ओणम का पर्व केरल राज्य में मनाये जाने वाले प्रमुख हिंदू पर्वों में से एक है। मलायलम पंचांग के अनुसार यह पर्व चिंगम माह तथा हिंदी पंचांग के अनुसार श्रावण शुक्ल की त्रयोदशी को में आता है, जोकि ग्रागेरियन कैलेंडर के अनुसार अगस्त या सितम्बर माह में पड़ता है।
यह पर्व राजा महाबली के याद में मनाया जाता है और इस दिन को लेकर ऐसी कथा प्रचलित है कि ओणम के दिन राजा बलि की आत्मा केरल आती है। इस पर्व पर पूरे केरल राज्य में सार्वजनिक अवकाश होता है और कई प्रकार के सांस्कृतिक तथा मनोरंजक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है।
वर्ष 2023 में ओणम का पर्व 20 अगस्त, रविवार से 31 अगस्त, गुरुवार तक मनाया जायेगा।
ओणम मलयाली लोगो के प्रमुख पर्वों में से एक है और इस पर्व को देश-विदेश में रहने वाले लगभग सभी मलयाली लोगो द्वारा बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। वैसे तो ओणम का सबसे भव्य आयोजन केरल में होता है, लेकिन इस पर्व को कई अन्य राज्यों में भी काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। यदि सामान्य रुप से देखा जाये तो ओणम का पर्व खेतों में नई फसल की उपज के उत्सव के रुप में मनाया जाता है।
इसके अलावा इस त्योहार की एक विशेषता यह भी है कि इस दिन लोग मंदिरों में नही, बल्कि की अपने घरों में पूजा-पाठ करते। हालांकि इसके साथ ही इस पर्व से एक पौराणिक कथा भी जुड़ी हुई है। जिसके कारण मलयाली लोग इस पर्व को काफी सम्मान देते है।
ऐसी मान्यता है कि जिस राजा महाबली से भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर तीन पग में तीनों लोको को माप लिया था। वह असुरराज राजा महाबलि केरल के ही राजा था और ओणम का यह पर्व उन्हीं को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इन त्योंहार में तीन दिनों के लिए राजा महाबलि पाताललोक से पृथ्वी पर आते है और अपनी प्रजा के नई फसल के साथ उमंग तथा खुशियां लाते है। यहीं कारण है इस त्योहार पर लोग अपने घरों के आंगन में राजा बलि की मिट्टी की मूर्ति भी बनाते है।
मलायाली लोगो द्वारा ओणम के पर्व को काफी धूम-धाम तथा उत्साह के साथ मनाया जाता है। केरल में लोग इस पर्व की तैयारी दस दिन पूर्व से शुरु कर देते हैं। इस दौरान लोगो द्वारा अपने घरों को साफ-सुधरा किया जाता है। ओणम का पर्व मनाने वाले लोग इस दिन अपने घरों के आँगन मे फूलों की पंखड़ुयों से सुंदर रंगोलिया बनाते हैं, स्थानीय भाषा में इन रंगोलियों को ‘पूकलम’ कहा जाता है।
इसके साथ ही इस दौरान लोग अपने घरों में राजा महाबलि की मूर्ति भी स्थापित करते है क्योंकि लोगो का मानना है कि ओणम के त्योहार दौरान राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने पाताल लोक से पृथ्वी पर वापस आते है। राजा बलि की यह मूर्ति पूलकम के बीच में भगवान विष्णु के वामन अवतार की मूर्ति के साथ स्थापित की जाती है।
आठ दिनों तक फूलों की सजावट का कार्य चलता है और नौवें दिन हर घर में भगवान विष्णु की मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है। इस दिन महिलाएं विष्णु पूजा करते हुए इसके चारो तरफ नाचते-गाते हुए तालियां बजाती है। रात को गणेशजी और श्रावण देवता की मूर्ति बनाई जाती है। इसके पश्चात बच्चे वामन अवतार को समर्पित गीत गाते है। मूर्तियों के सामने दीप जलाये जाते है, पूजा-पाठ के पश्चात दसवें दिन मूर्तियों को विसर्जित कर दिया जाता है।
पूजा पाठ के साथ ही ओणम का पर्व अपने व्यंजनों के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस पर्व के दौरान घरों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते है। यही कारण है कि इस बच्चे इस पर्व को लेकर सबसे अधिक उत्साहित रहते है। सामान्यतः इस दिन पचड़ी-पचड़ी काल्लम, दाव, घी, ओल्लम, सांभर आदि जैसे व्यंजन बनाये जाते हैं, जिन्हें केलों के पत्तों पर परोसा जाता है। ओणम पर बनने वाले पाक व्यंजन निम्बूदरी ब्राम्हणों के खाने के विविधता को दर्शाते हैं, जोकि उनके संस्कृति को प्रदर्शित करने का कार्य करता है। कई सारे जगहों पर इस दिन दुग्ध से बने अठारह तरह के पकवान परोसे जाते है।
इस दिन उत्सव मनाने के साथ ही लोगों के मनोरंजन के लिए कथककली नृत्य, कुम्मत्तीकली (मुखौटा नृत्य) , पुलीकली नृत्य (शेर की पोशाक में किया जाने वाला नृत्य) आदि जैसे नृत्यों का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही इस दिन नौका दौड़ तथा विभिन्न प्रकार के खेलों का भी आयोजन किया जाता है।
ओणम पर बनने वाले पकवान (Special Dishesh Of Onam Festival)
