निबंध

दुर्गा पूजा पर निबंध (Durga Puja Essay in Hindi)

दुर्गा पूजा हिन्दुओं के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, यह उत्सव 10 दिनों तक चलता है लेकिन माँ दुर्गा की मूर्ति को सातवें दिन से पूजा की जाती है, आखिरी के तीन दिन ये पूजा और भी धूम धाम से मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म के लोगों द्वारा हर साल महान उत्साह और विश्वास के साथ मनाया जाता है। यह एक धार्मिक त्योहार है, जिसके बहुत से महत्व है। यह हर साल पतझड़ के मौसम में आता है।

दुर्गा पूजा पर बड़ा और छोटा निबंध (Long and Short Essay on Durga Puja in Hindi, Durga Puja par Nibandh Hindi mein)

दुर्गा पूजा का उत्सव – निबंध 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना

भारत त्योहारों और मेलों की भूमि है। ऐसा इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यहाँ विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं और वे सभी पूरे साल अपने-अपने त्योहारों और उत्सवों को मनाते हैं। यह इस ग्रह पर पवित्र स्थान है, जहाँ बहुत सी पवित्र नदियाँ हैं और बड़े धार्मिक त्योहारों और उत्सवों को मनाया जाता है।

लोगों विशेष रुप से, पूर्वी भारत के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला नवरात्र (अर्थात् नौ रातों का त्योहार) या दुर्गा पूजा एक त्योहार है। यह पूरे देश भर में खुशहाली पूर्ण उत्सवों का वातावरण लाता है। लोग देवी दुर्गा की पूजा के लिए मंदिरों में जाते हैं या घर पर ही पूरी तैयारी और भक्ति के साथ अपने समृद्ध जीवन और भलाई के लिए पूजा करते हैं।

दुर्गा पूजा का उत्सव

नवरात्र या दुर्गा पूजा का उत्सव बुराई के ऊपर अच्छाई की जीत के रुप में मनाया जाता है। भक्तों द्वारा यह विश्वास किया जाता है कि, इस दिन देवी दुर्गा ने बैल राक्षस महिषासुर पर विजय प्राप्त की थी। उन्हें ब्रह्मा, भगवान विष्णु और शिव के द्वारा इस राक्षस को मारकर और दुनिया को इससे आजाद कराने के लिए बुलाया गया था। पूरे नौ दिन के युद्ध के युद्ध के बाद, उन्होंने उस राक्षस को दसवें दिन मार गिराया था, वह दिन दशहरा कहलाता है। नवरात्र का वास्तविक अर्थ, देवी और राक्षस के बीच युद्ध के नौ दिन और नौ रात से है। दुर्गा पूजा के त्योहार से भक्तों और दर्शकों सहित विदेशी पर्यटकों की एक स्थान पर बहुत बड़ी भीड़ जुड़ी होती है।

निष्कर्ष

दुर्गा पूजा को वास्तव रूप में शक्ति पाने की इच्छा से मनाया जाता है जिससे विश्व की बुराईयों का अंत किया जा सके। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने ब्रह्मा, विष्णु और शंकर की शक्तियों को इकट्ठा करके दुष्ट राक्षस महिषासुर का नाश किया था और धर्म को बचाया था उसी प्रकार हम अपनी बुराईयों पर विजय प्राप्त करके मनुष्यता को बढ़ावा दे सकें। दुर्गा पूजा का यही संदेश होता है। हर पर्व या त्योहार का मनुष्य के जीवन में अपना विशेष महत्व होता है, क्योंकि इनसे न केवल विशेष प्रकार के आनंद की प्राप्ति होती है बल्कि जीवन में उत्साह एवं नव ऊर्जा का संचार भी होता है| दुर्गपूजा भी एक ऐसा ही त्योहार है, जो हमारे जीवन में उत्साह एवं ऊर्जा का संचार करने में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

दुर्गा की पूजा क्यों की जाती है ? – निबंध 2 (400 शब्द)

प्रस्तावना

दुर्गा पूजा हिन्दुओं के मुख्य त्योहारों में से एक है। यह हरेक साल बहुत सी तैयारियों के साथ देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है। वह हिमालय और मैनका की पुत्री और सती का अवतार थी, जिनकी बाद में भगवान शिव से शादी हुई।

यह माना जाता है कि, यह पूजा पहली बार तब से शुरु हुई, जब भगवान राम ने रावन को मारने के लिए देवी दुर्गा से शक्ति प्राप्त करने के लिए यह पूजा की थी।

देवी दुर्गा की पूजा क्यों की जाती है ?

