निबंध

कारगिल विजय दिवस पर निबंध (Kargil Vijay Diwas Essay in Hindi)

1947 में भारत पाकिस्तान बंटवारे के बाद भी पाकिस्तान समय समय पर भारत को कश्मीर के मुद्दे को लेकर उकसाने का भरसक प्रयास करता आया है। 1948, 1965, 1971 के युद्ध में हार के बाद भी पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बाज नहीं आया। फरवरी 1999 में भारत पाकिस्तान के बीच हुए शांति समझौते के बावजूद पाकिस्तान मई 1999 में अपने सैनिकों की मदद से भारत में घुसपैठ कर कारगिल जैसे महासंहार का कारण बना।

कारगिल विजय दिवस पर दीर्घ निबंध (Long Essay on Kargil Vijay Diwas in Hindi, Kargil Vijay Diwas par Nibandh Hindi mein)

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प्रस्तावना

इतिहासकारों का मानना है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ और लेफ्टिनेंट जनरल मोहम्मद अजीज ने 1998 की शरद ऋतु से ही भारत में घुसपैठ करने की योजना तैयार कर रहे थें। पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को एक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की साजिश करता आया है और 1999 में भी पाकिस्तान की घुसपैठ करने के पीछे यही धारणा थी। पाकिस्तान आजादी के बाद से भारत पाकिस्तान बॉर्डर पर आए दिन गोली बरियाँ करता आया है लेकिन जब जब उसकी हरकतों ने हद पार करने की कोशिश की है भारत के वीर जवानों से उसे मुंह की खानी पड़ी है।

कारगिल युद्ध का कारण

1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के बाद भी पाकिस्तान कश्मीर बॉर्डर पर लगातार तनावपूर्ण माहौल बनाए रखता था। 1971 के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में परमाणु परीक्षण होने के कारण ये तनाव और अधिक प्रबल हो गया। पाकिस्तान की हमेशा यही सोच रहती आई है कि किसी तरह कश्मीर के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ले जाया जाए। पाकिस्तान ने हमेशा यही चाहा है कि भारत कश्मीर के तनाव को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना आंतरिक मामला न कह सके और पाकिस्तान अपने अन्य सहयोगी देशों की मदद से कश्मीर का फ़ैसला अपने हक में करवा ले। इसी मंसूबे के साथ पाकिस्तान ने भारत के कारगिल और द्रास के इलाकों में घुसपैठ करने की रणनीति बनाई और फरवरी 1999 के बाद से अपने सैनिकों को भारत नियंत्रित क्षेत्र में भेजने लगा। जिसका परिणाम मई 1999 में कारगिल युद्ध के रूप में निकल कर सामने आया।

पाकिस्तान के घुसपैठियों की जानकारी

1999 में 8 से 15 मई के बीच भारतीय सेना द्वारा कारगिल की चोटी पर पेट्रोलिंग के दौरान पाकिस्तान के घुसपैठ करने का पता चला जिसके बाद से ही युद्ध का माहौल बनने लगा। कुछ दिनों बाद भारतीय सेना ने पता लगा लिया कि पाकिस्तान भारी संख्या में अपने सैनिकों को भारत नियंत्रित इलाकों में भेज चुका है। जिसके बाद भारत सरकार द्वारा 24 मई 1999 को तीनों सेनाओं के प्रमूकों की बैठक बुलाई गई जिसमें युद्ध के लिए सारी योजना बनाई गई और इस मिशन को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया गया।

कारगिल का युद्ध

भारत सरकार ने घुसपैठियों के खिलाफ़ अपनी सेना 8 मई से ही भेजनी शुरू कर दी थी। जब लड़ाई ने अपना विकराल रूप ले लिया तो 30 जून 1999 को कश्मीर विवादित क्षेत्र में लगभग 73,000 सैनिकों को भेजा गया। पाकिस्तानी सेना द्वारा 160 किलोमीटर के दायरे में घुसपैठ किया गया था जिससे भरतीस सेना को अपने कब्जे में लेने में लगभग ढाई महीने लग गए थे। 13 जून 1999 को द्रास के इलाकों में भारत और पाकिस्तानी सेना के बीच कई हफ्तों तक युद्ध चलता रहा और अंततः भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को वहां से खदेड़ने में कामयाब रही।

