‘महिला सशक्तिकरण’ के बारे में जानने से पहले हमें ये समझ लेना चाहिये कि हम ‘सशक्तिकरण’ से क्या समझते है। ‘सशक्तिकरण’ से तात्पर्य किसी व्यक्ति की उस क्षमता से है जिससे उसमें ये योग्यता आ जाती है जिसमें वो अपने जीवन से जुड़े सभी निर्णय स्वयं ले सके। महिला सशक्तिकरण में भी हम उसी क्षमता की बात कर रहे है जहाँ महिलाएँ परिवार और समाज के सभी बंधनों से मुक्त होकर अपने निर्णयों की निर्माता खुद हो।
प्रस्तावना
पंडित जवाहर लाल नेहरु द्वारा कहा गया मशहूर वाक्य “लोगों को जगाने के लिये”, महिलाओं का जागृत होना जरुरी है। एक बार जब वो अपना कदम उठा लेती है, परिवार आगे बढ़ता है, गाँव आगे बढ़ता है और राष्ट्र विकास की ओर उन्मुख होता है। भारत में, महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये सबसे पहले समाज में उनके अधिकारों और मूल्यों को मारने वाले उन सभी राक्षसी सोच को मारना जरुरी है जैसे दहेज प्रथा, अशिक्षा, यौन हिंसा, असमानता, भ्रूण हत्या, महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा, बलात्कार, वैश्यावृति, मानव तस्करी और ऐसे ही दूसरे विषय।
महिला सशक्तिकरण जरुरी क्यों है
लैंगिक भेदभाव राष्ट्र में सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक अंतर ले आता है जो देश को पीछे की ओर ढ़केलता है। भारत के संविधान में उल्लिखित समानता के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए महिलाओं को सशक्त बनाना सबसे प्रभावशाली उपाय है इस तरह की बुराईयों को मिटाने के लिये। लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारितकरना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो।
लैंगिक समानता को प्राथमिकता देने से पूरे भारत में महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा मिला है। महिला सशक्तिकरण के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये इसे हर एक परिवार में बचपन से प्रचारित व प्रसारितकरना चाहिये। ये जरुरी है कि महिलाएँ शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रुप से मजबूत हो। चूंकि एक बेहतर शिक्षा की शुरुआत बचपन से घर पर हो सकती है, महिलाओं के उत्थान के लिये एक स्वस्थ परिवार की जरुरत है जो राष्ट्र के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक है। आज भी कई पिछड़े क्षेत्रों में माता-पिता की अशिक्षा, असुरक्षा और गरीबी की वजह से कम उम्र में विवाह और बच्चे पैदा करने का चलन है। महिलाओं को मजबूत बनाने के लिये महिलाओं के खिलाफ होने वाले दुर्व्यवहार, लैंगिक भेदभाव, सामाजिक अलगाव तथा हिंसा आदि को रोकने के लिये सरकार कई सारे कदम उठा रही है।
महिलाओं की समस्याओं का उचित समाधान करने के लिये महिला आरक्षण बिल-108वाँ संविधान संशोधन का पास होना बहुत जरुरी है ये संसद में महिलाओं की 33% हिस्सेदारी को सुनिश्चित करता है। दूसरे क्षेत्रों में भी महिलाओं को सक्रिय रुप से भागीदार बनाने के लिये कुछ प्रतिशत सीटों को आरक्षित किया गया है।
निष्कर्ष
