बेरोजगारी किसी भी देश के विकास में प्रमुख बाधाओं में से एक है। भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं जो बेरोज़गारी का कारण बनती हैं। इस समस्या को खत्म करने के लिए भारत सरकार को प्रभावी कदम उठाने की ज़रूरत है। विकासशील देशों के सामने आने वाली मुख्य समस्याओं में से एक बेरोजगारी है। यह केवल देश के आर्थिक विकास में खड़ी प्रमुख बाधाओं में से ही एक नहीं बल्कि व्यक्तिगत और पूरे समाज पर भी एक साथ कई तरह के नकारात्मक प्रभाव डालती है।
बेरोजगारी पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Unemployment in Hindi)
निबंध 1 (300 शब्द)
बेरोजगारी समाज के लिए एक अभिशाप है। इससे न केवल व्यक्तियों पर बुरा प्रभाव पड़ता है बल्कि बेरोजगारी पूरे समाज को भी प्रभावित करती है। कई कारक हैं जो बेरोजगारी का कारण बनते हैं। यहां इन कारकों की विस्तार से व्याख्या की गई और इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए संभावित समाधान बताये गये हैं।
भारत में बेरोजगारी को बढ़ाने वाले कारक
- जनसंख्या में वृद्धि
देश की जनसंख्या में तेजी से होती वृद्धि बेरोजगारी के प्रमुख कारणों में से एक है।
- मंदा आर्थिक विकास
देश के धीमे आर्थिक विकास के परिणामस्वरूप लोगों को रोजगार के कम अवसर प्राप्त होते हैं जिससे बेरोजगारी बढ़ती है।
- मौसमी व्यवसाय
देश की आबादी का बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र में जुड़ा हुआ है। मौसमी व्यवसाय होने के कारण यह केवल वर्ष के एक निश्चित समय के लिए काम का अवसर प्रदान करता है।
- औद्योगिक क्षेत्र की धीमी वृद्धि
देश में औद्योगिक क्षेत्र की वृद्धि बहुत धीमी है। इस प्रकार इस क्षेत्र में रोजगार के अवसर सीमित हैं।
- कुटीर उद्योग में गिरावट
कुटीर उद्योग में उत्पादन काफी गिर गया है और इस वजह से कई कारीगर बेरोजगार हो गये हैं।
बेरोजगारी खत्म करने के संभव समाधान
- जनसंख्या पर नियंत्रण
यह सही समय है जब भारत सरकार देश की आबादी को नियंत्रित करने के लिए कठोर कदम उठाए।
- शिक्षा व्यवस्था
भारत में शिक्षा प्रणाली कौशल विकास की बजाय सैद्धांतिक पहलुओं पर केंद्रित है। कुशल श्रमशक्ति उत्पन्न करने के लिए प्रणाली को सुधारना होगा।
- औद्योगिकीकरण
लोगों के लिए रोज़गार के अधिक अवसर बनाने के लिए सरकार को औद्योगिक क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाने चाहिए।
- विदेशी कंपनियां
सरकार को रोजगार की अधिक संभावनाएं पैदा करने के लिए विदेशी कंपनियों को अपनी इकाइयों को देश में खोलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
- रोजगार के अवसर
एक निश्चित समय में काम करके बाकि समय बेरोजगार रहने वाले लोगों के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर पैदा किए जाने चाहिए।
निष्कर्ष
देश में बेरोजगारी की समस्या लंबे समय से बनी हुई है। हालाँकि सरकार ने रोजगार सृजन के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं पर अभी तक वांछनीय प्रगति हासिल नहीं हो पाई है। नीति निर्माताओं और नागरिकों को अधिक नौकरियों के निर्माण के साथ ही रोजगार के लिए सही कौशल प्राप्त करने के लिए सामूहिक प्रयास करने चाहिए।
निबंध 2 (400 शब्द)
भारत में बेरोजगारी प्रच्छन्न बेरोजगारी, खुले बेरोजगारी, शिक्षित बेरोजगारी, चक्रीय बेरोजगारी, मौसमी बेरोजगारी, तकनीकी बेरोजगारी, संरचनात्मक बेरोजगारी, दीर्घकालिक बेरोजगारी, घर्षण बेरोज़गारी और आकस्मिक बेरोजगारी सहित कई श्रेणियों में विभाजित की जा सकती है। इन सभी प्रकार की बेरोजगारियों के बारे में विस्तार से पढ़ने से पहले हमें यह समझना होगा कि वास्तव में किसे बेरोजगार कहा जाता है? मूल रूप से बेरोजगार ऐसा व्यक्ति होता है जो काम करने के लिए तैयार है और एक रोजगार के अवसर की तलाश कर रहा है पर रोजगार प्राप्त करने में असमर्थ है। जो लोग स्वेच्छा से बेरोजगार रहते हैं या कुछ शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण काम करने में असमर्थ होते हैं वे बेरोजगार नहीं गिने जाते हैं।
