निबंध

भगवान गणेश पर निबंध (Lord Ganesha Essay in Hindi)

प्रथम पूज्य श्री गणेश गणपति, विनायक, गौरी नंदन आदि नामों से मशहूर है। वे सिद्धी और बुध्दि के देवता है। बिना बप्पा (श्री गणेश) के आशीर्वाद के कोई कार्य पूर्ण नहीं होता। श्री गणेश को कोई भी शुभ काम करने से पहले पूजा जाता है। श्री गणेश प्रथम-पूज्य है। यानि सभी देवताओं से पहले गणपति बप्पा का स्मरण अनिवार्य होता है।

भगवान गणेश पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Lord Ganesha in Hindi, Bhagwan Ganesha par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (300 शब्द)

परिचय

आदि शंकराचार्य ‘गणेश स्रोत’ में कहते है “अजं निर्विकल्पं निराकारमेकं” अर्थात गणेश जी अजंमे निर्विकार हैं और उस चेतना के प्रतीक हैं जो कि सर्वव्यापी है।

अद्भुत जन्म कथा

श्री गणेश की जन्म कथा भी उनकी ही तरह अद्भुत और अलौकिक है। इनका जन्म अन्य देवताओं की भांति अपनी माता (पार्वती) के गर्भ से नहीं हुआ, बल्कि माता पार्वती ने उन्हें अपने तन के मैल से निर्मित किया था। श्री गणेश ने नवजात शिशु के रुप में जन्म नहीं लिया था, अपितु जन्म ही बाल रुप में लिया था।

जब श्री गणेश जन्में, तब उनका शीश गज जैसा नहीं था, अपितु देव तुल्य सामान्य ही था। जन्म (सृजन) देने के तुरंत बाद माता पार्वती स्नान करने चली जाती है, और पुत्र गणेश को आज्ञा देती हैं, कि कोई भी अंदर प्रवेश न करने पाये। श्री गणेश जो अपनी माता के अनन्य भक्त थे, अभी तक सिर्फ अपनी माता को ही देखा था।

वो अपनी माता की आज्ञा का पालन करने हेतु माता के महल के प्रवेश द्वार पर खड़े होकर पहरेदारी करने लगे। इतने में पिता महादेव आ गये और अंदर जाने लगे। चूंकि पिता और पुत्र दोनों एक दूसरे से अनभिज्ञ थे। गणेश के बाहर ही रोक देने से वे अत्यंत क्रोधित हो गए।

महादेव ने बहुत समझाया कि वो माता पार्वती के स्वामी है, पर बालक गणेश ने एक न सुनी और क्रोध में आकर महादेव ने बाल गणेश का सिर काट दिया। अब क्या था, जैसे माता पार्वती स्नान कर बाहर आयी, अपने बच्चे को सिर कटा शव देखा। वो क्रोध और दुःख से अत्यंत व्याकुल हो उठी।

उन्होने महादेव से अपने बच्चे को जीवित करने को कहा, क्योंकि वो बच्चा तो केवल अपनी मां की आज्ञा का पालन कर रहा था। तब श्रीहरि विष्णु ने गज सिर लाकर महादेव को दिया और महादेव ने गजसिर लगाकर बालक गणेश को पुनः जीवित कर दिया। अपनी मां के प्रति इतनी अटूट भक्ति देखकर महादेव सहित सभी देवी-देवताओं ने गौरीपुत्र को आशीर्वाद दिया। और साथ ही पिता महादेव ने प्रथम-पूज्य का होने का आशीर्वाद दिया।

निष्कर्ष

श्री गणेश सभी गणों के देवता हैं। इसलिए उन्हें गणेश, गणपति कहा जाता है। वो विध्नहर्ता हैं सभी विघ्न-बाधा को हर लेते है। वे मंगल मूर्ति है, सभी का मंगल करते हैं। हाथी का सिर होने का कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं।

निबंध – 2 (400 शब्द)

परिचय

भगवान गणेश – शिव और पार्वती के दूसरे पुत्र हैं। उनका गज (हाथी) सिर और लम्बोदर (बड़ा पेट) हैं। वे ऐसे ईश्वर है, जिसे किसी अन्य देवता के पहले, यहां तक कि शिव, ब्रह्मा और विष्णु की पूजा से भी पहले पूजा जाता है। वे प्रगति और ज्ञान के देवता हैं।

शारीरिक संरचना

श्री गणेश की शारीरिक संरचना सबसे भिन्न और मन-मोहक है। उनके स्वरुप का प्रतीकात्मक अर्थ है जो हमें बहुत कुछ सिखाता है और उनके बारे में भी बताता है।