सरकार को महिलाओं के वास्तविक विकास के लिये पिछड़े ग्रामीण क्षेत्रों में जाना होगा और वहाँ की महिलाओं को सरकार की तरफ से मिलने वाली सुविधाओं और उनके अधिकारों से अवगत कराना होगा जिससे उनका भविष्य बेहतर हो सके। महिला सशक्तिकरण के सपने को सच करने के लिये लड़िकयों के महत्व और उनकी शिक्षा को प्रचारित करने की जरुरत है।
लैंगिक असमानता भारत में मुख्य सामाजिक मुद्दा है जिसमें महिलाएँ पुरुषवादी प्रभुत्व देश में पिछड़ती जा रही है। पुरुष और महिला को बराबरी पर लाने के लिये महिला सशक्तिकरण में तेजी लाने की जरुरत है। सभी क्षेत्रों में महिलाओं का उत्थान राष्ट्र की प्राथमिकता में शामिल होना चाहिये। महिला और पुरुष के बीच की असमानता कई समस्याओं को जन्म देती है जो राष्ट्र के विकास में बड़ी बाधा के रुप में सामने आ सकती है। ये महिलाओं का जन्मसिद्ध अधिकार है कि उन्हें समाज में पुरुषों के बराबर महत्व मिले। वास्तव में सशक्तिकरण को लाने के लिये महिलाओं को अपने अधिकारों से अवगत होना चाहिये। न केवल घरेलू और पारिवारिक जिम्मेदारियों बल्कि महिलाओं को हर क्षेत्रों में सक्रिय और सकारात्मक भूमिका निभानी चाहिये। उन्हें अपने आस-पास और देश में होने वाली घटनाओं को भी जानना चाहिये।
महिला सशक्तिकरण में ये ताकत है कि वो समाज और देश में बहुत कुछ बदल सकें। वो समाज में किसी समस्या को पुरुषों से बेहतर ढ़ंग से निपट सकती है। वो देश और परिवार के लिये अधिक जनसंख्या के नुकसान को अच्छी तरह से समझ सकती है। अच्छे पारिवारिक योजना से वो देश और परिवार की आर्थिक स्थिति का प्रबंधन करने में पूरी तरह से सक्षम है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएँ किसी भी प्रभावकारी हिंसा को संभालने में सक्षम है चाहे वो पारिवारिक हो या सामाजिक।
महिला सशक्तिकरण के द्वारा ये संभव है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था के महिला-पुरुष समानता वाले वाले देश को पुरुषवादी प्रभाव वाले देश से बदला जा सकता है। महिला सशक्तिकरण की मदद से बिना अधिक प्रयास किये परिवार के हर सदस्य का विकास आसानी से हो सकता है। एक महिला परिवार में सभी चीजों के लिये बेहद जिम्मेदार मानी जाती है अत: वो सभी समस्याओं का समाधान अच्छी तरह से कर सकती है। महिलाओं के सशक्त होने से पूरा समाज अपने आप सशक्त हो जायेगा।
मनुष्य, आर्थिक या पर्यावरण से संबंधित कोई भी छोटी या बड़ी समस्या का बेहतर उपाय महिला सशक्तिकरण है। पिछले कुछ वर्षों में हमें महिला सशक्तिकरण का फायदा मिल रहा है। महिलाएँ अपने स्वास्थ्य, शिक्षा, नौकरी, तथा परिवार, देश और समाज के प्रति जिम्मेदारी को लेकर ज्यादा सचेत रहती है। वो हर क्षेत्र में प्रमुखता से भाग लेती है और अपनी रुचि प्रदर्शित करती है। अंतत: कई वर्षों के संघर्ष के बाद सही राह पर चलने के लिये उन्हें उनका अधिकार मिल रहा है।
महिला सशक्तिकरण क्या है ?
महिला सशक्तिकरण को बेहद आसान शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है कि इससे महिलाएँ शक्तिशाली बनती है जिससे वो अपने जीवन से जुड़े हर फैसले स्वयं ले सकती है और परिवार और समाज में अच्छे से रह सकती है। समाज में उनके वास्तविक अधिकार को प्राप्त करने के लिये उन्हें सक्षम बनाना महिला सशक्तिकरण है।
भारत में महिला सशक्तिकरण की क्यों जरुरत है ?
