पंडित जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को इलाहाबाद में कश्मीरी पंडित के एक समृद्ध परिवार में हुआ। इनके पिता मोतीलाल नेहरू शहर के जाने माने वकील थे तथा माता स्वरूपरानी नेहरू का संबंध लाहौर के एक सुपरिचित कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से था। बच्चों से अत्यधिक प्रेम होने के वजह से इनके जन्म दिवस को बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है।
परिचय
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व तथा उसके बाद भारत की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले पं. जवाहर लाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 में हुआ। लोगों के अनुसार पढ़ाई में इनका विशेष रुझान था। नमक सत्याग्रह, भारत छोड़ो आन्दोलन, असहयोग आन्दोलन तथा इसी प्रकार के अनेक महत्वपूर्ण आन्दोलन में महात्मा गाँधी के कंधे से कंधा मिला कर जवाहर लाल नेहरू ने भाग लिया।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
जवाहर लाल नेहरू ने 13 वर्ष की उम्र तक अपने घर पर रह कर ही हिंदी, अंग्रेजी तथा संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया। अक्टूबर 1907 में नेहरू ट्रिनिटी कॉलेज, कैम्ब्रिज गए और वहां से 1910 में प्राकृतिक विज्ञान में डिग्री प्राप्त की। इस अवधि के दौरान उन्होंने राजनीति, अर्थशास्त्र, इतिहास तथा साहित्य का भी अध्ययन किया।
बर्नार्ड शॉ, वेल्स, जे. एम. केन्स, मेरेडिथ टाउनसेंड के लेखन ने उनके राजनैतिक सोच पर गहरा असर डाला। 1910 में अपनी डिग्री पूर्ण करने के पश्चात नेहरू कानून की पढ़ाई के लिए लंदन चले गए और ‘इनर टेम्पल इन’ से वकालत किया।
स्वतंत्र भारत के लिए संघर्ष और सफलता
7 अगस्त 1942 मुम्बई में हुई कांग्रेस कमेटी की बैठक में नेहरू के ऐतिहासिक संकल्प “भारत छोड़ो” के वजह से नेहरू को एक बार फिर गिरफ्तार किया गया। यह अंतिम मौका था जब वह जेल जा रहें थे। इस बार नेहरू की गिरफ्तारी लंबे समय के लिए हुई। अपने पूरे जीवन काल में वह देश की सेवा करने के वजह से नौ बार जेल जा चुके हैं।
निष्कर्ष
1929 लाहौर अधिवेशन के पश्चात, नेहरू देश के बुद्धिजीवी तथा युवा नेता के रूप में उभरे। भारतीय नेता के रूप में उन्होंने अपनी भूमिका अनेक यातनाएं सह कर निभाई है।
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परिचय
नेहरू का जन्म कश्मीरी ब्राह्मण के एक ऐसे परिवार में हुआ था जो उनकी प्रशासनिक योग्यता और विद्वत्ता के लिए प्रसिद्ध थे। इनके पिता मोती लाल नेहरू पेशे से वकील और भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के नेता थे। आगे चल कर नेहरू महात्मा गाँधी के प्रमुख सहयोगी में से एक बने। उनकी आत्मकथा में भारतीय राजनीति के प्रति उनकी जिवांत रुचि का पता चलता है।
जवाहर लाल नेहरू राजनीतिक उत्तराधिकारी के रूप में
जवाहर लाल नेहरू ने 1912 में बांकीपुर पटना में कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया। स्थिति सुस्त और निराशाजनक होने के वजह से उन्होंने तिलक और एनी बेसेंट द्वारा होम रूल लीग के साथ अपना राजनैतिक जुड़ाव शुरू किया। 1916 में राष्ट्रीय कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू की गांधी जी से मुलाकात हुई और वह उनके शालीन व्यक्तित्व से अत्यधिक प्रभावित हुए।
जवाहर लाल नेहरू 1924 में इलाहाबाद, नगर निगम विभाग के अध्यक्ष बने। दो साल के कार्यकाल के उपरांत 1926 में इस पद से उन्होंने इस्तीफा दे दिया। तत्पश्चात 1926 से 1928 तक कांग्रेस समीति के महासचिव के रूप में नेहरू ने कार्यभार संभाला। दिसम्बर 1929 लाहौर, कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में नेहरू पार्टी के अध्यक्ष नियुक्त हुए। इसी वर्ष में इन्होनें पूर्ण स्वराज की मांग किया।
नेहरू तथा भारत के लिए महत्वपूर्ण सत्र
1935 में कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। नेहरू इस चुनाव का हिस्सा नहीं थे पर ज़ोरो-शोरों से पार्टी का प्रचार-प्रसार करने लगे इसके परिणाम में कांग्रेस को लगभग हर प्रांत से जीत हासिल हुई। नेहरू 1935-1936 के लिए कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1942 में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान उनकी गिरफ्तारी हुई तथा 1945 में उन्हें रिहा कर दिया गया। 1947 में भारत पाकिस्तान विभाजन के समय उन्होंने ब्रिटिश सरकार से वार्ता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाया।
नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में
जब से महात्मा गांधी ने नेहरू को लाहौर में कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष के रूप में चुना तब से जवाहर लाल नेहरू का प्रधानमंत्री बनना यह तय था। वोटो की संख्या कम होने के बाद भी नेहरू स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। इसके बाद उनके आलोचकों ने जमकर उनकी निंदा की पर उन्होंने अपने पद पर रहते हुए अपने शक्तियों का उचित प्रयोग कर देश के हित में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लिया।