बटालिक सेक्टर का इलाका दुश्मनों द्वारा बहुत मजबूती से घेरा जा चुका था जिसपर कब्जा करने में भारतीय सेना को लगभग एक महिना लग गया था। टाइगर हिल पर लगभग प्रबल विस्फोटकों के 12,000 राउन्ड की बारिश की गई थी जिससे पाकिस्तानी सेना वहीं ध्वस्त हो गई थी। 4 से 5 जुलाई 1999 को भारतीय सेना टाइगर हिल पर वापस पाने में सफ़ल रही। द्रास और मशकोह के उप-क्षेत्रों में बंदूकधारियों के उत्कृष्ट प्रदर्शन के सम्मान में पॉइंट 4875 को “गन हिल” का नाम दे दिया गया। वायु सेना ने इस मिशन को “ऑपरेशन सफेद सागर” नाम दिया था। भारतीय सेना के वीरता और पराक्रम के बदौलत 26 जुलाई 1999 को भारत ने कारगिल की लड़ाई जीत ली थी।

कारगिल की लड़ाई में प्रयोग किए गए हथियार

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कारगिल का नाम इतिहास के पन्नों में सबसे भयावह युद्ध के नाम से दर्ज है जिसे लड़ने के लिए बहुत से कीमती हथियारों की जरूरत पड़ी थी। भारतीय सेना ने सीधी फायरिंग में 155 एमएम की बोफोर्स मीडियम गन और 105 एमएम भारतीय फील्ड गन इस्तेमाल किया था। भारतीय सेना ने सीधी लड़ाई में 122 एमएम ग्रैड मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर का प्रयोग किया था। पाकिस्तानी घुसपैठिये एके 47 और 56 मोर्टार, आर्टिलरी, एंटी-एयरक्राफ्ट गन और स्टिंगर मिसाइलों से लैस थे, जबकि भारतीय सेना ने 122 एमएम ग्रैड मल्टी बैरल रॉकेट लॉन्चर का प्रयोग किया था। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना द्वारा 60 फ्रन्ट लाइन हेलीकाप्टरों को भी तैनात किया गया था। कारगिल के युद्ध में प्रति दिन 300 तोपों से लगभग 5000 बम और रॉकेट दागे जाते थे।

अमर जवान ज्योति स्मारक पर एक नजर

कारगिल विजय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को उन्हीं वीर शहीदों की याद में मनाया जाता है जो कारगिल के युद्ध में अपने सौर्य और वीरता का प्रदर्शन करते हुए खुशी-खुशी वीरगति को प्राप्त हो गए थे। अमर जवान ज्योति स्मारक का उद्घाटन भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी जी ने 1972 में अज्ञात शहीदों की याद में किया था। इस स्मारक पर 26 जनवरी और 15 अगस्त को परेड से पूर्व देश के प्रधानमंत्री और तीनों सेना के प्रमुखों सहित अन्य मुख्य अतिथि भी शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को भी कारगिल विजय दिवस के दिन उन सभी शहीदों की याद में सेना के तीनों प्रमुख दिल्ली के राजपथ स्थित अमर जवान ज्योति स्मारक पर शहीदों को श्रद्धांजलि देने पहुंचते हैं। इस समरक का निर्माण संगमर से इंडिया गेट के नीच किया गया है। स्मारक के ऊपर L1A1 सेल्फ़ लोडिंग रायफ़ल भी स्थापित की गई है तथा के बैरल पर एक सैनिक हेलमेट लटकाई गई है। इस स्मारक के बीच वाली ज्योति वर्ष भर प्रज्वलित रहती है तथा स्मारक के चारों कोनों पर स्थित ज्योति विशेष अवसर पर ही प्रज्वलित की जाती है।