ओणम का पर्व अपने विविध संस्कृति के साथ ही अपने खान-पान के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। इस उत्सव पर विभिन्न मनोरंजक गतिविधियों के साथ ही कई प्रकार के विशेष व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इन्हीं में से कुछ प्रमुख व्यंजन के विषय में नीचे जानकारी दी गयी है।
1.केले का चिप्स
2.कालन
3.ओलन
4.अविअल
5.पचड़ी
6.इंजीपुल्ली
7.थोरान
8.सांभर
9.परिअप्पु करी
ओणम के पर्व में पहले के अपेक्षा कई सारे परिवर्तन हो चुके है। आधुनिक दौर में अब मनुष्य व्यस्तताओं से घिर गया है, जिसके कारण हर त्योहार का वास्तविक अर्थ खत्म होता जा रहा है। अब सभी त्योहार मात्र सिर्फ नाम के रह गये हैं और ओणम के साथ भी ऐसा ही हुआ है।
अब ओणम के पर्व को लेकर लोगो में पहले के जैसा उत्साह भी देखने को नही मिलता है। पहले के समय लोग इस दिन को अपने परिवारजनों के साथ मनाया करते थे लेकिन अब शहरों में रहने के कारण अधिकतर लोग इस दिन को अपने परिवार के साथ नही मना पाते हैं।
यह पर्व अपनत्व के सदेंश को प्रदर्शित करता है कि आखिर किस प्रकार से राजा बलि अपने प्रजा प्रेम के कारण वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने अवश्य आते हैं। इसी तरह से हमें भी प्रयास करना चाहिए कि ओणम के पर्व को हम अपने परिवारजनों के साथ अवश्य मनाये।
ओणम का पर्व केरल राज्य का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है, इसे देश-विदेश में रहने वाले लगभग सभी मलयाली लोगो द्वारा मनाया जाता है। इस पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि केरल में इस पर्व को उसी प्रकार की मान्यता प्राप्त है, जिस प्रकार की उत्तर भारत में दशहरा तथा दीपावली को।
इस पर्व पर लोग अपने घरों को साफ-सुथरा करके अच्छे तरीके से सजाते हैं। इसके साथ ही इस दौरान नौका दौड़, कथककली तथा गायन जैसे कई सारे मनोरंजक कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते है। इस दिन घरों में कई तरह के विशेष पकवान भी बनाये जाते हैं।
ओणम के दिन लोग मंदिरों में पूजा करने नही जाते है बल्कि की इस दिन वे अपने घरों में ही पूजा करते है। मलयाली लोग का मानना है कि इस दिन घर में पूजा करने घर में समृद्धी आती है। इसके साथ ही इस पर्व को लेकर यह मान्यता भी है कि ओणम के दौरान राजा बलि पाताल लोक से पृथ्वी पर आते हैं और अपनी प्रजा के लिए खुशियां लाते है।
वास्तव में ओणम वह पर्व होता है जब केरल में नई फसल तैयार होती है और क्योंकि प्राचीनकाल से ही भारत एक कृषि-प्रधान देश रहा है, यही कारण है कि इस दिन को इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।
जिस प्रकार से हर राज्य में अपने-अपने पारंपरिक त्योहार मनाये जाते है, उसी प्रकार से केरल में ओणम का पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को केरल के राजा महाबलि के स्मृति में मनाया जाता है। इस पर्व को लेकर जो कथा सबसे अधिक प्रचलित है, वह यह है कि-
प्राचीन काल में राजा महाबलि वर्तमान के केरल राज्य के एक बहुत ही प्रतापी राजा थे और वह अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करते थे। वह दानी होने के साथ ही बहुत ही पराक्रमी भी थे। अपने बाहुबल से उन्होंने तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर ली थी, तब उनके गुरु शुक्राचार्य ने उन्हें सलाह दी कि वे सौ अश्वमेध यज्ञ करके इंद्र का पद प्राप्त कर लें और सदा के लिए त्रिलोक के स्वामी बन जाये। उनके आज्ञा अनुसार राजा बलि ने सौ अश्वमेध यज्ञ करना आरंभ किया उनके 99 यज्ञ तो सकुशल संपन्न हो गये।
लेकिन 100वें यज्ञ के संपन्न होने से पहले वहां भगवान विष्णु वामन रुप धारण करके प्रकट हो गये और राजा बलि से तीन पग धरती मांगी, परन्तु राजा बलि इस बात से अनिभिज्ञ थे कि वामन अवतार में उनके सामने स्वयं भगवान विष्णु खड़े है। जब राजा बलि ने उनकी मांग स्वीकार कर ली तो वामन रुपी भगवान विष्णु ने विराट रुप धारण करके दो पग में सारे लोक नाप लिये और जब तीसरे पग के लिए स्थान पूछा तो राजा बलि ने कहा कि हे प्रभु तीसरे पग को आप में मस्तक पर रख दे।
भगवान वामन ने जब तीसरा पग रखा तो राजा बलि पाताल लोक चले गये। राजा बलि के इस दान और भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उनसे वर मांगने को कहा। तब राजा बलि ने कहा कि ‘हे प्रभु मैं वर्ष में एक बार अपनी प्रजा से मिलने का समय चाहता हुं।’ तब से ऐसा माना जाता है कि वह ओणम का ही पर्व है, जिसपर राजा बलि अपनी प्रजा से मिलने आते हैं। यहीं कारण है कि केरल में ओणम के इस पर्व को इतने धूम-धाम के साथ मनाया जाता है।