उगादी या फिर जिसे समवत्सरदी युगादी के नाम से भी जाना जाता है दक्षिण भारत का एक प्रमुख पर्व है। इसे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में नववर्ष के रुप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है। ग्रागेरियन कैलेंडर के हिसाब से यह पर्व मार्च या अप्रैल में आता है। दक्षिण भारत में इस पर्व को काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है क्योंकि वसंत आगमन के साथ ही किसानों के लिए यह पर्व नयी फसल के आगमन का भी अवसर होता है।
वर्ष 2025 में उगादी का पर्व 30 मार्च, रविवार के दिन मनाया जायेगा।
उगादी उत्सव किस राज्य में मनाया जाता है?
उगादी का पवित्र उत्सव कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना में मनाया जाता है।
उगादी का पर्व दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है, इसे नववर्ष के आगमन के खुशी में मनाया जाता है। उगादी के पर्व को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं, ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार जब शिवजी ने ब्रम्हा जी को श्राप दिया था कि कही भीं उनकी पूजा नही कि जायेगी, लेकिन आंध्रप्रदेश में उगादी अवसर पर ब्रम्हाजी की ही पूजा की जाती है। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसी मान्यता है कि इसी दिन ब्रम्हा जी ब्रह्माण्ड की रचना शुरु की थी।
यही कारण है कि इस दिन को कन्नड़ तथा तेलगु नववर्ष के रुप में भी मनाया जाता है। इसके साथ ही पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु मतस्य अवतार में अवतरित हुए थे।
उगादी को लेकर कई सारे ऐतहासिक तथा पौराणिक वर्णन मिलते हैं। ऐसा माना जाता है कि उगादि के दिन ही भगवान श्री राम का राज्याभिषेक भी हुआ था। इसके साथ ही इसी दिन सम्राट विक्रमादित्य ने शकों पर विजय प्राप्त की थी।
यदि सामान्य परिपेक्ष्य से देखा जाये तो उगादि का यह त्योहार उस समय आता है जब भारत में वसंत ऋतु अपने चरम पर होती है और इस समय किसानों को नयी फसल भी मिलती है और क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए प्रचीन समय से ही किसानों द्वारा इस पर्व को नयी फसल के लिए ईश्वर को दिये जाने वाले धन्यवाद के रुप में मनाया जाता है।
जब चैत्र माह के पहले दिन में चैत्र नवरात्रि का आरंभ होता है, तो दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना जैसे राज्यों में चैत्र माह के पहले दिन उगादी नामक त्योहार मनाया जाता है। इस त्योहार को इन क्षेत्रों के नववर्ष के रुप में मनाया जाता है।
यह त्योहार कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना का सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक माना जाता है। इस दिन को लेकर लोगो में काफी उत्साह रहता है और इस दिन वह सुबह उठकर अपने घरों की साफ-सफाई में लग जाते हैं, घरों की साफ-सफाई करने के बाद लोग अपने घरों के प्रवेश द्वार को आम के पत्तों से सजाते हैं।
इसके साथ ही इस दिन एक विशेष पेय बनाने की भी प्रथा है, जिसे पच्चड़ी नाम से जाना जाता है। पच्चड़ी नामक यह पेय नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल, गुड़ जैसे चीजों को मिलाकर मटके में बनायी जाती है। लोगों द्वारा इस पेय को पीने के साथ ही आस-पड़ोस में भी बांटा जाता है। उगादी के दिन कर्नाटक में पच्चड़ी के अलावा एक और चीज का भी लोगों द्वारा खायी जाती है, जिसे बेवु-बेल्ला नाम से जाना जाता है।
यह गुड़ और नीम के मिश्रण से बना होता है, जो हमें हमारे जीवन में इस बात का ज्ञान कराता है कि जीवन में हमें मीठेपन तथा कड़वाहट भरे दोनो तरह के अनुभवों से गुजरना पड़ता है। इस मीठे-कड़वे मिश्रण को खाते वक्त लोगों द्वारा निम्नलिखित संस्कृत श्लोक का उच्चारण किया जाता है।
“शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च ।
सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दलभक्षणम् ॥”
उपरोक्त श्लोक का अर्थ है – “वर्षों तक जीवित रहने, मजबूत और स्वस्थ्य शरीर की प्राप्ति के लिए एवं विभिन्न प्रकार के धन की प्राप्ति तथा सभी प्रकार की नकरात्मकता का नाश करने के लिए हमें नीम के पत्तों को खाना चाहिए।”
इसके साथ ही इस दिन घरों में पुरणपोली तथा लड्डू जैसे कई स्वादिष्ट व्यंजन बनाये जाते हैं। इस दिन लोग अपने आस-पास के लोगों को अपने घरों में खाने पर भी आमंत्रित करते हैं। उगादी के उत्सव पर लोग भगवान की मूर्तियों पर चमेली के फूल तथा मालाएं चढ़ाते हैं और विशेषकर ब्रम्हा जी की पूजा अवश्य करते हैं।