यहां बेरोजगारी के विभिन्न प्रकारों पर एक विस्तृत नज़र डाली गई है:
प्रच्छन्न बेरोजगारी
जब ज़रूरी संख्या से ज्यादा लोगों को एक जगह पर नौकरी दी जाती है तो इसे प्रच्छन्न बेरोजगारी कहा जाता है। इन लोगों को हटाने से उत्पादकता प्रभावित नहीं होती है।
मौसमी बेरोजगारी
जैसा कि शब्द से ही स्पष्ट है यह उस तरह की बेरोजगारी का प्रकार है जिसमें वर्ष के कुछ समय में ही काम मिलता है। मुख्य रूप से मौसमी बेरोजगारी से प्रभावित उद्योगों में कृषि उद्योग, रिसॉर्ट्स और बर्फ कारखानें आदि शामिल हैं।
खुली बेरोजगारी
खुली बेरोजगारी से तात्पर्य है कि जब एक बड़ी संख्या में मजदूर नौकरी पाने में असमर्थ होते हैं जो उन्हें नियमित आय प्रदान कर सके। यह समस्या तब होती है क्योंकि श्रम बल अर्थव्यवस्था की विकास दर की तुलना में बहुत अधिक दर से बढ़ जाती है।
तकनीकी बेरोजगारी
तकनीकी उपकरणों के इस्तेमाल से मानवी श्रम की आवश्यकता कम होने से भी बेरोजगारी बढ़ी है।
संरचनात्मक बेरोजगारी
इस प्रकार की बेरोज़गारी देश की आर्थिक संरचना में एक बड़ा बदलाव की वजह से होती है। यह तकनीकी उन्नति और आर्थिक विकास का नतीजा है।
चक्रीय बेरोजगारी
व्यावसायिक गतिविधियों के समग्र स्तर में कमी से चक्रीय बेरोज़गारी होती है। हालांकि यह घटना थोड़े समय के ही लिए है।
शिक्षित बेरोजगारी
उपयुक्त नौकरी खोजने में असमर्थता, रोजगार योग्य कौशल की कमी और दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली जैसे कुछ कारण हैं जिससे शिक्षित बेरोजगार रहता है।
ठेका बेरोज़गारी
इस तरह के बेरोजगारी में लोग या तो अंशकालिक आधार पर नौकरी करते हैं या उस तरह के काम करते हैं जिसके लिए वे अधिक योग्य हैं।
प्रतिरोधात्मक बेरोजगारी
यह तब होता है जब श्रम बल की मांग और इसकी आपूर्ति उचित रूप से समन्वयित नहीं होती है।
दीर्घकालिक बेरोजगारी
दीर्घकालिक बेरोजगारी वह होती है जो जनसंख्या में तेजी से वृद्धि और आर्थिक विकास के निम्न स्तर के कारण देश में जारी है।
आकस्मिक बेरोजगारी
मांग में अचानक गिरावट, अल्पकालिक अनुबंध या कच्चे माल की कमी के कारण ऐसी बेरोजगारी होती है।
निष्कर्ष
हालांकि सरकार ने हर तरह की बेरोजगारी को नियंत्रित करने के लिए कई कार्यक्रम शुरू किए हैं परन्तु अभी तक परिणाम संतोषजनक नहीं मिले हैं। सरकार को रोजगार सृजन करने के लिए और अधिक प्रभावी रणनीति तैयार करने की जरूरत है।
निबंध 3 (500 शब्द)
बेरोजगारी एक गंभीर समस्या है। शिक्षा की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी, कौशल की कमी, प्रदर्शन संबंधी मुद्दे और बढ़ती आबादी सहित कई कारक भारत में इस समस्या को बढ़ाने में अपना योगदान देते हैं। व्यग्तिगत प्रभावों के साथ-साथ पूरे समाज पर इस समस्या के नकारात्मक नतीजे देखे जा सकते हैं। सरकार ने इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए कई तरह कदम उठाये हैं। इनमें से कुछ का उल्लेख विस्तार से इस प्रकार है।
बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकारी पहल
- स्वयं रोजगार के लिए प्रशिक्षण
1979 में शुरू किए गये इस कार्यक्रम का नाम नेशनल स्कीम ऑफ़ ट्रेनिंग ऑफ़ रूरल यूथ फॉर सेल्फ एम्प्लॉयमेंट (TRYSEM) था। इसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं के बीच बेरोजगारी को कम करना है।
- इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IRDP)
वर्ष 1 978-79 में ग्रामीण क्षेत्रों में पूर्ण रोजगार के अवसर सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार ने इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम शुरू किया। इस कार्यक्रम पर 312 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे और 182 लाख परिवारों को इससे लाभ हुआ था।
- विदेशी देशों में रोजगार
सरकार विदेशी कंपनियों में रोजगार पाने में लोगों की मदद करती है। अन्य देशों में लोगों के लिए काम पर रखने के लिए विशेष एजेंसियां स्थापित की गई हैं।
- लघु और कुटीर उद्योग
बेरोजगारी के मुद्दे को कम करने के प्रयास में सरकार ने छोटे और कुटीर उद्योग भी विकसित किए हैं। कई लोग इस पहल के साथ अपनी जीविका अर्जित कर रहे हैं।
- स्वर्ण जयंती रोजगार योजना
इस कार्यक्रम का उद्देश्य शहरी आबादी के लिए स्वयंरोजगार और मजदूरी-रोजगार के अवसर प्रदान करना है। इसमें दो योजनाएं शामिल हैं:
- शहरी स्वयं रोजगार कार्यक्रम
- शहरी मजदूरी रोजगार कार्यक्रम
- रोजगार आश्वासन योजना
यह कार्यक्रम देश में 1752 पिछड़े वर्गों के लिए 1994 में शुरू किया गया था। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले गरीब बेरोजगार लोगों को इस योजना के तहत 100 दिनों तक अकुशल मैनुअल काम प्रदान किया गया था।
- सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP)
यह कार्यक्रम 13 राज्यों में शुरू किया गया और मौसमी बेरोजगारी को दूर करने के उद्देश्य से 70 सूखा-प्रवण जिलों को कवर किया गया। अपनी सातवीं योजना में सरकार ने 474 करोड़ रुपये खर्च किए।
- जवाहर रोजगार योजना
अप्रैल 1989 में शुरू किए गये इस कार्यक्रम का उद्देश्य प्रत्येक गरीब ग्रामीण परिवार में कम से कम एक सदस्य को एक वर्ष तक पचास से सौ दिन रोजगार प्रदान करना था। व्यक्ति के आसपास के क्षेत्र में रोजगार का अवसर प्रदान किया जाता है और इन अवसरों का 30% महिलाओं के लिए आरक्षित है।
- नेहरू रोज़गार योजना (NRY)
इस कार्यक्रम के तहत कुल तीन योजनाएं हैं। पहली योजना के अंतर्गत शहरी गरीबों को सूक्ष्म उद्यमों को स्थापित करने के लिए सब्सिडी दी जाती है। दूसरी योजना के अंतर्गत 10 लाख से कम की आबादी वाले शहरों में मजदूरों के लिए मजदूरी-रोजगार की व्यवस्था की जाती है। तीसरी योजना के तहत शहरों में शहरी गरीबों को अपने कौशल से मेल खाते रोजगार के अवसर दिए जाते हैं।
- रोजगार गारंटी योजना
बेरोजगार लोगों को इस योजना के तहत आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इसे केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान आदि सहित कई राज्यों में शुरू किया गया है।
इसके अलावा बेरोजगारी को कम करने के लिए कई अन्य कार्यक्रम सरकार द्वारा शुरू किए गए हैं।
निष्कर्ष
हालांकि सरकार देश में बेरोजगारी की समस्या को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय कर रही है पर इस समस्या को सही मायनों में रोकने के लिए अभी भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।
निबंध 4 (600 शब्द)
बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। कई कारक हैं जो इसके लिए जिम्मेदार हैं। इनमें से कुछ में उचित शिक्षा की कमी, अच्छे कौशल और हुनर की कमी, प्रदर्शन करने में असमर्थता, अच्छे रोजगार के अवसरों की कमी और तेजी से बढ़ती आबादी शामिल है। आगे देश में बेरोजगारी स्थिरता, बेरोजगारी के परिणाम और सरकार द्वारा इसे नियंत्रित करने के लिए किए गए उपायों पर एक नज़र डाली गई है।
भारत में बेरोजगारी से संबंधित आकंडे
