निबंध

परोपकार पर निबंध (Philanthropy Essay in Hindi)

किसी भी व्यक्ति को अपने जीवन में परोपकारी बनना चाहिए यह एक ऐसी भावना है जो शायद कोई सिखा नहीं सकता, यह किसी के भीतर खुद आती है। परोपकार मानवता का दूसरा नाम है और हमे बढ़ चढ़ कर इस क्रिया में भाग लेना चाहिए।

परोपकार पर छोटे-बडे निबंध (Short and Long Essay on Philanthropy in Hindi, Paropakar par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (250 – 300 शब्द)

परिचय

किसी व्यक्ति की सेवा या उसे किसी भी प्रकार के मदद पहुंचाने की क्रिया को परोपकार कहते हैं। ऐसा उपकार जिसमें कोई अपना स्वार्थ न हो उसे परोपकार कहते हैं। परोपकार को सबसे बड़ा धर्म कहा गया है और करुणा, सेवा सब परोपकार के ही पर्यायवाची हैं। जब किसी व्यक्ति के अन्दर करुणा का भाव होता है तो वह परोपकारी भी होता है।

परोपकार का अर्थ

परोपकार शब्द ‘पर और उपकार’ शब्दों से मिल कर बना है जिसका अर्थ है दूसरों पर किया जाने वाला उपकार।कहते हैं की मनुष्य जीवन हमे इसलिये मिलता है ताकि हम दूसरों की मदद कर सकें। हमारा जन्म सार्थक तभी कहलाता है जब हम अपने विवेक,कमाई या बल की सहायता से दूसरों की मदद करें। जरुरी नहीं की जिसके पास पैसे हो या जो अमीर हो केवल वही दान दे सकता है।

एक साधारण व्यक्ति भी किसी की मदद अपने बुद्धि के बल पर कर सकता है। सब समय-समय की बात है, की कब किसकी जरुरत पड़ जाये। अर्थात जब कोई जरुरत मंद हमारे सामने हो तो हमसे जो भी बन पाए हम उसके लिये करें। यह एक जरूरतमंद, जानवर भी हो सकता है और मनुष्य भी।

निष्कर्ष

हमें बच्चों को शुरू से यह सिखाना चाहिए और जब वे आपको इसका पालन करता देखेंगे, वे खुद भी इसका पालन करेंगे। परोपकारी बनें और दुसरो को भी प्रेरित करें।


निबंध – 2 (400 शब्द)

परिचय

परोपकार एक ऐसी भावना होती है जो हर किसी को अपने अन्दर रखना चहिये। इसे हर व्यक्ति को अपनी आदत के रूप में विकसित भी करनी चाहिए। यह एक ऐसी भावना है जिसके तहत एक व्यक्ति यह भूल जाता है की क्या उसका हित है और क्या अहित, वह अपनी चिंता किये बगैर निःस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद करता है और बदले में उसे भले कुछ मिले या न मिले कभी इसकी चर्चा भी नहीं करता।

हमारी संस्कृति

हमारी भारतीय संस्कृति इतनी धनि है की यहाँ बच्चे को परोपकार की बातें बचपन से ही सिखाई जाती हैं। अपितु यहाँ कई वंशों से चला आ रहा है, परोपकार की बातें हम अपने बुजुर्गों से सुनते आये है और यही नहीं इससे सम्बंधित कई कहानियां हमारे पौराणिक पुस्तकों में भी लिखे हुए हैं। हम यह गर्व से कह सकते हैं की यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है। हमारे शास्त्रों में परोपकार के महत्त्व को बड़ी अच्छी तरह दर्शाया गया है। हमे अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिये अर्थात परोपकार को नहीं भूलना चाहिए।

सबसे बड़ा धर्म

आज कल के दौर में सब आगे बढ़ने की होड़ में इस कदर लगे हुए हैं की परोपकार जैसे सबसे पुण्य काम को भूलते चले जा रहे हैं। इंसान मशीनों के जैसे काम करने लगा है और परोपकार, करुणा, उपकार जैसे शब्दों को जैसे भूल सा गया है। चाहे हम कितना भी धन कमा ले परन्तु यदि हमारे अन्दर परोपकार की भावना नहीं है तो सब व्यर्थ है। मनुष्य का इस जीवन में अपना कुछ भी नहीं, वह अपने साथ यदि कुछ लाता है तो वे उसके अच्छे कर्म ही होते हैं। पूजा पाठ इन सब से बढ़ कर यदि कुछ होता है तो वो है परोपकार की भावना और यह कहना गलत नहीं होगा की यह सबसे बड़ा धर्म है।