उगादी के दिन पूजा-अर्चना करने की एक विशेष विधि है और इसका पालन करने से इस पर्व ईश्वर की विशेष कृपा प्राप्त होती है। उगादी के दिन सुबह उठकर नित्य कर्मों से निवृत होकर, हमें अपने शरीर पर बेसन तथा तेल का उबटन लगाकर नहाना चाहिए। इसके बाद हाथ में गंध, अक्षत, फूल और जल लेकर भगवान ब्रम्हा के मंत्रों का उच्चारण करके पूजा करनी चाहिए।
इसके साथ ही इस दिन घर में रंगोली या स्वास्तिक का चिन्ह बनाने से घर में सकरात्मक ऊर्जा पैदा होती है। यदि इस दिन आप सफेद कपड़ा बिछाकर उसपर हल्दी या केसर से रंगे अक्षत से अष्टदल बनाकर उसपर ब्रम्हा जी स्वर्ण मूर्ति स्थापित करेंगे तो आपको ब्रम्हा जी की विशेष कृपा प्राप्त होगी।
उगादी पर बनने वाले विशेष व्यंजन (Special Dishes of Ugadi)
उगादी के दिन हमें पच्चड़ी पेय का सेवन अवश्य करना चाहिए। यह पच्चड़ी पेय नई इमली, आम, नारियल, नीम के फूल तथा गुड़ को मिलाकर मटके में बनायी जाती है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इस अवसर पर बोवत्तु या फिर पोलेलु या पुरन पोली नामक व्यंजन बनाया जाता है।
इसी व्यंजन को तेलंगाना में बोरेलु नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार का पराठा होता है, जिसे चने के दाल, गेहुं के आंटे, गुढ़ और हल्दी आदि को पानी की सहायता से गूंथकर देशी में तलकर बनाया जाता है। इस व्यंजन को पच्चड़ी के साथ खाया जाता है।
आज के इस आधुनिक समय में उगादी के पर्व को मनाने में पहले के अपेक्षा काफी अंतर आ गया है। अब लोग आज के व्यस्त जीवन के कारण इस पर्व का आनंद लेने के लिए समय नही निकाल पाते हैं। पहले के समय में इस दिन को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता था।
लोग इस विशेष पर्व पर अपने आस-पड़ोस के लोगो को खाने पर आमंत्रित किया करते थे, लेकिन आज कल सबकुछ इसके विपरीत हो गया है, लोग नाहि पुरानी परम्पराओं का पालन करना चाहते हैं ना इसमें कोई विशेष रुचि रखते हैं। यदि हमें उगादी पर्व के मुख्य मकसद को बरकरार रखना है तो हमें इसके प्राचीन परम्पराओं का पालन करने की कोशिश करनी चाहिए।
उगादी का यह त्योहार दक्षिण भारत में विशेष महत्व रखता है। यह पर्व चैत्र माह के पहले दिन मनाया जाता है जोकि इसके महत्व को और भी बढ़ा देता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इस त्योहार के समय वसंत ऋतु अपने पूरे चरम पर होती है। जिसके कारण मौसम काफी सुहावना रहता है, इसके साथी ही इस समय लोगो में नयी फसल को लेकर भी खुशी छायी रहती है।
उगादी का यह पर्व हमें प्रकृति के और भी समीप ले जाने का कार्य करता है क्योंकि यदि इस त्योहार के दौरान पीये जाने वाले पच्चड़ी नामक पेय पर गौर करें तो यह शरीर के लिए काफी स्वास्थ्यवर्धक होता है। जोकि हमारे शरीर को मौसम में हुए परिवर्तन से लड़ने के लिए तैयार करता है और हमारे शरीर के प्रतिरोधी क्षमता को भी बढ़ाता है।
इसके साथ ही ऐसी मान्यता है कि इस दिन कोई नया काम शुरु करने पर सफलता अवश्य मिलती है। इसलिए उगादी के दिन दक्षिण भारतीय राज्यों में लोग दुकानों का उद्घाटन, भवन निर्माण का आरंभ आदि जैसे नये कार्यों की शुरुआत करते हैं।
उगादी पर्व का इतिहास काफी प्रचीन है और इस त्योहार को कई शताब्दियों से दक्षिण भारत के राज्यों में मनाया जा रहा है। दक्षिण भारत में चंद्र पंचाग को मानने वाले लोगो द्वारा इसे नव वर्ष के रुप में भी मनाया जाता है। इतिहासकारों का मानना है कि इस पर्व की शुरुआत सम्राट शालिवाहन या जिन्हें गौतमीपुत्र शतकर्णी के नाम से भी जाना जाता है, उनके शासनकाल में हुआ था। इसके साथ ही इस पर्व के दौरान वसंत अपने पूरे चरम पर होता है, जिससे मौसम काफी सुहावना रहता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन ब्रम्हा जी सृष्टि की रचना शुरु की थी और इसी दिन भगवान विष्णु ने मतस्य अवतार धारण किया था। इसके साथ ही पहले के समय में यह किसानों के लिए एक खास अवसर होता था क्योंकि इस समय उन्हें नयी फसल की प्राप्ति होती थी, जिसे बेचकर वह अपने जरुरत के सामान खरीदा करते थे। यही कारण है कि उगादी के इस पर्व को कृषकों द्वारा आज भी इतना सम्मान दिया जाता है।
उगादी वह पर्व है जो हमें इस बात का एहसास दिलाता है कि हमें अतीत को पीछे छोड़कर आने वाले भविष्य पर ध्यान देना चाहिए और किसी तरह के असफलता पर उदास नही होना चाहिए बल्कि सकारात्मकता के साथ नयी शुरुआत करनी चाहिए।