क्या समानता एक मिथक है पर निबंध (Is Equality a Myth Essay in Hindi)

हम में से प्रत्येक को सृष्टि द्वारा समान रूप से बनाया गया है। हम भले ही अपनी विशेषताओं में समान नहीं हो सकते है, पर हमें सामान्य रूप से एक समानता प्रदान की गई है। कुछ लोग जन्मजात से ही प्रतिभाशाली होते हैं, तो कुछ अपने जीवन के अनुभव के आधार पर प्रतिभाशाली बनने की कोशिश करते हैं। हम सभी एक अलग प्रतिभा के साथ पैदा हुए है। यह हमेशा से ही कहा जाता रहा है, कि सभी लोगों के साथ बिना किसी भेदभाव के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।

यहां इस निबंध में हम समानता पर चर्चा करेंगे कि क्या समानता कोई मिथक है या वास्तविकता में यह प्रचलित है? मुझे आशा है कि इस निबंध के माध्यम से आपको विभिन्न परीक्षाओं, वाद-विवाद और तर्क परीक्षाओं में इसके माध्यम से आपको अवश्य मदद मिलेगी।

क्या समानता एक मिथक है पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Is Equality a Myth in Hindi, Kya Samanta Ek Mithak hai par Nibandh Hindi mein)

1400 Words Essay

परिचय

समानता निश्चित रूप से सभी को समान अवसर देने के बारे में होती है। यह हमारे जीवन में हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होती है, क्योंकि जीवन में यह किसी भी व्यक्ति की वृद्धि और विकास में मदद करती है। यदि समानता वैसी ही होती जैसा कि कहा जाता है, तो प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में उत्कृष्ठता प्राप्त करने को मिल जाती और तब सभी की स्थिति कुछ और ही होती। तब इस समाज में इस तरह के भेदभाव देखने को नहीं मिलते।

समानता से क्या तात्पर्य है?

हमारे समाज में विभिन्न मानदंडों में समानता पर जोर दिया जा सकता है। हम सभी को सर्वोच्च शक्ति भगवान के द्वारा एक जैसा ही बनाया गया है, और हम सभी में अलग-अलग प्रकार की प्रतिभाएं निहित हैं। ऐसा कभी नहीं होता है कि हम में से हर कोई हर क्षेत्र में उत्कृष्ठता प्राप्त करें। हम सभी अलग-अलग क्षेत्रों में सफल होते हैं और अगर इस लिहाज से समानता को इस परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह पूरी तरह से मिथक लगती है। ऐसा कभी नहीं हो सकता है कि हम सभी में एक समान क्षमता हो, वही दूसरी ओर, हम इस धरती पर पैदा हुए है और इस तरह से हमें कुछ समान अधिकार दिए गए हैं।

इस कसौटी पर समानता के कुछ मानदंड होने चाहिए। इस तरह समानता कोई मिथक नहीं है और यह एक अवधारणा है जिसे हमें अच्छी तरह समझने और उसे लागु करने की आवश्यकता है। यदि समानता के मानदंडों को सही तरीके से पालन किया जाए तो इससे समाज के निचले तबके के लोगों के साथ सभी लोगों की प्रगति संभव हो सकती हैं। वे सभी किसी भी प्रकार की चीजों और अन्य सुविधाओं से कभी वंचित नहीं रहेंगे।

समानता को एक मिथक के रूप में क्यों कहा जाता है?

समानता एक मानवी विचार है। देश के प्रत्येक नागरिक के लिए एक कानून और अधिकार समान रूप से दिए गए हैं। हमारे इन अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ नियम और अधिनियम हैं ताकि हमें समानता समान रूप से दी जा सके। लेकिन दुख की बात है कि समानता का अधिकार केवल कागजों पर ही निहित है और वास्तविक रूप में यह कभी पूरी नहीं होती है। इसलिए समानता को मिथक कहा जाना वास्तविक रूप से सही होगा।

समानता एक तथ्य के रूप में एक अवधारणा है। यह जाति, पंथ, धर्म, लिंग आदि के बावजूद राष्ट्र के सभी लोगों को प्रदान किया गया है। समानता की अवधारणा को समाज के लोगों द्वारा सही ढंग से लागू नहीं किया गया है। जब हम समानता की व्यापकता की बात करते हैं, तो इसे धार्मिक समानता, सामाजिक समानता और आर्थिक समानता से वर्गीकृत किया जा सकता है।

  • धार्मिक समानता

धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव इन दिनों बहुत ही आम बात हो गई है। हमने विभिन्न घटनाओं के बारे में भी अवश्य ही सुना होगा कि यदि नियोक्ता किसी विशेष जाती या धर्म का होता है तो वह भर्ती प्रक्रिया में उसी जाती के व्यक्ति का पक्ष लेता है। इस तरह योग्य उम्मीदवार होने के बावजूद भी एक योग्य व्यक्ति उस पद का लाभ नहीं उठा सकता है।

एक जाति के लोगों को अन्य जाती के लोगों के प्रति घृणा भाव होती है। यह सब लोगों के संकीर्ण सोच के कारण होती है। ये आपसी मतभेद लोगों ने आपस में खुद ही पैदा किए हैं। वे चाहते हैं कि हर कोई केवल उनकी तरह ही जीए और ऐसा होना असंभव है। ऐसी सोच के बजाय हम सभी को हर धर्म या जाति से प्यार और उस जाति का सम्मान करना चाहिए।

