ध्वनि प्रदूषण को पर्यावरण प्रदूषण के रुप में पर्यावरण को बड़े स्तर पर विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से हानि पहुंचाने वाले तत्वों के रुप में माना जाता है। ध्वनि प्रदूषण को ध्वनि अव्यवस्था के रुप में भी जाना जाता है। अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है, हालांकि, यह जल, वायु, मृदा प्रदूषण आदि से कम हानिकारक है।
परिचय
ध्वनि के दुरुपयोग द्वारा होने वाले प्रदूषण को ध्वनि प्रदूषण कहते है। हमारे कान नियमित तेज आवाज को सहन नहीं कर पाते और जिससे कान के पर्दें बेकार हो जाते हैं जिसका परिणाम अस्थायी या स्थायी रुप से सुनने की क्षमता की हानि होता है।
कारण और प्रभाव
ध्वनि प्रदूषण के कुछ मुख्य स्त्रोत सड़क पर यातायात के द्वारा उत्पन्न शोर, निर्माणकार्य (भवन, सड़क, शहर की गलियों, फ्लाई ओवर आदि) के कारण उत्पन्न शोर, औद्योगिक शोर, दैनिक जीवन में घरेलू उत्पादकों (जैसे घरेलू सामान, रसोइ घर का सामान, वैक्यूम क्लीनर, कपड़े धोने की मशीन, मिक्सी, जूसर, प्रेसर कूकर, टीवी, मोबाइल, ड्रायर, कूलर आदि) से उत्पन्न शोर, आदि हैं।
अधिक तेज आवाज सामान्य व्यक्ति की सुनने की क्षमता को हानि पहुँचाती है। अधिक तेज आवाज धीरे-धीरे स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और एक धीरे जहर के रुप में कार्य करती है। इसके कारण और भी कई परेशानी होती हैं जैसे: सोने की समस्या, कमजोरी, अनिद्रा, तनाव, उच्च रक्त दाब, वार्तालाप समस्या आदि।
ध्वनि प्रदूषण का रोकथाम
ध्वनि प्रदूषण पर रोकथाम के लिए हमें उचित कदम लेने की जरुरत है। लाउड स्पीकर, हॉर्न, और अन्य उपकरण जो शोरगुल मचाते है, उन्हें कम से कम इस्तेमाल करने की जरुरत है।
निष्कर्ष
अत्यधिक शोर स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होता है और मानव या पशु जीवन के लिए असंतुलन का कारण है। यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।यह भारत में व्यापक पर्यावरणीय मुद्दा है जिसे सुलझाने के लिये उचित सतर्कता की आवश्यकता है।
पर्यावरण में बहुत प्रकार के प्रदूषण हैं, ध्वनि प्रदूषण, उनमें से एक है, और स्वास्थ्य के लिये बहुत खतरनाक है। यह बहुत ही खतनराक हो गया है कि इसकी तुलना कैंसर आदि जैसी खतरनाक बीमारियों से की जाती है, जिससे धीमी मृत्यु निश्चित है। ध्वनि प्रदूषण आधुनिक जीवन और बढ़ते हुये औद्योगिकीकरण व शहरीकर का भयानक तौहफा है। यदि इसे रोकने के लिये नियमित और कठोर कदम नहीं उठाये गये तो ये भविष्य की पीढियों के लिये बहुत गंभीर समस्या बन जायेगा। ध्वनि प्रदूषण वो प्रदूषण है जो पर्यावरण में अवांछित ध्वनि के कारण उत्पन्न होता है। यह स्वास्थ्य के लिये बहुत बड़ा जोखिम और बातचीत के समय समस्या का कारण बनता है।
उच्च स्तर का ध्वनि प्रदूषण बहुत से मनुष्यों के व्यवहार में चिडचिड़पन लाता है विशेषरुप से रोगियों, वृद्धों और गर्भवति महिलाओं के व्यवहार में। अवांछित तेज आवाज बहरेपन और कान की अन्य जटिल समस्याओं जैसे, कान के पर्दों का खराब होना, कान में दर्द, आदि का कारण बनती है। कभी-कभी तेज आवाज में संगीत सुनने वालों को अच्छा लगता है, बल्कि अन्य लोगों को परेशान करता है।
वातावरण में अनिच्छित आवाज स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। कुछ स्त्रोत ऐसे है जो ध्वनि प्रदूषण में मुख्य रुप से भाग लेते हैं जैसे उद्योग, कारखानें, यातायात, परिवहन, हवाई जहाज के इंजन, ट्रेन की आवाज, घरेलू उपकरणों की आवाज, निर्माणकार्य आदि।