कारगिल विजय दिवस 2021 पर खास

इस बार कारगिल विजय दिवस को खास बनाने की तैयारी है। इस विजय दिवस पर सेना के विजय मशाल को भी जवानों का हौसला अफजाई करने के लिए लद्दाख ले जाया जा रहा है। यह विजय मशाल कश्मीर से लद्दाख के पथ पर है जिसके 23 जुलाई को पहुँचने की उम्मीद है। इस बार विजय दिवस पर हमारे राष्ट्रपति व सभी सेनाओं के सुप्रीम कमांडर माननीय श्री राम नाथ कोविन्द जी कारगिल पहुंच कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे।

इस बार के कारगिल विजय दिवस पर भारतीय सेना ने दो मोटरसाइलिक रैलियों को पूरा करने के पथ पर अग्रसर है। सेना की एक टुकड़ी लेह से दौलत-बेग-ओल्डी की 17 हजार फुट की ऊंचाई को पार करते हुए द्रास पहुँच रही है तथा दूसरी टुकड़ी 22 जुलाई को उद्धमपुर स्थित उत्तरी कमान मुख्यालय के ध्रुव वॉर मेमोरियल से कारगिल की तरफ बढ़ रही है। इस बार के विजय दिवस को खास बनाने के संदर्भ में श्रीनगर के पीआरओ डिफेंस लेफ्टिनेंट कर्नल एमरान मुसावी ने बताया कि द्रास वॉर मेमोरियल में दो दिवसीय कार्यक्रम 25 जुलाई से आयोजित किया जाएगा।

निष्कर्ष

1999 में हुए भारत पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध में भारत के लगभग 500 वीर जवान शाहिद हुए और करीब 1500 सैनिक घायल भी हुए थे। इतनी आहुतियों के बाद भारत ने कारगिल युद्ध में विजय पाई थी। इस ऑपरेशन के नाम के अनुसार ही 26 जुलाई को विजय दिवस के रूप में उद्घोषित कर दिया गया ताकि आने वाली पीढ़ी भी उन देशभक्तों की वीरगाथाओं के बारे में जाने और उन वीरों का धन्यवाद करें। इस बार 26 जुलाई 2021 को कारगिल के पूरे 22 वर्ष पूरे होने जा रहे हैं। आज जिस कारगिल और द्रास के क्षेत्रों को हम सब गर्व से भारत का हिस्सा बताते हैं वो उन्हीं शहीदों की देन है जिनको हर वर्ष विजय दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित करके उनका आभार प्रकट करते हैं।

FAQs: Frequently Asked Questions

प्रश्न 1 – कारगिल विजय दिवस कब मनाया जाता है?

उत्तर – कारगिल विजय दिवस प्रत्येक वर्ष 26 जुलाई को मनाया जाता है।

प्रश्न 2 – अमर जवान ज्योति स्मारक कहां स्थित है?

उत्तर – अमर जवान ज्योति स्मारक दिल्ली के राजपथ मार्ग पर इंडिया गेट के नीचे स्थित है।

प्रश्न 3 – कारगिल की लड़ाई कब शुरू हुई थी?

उत्तर – कारगिल का युद्ध 3 मई के आस पास ही शुरू हो गया था।

प्रश्न 4 – कारगिल का युद्ध किसके किसके बीच लड़ा गया था?

उत्तर – कारगिल की लड़ाई भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ा गया था।

प्रश्न 5 – कारगिल का युद्ध कब से कब तक चला था?

उत्तर – कारगिल का युद्ध 3 मई 1999 से 26 जुलाई 1999 तक लगभग ढाई महीने चला था।

Shiv Prasad Vishwakarma

बचपन से ही लेखन में रुचि रखने वाले शिव प्रसाद विश्वकर्मा पेशे से एक कॉन्टेंट राइटर हैं। लेखन के क्षेत्र में इन्होंने अपना वर्चस्व स्थापित करने के साथ साथ बहुत से युवाओं को साहित्य की तरफ मोड़ने का काम भी किया है। अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने लेखन शैली को ही जीवन का आधार बनाया है।

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Shiv Prasad Vishwakarma