महिला सशक्तिकरण की जरुरत इसलिये पड़ी क्योंकि प्राचीन समय से भारत में लैंगिक असमानता थी और पुरुषप्रधान समाज था। महिलाओं को उनके अपने परिवार और समाज द्वार कई कारणों से दबाया गया तथा उनके साथ कई प्रकार की हिंसा हुई और परिवार और समाज में भेदभाव भी किया गया ऐसा केवल भारत में ही नहीं बल्कि दूसरे देशों में भी दिखाई पड़ता है। महिलाओं के लिये प्राचीन काल से समाज में चले आ रहे गलत और पुराने चलन को नये रिती-रिवाजों और परंपरा में ढ़ाल दिया गया था। भारतीय समाज में महिलाओं को सम्मान देने के लिये माँ, बहन, पुत्री, पत्नी के रुप में महिला देवियो को पूजने की परंपरा है लेकिन इसका ये कतई मतलब नहीं कि केवल महिलाओं को पूजने भर से देश के विकास की जरुरत पूरी हो जायेगी। आज जरुरत है कि देश की आधी आबादी यानि महिलाओं का हर क्षेत्र में सशक्तिकरण किया जाए जो देश के विकास का आधार बनेंगी।
भारत एक प्रसिद्ध देश है जिसने ‘विविधता में एकता’ के मुहावरे को साबित किया है, जहाँ भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोग रहते है। महिलाओं को हर धर्म में एक अलग स्थान दिया गया है जो लोगों की आँखों को ढ़के हुए बड़े पर्दे के रुप में और कई वर्षों से आदर्श के रुप में महिलाओं के खिलाफ कई सारे गलत कार्यों (शारीरिक और मानसिक) को जारी रखने में मदद कर रहा है। प्राचीन भारतीय समाज दूसरी भेदभावपूर्ण दस्तूरों के साथ सती प्रथा, नगर वधु व्यवस्था, दहेज प्रथा, यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, गर्भ में बच्चियों की हत्या, पर्दा प्रथा, कार्य स्थल पर यौन शोषण, बाल मजदूरी, बाल विवाह तथा देवदासी प्रथा आदि परंपरा थी। इस तरह की कुप्रथा का कारण पितृसत्तामक समाज और पुरुष श्रेष्ठता मनोग्रन्थि है।
पुरुष पारिवारिक सदस्यों द्वारा सामाजिक राजनीतिक अधिकार (काम करने की आजादी, शिक्षा का अधिकार आदि) को पूरी तरह प्रतिबंधित कर दिया गया। महिलाओं के खिलाफ कुछ बुरे चलन को खुले विचारों के लोगों और महान भारतीय लोगों द्वारा हटाया गया जिन्होंने महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण कार्यों के लिये अपनी आवाज उठायी। राजा राम मोहन रॉय की लगातार कोशिशों की वजह से ही सती प्रथा को खत्म करने के लिये अंग्रेज मजबूर हुए। बाद में दूसरे भारतीय समाज सुधारकों (ईश्वर चंद्र विद्यासागर, आचार्य विनोभा भावे, स्वामी विवेकानंद आदि) ने भी महिला उत्थान के लिये अपनी आवाज उठायी और कड़ा संघर्ष किया। भारत में विधवाओं की स्थिति को सुधारने के लिये ईश्वर चंद्र विद्यासागर ने अपने लगातार प्रयास से विधवा पुर्न विवाह अधिनियम 1856 की शुरुआत करवाई।
पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के खिलाफ होने वाले लैंगिक असमानता और बुरी प्रथाओं को हटाने के लिये सरकार द्वारा कई सारे संवैधानिक और कानूनी अधिकार बनाए और लागू किये गये है। हालाँकि ऐसे बड़े विषय को सुलझाने के लिये महिलाओं सहित सभी का लगातार सहयोग की जरुरत है। आधुनिक समाज महिलाओं के अधिकार को लेकर ज्यादा जागरुक है जिसका परिणाम हुआ कि कई सारे स्वयं-सेवी समूह और एनजीओ आदि इस दिशा में कार्य कर रहे है। महिलाएँ ज्यादा खुले दिमाग की होती है और सभी आयामों में अपने अधिकारों को पाने के लिये सामाजिक बंधनों को तोड़ रही है। हालाँकि अपराध इसके साथ-साथ चल रहा है।
कानूनी अधिकार के साथ महिलाओं को सशक्त बनाने के लिये संसद द्वारा पास किये गये कुछ अधिनियम है – एक बराबर पारिश्रमिक एक्ट 1976, दहेज रोक अधिनियम 1961, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956, मेडिकल टर्म्नेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1987, बाल विवाह रोकथाम एक्ट 2006, लिंग परीक्षण तकनीक (नियंत्रक और गलत इस्तेमाल के रोकथाम) एक्ट 1994, कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन शोषण एक्ट 2013।