प्रधानमंत्री पद पर नेहरू की महत्वपूर्ण भूमिका
1947 में ब्रिटिश सरकार ने लगभग 500 छोटे-बड़े रियासतों को आज़ाद किया। इन सभी रियासतों को पहली बार एक झण्डे के नीचे लाना चुनौतीपूर्ण कार्य था पर नेहरू ने अन्य महापुरुषों के मदद से इस कार्य में सफलता प्राप्त किया। आधुनिक भारत के निर्माण में नेहरू का विशेष योगदान है। उनके नीतियों के परिणाम स्वरूप आज पंचवर्षिय योजना के माध्यम से कृषि तथा उद्योग में विकास देखा जा सकता है।
निष्कर्ष
नेहरू के राजनीतिक जीवन के उतार-चढ़ाव तथा देश के हित में लिए गए निर्णय के फलस्वरूप गर्व से कहा जा सकता है स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री का पद उन्हें उनकी योग्यता के आधार पर मिला है।
परिचय
जवाहर लाल नेहरू के पंडित होने के वजह से लोग उन्हें पंडित नेहरू भी पुकारते थे तथा भारत में उनकी लोकप्रियता होने के वजह से भारतीय उन्हें चाचा नेहरू कहकर भी बुलाते थे। तीन भाई बहनों में जवाहर लाल नेहरू अकेले भाई थे, इनके अलावां इनकी दो बहने थीं। एक विजय लक्ष्मी पंडित तथा दूसरी कृष्णा हुतेसिंग।
नेहरू एक निपुण लेखक के रूप में
समस्त राजनीतिक विवादों से दूर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता की नेहरू एक उत्तम लेखक थे। उनकी ज्यादातर रचना जेल में ही लिखी गई हैं, पिता के पत्र : पुत्री के नाम (1929), विश्व इतिहास की झलक (1933), मेरी कहानी (नेहरू की ऑटो बायोग्राफी – 1936), इतिहास के महापुरुष, राष्ट्रपिता, भारत की खोज (Discovery of India – 1945) यह कुछ महान रचनाएं नेहरू के कलम से लिखी गई। यह आज भी लोगों के मध्य उतनी ही लोक प्रिय है जितना की उस वक्त थीं।
नेहरू का देश हित में निर्णायक निर्णय
कांग्रेस समीति का वार्षिक सत्र 1928-29, मोतीलाल नेहरू के अध्यक्षता में आयोजित किया गया। उस समय पर मोतीलाल नेहरू ने ब्रिटिश सरकार के अंदर ही प्रभुत्व संपंन राष्ट्र का दर्जा पाने की मांग की। जबकि जवाहर लाल नेहरू तथा सुबास चंद्र बोस ने पूरी राजनीतिक स्वतंत्रता की मांग की। यहां पहली बार जवाहर लाल नेहरू अपने पिता के निर्णय का विरोध कर रहें थे। यह स्वतंत्र भारत के लिए उचित निर्णय था।
नेहरू की आलोचना
कुछ लोगों के अनुसार, गाँधी जी के वजह से नेहरू को प्रधानमंत्री का पद मिला। माना जाता है की कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष ही प्रधानमंत्री पद का कार्यभार संभालेगा यह तय था। इसके बाद भी गाँधी ने सरदार वल्लभ भाई पटेल समेत अन्य योग्य नेताओं के स्थान पर नेहरू को कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में चुना। जो भी हो नेहरू ने अपने पद के महत्व को समझते हुए अनेक बेहतर प्रयास कर आधुनिक भारत का निर्माण किया है।
चाचा नेहरू का जन्म दिवस, बाल दिवस के रूप में
चाचा नेहरू का बच्चों के प्रति असीम प्रेम के वजह से 14 नवम्बर, नेहरू का जन्म दिवस, को बाल दिवस के रूप में देश के सभी विद्यालयों में मनाया जाता है। इस दिन बच्चों को ख़ास महसूस कराने के लिए विद्यालय में विभिन्न प्रकार के प्रतियोगिता तथा खेल का आयोजन किया जाता है।
जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु
नेहरू ने 50 की दशक में कई राजनैतिक, आर्थिक तथा समाजिक निर्णय देश के आने वाले आधुनिक कल को सोच कर लिए। 27 मई 1964 की सुबह उनकी तबीयत खराब हुई तथा दोपहर 2 बजे तक उनका निधन हो गया।
पंडित नेहरू ने अपनी वसीयत में लिखा था- “मैं चाहता हूँ कि मेरी मुट्ठीभर राख को प्रयाग संगम में बहा दिया जाए जो हिंदुस्तान के दामन को चुमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादा हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिल जाए..”
निष्कर्ष
जाने माने तथा समृद्ध परिवार से संबंध होने के फलस्वरूप नेहरू का पालन पोषण बहुत ही नाजो से किया गया था। इसके बाद भी वह अपने देश की मिट्टी से जुड़े हुए थे। बच्चों में लोक प्रियता के वजह से लोग उन्हें चाचा नेहरू कह कर संबोधित करते हैं।
उत्तर. जवाहरलाल नेहरू की जयंती भारत में बाल दिवस के रूप में मनाई जाती है।
उत्तर. जवाहरलाल नेहरू पेशे से वकील थे। तथा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे।
उत्तर. जवाहरलाल नेहरू द्वारा शुरू किया गया अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ था।
उत्तर. जवाहरलाल नेहरू 1947 से 1964 तक 18 वर्षों तक भारत के प्रधान मंत्री रहे।
उत्तर. जवाहरलाल नेहरू के स्मारक को ‘शांतिवन’ कहा जाता है।
उत्तर. ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिया गया प्रसिद्ध भाषण था।