दुर्गा पूजा से जुडी कई कथाये हैं। माँ दुर्गा इस ने इस दिन महिषासुर नमक असुर का संहार किया था जो की भगवान का वरदान पाकर काफी शक्तिशाली हो गया था और आतंक मचा रखा था। रामायण में कहा गया है की भगवान राम ने दस सर वाले रावण का वध इसी दिन किया था, जिसे बुराई पर अच्छाई की जित हुयी थी। इस पर्व को शक्ति का पर्व कहा जाता है। देवी दुर्गा की नवरात्र में पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि, यह माना जाता है कि, उन्होंने 10 दिन और रात के युद्ध के बाद महिषासुर नाम के राक्षस को मारा था। उनके दस हाथ है, जिसमें सभी हाथों में विभिन्न हथियार हैं। देवी दुर्गा के कारण लोगों को उस असुर से राहत मिली, जिसके कारण लोग उनकी पूरी श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं।

दुर्गा पूजा

इस त्योहार पर देवी दुर्गा की पूरे नौ दिनों तक पूजा की जाती है। यद्यपि, पूजा के दिन स्थानों के अनुसार अलग-अलग होते हैं। माता दुर्गा के भक्त पूरे नौ दिन तक या केवल पहला और आखिरी दिन उपवास रखते हैं। वे देवी दुर्गा की मूर्ति को सजाकर प्रसाद, जल, कुमकुम, नारियल, सिंदूर आदि को सभी अपनी क्षमता के अनुसार अर्पित करके पूजा करते हैं। सभी जगह बहुत ही सुन्दर लगती हैं और वातावरण बहुत ही स्वच्छ और शुद्ध हो जाता है। ऐसा लगता है कि, वास्तव में देवी दुर्गा आशीर्वाद देने के लिए सभी के घरों में जाती है। यह विश्वास किया जाता है कि, माता की पूजा करने से आनंद, समृद्धि, अंधकार का नाश और बुरी शक्तियों हटती है। आमतौर पर, कुछ लोग 6, 7, 8 दिन लम्बा उपवास करने के बाद तीन दिनों (सप्तमी, अष्टमी और नौवीं) की पूजा करते हैं। वे सात या नौ अविवाहित कन्याओं को देवी को खुश करने के लिए सुबह को भोजन, फल और दक्षिणा देते हैं।

निष्कर्ष

हिन्दू धर्म के हर त्यौहार के पीछे सामाजिक कारण होता है। दुर्गा पूजा भी मनाने के पीछे भी  सामाजिक कारण है। दुर्गापूजा अनीति, अत्याचार तथा बुरी शक्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है। दुर्गापूजा अनीति, अत्याचार तथा तामसिक प्रवृत्तियों के नाश के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा और विजयदशमी – निबंध 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना

हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक दुर्गा पूजा भी है। यह दुर्गोत्सव या षष्ठोत्सव के नाम से भी जाना जाता है, जिनमें से छः दिन महालय, षष्ठी, महा-सप्तमी, महा-अष्टमी, महा-नवमी और विजयादशमी के रूप में मनाए जाते हैं। देवी दुर्गा की इस त्योहार के सभी दिनों में पूजा की जाती है। यह आमतौर पर, हिन्दू कैलंडर के अनुसार, अश्विन महीने में आता है। देवी दुर्गा के दस हाथ हैं और उनके प्रत्येक हाथ में अलग-अलग हथियार है। लोग देवी दुर्गा की पूजा बुराई की शक्ति से सुरक्षित होने के लिए करते हैं।

दुर्गा पूजा के बारे में

दुर्गा पूजा अश्विन माह में चाँदनी रात में (शुक्ल पक्ष में) छः से नौ दिन तक की जाती है। दसवाँ दिन विजयादशमी के रूप में मनाया जाता है, क्योंकि इस दिन देवी दुर्गा ने एक राक्षस के ऊपर विजय प्राप्त की थी। यह त्योहार बुराई, राक्षस महिषासुर पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। बंगाल के लोग देवी दुर्गा को दुर्गोत्सनी अर्थात् बुराई की विनाशक और भक्तों की रक्षक के रुप में पूजा करते हैं।

यह भारत में बहुत विस्तार से बहुत से स्थानों, जैसे- असम, त्रिपुरा, बिहार, मिथिला, झारखंड, उड़ीसा, मणिपुर, पश्चिमी बंगाल आदि पर मनाया जाता है। कुछ स्थानों पर यह पाँच दिनों का वार्षिक अवकाश होता है। यह धार्मिक और सामाजिक सांस्कृतिक कार्यक्रम है, जो प्रत्येक साल भक्तों द्वारा पूरी भक्ति के साथ मनाया जाता है। रामलीला मैदान में एक बड़ा दुर्गा मेला का आयोजन होता है, जो लोगों की भारी भीड़ को आकर्षित करता है।