निष्कर्ष
भारतीय समाज में सच में महिला सशक्तिकरण लाने के लिये महिलाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं के मुख्य कारणों को समझना और उन्हें हटाना होगा जो कि समाज की पितृसत्तामक और पुरुष प्रभाव युक्त व्यवस्था है। जरुरत है कि हम महिलाओं के खिलाफ पुरानी सोच को बदले और संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों में भी बदलाव लाये।
प्रस्तावना
आज के समय में महिला सशक्तिकरण एक चर्चा का विषय है, खासतौर से पिछड़े और प्रगतिशील देशों में क्योंकि उन्हें इस बात का काफी बाद में ज्ञान हुआ कि बिना महिलाओं तरक्की और सशक्तिकरण के देश की तरक्की संभव नही है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण का अर्थ उनके आर्थिक फैसलों, आय, संपत्ति और दूसरे वस्तुओं की उपलब्धता से है, इन सुविधाओं को पाकर ही वह अपने सामाजिक स्तर को उंचा कर सकती है।
भारत में महिला सशक्तिकरण के मार्ग में आने वाली बाधाएं
1) सामाजिक मापदंड
पुरानी और रुढ़ीवादी विचारधाराओं के कारण भारत के कई सारे क्षेत्रों में महिलाओं के घर छोड़ने पर पाबंदी होती है। इस तरह के क्षेत्रों में महिलाओं को शिक्षा या फिर रोजगार के लिए घर से बाहर जाने के लिए आजादी नही होती है। इस तरह के वातावरण में रहने के कारण महिलाएं खुद को पुरुषों से कमतर समझने लगती है और अपने वर्तमान सामाजिक और आर्थिक दशा को बदलने में नाकाम साबित होती है।
2) कार्यक्षेत्र में शारीरिक शोषण
कार्यक्षेत्र में होने वाला शोषण भी महिला सशक्तिकरण में एक बड़ी बाधा है। नीजी क्षेत्र जैसे कि सेवा उद्योग, साफ्टवेयर उद्योग, शैक्षिक संस्थाएं और अस्पताल इस समस्या से सबसे ज्यादे प्रभावित होते है। यह समाज में पुरुष प्रधनता के वर्चस्व के कारण महिलाओं के लिए और भी समस्याएं उत्पन्न करता है। पिछले कुछ समय में कार्यक्षेत्रों में महिलाओं के साथ होने वाले उत्पीड़ने में काफी तेजी से वृद्धि हुई है और पिछले कुछ दशकों में लगभग 170 प्रतिशत वृद्धि देखने को मिली है।
3) लैंगिग भेदभाव
भारत में अभी भी कार्यस्थलों महिलाओं के साथ लैंगिग स्तर पर काफी भेदभाव किया जाता है। कई सारे क्षेत्रों में तो महिलाओं को शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जाने की भी इजाजत नही होती है। इसके साथ ही उन्हें आजादीपूर्वक कार्य करने या परिवार से जुड़े फैलसे लेने की भी आजादी नही होती है और उन्हें सदैव हर कार्य में पुरुषों के अपेक्षा कमतर ही माना जाता है। इस प्रकार के भेदभावों के कारण महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक दशा बिगड़ जाती है और इसके साथ ही यह महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को भी बुरे तरह से प्रभावित करता है।
4) भुगतान में असमानता
भारत में महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है और असंगठित क्षेत्रो में यह समस्या और भी ज्यादे दयनीय है, खासतौर से दिहाड़ी मजदूरी वाले जगहों पर तो यह सबसे बदतर है। समान कार्य को समान समय तक करने के बावजूद भी महिलाओं को पुरुषों के अपेक्षा काफी कम भुगतान किया जाता है और इस तरह के कार्य महिलाओं और पुरुषों के मध्य के शक्ति असमानता को प्रदर्शित करते है। संगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों के तरह समान अनुभव और योग्यता होने के बावजूद पुरुषों के अपेक्षा कम भुगतान किया जाता है।
5) अशिक्षा
