“कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत।” सुविख्यात कवि रहिमदास द्वारा रचित यह दोहा हम सब ने अपने किताबों में पढ़ा है। इस दोहे के माध्यम से कवि हम से कहता है, जब व्यक्ति के पास संपत्ति होता है तब उसके अनेक सगे-संबंधी तथा मित्र बनते हैं, उसके समीप आते हैं, पर विपत्ती के समय में जो आपका साथ दे, वहीं सच्चा मित्र है।
परिचय
व्यक्ति को प्रत्येक रिश्ता अपने जन्म से ही प्राप्त होता है, अन्य शब्दों में कहें तो ईश्वर पहले से बना के देता है, पर दोस्ती ही एक ऐसा रिश्ता है जिसका चुनाव व्यक्ति स्वयं करता है। सच्ची मित्रता रंग-रूप नहीं देखता, जात-पात नहीं देखता, ऊँच-नीच, अमीरी-गरीबी तथा इसी प्रकार के किसी भी भेद-भाव का खंडन करती है। आमतौर पर यह समझा जाता है, मित्रता हम-उम्र के मध्य होती है पर यह गलत है मित्रता किसी भी उम्र में और किसी के साथ भी हो सकती है।
दोस्ती का महत्व
व्यक्ति के जन्म के बाद से वह अपनों के मध्य रहता हैं, खेलता हैं, उनसें सीखता हैं पर हर बात व्यक्ति हर किसी से साझा नहीं कर सकता। व्यक्ति का सच्चा मित्र ही उसके प्रत्येक राज़ को जानता है। पुस्तक ज्ञान की कुंजी है, तो एक सच्चा मित्र पूरा पुस्तकालय, जो हमें समय-समय पर जीवन के कठिनाईयों से लड़ने में सहायता प्रदान करते है। व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में दोस्तों की मुख्य भुमिका होती है। ऐसा कहा जाता है की व्यक्ति स्वयं जैसा होता है वह अपने जीवन में दोस्त भी वैसा ही चुनता है। और व्यक्ति से कुछ गलत होता है तो समाज उसके दोस्तों को भी समान रूप से उस गलती का भागीदार समझते हैं।
जहां लोग आपसे बात भी अपने स्वार्थ सिद्धि के मनोकामना से करते हैं ऐसे में सच्ची मित्रता भी बहुत कम लोगों को प्राप्त हो पाती है। प्राचीन समय से ही लोग अपनी इच्छाओं व अकांक्षाओं की पूर्ति के लिए दोस्ती करते हैं तथा अपना कार्य हो जाने पर अपने जीवन में व्यस्त हो जाते हैं। इसलिए व्यक्ति को दोस्ती का हाथ हमेशा सोच समझ कर अन्य की ओर बढ़ाना चाहिए।
निष्कर्ष
व्यक्ति के व्यक्तित्व का दर्पण उसके द्वारा बनाए गए मित्र होते हैं, व्यक्ति को सदैव अपने मित्रों का चुनाव सोच-समझ कर करना चाहिए। जीवन में “सच्ची मित्रता” तथा “मतलब की मित्रता” में भेद कर पाना असल में एक चुनौती है तथा व्यक्ति को व्यक्ति की परख कर मित्रों का चुनाव करना चाहिए।
परिचय
व्यक्ति अपना सुख-दुख तथा हर तरह की बात जिससे बांट सके वह व्यक्ति का मित्र होता है। मित्रता जीवन के किसी भी पढ़ाव में आकर तथा किसी से भी हो सकता है। एक पिता अपनी पुत्री का मित्र हो सकता है, इसी तरह से मां बेटे में मित्रता हो सकती है, पति-पत्नि में भी मित्रता हो सकती है। यह आवश्यक नहीं की हम-उम्र के लोगों के मध्य ही मित्रता हो। सच्ची दोस्ती व्यक्ति को सदैव सही मार्ग दिखाती है। नुखताचीनी (जिसमें सदैव व्यक्ति के हाँ में हाँ मिलाया जाता है) को मित्रता कहना अनुचित होगा।
अच्छे दोस्त हमें कभी नहीं खोने चाहिए
