नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए पश्चिमी देशों में महिलाओं को किसी भी तरह की पोशाक पहनने की आजादी होती है लेकिन बहुत से पूर्वी देशों में छोटे कपड़े पहनने को नैतिक रूप से गलत माना जाता है।
निष्कर्ष
ऐसे विभिन्न स्कूल हैं जिनके विचार अलग-अलग हैं और उनके नैतिकता के अपने स्वयं के संस्करण हैं। बहुत से लोग दूसरों के मानदंडों के सही और गलत से अपना स्वयं का संस्करण बनाते हैं।
प्रस्तावना
नैतिकता किसी व्यक्ति को किसी स्थिति में व्यवहार करने के तरीके को परिभाषित करती है। वे हमारे बचपन से हमारे अंदर छुपे हुई होती है और हमारे जीवन में किया गया लगभग हर निर्णय हमारे नैतिक मूल्यों से काफी प्रभावित होता हैकिसी भी व्यक्ति को उसके नैतिक व्यवहार के आधार पर अच्छा या बुरा माना जाता है।
नैतिकता हमारे व्यक्तिगत और व्यावसायिक दोनों जीवन में बहुत महत्व रखती है। एक व्यक्ति जो उच्च नैतिक मूल्यों को मानता है, उन पर विश्वास करता है और उनका अनुसरण करता है वह उन लोगों की तुलना में अधिक सुलझा हुआ होता है जो निर्धारित नैतिक मानदंडों का पालन तो करते हैं लेकिन वास्तव में इस पर विश्वास नहीं करते हैं। इनके अलावा लोगों की एक और श्रेणी है – जो नैतिक मानदंडों में विश्वास भी नहीं करते और उनका पालन भी नहीं करते हैं। ये समाज में शांति के रुकावट का कारण हो सकता है।
हमारे निजी जीवन में नैतिकता का महत्व
लोगों के दिमाग को समाज में स्वीकार्य नैतिक और नैतिक मूल्यों के अनुसार वातानुकूलित किया जाता है। वे नैतिकता के महत्व को कमजोर नहीं कर सकते। एक बच्चे को उसके बचपन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि समाज में कैसा व्यवहार स्वीकार किया जाता है और क्या समाज के अनुरूप रहने के लिए सही नहीं है। इस प्रणाली को मूल रूप से स्थापित किया गया है ताकि लोगों को पता चले कि कैसे सही कार्य करना चाहिए और किस प्रकार समाज में शांति और सामंजस्य को बनाए रखना चाहिए।
सही और गलत निर्णय लेना लोगों के लिए आसान हो जाता है अगर उसके बारे में इसे पहले ही परिभाषित किया जा चुका हो तो। कल्पना कीजिए कि अगर सही काम और गलत कार्य को परिभाषित नहीं किया गया तो हर कोई अपनी इच्छा के अनुसार सही और गलत के अपने संस्करणों के आधार पर कार्य करेगा। यह स्थिति को अराजक बना देगा और अपराध को जन्म देगा।
हमारे व्यावसायिक जीवन में नैतिकता का महत्व
कार्यस्थल पर नैतिक आचरण बनाए रखना बेहद महत्वपूर्ण है। समाज द्वारा परिभाषित बुनियादी नैतिकता और मूल्यों के अलावा हर संगठन अपने नैतिक मूल्यों की सीमाओं को निर्धारित करता है। उस संगठन में काम करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आचार संहिता बनाए रखने के लिए उनका पालन करना चाहिए। संगठनों द्वारा निर्धारित सामान्य नैतिक कोड के कुछ उदाहरण हैं – कर्मचारियों को उचित तरीके से व्यवहार करना, ईमानदारी से काम करना, कभी भी कंपनी की अंदरूनी जानकारी किसी को ना देना, अपने सहकर्मियों का सम्मान करना और अगर कंपनी के प्रबंधन समिति या किसी कर्मचारी के साथ कुछ गलत हो जाता है तो इसे अनावश्यक मुद्दा बनाने के बजाए विनम्रता से संबोधित करना है।
कार्यस्थल पर नैतिकता के सिद्धांतों की स्थापना से संगठन को सुचारु कामकाज करने में मदद मिलती है। कोई भी कर्मचारी अगर नैतिक कोड का उल्लंघन करते हुए पाया गया तो उसे चेतावनी पत्र जारी किया जाता है या समस्या की गंभीरता के आधार पर अलग-अलग तरीकों से दंडित किया जाता है।