महिलाओं में अशिक्षा और बीच में पढ़ाई छोड़ने जैसी समस्याएं भी महिला सशक्तिकरण में काफी बड़ी बाधाएं है। वैसे तो शहरी क्षेत्रों में लड़किया शिक्षा के मामले में लड़को के बराबर है पर ग्रामीण क्षेत्रों में इस मामले वह काफी पीछे हैं। भारत में महिला शिक्षा दर 64.6 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की शिक्षा दर 80.9 प्रतिशत है। काफी सारी ग्रामीण लड़कियां जो स्कूल जाती भी हैं, उनकी पढ़ाई भी बीच में ही छूट जाती है और वह दसवीं कक्षा भी नही पास कर पाती है।
6) बाल विवाह
हालांकि पिछलें कुछ दशकों सरकार द्वारा लिए गये प्रभावी फैसलों द्वारा भारत में बाल विवाह जैसी कुरीति को काफी हद तक कम कर दिया गया है लेकिन 2018 में यूनिसेफ के एक रिपोर्ट द्वारा पता चलता है, कि भारत में अब भी हर वर्ष लगभग 15 लाख लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले ही कर दी जाती है, जल्द शादी हो जाने के कारण महिलाओं का विकास रुक जाता है और वह शारीरिक तथा मानसिक रुप से व्यस्क नही हो पाती है।
7) महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराध
भारतीय महिलाओं के विरुद्ध कई सारे घरेलू हिंसाओं के साथ दहेज, हॉनर किलिंग और तस्करी जैसे गंभीर अपराध देखने को मिलते हैं। हालांकि यह काफी अजीब है कि शहरी क्षेत्रों की महिलाएं ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के अपेक्षा अपराधिक हमलों की अधिक शिकार होती हैं। यहां तक कि कामकाजी महिलाएं भी देर रात में अपनी सुरक्षा को देखते हुए सार्वजनिक परिवहन का उपयोग नही करती है। सही मायनों में महिला सशक्तिकरण की प्राप्ति तभी की जा सकती है जब महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके और पुरुषों के तरह वह भी बिना भय के स्वच्छंद रुप से कही भी आ जा सकें।
8) कन्या भ्रूणहत्या
कन्या भ्रूणहत्या या फिर लिंग के आधार पर गर्भपात भारत में महिला सशक्तिकरण के रास्तें में आने वाले सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है। कन्या भ्रूणहत्या का अर्थ लिंग के आधार पर होने वाली भ्रूण हत्या से है, जिसके अंतर्गत कन्या भ्रूण का पता चलने पर बिना माँ के सहमति के ही गर्भपात करा दिया जाता है। कन्या भ्रूण हत्या के कारण ही हरियाणा और जम्मू कश्मीर जैसे प्रदेशों में स्त्री और पुरुष लिंगानुपात में काफी ज्यादे अंतर आ गया है। हमारे महिला सशक्तिकरण के यह दावे तब तक नही पूरे होंगे जबतक हम कन्या भ्रूण हत्या के समस्या को मिटा नही पायेंगे।
भारत में महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार की भूमिका
भारत सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जाती है। महिला एंव बाल विकास कल्याण मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा भारतीय महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए कई सारी योजनाएं चलायी जा रही है। इन्हीं में से कुछ मुख्य योजनाओं के विषय में नीचे बताया गया है।
1) बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं योजना
2) महिला हेल्पलाइन योजना
3) उज्जवला योजना
4) सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वूमेन (स्टेप)
5) महिला शक्ति केंद्र
6) पंचायाती राज योजनाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण
निष्कर्ष
जिस तरह से भारत सबसे तेजी आर्थिक तरक्की प्राप्त करने वाले देशों में शुमार हुआ है, उसे देखते हुए निकट भविष्य में भारत को महिला सशक्तिकरण के लक्ष्य को प्राप्त करने पर भी ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है। हमें महिला सशक्तिकरण के इस कार्य को समझने की आवश्यकता है क्योंकि इसी के द्वारा ही देश में लैंगिग समानता और आर्थिक तरक्की को प्राप्त किया जा सकता है।
संबंधित जानकारी:
उत्तर- पारिवारिक और सामाजिक प्रतिबंध के बिना खुद का निर्णय लेना महिला सशक्तिकरण कहलाता है।
उत्तर- शिक्षा, महिला सशक्तिकरण का सबसे मुख्य स्रोत है।
उत्तर- डेनमार्क