परिवार के बाद दोस्त व्यक्ति की दूसरी प्रथमिकता होता है। जिसके साथ वह हर अच्छे बुरे पलों को व्यतीत करता है। सुविख्यात कवि रहिमदास द्वारा एक चर्चित दोहे में कहा गया है, “टूटे सुजन मनाइए, जो टूटे सौ बार। रहिमन फिर-फिर पोइए, टूटे मुक्ताहार।” मतलब सच्चे मित्र जितनी बार आपसे रूठे उन्हें मना लेना चाहिए ठीक उसी प्रकार जैसे मोतीयों की माला के टूट के बिखर जाने पर हम उन्हें बार-बार पिरोते हैं क्योंकि वह मूल्यवान हैं, ठीक उसी प्रकार सच्चे मित्र भी मूल्यवान होते हैं और उन्हें नहीं खोना चाहिए। जिस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में मित्रता का महत्व होता है ठीक उसी प्रकार मेरे जीवन में भी है। मेरे मित्रों का समुह मेरे लिए दुसरे परिवार जैसा है।
मित्र बनाते समय हमारी लापरवाही
जीवन में व्यक्ति जिन आदतों को वहन करता है वह मित्रता की ही देन होती है। व्यक्ति के घर से निकलने पर उसकी पहली आवश्यकता मित्र होते हैं। सबसे पहले व्यक्ति मित्र बनाने की होड़ में लग जाता है, क्योंकी मानव सामाजिक प्राणी है तथा वह अकेला नहीं रह सकता। पर यह कितनी गंभीर बात है हम अपने लिए कोई जानवर भी लाते है तो अनेक तहक़ीक़ात कर के लाते हैं। पर हम मित्र बनाने में इतना समय नहीं लगाते जबकि मित्रता व्यक्ति का पतन भी करा सकती है। और व्यक्ति को कामयाबी के उच्च शिखर तक भी पहुंचा सकती है। ज्यादातर हम व्यक्ति को अपना मित्र बनाने से पहले उसके हाव-भाव तथा उसका हंसमुख चेहरा ही देखते है। जो संकट में हमारे काम नहीं आता है।
निष्कर्ष
व्यक्ति को अपने मित्रों का चुनाव सदैव सोच समझ कर करना चाहिए सच्चे मित्र का उपहास कर या किसी भी कारण के वजह से उसे खोना नहीं चाहिए इसके विपरीत अपना काम निकालने वाले दोस्तों से दूर ही रहना चाहिए। यह बुरे समय पर आपकी मदद के लिए कभी सामने नहीं आयेगे और उल्टा आपकों समय-समय पर समस्या में डालते रहेंगे।
परिचय
जीवन में लोगों के अनेक दोस्त बनते हैं, बचपन के दोस्त, स्कूल, कॉलेज के दोस्त, व्यवसायिक दोस्त, मतलब (टाईमपास) के दोस्त आदि। इन में से कुछ वक्त गुज़रने के साथ पीछे छूट जाते हैं, और कुछ जीवन भर आपके हर अच्छे-बुरे परिस्थिति में आपके साथ रहते हैं। अपनी परेशानी की बात अपने दोस्तों को बताने से निश्चय ही मन का भार कम होता है तथा मित्रता व्यक्ति को सकारात्मक उर्जा से भर देती है।
बनावटी मित्र का त्याग करें
मित्रता जीवन को रोमांच से भर देती है। मित्र के होने पर व्यक्ति खुद को अकेला महसूस नहीं करता तथा सच्चा मित्र बिना विचार किए ही आपको संकट में देख मदद के लिए आगे आता है। वरन् लोग तो बहुत हैं जो कहते नहीं थकते “हम आपके मित्र हैं”। प्रसिद्ध कवि तुलसीदास ने अपने एक बड़े ही सुंदर दोहे में कहा है- “आगें कह मृदु बचन बनाई, पाछें अनहित मन कुटिलाई। जाकर चित अहि गति सम भाई, अस कुमित्र परिहरेहिं भलाई।” मतलब- जो आपके सामने बना-बना कर मीठा बोलता है, और अपने मन में बुराई रखता है, आपका बुरा चाहता है तथा जिसका मन साप के चाल के समान टेढ़ा है। ऐसे खराब मित्रों को छोड़ देने में ही आपकी भलाई है।