किसी संगठन में निर्धारित नैतिक कोडों की अनुपस्थिति के मामले में स्थिति का अराजक होना और व्यवस्था असुविधाजनक होने की संभावना है। इस नियमों को स्थापित करने के लिए प्रत्येक संगठन को इन्हें लागू करना आवश्यक है। किसी संगठन में नैतिक कोड न केवल अच्छे काम के माहौल को सुनिश्चित करने में मदद करते हैं बल्कि कर्मचारियों को यह भी बताते हैं कि अलग-अलग परिस्थितियों में मुश्किलों से कैसे निपटें।
एक कंपनी के नैतिक कोड मूल रूप से अपने मूल्यों और जिम्मेदारियों को दर्शाती है।
निष्कर्ष
समाज के साथ ही काम के स्थानों और अन्य संस्थानों के लिए एक नैतिक कोड स्थापित करना आवश्यक है। यह लोगों को सही तरीके से काम करने में मदद करता है और बताता है कि क्या गलत है क्या सही है तथा उन्हें सही तरीके से व्यवहार करने के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
प्रस्तावना
नैतिकता को एक ऐसी प्रणाली के रूप में परिभाषित किया जाता है जो यह तय करती है कि क्या सही है क्या गलत है। यह व्यवस्था पूरी तरह से व्यक्तियों और समाज के कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है। एक व्यक्ति जो उच्च नैतिक मूल्यों को मानता है वह समाज द्वारा निर्धारित किए गए नैतिक मानदंडों को बिना सवाल किये सुनिश्चित करता है।
नैतिक मूल्य बनाम नैतिकता
नैतिकता और नैतिक मूल्यों का आमतौर पर बदल-बदल कर उपयोग किया जाता है। हालांकि दोनों के बीच एक अंतर है। जहाँ नैतिकता का मतलब संस्कृति के द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करना, समाज को सही रास्ते पर चलना है और संगठन यह सुनिश्चित करने के लिए कि व्यक्ति उचित व्यवहार करे होता है वहीँ दूसरी ओर नैतिक मूल्य एक व्यक्ति के व्यवहार में अंतर्निहित होते हैं और उसके चरित्र को परिभाषित करते हैं।
नैतिकता बाहरी कारकों पर आधारित होती है। उदाहरण के लिए मध्य-पूर्वी संस्कृति में महिलाओं को सिर से लेकर पैर तक खुद को ढंकने की आवश्यकता होती है। कुछ मध्य-पूर्वी देशों में उन्हें एक आदमी के साथ बिना काम पर जाने या बाहर जाने की अनुमति भी नहीं है। यदि कोई महिला इस आदर्श मानकों को चुनौती देने की कोशिश करती है तो वह नैतिक रूप से गलत मानी जाती है। नैतिक व्यवहार को किसी व्यक्ति के पेशे के आधार पर भी निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए डॉक्टरों, पुलिसकर्मियों और शिक्षकों से अपने व्यावसायिक कर्तव्यों को पूरा करने के लिए निश्चित तरीके से व्यवहार करने की उम्मीद की जाती है। वे अपने लिए निर्धारित नैतिक मूल्यों के खिलाफ नहीं जा सकते।
किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्य मुख्य रूप से उनकी संस्कृति और परिवार के वातावरण से प्रभावित होते हैं। ये वह सिद्धांत हैं जो स्वयं के लिए बनाए जाते हैं। ये सिद्धांत उनके चरित्र को परिभाषित करते हैं और वह इनके आधार पर अपने व्यक्तिगत निर्णय लेता है। जबकि नैतिकता, जिसका पालन करने की अपेक्षा की जाती है, हर संगठन के आधार पर चाहे जिसके साथ वह काम करे या जिस समाज में वह रहे अलग-अलग हो सकती है। हालांकि किसी व्यक्ति के जीवन में कुछ घटनाएं उसके विश्वास को बदल सकती हैं और वह उसी आधार पर विभिन्न मूल्यों को लागू कर सकता है।
कैसे नैतिकता और नैतिक मूल्य एक दूसरे से संबंधित हैं?