  • उनके एक हाथ में अंकुश हैं, जिसका अर्थ है – जागृत होना और दूसरे में पाश है, जिसका अर्थ है नियंत्रण। इसका तात्पर्य यह हुआ कि जागृति के साथ नियंत्रण का होना बहुत जरुरी होता है।
  • गजानन की छोटी-छोटी आंखे हर छोटी से छोटी चीज को देख लेती है। साथ ही उनके बड़े-बड़े कान ज्यादा सुनने और कम बोलने पर बल देते है।
  • उनका लम्बोदर स्वरुप का भी अर्थ है। लम्बोदर का अर्थ होता है लम्बा उदर। उनके इस स्वरुप का प्रतीकात्मक अर्थ है कि हमें सभी अच्छी-बुरी बातों को पचा लेना चाहिए।
  • बप्पा के दो दांत हैं, एक खंडित और दूसरा अखंडित। खंडित दांत से आशय बुध्दि से है और अखंडित दांत श्रध्दा का प्रतीक है। कहने का तात्पर्य यह है कि बुध्दि भले ही भ्रमित हो जाए, किन्तु श्रध्दा कभी भी खंडित नहीं होनी चाहिए।

गणेश-चतुर्थी (विनायक चतुर्थी) का महा उत्सव

प्रथम-पूज्य श्रीगणेश के जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में यह उत्सव बहुत धूम-धाम से पूरे भारत-वर्ष में अगस्त या सितम्बर महीने में मनाया जाता है। किंतु सबसे ज्यादा धूम महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। इस दिन लोग अपने-अपने घरों में श्रीगणेश की प्रतिमा को लाते है, दस दिनों तक खूब पूजा-पाठ करते है, और ग्यारहवें दिन बैंड-बाजे के साथ बप्पा की प्रतिमा को नदी आदि में विसर्जित किया जाता है।

क्यों चलता है यह उत्सव दस दिनों तक

दस दिनों तक यह उत्सव यूं ही नहीं मनता। इसके पीछे भी ठोस कारण है। ऐसा कहा जाता है कि, एक बार भगवान श्री गणेश को वेदव्यास के मुख से महाभारत की कथा सुनने का मन हुआ। वेदव्यास ने उनकी आज्ञा का सम्मान करते हुए उन्हें महाभारत की कथा पूरे भाव के साथ सुनाने लगे। कथा सुनते-सुनते दस दिन बीत गए और श्रीगणेश भी सुनते-सुनते उसी में खो गए, जब कथा खत्म हुई और गणेश जी ने अपनी आंखे खोली तो उनका शरीर बहुत जल रहा था। ग्यारहवें दिन वेदव्यास जी ने तुरंत उन्हें स्नान कराया, जिससे उनका शरीर का ताप कम हुआ। ग्यारहवें दिन (Anant Chaturdashi) उनकी मूर्ति का विसर्जन इसी कारण किया जाता है।

निष्कर्ष

वह सभी बाधाओं को दूर करते हैं और इसलिए, किसी भी शुभ अवसरों जैसे शादी, प्रसव, एक घर या इमारत खरीदना या यहां तक कि यात्रा को भी शुरू करने पहले, श्रीगणेश का नाम लिया जाता है, उसके बाद ही अन्य अनुष्ठान या कार्य शुरू किए जाते हैं। वे बहुत बुद्धिमान है और लोगों के भक्ति और श्रद्धा ने उन्हें कई अलग-अलग नाम से सुशोभित किया हैं।

निबंध – 3 (500 शब्द)

परिचय

भगवान गणेश हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। उन्हें आमतौर पर बाधाओं के निवारण के रूप में पूजा जाता है। वो सभी लोग, जो अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की इच्छा रखते हैं और कृतज्ञ हैं, उसे उनकी पूजा करने की सलाह दी जाती है।

किसी भी धार्मिक गतिविधि की शुरुआत भगवान गणेश की पूजा से होती है। सभी देवताओं में से वह सबसे पसंदीदा है। उनकी पत्नियां रिद्धि और सिद्धि हैं। ऐसा कहा जाता है कि गणेश देवी पार्वती की रचना थे।

कैसे बने भगवान श्री गणेश प्रथम पूज्य

एक बार जब श्री गणेश को प्रथम पूज्य होने का दर्जा मिल गया था, तब सभी देवता नाराज हो गए। सभी क्रोधित देवता भगवान विष्णु के पास गए। और भगवान विष्णु सभी को देवो के देव महादेव के पास ले आए। महादेव ने बीच का रास्ता निकालते हुए कहा कि, जो भी पुरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करके सबसे पहले आएगा, उसे ही प्रथम पूज्य घोषित कर दिया जाएगा।

कुमार कार्तिकेय, देवराज सहित सभी देवता पूरे ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने चले गए। माता पार्वती बहुत परेशान हो गयीं कि उनका पुत्र छोटे से चूहे पर चढ़कर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर कैसे लगा पायेगा।