“फ्रेंडशीप डे” दोस्तों के लिए एक खुशी का दिन
अपने दोस्तों को खास महसूस कराने के लिए तथा दोस्ती को खुशी के रूप में मनाने के लिए, पूरे विश्व में अगस्त के पहले रविवार को “फ्रेंडशीप डे” के रूप में मनाया जाता है। इससे संबंधित दो कहानी हैं। पहला- ऐसा कहते है की, 1935 में अमेरिकी सरकार द्वारा एक व्यक्ति को सज़ा के रूप में फाँसी दी गई। इससे उस व्यक्ति के दोस्त को इतना दुख पहुंचा की उसने भी आत्महत्या कर लिया। अमेरिकी सरकार ने उस व्यक्ति के भावनाओं की कद्र करते हुए, उस दिन को दोस्तों के नाम कर दिया तथा तब से “फ्रेंडशीप डे” की शुरूआत हुई।
दूसरा- 1930 में, जोएस हॉल नाम के एक व्यापारी ने कार्ड और गिफ्ट्स अदला-बदली करके दोस्तों के नाम यह दिन करने का निर्णय लिया तब से यह दिवस मनाया जाने लगा।
दोस्ती की अनेक मिसाल हमें हमारे इतिहास के पन्नों पर भी अंकित मिलते हैं
निष्कर्ष
कुछ लोग बिना किसी रिश्ते के रिश्ते निभाते हैं। शायद वह लोग दोस्त कहलाते हैं- (गुलजार), दोस्ती प्यार का दूसरा रूप है। दोस्ती एक भाव है, हम सभी के जीवन में एक-दो या इससे अधिक दोस्त होते हैं ऐसा कोई व्यक्ति नहीं जिसका कोई दोस्त न हो। आपस में व्यवहार मिलने पर बहुत कम समय में अच्छी दोस्ती हो जाती है, फिर यह भी महत्व नहीं रखता की हम उस व्यक्ति से कभी मिले हैं या नहीं। जो भी हो दोस्त जीवन को सफल भी बना सकते हैं, और उसका नाश भी कर सकते हैं तथा मित्र बनाते समय सोच-विचार करने की आवश्यकता है।
परिचय
एक हास्य कवि द्वारा कहा गया है- दोस्त दो प्रकार के होते है, पहला- हेम्योपैथी- जो मुसीबत के समय में काम नहीं आते हैं, तो किसी प्रकार का व्यक्ति को नुकसान भी नहीं पहुंचाते हैं। दूसरा ऐलोपैथी- यह छोटे- मोटे मुसीबत पर तो काम आते हैं पर बड़े मुसीबत का कुछ निश्चित रूप से कह नहीं सकते। जो भी हो यह बस हास्य का विषय है। व्यक्ति जो समस्या अपने परिवार के साथ भी बांट नहीं पाता वह मित्रता में दोस्तों को बड़े आराम से बता देता है। जिसके साथ हम जीवन के उत्तसाह, हर्ष, उल्लास, खुशी, तथा शोक को बिना किसी तोड़ मरोड़ के साथ बांट सके वहीं व्यक्ति का सच्चा मित्र है। मित्र हमें हर बुरे कार्यों से बचाता है तथा जीवन के हर कठिनाई में हमारे साथ रहता है।
जीवन के विभिन्न पढ़ाव पर व्यक्ति की मित्रता
दोस्ती जीवन में व्यक्ति को कई बार हो सकता है तथा किसी से भी हो सकता है, इसमे चिंता तथा स्नेह की भावना होती है। दोस्ती के विभिन्न प्रकार-
निष्कर्ष
उम्र के हर पढ़ाव पर व्यक्ति के जीवन में दोस्तों का अलग महत्व होता है। कभी साथ क्लास बंक करने का तो कभी ऑफिस के दोस्तों के साथ मूवीं का प्लान, तो कभी कॉलोनी के किसी छत पर सूख रहे आचार, आम, पापड़ पर समुह में अपना ही हक समझना, चाय के साथ गप-शप हो या किसी के मुसीबत के घड़ी में साथ खड़े रहना दोस्त हमेशा एक भावनात्मक सहायता तथा सुरक्षा प्रदान करते हैं।
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