जैसा कि ऊपर बताया गया है समाज द्वारा नैतिकताएं हमारे ऊपर थोपी जाती हैं और नैतिक मूल्य हमारी समझ है कि क्या सही है और क्या गलत है। ये एक-दूसरे से निकटता से संबंधित हैं। एक व्यक्ति जिसके नैतिक मूल्य समाज द्वारा निर्धारित नैतिक मानकों से मेल खाते हैं वह उच्च नैतिक मूल्यों का व्यक्ति माना जाता है। उदाहरण के लिए एक ऐसा व्यक्ति जो अपने माता-पिता का सम्मान करता है और हर चीज का पालन करता है, हर रोज मंदिर का जाता है, समय पर घर वापस आता है और अपने परिवार के साथ समय बिताता है वह अच्छे नैतिक मूल्यों का इंसान माना जाता है।
दूसरी ओर एक व्यक्ति जिसका धार्मिक मूल्यों की ओर झुकाव नहीं होता, वह तर्क के आधार अपने माता-पिता से बहस कर सकता है, दोस्तों के साथ बाहर घूमने जा सकता है और देर से कार्यालय से वापस लौट सकता है उसे निम्न नैतिक मूल्यों का इंसान माना जा सकता है क्योंकि वह समाज द्वारा निर्धारित नैतिक कोड के अनुरूप नहीं है। यहां तक कि अगर यह व्यक्ति किसी को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है या कुछ भी गलत नहीं कर रहा है तो भी उसे कम नैतिकता का इंसान माना जाएगा। हालांकि ऐसा हर संस्कृति में नहीं होता है लेकिन भारत में ऐसे व्यवहारों के आधार पर लोगों को वर्गीकृत किया जाता है।
नैतिक मूल्य और नैतिकता के बीच संघर्ष
कभी-कभी लोग अपने नैतिक मूल्यों और परिभाषित नैतिक कोड के बीच फंस जाते हैं। कई बार उनकी नैतिकता उन्हें कुछ करने से रोक देती हैं पर उनके पेशे द्वारा निर्धारित नैतिक मूल्य उन्हें ऐसा करने की अनुमति दे देती है। उदाहरण के लिए कॉर्पोरेट संस्कृति इन दिनों ऐसी है जहाँ आपको अधिक से अधिक लोगों से जनसंपर्क बनाने के लिए थोड़ी बहुत शराब पीनी पड़ सकती है। हालांकि संगठन की नैतिक संहिता के अनुसार यह ठीक है और ग्राहकों के साथ संबंध बनाए रखने के लिए समय की आवश्यकता भी है। किसी व्यक्ति के नैतिक मूल्य भी ऐसा करने के लिए सुझाव दे सकते हैं।
निष्कर्ष
समाज में शांति और सद्भाव सुनिश्चित करने के लिए नैतिक मूल्य निर्धारित किए जाते हैं। हालांकि इन्हें पीढ़ी दर पीढ़ी आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि किसी आयु या संस्कृति के दौरान जो भी हुआ ज़रूरी नहीं कि वह उपयुक्त हो और दूसरों पर भी लागू होता हो।