सभी देवता आश्वस्त थे, कि गणेश कभी नहीं जीत पायेंगे। भगवान श्री गणेश जो स्वयं बुध्दि और ज्ञान के देवता है, ने पिता महादेव और माता पार्वती को एक साथ बैठने को कहा। फिर माता-पिता की परिक्रमा करने लगे। और सबसे पहले परिक्रमा करके प्रथम आ गये।

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, उनके उत्तर सुनकर सभी मूक और स्तब्ध हो गए। उन्होंने कहा कि, मेरे लिए पिता महादेव और मां पार्वती ही समस्त संसार है। उनकी चतुराई और तर्क शक्ति देखकर सभी आश्चर्य हो गए और उन्हें खुशी-खुशी प्रथम-पूज्य स्वीकार कर लिया।

गणेश जी को हाथी का ही सिर क्यों लगा?

हाथी का बड़ा सिर ज्ञान, समझ और विवेकपूर्ण बुद्धि का प्रतीक है जो जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए होना चाहिए। चौड़ा मुंह दुनिया में जीवन का आनंद लेने की प्राकृतिक मानवीय इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। बड़े कान संकेत देते हैं कि एक आदर्श व्यक्ति वह है जो दूसरों को सुनने और विचारों को आत्मसात करने की एक महान क्षमता रखता है।

  • हाथी के दांत

हाथी के दो दांत होते हैं, एक खंडित और दूसरा अखंडित। दो दांत मानव व्यक्तित्व, ज्ञान और भावना के दो पहलुओं को दर्शाते हैं। दायां दांत ज्ञान का प्रतिनिधित्व करता है और बाँया दांत भावना का प्रतिनिधित्व करता है। टूटी हुई बाईं दांत इस विचार को बताती है कि पूर्णता प्राप्त करने के लिए ज्ञान के साथ भावनाओं को जीतना चाहिए।

  • हाथी का सूढ़

हाथी का सूढ़ जहाँ एक तरफ एक पेड़ को उखाड़ सकता है तो वहीं दूसरी तरफ जमीन से एक सुई भी उठा सकता है। इसी तरह, बाहरी दुनिया के उतार-चढ़ाव का सामना करने के लिए मानव मन को पर्याप्त रूप से मजबूत होना चाहिए और आंतरिक दुनिया के सूक्ष्म लोकों का पता लगाने के लिए भी प्रस्तुत होना चाहिए।

  • हाथी की आंखें

हाथी की आंखें बहुत छोटी होती है। हाथी की आंखें इस विचार का प्रतीक हैं कि भले ही कोई व्यक्ति धन और बुद्धि में काफी बड़ा हो, फिर भी उसे दूसरों को खुद से बड़ा और बेहतर समझना चाहिए। हमें यह विनम्रता प्राप्त करना सीखाता है।

  • सहजता का प्रतीक

हाथी ‘ज्ञान शक्ति’ और ‘कर्म शक्ति’, दोनों का ही प्रतीक है। एक हाथी के मुख्य गुण होते हैं – बुद्धि और सहजता। एक हाथी का विशालकाय सिर बुद्धि और ज्ञान का सूचक है। हाथी कभी भी अवरोधों से बचकर नहीं निकलते, न ही वे उनसे रुकते हैं। वे केवल उन्हें अपने मार्ग से हटा देते हैं और आगे बढ़ते हैं – यह सहजता का प्रतीक है। इसलिए, जब हम भगवान गणेश की पूजा करते हैं, तो हमारे भीतर ये सभी गुण जागृत हो जाते हैं।

निष्कर्ष

भगवान गणेश हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। पूरी दुनिया में उनकी पूजा की जाती है। उनके कई नाम हैं: गणपति का अर्थ होता है, सभी गणों के देवता (देवता), अखुरथ मतलब वो जिनके पास उनके सारथी के रूप में मूषक है, चतुर्भुज अर्थात जिनकी चार भुजाएं हैं, दुर्जा मतलब अजेय भगवान और विघ्नहारा का अर्थ हुआ, बाधाओं का निवारण। वह विघ्नहर्ता हैं जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं।

मीनू पाण्डेय

शिक्षा स्नातक एवं अंग्रेजी में परास्नातक में उत्तीर्ण, मीनू पाण्डेय की बचपन से ही लिखने में रुचि रही है। अकादमिक वर्षों में अनेकों साहित्यिक पुरस्कारों से सुशोभित मीनू के रग-रग में लेखनी प्रवाहमान रहती है। इनकी वर्षों की रुचि और प्रविणता, इन्हे एक कुशल लेखक की श्रेणी में खड़ा करता है। हर समय खुद को तराशना और निखारना इनकी खूबी है। कई वर्षो का अनुभव इनके कार्य़ को प्रगतिशील और प्रभावशाली बनाता है।

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द्वारा प्रकाशित
मीनू पाण्डेय