भारत में श्रम और रोजगार मंत्रालय देश में बेरोजगारी के रिकॉर्ड रखता है। बेरोजगारी के आंकड़ों की गणना उन लोगों की संख्या के आधार पर की जाती है जिनके आंकड़ों के मिलान की तारीख से पहले 365 दिनों के दौरान पर्याप्त समय के लिए कोई काम नहीं था और अभी भी रोजगार की मांग कर रहे हैं।
वर्ष 1983 से 2013 तक भारत में बेरोजगारी की दर औसत 7.32 प्रतिशत के साथ सबसे अधिक 9.40% थी और 2013 में यह रिकॉर्ड 4.90% थी। वर्ष 2015-16 में बेरोजगारी की दर महिलाओं के लिए 8.7% हुई और पुरुषों के लिए 4.3 प्रतिशत हुई।
बेरोजगारी के परिणाम
बेरोजगारी की वजह से गंभीर सामाजिक-आर्थिक मुद्दे होते है। इससे न केवल एक व्यक्ति बल्कि पूरा समाज प्रभावित होता है। नीचे बेरोजगारी के कुछ प्रमुख परिणामों की व्याख्या की गई हैं:
- गरीबी में वृद्धि
यह कथन बिल्कुल सत्य है कि बेरोजगारी दर में वृद्धि से देश में गरीबी की दर में वृद्धि हुई है। देश के आर्थिक विकास को बाधित करने के लिए बेरोजगारी मुख्यतः जिम्मेदार है।
- अपराध दर में वृद्धि
एक उपयुक्त नौकरी खोजने में असमर्थ बेरोजगार आमतौर पर अपराध का रास्ता लेता है क्योंकि यह पैसा बनाने का एक आसान तरीका है। चोरी, डकैती और अन्य भयंकर अपराधों के तेजी से बढ़ते मामलों के मुख्य कारणों में से एक बेरोजगारी है।
- श्रम का शोषण
कर्मचारी आम तौर पर कम वेतन की पेशकश कर बाजार में नौकरियों की कमी का लाभ उठाते हैं। अपने कौशल से जुड़ी नौकरी खोजने में असमर्थ लोग आमतौर पर कम वेतन वाले नौकरी के लिए व्यवस्थित होते हैं। कर्मचारियों को प्रत्येक दिन निर्धारित संख्या के घंटे के लिए भी काम करने के लिए मजबूर किया जाता है।
- राजनैतिक अस्थिरता
रोजगार के अवसरों की कमी के परिणामस्वरूप सरकार में विश्वास की कमी होती है और यह स्थिति अक्सर राजनीतिक अस्थिरता की ओर जाती है।
- मानसिक स्वास्थ्य
बेरोजगार लोगों में असंतोष का स्तर बढ़ता है जिससे यह धीरे-धीरे चिंता, अवसाद और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में बदलने लगती है।
- कौशल का नुकसान
लंबे समय के लिए नौकरी से बाहर रहने से जिंदगी नीरस और कौशल का नुकसान होता है। यह एक व्यक्ति के आत्मविश्वास काफी हद तक कम कर देता है।
बेरोजगारी को कम करने के लिए सरकारी पहल
भारत सरकार ने बेरोजगारी की समस्या को कम करने के साथ-साथ देश में बेरोजगारों की मदद के लिए कई तरह के कार्यक्रम शुरू किए है। इनमें से कुछ में इंटीग्रेटेड रूरल डेवलपमेंट प्रोग्राम (IRDP), जवाहर रोज़गार योजना, सूखा प्रवण क्षेत्र कार्यक्रम (DPAP), स्व-रोजगार के लिए प्रशिक्षण, नेहरू रोज़गार योजना (NRY), रोजगार आश्वासन योजना, प्रधान मंत्री की समन्वित शहरी गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम (PMIUPEP), रोजगार कार्यालयों, विदेशी देशों में रोजगार, लघु और कुटीर उद्योग, रोजगार गारंटी योजना और जवाहर ग्राम समृद्धि योजना का विकास आदि शामिल हैं।
इन कार्यक्रमों के जरिए रोजगार के अवसर प्रदान करने के अलावा सरकार शिक्षा के महत्व को भी संवेदित कर रही है और बेरोजगार लोगों को कौशल प्रशिक्षण प्रदान कर रही है।
निष्कर्ष
बेरोजगारी समाज में विभिन्न समस्याओं का मूल कारण है। हालांकि सरकार ने इस समस्या को कम करने के लिए पहल की है लेकिन उठाये गये उपाय पर्याप्त प्रभावी नहीं हैं। इस समस्या के कारण विभिन्न कारकों को प्रभावी और एकीकृत समाधान देखने के लिए अच्छी तरह से अध्ययन किया जाना चाहिए। यह समय है कि सरकार को इस मामले की संवेदनशीलता को पहचानना चाहिए और इसे कम करने के लिए कुछ गंभीर कदम उठाने चाहिए।
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