मूर्ति का विसर्जन

पूजा के बाद लोग पवित्र जल में देवी की मूर्ति के विसर्जन के समारोह का आयोजन करते हैं। भक्त अपने घरों को उदास चेहरों के साथ लौटते हैं और माता से फिर से अगले साल बहुत से आशीर्वादों के साथ आने की प्रार्थना करते हैं।

दुर्गा पूजा का पर्यावरण पर प्रभाव

लोगों की लापरवाही के कारण, यह पर्यावरण पर बड़े स्तर पर प्रभाव डालता है। माता दुर्गा की मूर्ति को बनाने और रंगने में प्रयोग किए गए पदार्थ (जैसे- सीमेंट, पेरिस का प्लास्टर, प्लास्टिक, विषाक्त पेंट्स, आदि) स्थानीय पानी के स्रोतों में प्रदूषण का कारण बनते हैं। त्योहार के अन्त में, प्रत्यक्ष रुप से मूर्ति का विसर्जन नदी के पानी को प्रदूषित करता है। इस त्योहार से पर्यावरण पर प्रभाव को कम करने के लिए, सभी को प्रयास करने चाहिए और कलाकारों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल पदार्थों से बनी मूर्तियों को बनाना चाहिए, भक्तों को सीधे ही मूर्ति को पवित्र गंगा के जल में विसर्जित नहीं करना चाहिए और इस परंपरा को निभाने के लिए कोई अन्य सुरक्षित तरीका निकालना चाहिए। 20 वीं सदी में, हिंदू त्योहारों का व्यावसायीकरण मुख्य पर्यावरण मुद्दों का निर्माण करता है।

गरबा और डांडिया प्रतियोगिता

नवरात्र में डांडिया और गरबा खेलना बहुत ही शुभ और महत्वपूर्ण माना गया है। कई जगह सिन्दूरखेलन का भी रिवाज है। इस पूजा के दौरान विवाहित औरते माँ के पंडाल में सिंदूर के साथ खेलती है। गरबा की तैयारी कई दिन पहले ही शुरू हो जाती है प्रतियोगिताएं रखी जाती है जितने वलों को पुरस्कृत किया जाता है।

निष्कर्ष

पूजा के अंतिम दिन मूर्तियों का विसर्जन बड़े हर्षोल्लास, धूम-धाम से, जुलूस निकाल कर किया जाता है। नगर के विभिन्न स्थानों से प्रतिमा-विसर्जन के जुलूस निकलते हैं और सब किसी न किसी सरोवर या नदी के तट पर पहुँचकर इन प्रतिमाओं का जल में विसर्जन करते हैं। बहुत से गांवों और शहरों में नाटक और रामलीला जैसे कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं। इन तीन दिनों में पूजा के दौरान लोग दुर्गा पूजा मंडप में फूल,  नारियल, अगरबत्ती और फल लेकर जाते हैं और माँ दुर्गा का आशीर्वाद लेते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

दुर्गा की कहानी और किंवदंतियाँ – निबंध 4 (600 शब्द)

प्रस्तावना

दुर्गा पूजा एक धार्मिक त्योहार है, जिसके दौरान देवी दुर्गा की पूजा का समारोह किया जाता है। यह भारत का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। यह एक परंपरागत अवसर है, जो लोगों को एक भारतीय संस्कृति और रीति में पुनः जोड़ता है। विभिन्न प्रकार के रीति-रिवाजों, जैसे – उपवास, दावत, पूजा आदि, को पूरे दस दिनों के त्योहार के दौरान निभाया जाता है। लोग अन्तिम चार दिनों में मूर्ति विसर्जन और कन्या पूजन करते हैं, जो सप्तमी, अष्टमी, नवीं और दशमी के नाम से जाने जाते हैं। लोग दस भुजाओं वाली, शेर पर सवार देवी की पूरे उत्साह, खुशी और भक्ति के साथ पूजा करते हैं। दुर्गा-पूजा हिन्दुओं का एक महत्त्वपूर्ण और अहम त्यौहार है। यह त्यौहार देवी दुर्गा के सम्मान में मनाया जाता है। दुर्गा को हिमाचल और मेंका की पुत्री माना जाता है। भगवान शंकर की पत्नी सती के आत्म-बलिदान के बाद दुर्गा का जन्म हुआ।

देवी दुर्गा की कहानी और किंवदंतियाँ

देवी दुर्गा की पूजा से संबंधित कहानियाँ और किंवदंतियाँ प्रचलित है, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