  • सामाजिक समानता

नागरिक के सामाजिक अधिकारों को समान अवसर, भागीदारी, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएं, आदि समान रूप से दिए गए हैं। सामाजिक असमानता तब होती है, जब समाज में संसाधनों का वितरण असमान होता है। क्या आपने कभी ये सोचा है कि यदि सभी को सामाजिक समानता दी गयी है तो लोगों को अमीर और गरीब में अलग क्यों किया जाता है या समाज में लैंगिक असमानता क्यों है? हमारी क्षमता के आधार पर अमीर और गरीब होने की स्थिति दूसरी बात है, लेकिन जब गरीब लोगों को आगे बढ़ने के अवसर नहीं मिलेंगे तो वो अपनी गरीबी और उससे होने वाली पीड़ा से कभी बाहर नहीं आ सकते है।

उच्च जाति के लोग, निम्न जाति के लोगों की सफलता से ईर्ष्या करते हैं या उनसे जलते हैं। इस विज्ञान युग में भी लोग छुआछूत की भावना को भी मानते है। यह सब इसलिए है क्योंकि उनकी सोच अन्य जातियों या निम्न जातियों के प्रति बहुत ही संकीर्ण है। इसलिए समानता की अवधारणा को व्यवहारिकता में अपनाने के बजाय यह केवल कागजों और किताबों के पन्नों पर तक ही सिमित हो कर रह गया है।

समाज के पिछड़े, गरीब और कमजोर लोगों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा और आवास सुविधा उचित रूप में नहीं मिल पा रही है। समाज के पिछड़े वर्गों पर उच्च वर्गों द्वारा उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है। ऐसी ही असमानता का एक उदहारण सरकार द्वारा बच्चों को स्कूलों की ओर आकर्षित और प्रोत्साहित करने के लिए शुरू की गई मध्यान भोजन योजना में देखने को मिलती है।

यहां पर उच्च वर्गों के छात्र और शिक्षक निम्न जातियों के छात्रों के साथ बुरा व्यवहार करते हैं। समाज के पिछड़े वर्गों के लोगों को अच्छे अवसर कभी नहीं मिल पाता हैं, क्योंकि उनके पास अच्छी शिक्षा और धन की कमी होती है और ऐसे में इन लोगों को उचित अवसरों का लाभ कैसे मिल सकता है। इस पर हमारी सरकारों और कानूनों को उचित धयान देने की आवश्यकता है, और इसे सामाजिक रूप में लागू करने के लिए एक नए प्रयास की भी आवश्यकता है।

लैंगिक असमानता के मुद्दे और सामाजिक जातिवाद असमानता की सबसे महत्वपूर्ण चिंताएं हैं। महिलाओं पर हमेशा से ही पुरुषों का वर्चस्व रहा है, और इस तरह से महिलाएं ही विभिन्न अपराधों का शिकार होती हैं। हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्लवाद का एक ऐसा ही मामला देखने को मिला है।

  • आर्थिक असमानता

यह समाज में विभिन्न व्यक्तियों की आय या वेतन के आधार पर असमानता को दर्शाता है। तथ्य की बात करे तो, यह बहुत स्पष्ट है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने पद के अनुसार वेतन मिलता है। यह लोगों की क्षमता और उनकी कार्य क्षमताओं के कारण निर्धारित किया गया हैं। वही दूसरी ओर गरीब लोगों को बहुत ही कम वेतन या मजदूरी मिलती है, क्योंकि वो बहुत कम पढ़े लिखे होते हैं।

यह विचार करने योग्य है कि गरीब हमेशा गरीब ही क्यों रह जाता हैं, और पढ़े और धनी लोग समय के साथ और भी धनी होते जा रहे हैं। ये सभी असमानता के कारण ही होती है। गरीबों के पास अच्छी शिक्षा और उन्हें समान अवसर नहीं प्राप्त होते है। यदि प्रचलित सामाजिक असमानता का कारण ताकत और क्षमता होगी तो इस प्रकार से असमानता पीढ़ियों तक नहीं रहेंगी।

समानता एक मिथक है या वास्तविकता?

समानता हमारा अधिकार है लेकिन हमारे समाज में इसे सही ढंग से लागू नहीं किया गया है। लोग श्रम के वास्तविक रूप को महत्त्व नहीं देते हैं। समानता वास्तव में एक मिथक है, क्योंकि हमें अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अगर इस तरह से हमें अपनी ही अधिकारों के लिए लड़ना पड़े तो फिर समानता कहां है?

असमानता समाज और राष्ट्र के विकास और प्रगति में बाधा पहुंचाती है। यह बहुत दुःख की बात है कि एक तरफ भारत सरकार “सब पढ़े, सब बढ़े” का नारा दे रही हैं, वही दूसरी तरफ जाती, धर्म, लिंग इत्यादि के आधार पर भेदभाव किया जा रहा है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि समानता को हकीकत में देखने के बजाय यह केवल कागजी पन्नों की शोभा बन कर रह गयी है।

निष्कर्ष

असमानता के कई मुद्दों को अलग-अलग तरीकों से इसका अनुभव किया गया है। समानता इस युग की सबसे बड़ी जरूरत है। समानता एक अवधारणा है, लेकिन जब हम इस अवधारणा के अनुप्रयोगों का निरिक्षण करते हैं तो यह केवल एक मिथक के रूप में हमें मिलती है। संसाधनों के असमान वितरण ने समाज में मतभेदों को जन्म दिया है। मतभेद कभी नहीं होता यदि वास्तविकता में समानता इस समाज में विकसित और विद्यमान होती।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *