सोलह कलाओं में निपुण भगवान श्री कृष्ण को लीलाधर भी कहते है। उन्होंने जन्म ही लीलाओं के साथ लिया था। भगवान कृष्ण का बचपन विभिन्न कथाओं से भरा है। वे सभी के घरों से मक्खन चुराते थे, गोपियों के स्नान करते समय कपड़े चुरा लेते थे। उन्होंने मामा कंस द्वारा भेजे गए सभी राक्षसों को मार डाला था। भगवान कृष्ण को उनकी पालक माँ यशोदा ने बहुत प्यार और देखभाल के साथ पाला था।
परिचय
सभी देवताओं में सबसे श्रेष्ठ श्री कृष्ण की लीलाएँ दुनिया भर में विख्यात है। इनके जैसी मनमोहक और अनुपम जीवन लीला और किसी भी देवता की नहीं। श्री विष्णु के दस अवतारो में से आँठवा अवतार श्री कृष्ण का था। उनके सभी दस अवतार (मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, गौतम बुध्द और कल्कि) में से सर्वाधिक अनुपम और अद्वितीय श्री कृष्णावतार है।
कृष्ण का पालन-पोषण
कृष्ण का पालन-पोषण एक ग्वाल परिवार में हुआ था और वह अपना समय गोपियों के साथ खेलने, उन्हें सताने, परेशान करने, बाँसुरी बजाने आदि में बिताते थे, कृष्ण बहुत ज्यादा शरारती थे। लेकिन वो इतने अधिक मनमोहक थे कि अगर कोई भी माँ यशोदा से उनकी शिकायत करता तो मैया यशोदा विश्वास ही नहीं करती थी। उनका भोला और सुंदर रुप देखकर हर कोई पिघल जाता था।
राधा-कृष्ण का आलौकिक प्रेम
बचपन में राधा के साथ कृष्ण का जुड़ाव अत्यंत दिव्य और आलौकिक था, जो हिन्दू संस्कृति में पूजनीय है। राधारानी देवी लक्ष्मी की अवतार थीं।
गोपियो के संग रास
राधा-कृष्ण वृंदावन में रास करते थे। कहते है आज भी वृंदावन के निधी वन में उनकी उपस्थिति महसूस की जा सकती है। ऐसा कहा जाता है कि एक चांदनी रात में, कृष्ण ने उन सभी गोपियो के साथ नृत्य करने के लिए अपने शरीर को कई गुना कर लिया था, जो भगवान कृष्ण के साथ रहना और नृत्य करना चाहती थी। यह वास्तविकता और भ्रम के बीच का अद्भुत चित्रण है।
महाभारत का युध्द
कृष्ण अपने मामा कंस को मारने के बाद राजा बने। कुरुक्षेत्र की लड़ाई के दौरान कृष्ण ने सबसे महत्वपूर्ण किरदार निभाया और अर्जुन के सारथी बने। कृष्ण पांडवों की तरफ से थे। कृष्ण ने युद्ध के मैदान में अर्जुन के दोस्त, दार्शनिक और मार्गदर्शक के रूप में अनवरत मार्गदर्शन किया। अर्जुन पीछे हट रहे थे क्योंकि उन्हें अपने भाइयों को मारना था और अपने गुरुओं के खिलाफ लड़ना था।
श्रीमद्भागवत गीता का सार
महाभारत के युध्द में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को भक्ति योग का पाठ दिया जिसका अर्थ है परिणामों की अपेक्षा से स्वयं को अलग करना। उन्होंने “श्रीमद्भागवत गीता” के रूप में समस्त संसार को ज्ञान दिया, जो कि 700 श्लोकों के साथ 18 अध्यायों की एक ग्रंथ है। यह मानव जीवन से संबंधित है। यह दर्शन की एक महान और अपराजेय पुस्तक है जिसे हम भारतीयों ने अपनी अनमोल विरासत के रूप में ग्रहण किया है।
निष्कर्ष
सोलह कलाओं में निपुण भगवान श्री कृष्ण की लीला अपरम्पार है। उनके जैसा अन्य कोई नहीं। श्रीमद्भागवत गीता में इंसान के सभी परेशानियों का श्री कृष्ण ने समाधान दे रखा है। जो आज भी एक इंसान का सच्चा मार्गदर्शक है।
परिचय
हिंदू श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। हिंदू इस त्योहार को भाद्रपद की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाते हैं। भगवान कृष्ण भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली अवतार हैं। यह पर्व प्रायः अगस्त (ग्रिगोरियन कैलेंडर) महिने में पड़ता है। यह हिंदुओं के लिए एक खुशी का त्यौहार है। इसके अलावा, हिंदू भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए व्रत आदि जैसे विभिन्न अनुष्ठान करते हैं।
सबसे बड़ी मित्रता
श्रीकृष्ण के लिए सबसे बड़ी मित्रता थी। जब उनके परम मित्र सुदामा उनसे मिलने द्वारका पहुंचे तो सुदामा अपनी दरिद्रता के कारण द्वारकाधीश श्रीकृष्ण से मिलने से झिझक रहे थे, लेकिन श्रीकृष्ण का अपने मित्र के प्रति प्रेम देखकर भावविभोर हो गए। और ऐसा कहा जाता है कि प्रभु ने स्वयं अपने अश्रुओं से उनके पैर पखारे (धोए) थे।
जन्माष्टमी क्यों मनाई जाती है?
लोग मध्य रात्रि में जन्माष्टमी मनाते हैं। क्योंकि भगवान कृष्ण अंधेरे में पैदा हुए थे। चूँकि श्री कृष्ण को माखन खाने का बहुत शौक था, इसलिए लोग इस मौके पर दही-हांडी जैसे खेल का आयोजन करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ
अंतर्राष्ट्रीय कृष्ण भावनामृत संघ अर्थात इस्कॉन (International Society for Krishna Consciousness – ISKCON) का आरंभ 1966 में न्यूयार्क में आचार्य भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने किया था। देश-विदेश के जन-जन तक कृष्णा को पहुँचाने का श्रेय प्रभु को ही जाता है।
इसे “हरे कृष्णा आन्दोलन” की भी उपमा दी जाती है। यह एक धार्मिक संगठन है, जिसका उद्देश्य धार्मिक संचेतना और आध्यात्म को जन-जन तक पहुँचाना है। इसकी पूरे विश्व में 850 से ज्यादा शाखाएं है। इसके देश भर में अनेक मंदिर और विद्यालय स्थित हैं। इसका मुख्यालय पश्चिम बंगाल (भारत) के मायापुर में है।
निष्कर्ष
उत्सव का माहौल घरों में भी दिखाई देता है। लोग अपने घरों को बाहर से रोशनी से सजाते हैं। मंदिर आदि लोगों से भर जाते हैं। वे मंदिरों और घरो के अंदर विभिन्न अनुष्ठान करते हैं। परिणामस्वरूप, हम पूरे दिन घंटियों और मंत्रों की आवाज सुनते हैं। इसके अतिरिक्त, लोग विभिन्न धार्मिक गीतों पर नृत्य करते हैं। अंत में, यह हिंदू धर्म में सबसे सुखद त्योहारों में से एक है।
परिचय
श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्णा कहते हैं-
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युथानम् अधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे॥
प्रभु श्रीकष्ण, अर्जुन से कहते हैं, ‘जब-जब अधर्म अपना सर उठाएगा और धर्म का नाश होगा, तब-तब सज्जनों के परित्राण (कल्याण) और दुष्टों के विनाश के लिए मैं विभिन्न युगों में आता रहूँगा।’
भगवान कृष्ण को समझ पाना आम इंसान के बस की बात नहीं। वे जहाँ एक ओर महान ज्ञाता है तो वहीं दूसरी ओर नटखट चोर भी है। वो महान योगी है तो रास रचैया भी।
श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार
श्रीकृष्ण का जन्म भी उन्ही की भांति अद्भुत था। जन्म लेने के पूर्व ही वो अपनी लीला दिखाना शुरु कर दिए थे।
भगवान कृष्ण ने श्री हरि विष्णु के आठवें अवतार के रुप में जनम लिया था। द्वापर युग के भाद्रपद्र की कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को प्रभु ने इस धरती पर अवतरित होने का दिन सुनिश्चित किया था।
अद्भुत संयोग
उस दिन खूब तेज बारिश हो रही थी। माता देवकी को अर्धरात्रि में प्रसव-पीड़ा होना शुरु हो गया था। सातवाँ मुहुर्त खत्म हुआ और आंठवे मुहुर्त के शुरु होते ही प्रभु कृष्ण देवकी के गर्भ से कारागार में अवतरित हुए। कहते है कृष्णा के जन्म लेते ही कंश के सारे सैनिक बेहोश हो गए थे। केवल माँ देवकी और पिता वासुदेव ही अपने अद्भुत पुत्र के दर्शन कर पाए। लेकिन यह पल अत्यंत क्षणिक था। अभी माता देवकी अपने लाल को जी भर देख भी नहीं पाई थी। किंतु अपने भाई कंस से अपने पुत्र को बचाने के लिए वो अपने बच्चे को पिता वासुदेव को दे देती है। अब उन्हें क्या पता था, जिसे वो कंस से बचा रही हैं वो उसी कंस के उध्दार के लिए ही जन्मा है।
यमुना में उमड़ता तूफान
वासुदेव जी उसी तेज कड़कती बिजली और बारिश में प्रभु को मथुरा से गोकुल अपने मित्र नंद के पास लेकर चल दिए। यमुना में तूफान अपने चरम पर था, पर जैसे ही प्रभु के चरणों का स्पर्श किया, यमुना भी भगवान का आशीर्वाद पाकर कृतार्थ हो गयी और बाबा वासुदेव को जाने का रास्ता दे दिया।
गोकुल का दृश्य
उधर गोकुल में माता यशोदा भी प्रसव-पीड़ा में थी। यह कोई संयोग नहीं था, यह तो भगवान की रची-रचाई लीला थी। जिसके तहत सभी अपना-अपना किरदार निभा रहे थे। हम सभी तो केवल उनके हाथ की कठपुतलियां है, वो जैसे नचाता है, सभी उसके इशारे पर नाचते हैं।
उनके माँ-बाप देवकी और वासुदेव भी वही कर रहे थे, जो वो करवाना चाह रहे थे। जैसे ही नंद बाबा के यहाँ वासुदेव बालक कृष्ण को लेकर पहुंचे, माता यशोदा की कोख से माया ने जन्म ले लिया था, और यशोदा बेहोश थी। नंद बाबा तुरंत बच्चों की अदला-बदली कर देते है, माता यशोदा के पास कृष्ण को रख देते हैं और अपनी पुत्री को वासुदेव को दे देते है, यह जानते हुए कि कंस उनकी बच्ची को देवकी का बच्चा समझ कर मार डालेगा, जैसे उसने देवकी के सभी सातों बच्चों को पैदा होते ही मार दिया था। कृष्ण उनकी आंठवी संतान थे।
कंस के मौत की भविष्यवाणी
कंस के मौत की भविष्यवाणी हुई थी कि उसकी बहन की आंठवी संतान ही उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। इस कारण उसने अपनी ही बहन और बहनोई को कारागार में डाल दिया था। ‘विनाश काले विपरित बुध्दि’, कहते है न जब विनाश होना होता है, तो सबसे पहले बुध्दि साथ छोड़ देती है। कंस के साथ भी कुछ ऐसा ही था। जैसे ही वासुदेव मथुरा पहुंचते है, सब सैनिकों को होश आ जाता है, और कंस को खबर मिलती है कि देवकी को आठवें पुत्र की प्राप्ति हो चुकी है, कंस जैसे ही बच्ची को मारने के लिए हवा में उछालता है, माया ऊपर आकाश में उड़ जाती है। और कहती है कि तुझे मारने वाला इस धरती पर आ चुका है। इतना कहते ही वो आकाश में ही विलीन हो जाती है।
निष्कर्ष
श्रीकृष्ण का जन्म ही धर्म की स्थापना के लिए हुआ था। उन्होंने पुरी दुनिया को प्रेम का संदेश दिया। राधा और कृष्ण को प्रेम का प्रतीक मानकर पूजा जाता है।