  • यह माना जाता है कि, एकबार राक्षस राजा था, महिषासुर, जो पहले ही देवताओं पर स्वर्ग पर आक्रमण कर चुका था। वह बहुत ही शक्तिशाली था, जिसके कारण उसे कोई नहीं हरा सकता था। तब ब्रह्मा, विष्णु और महेश (शिव) के द्वारा एक आन्तरिक शक्ति का निर्माण किया गया, जिनका नाम दुर्गा (एक दस हाथों वाली और सभी हाथों में विशेष हथियार धारण करने वाली अद्भुत नारी शक्ति) कहा गया। उन्हें राक्षस महिषासुर का विनाश करने के लिए आन्तरिक शक्ति प्रदान की गई थी। अन्त में, उन्होंने दसवें दिन राक्षस को मार दिया और उस दिन को दशहरा या विजयादशमी के रुप में कहा जाता है।
  • दुर्गा पूजा की दूसरी किंवदंती है कि, रामायण के अनुसार भगवान राम ने रावण को मारने के लिए देवी दुर्गा से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चंडी पूजा की थी। राम ने दुर्गा पूजा के दसवें दिन रावण को मारा था, तभी से उस दिन को विजयादशमी कहा जाता है। इसलिए दुर्गा पूजा सदैव अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है।
  • एक बार कौस्ता (देवदत्त का पुत्र) ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अपने गुरु वरतन्तु को गुरु दक्षिणा देने का निर्णय किया हालांकि, उसे 14 करोड़ स्वर्ण मुद्राओं (प्रत्येक 14 विज्ञान के लिए एक-एक मुद्रा) का भुगतान करने के लिए कहा गया। वह इन्हें प्राप्त करने के लिए राजा रघुराज (राम के पूर्वज) के पास गया हालांकि, वह विश्वजीत के त्याग के कारण यह देने में असमर्थ थे। इसलिए, कौस्ता,  इन्द्रराज देवता के पास गया और इसके बाद वह फिर से कुबेर (धन के देवता) के पास आवश्यक स्वर्ण मुद्राओं की अयोध्या में “शानु” और “अपति” पेड़ों पर बारिश कराने के लिए गया। इस तरह से, कौस्ता को अपने गुरु को अर्पण करने के लिए मुद्राएं प्राप्त हुई। वह घटना आज भी “अपति” पेड़ की पत्तियों को लूटने की एक परंपरा के माध्यम से याद की जाती है। इस दिन लोग इन पत्तियों को एक-दूसरे को एक सोने के सिक्के के रुप में देते हैं।

पूजा का आयोजन

दुर्गापूजा बहुत है सच्चे मन और श्रद्धा से की जाती है। यह हर बार महीने के शुक्ल पक्ष में की जाती है। यह त्यौहार दशहरे के त्यौहार के साथ ही मनाया जाता है। अतः कई दिन तक स्कूल और कालेज बन्द रहते हैं। प्रति पदा के दिन से नवरात्रों का प्रारंभ माना जाता है। इन 10 दिनों तक श्रद्धालु स्त्रियों व्रत रखती हैं और देवी दुर्गा का पूजन करती हैं।

हर दिन दुर्गा की प्रतिमा की धूम-धाम से पूजा की जाती है। इस हेतु बड़े-बड़े शामियाने और पण्डाल लगाये जाते हैं। बड़ी संख्या में लोग इन आयोजनों में भाग लेते हैं। पूजा के शामियाने को खूब सजाया जाता है। उस पर तरह-तरह के रंगो से रोशनी की जाती है। वे इसे बड़े उत्साह से सजाते हैं।

निष्कर्ष

दुर्गा पूजा को वास्तव में शक्ति पाने की इच्छा से किया जाता है जिससे विश्व की बुराइयों का नाश किया जा सके। दुर्गा-पूजा बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाई जाती है। जिस प्रकार देवी दुर्गा ने सभी देवी-देवताओं की शक्ति को इकट्ठा करके दुष्ट राक्षस महिषासुर का नाश किया था और धर्म को बचाया था उसी प्रकार हम अपनी बुराइयों पर विजय प्राप्त करके मनुष्यता को बढ़ावा दे सकें। दुर्गा पूजा का यही संदेश होता है। देवी दुर्गा को शक्ति का अवतार समझा जाता है। शक्ति-पूजा से लोगों में साहस का संचार होता है और वे आपसी वैर-भाव भुलाकर एक-दूसरे की मंगल-कामना करते हैं।

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अर्चना सिंह

कई लोगो की प्रेरणा की स्रोत, अर्चना सिंह एक कुशल उद्यमी है। अर्चना सिंह 'व्हाइट प्लैनेट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड' आई. टी. कंपनी की डायरेक्टर है। एक सफल उद्ममी होने के साथ-साथ एक कुशल लेखक भी है, व इस क्षेत्र में कई वर्षो का अनुभव है। वे 'हिन्दी की दुनिया' और अन्य कई वेबसाइटों पर नियमित लिखती हैं। अपने प्रत्येक क्षण को सृजनात्मकता में लगाती है। इन्हें खाली बैठना पसंद नहीं। इनका कठोर परिश्रम एवं कार्य के प्रति लगन ही इनकी सफलता की कुंजी है।

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द्वारा प्रकाशित
अर्चना सिंह