निष्कर्ष

परोपकार की भावना हम सबके अन्दर होनी चाहिए और हमे अपने अगले पीढ़ी को भी इससे भलीभांति परिचित कराना चाहिए। हमे बच्चों को शुरू से बाटने की आदत लगानी चाहिए। उन्हें सिखाना चाहिए की सदैव जरुरत मंदों की मदद करें और यही जीवन जीने का असली तरीका है। जब समाज में कोई हमारे छोटी सी मदद से एक अच्छा जीवन व्यतीत कर सकता है तो क्यों न हम इसे अपनी आदत बना लें। और समाज के कल्याण का हिस्सा गर्व से बने। हमारे छोटे-छोटे योगदान से हम जीवन में कई अच्छे काम कर सकते हैं।

निबंध – 3 (500 शब्द)

परिचय

परोपकार एक ऐसा शब्द है जिसका अर्थ शायद ही कोई न जानता हो, यह एक ऐसी भावना है जिसका विकास बचपन से ही किया जाना चाहिए। हम सबने कभी न कभी किसी की मदद जरुर की होगी और उसके बाद हमे बड़ा की गर्व का अनुभव हुआ होगा, बस इसी को परोपकार कहते हैं। परोपकार के कई रूप हैं, चाहे यह आप किसी मनुष्य के लिये करें या किसी जीव के लिये।

आज कल के समय की आवश्यकता

आज-कल लोग अधिक व्यस्त रहने लगे हैं और उनके पास अपने लिये समय नहीं होता ऐसे में वे दूसरों की मदद कैसे कर पाएंगे। ऐसे में यह आवश्यक है की परोपकार को अपनी आदत बना लें इससे आप खुद तो लाभान्वित होंगे ही अपितु आप दूसरों को भी करेंगे। राह चलते किसी बुजुर्ग की मदद करदें तो कभी किसी दिव्यांग को कंधा देदें।

यकीन मानिए कर के अच्छा लगता है, जब इसके लिये अलग से समय निकालने की बात की जाये तो शयद यह कठिन लगे। आज कल के दौर में लोग दूसरों से सहायता लेने से अच्छा अपने फोन से ही सारा काम कर लेते हैं परन्तु उनका क्या जिनके पास या तो फोन नहीं है और है भी तो चलाना नहीं आता। इसी लिये परोपकारी बनें और सबकी यथा संभव मदद अवश्य करें।

मानवता का दूसरा नाम

परोपकार की बातें हमारे धर्म ग्रंथों में भी लिखी हुई हैं और यही मानवता का असल अर्थ है। दुनिया में भगवन किसी को गरीब तो किसी को अमीर क्यों बनाते हैं? वो इस लिये ताकि जिसके पास धन है, वो निर्धन की मदद करे। और शायद इसी वजह से वे आपको धन देते भी हैं, ताकि आपकी परीक्षा ले सकें। जरुरी नहीं की यह केवल धन हो, कई बार आपके पास दूसरों की अपेक्षा अधिक बल होता है तो कभी अधिक बुद्धि। किसी भी प्रकार से दूसरों की मदद करने को परोपकार कहते हैं और यही असल मायनों में मानव जीवन का उद्देश होता है। हम सब इस धरती पर शायद एक दुसरे की मदद करने ही आये हैं।

कई बार हमारे सामने सड़क दुर्घटनाएं हो जाती हैं और ऐसे में मानवता के नाते हमें उस व्यक्ति की सहायता करनी चाहिए। किसी भी व्यक्ति को सबकी निस्वार्थ मदद करनी चाहिए और फल की चिंता न करते हुए अपना कर्म करते रहना चाहिए।

निष्कर्ष

परोपकार से बढ़ के कुछ नहीं है और हमे दूसरों को भी प्रेरित करना चाहिए की वे बढ़-चढ़ कर दूसरों की मदद करें। आप चाहें तो अनाथ आश्रम जा के वहां के बच्चों को शिक्षा दे सकते हैं या अपनी तनख्वा का कुछ हिस्सा गरीबों में बाँट सकते हैं। परोपकार अथाह होता है और इसका कोई अंत नहीं है इस लिये यह न सोचें की केवल पैसे से ही आप किसी की मदद कर सकते हैं। बच्चों में शुरू से यह अदत विकिसित करनी चाहिए। बच्चों को विनम्र बनायें जिससे परोपकार की भावना स्वतः उनमें आये। एक विनम्र व्यक्ति अपने जीवन में बहुत आगे जाता है और मानवता को समाज में जीवित रखता है।

कनक मिश्रा

आंग्ल भाषा में परास्नातक, कनक मिश्रा पेशे से एक कुशल कंटेंट राइटर हैं। इनकी हिन्दी और अंग्रेजी पर समान पकड़ इनकी लेखनी को खास बनाती है। ये नियमित लेखन करती हैं और इनकी सृजनात्मकता इनके कार्य को प्रभावशाली बनाती है। ये बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। आपने आहार-विशेषज्ञ और स्टेनोग्राफी में भी कुशलता प्राप्त कर रखी है।

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द्वारा प्रकाशित
कनक मिश्रा