उच्च स्तर की ध्वनि उपद्रव, चोट, शारीरिक आघात, मस्तिष्क में आन्तरिक खून का रिसाव, अंगों में बड़े बुलबुले और यहां तक कि समुद्री जानवरों मुख्यतः व्हेल और डॉलफिन आदि की मृत्यु का कारण बनती है क्योंकि वो बातचीत करने, भोजन की खोज करने, अपने आपको बचाने और पानी में जीवन जीने के लिये अपने सुनने की क्षमता का ही प्रयोग करती हैं। पानी में शोर का स्त्रोत जल सेना की पनडुब्बी है जिसे लगभग 300 माल दूरी से महसूस किया जा सकता है। ध्वनि प्रदूषण के परिणाम बहुत अधिक खतरनाक है और निकट भविष्य में चिंता का विषय बन रहे हैं।
60 डीबी आवाज को सामान्य आवाज माना जाता है, हालांकि, 80 डीबी या इससे अधिक आवाज शारीरिक दर्द का कारण और स्वास्थ्य के लिये हानिकारक होती है। वो शहर जहां ध्वनि की दर 80 डीबी से अधिक हैं उनमें से दिल्ली (80 डीबी), कोलकत्ता (87 डीबी), मुम्बई (85 डीबी), चेन्नई (89 डीबी) आदि हैं। पृथ्वी पर जीवन जीने के लिये अपने स्तर पर शोर को सुरक्षित स्तर तक कम करना बहुत आवश्यक हो गया है क्योंकि अवांछित शोर मनुष्यों, पेड़-पौधो, और जानवरों के भी जीवन को प्रभावित करता है। ये लोगों में ध्वनि प्रदूषण, इसके मुख्य स्त्रोत, इसके हानिकारक प्रभावों के साथ ही इसे रोकने के उपायों बारे में सामान्य जागरुकता लाकर संभव किया जा सकता है।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण उस स्थिति में उत्पन्न होता है जब पर्यावरण में आवाज का स्तर सामान्य स्तर से बहुत अधिक होता है। पर्यावरण में अत्यधिक शोर की मात्रा जीने के उद्देश्य से असुरक्षित है। कष्टकारी आवाज प्राकृतिक सन्तुलन में बहुत सी परेशानियों का कारण बनती है। तेज आवाज या ध्वनि अप्राकृतिक होती है और अन्य आवाजों के बाहर जाने में बाधा उत्पन्न करती है। आधुनिक और तकनीकी के इस संसार में, जहां सब कुछ घर में या घर के बाहर बिजली के उपकरणों से संभव है, ने तेज ध्वनि के खतरे के अस्तित्व में वृद्धि कर दी है।
भारत में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण की बढ़ती हुई मांग लोगों में अवांछित आवाज के प्रदर्शन का कारण हैं। रणनीतियों का समझना, योजना बनाना और उन्हें प्रयोग करना ध्वनि प्रदूषण को रोकना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है। वो आवाज जिसका हम प्रतिदिन निर्माण करते हैं जैसे, तेज संगीत सुनना, टीवी, फोन, मोबाइल का अनावश्यक प्रयोग, यातायात का शोर, कुत्ते का भौंकना, आदि ध्वनि उत्पन्न करने वाले स्त्रोत शहरी जीवन का एक अहम हिस्सा होने के साथ ही सबसे ज्यादा परेशान करने वाले, सिर दर्द, अनिद्रा, तनाव आदि कारण बनता हैं। ये चीजें दैनिक जीवन के प्राकृतिक चक्र को बाधित करती हैं, वो खतरनाक प्रदूषक कहलाते हैं। ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोत, कारक और प्रभाव निम्नलिखित हैं:
ध्वनि प्रदूषण के कारक या कारण
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव
रोकने के उपाय
पर्यावरण में असुरक्षित आवाज के स्तर को नियंत्रित करने के लिये लोगों के बीच में सामान्य जागरुकता को बढ़ाना चाहिये और प्रत्येक के द्वारा सभी नियमों को गंभीरता से माना जाना चाहिये। घर में या घर के बाहर जैसे: क्लब, पार्टी, बार, डिस्को आदि में अनावश्यक शोर उत्पन्न करने वाले उपकरणों के प्रयोग को कम करना चाहिये।
निष्कर्ष
ध्वनि प्रदूषण के कई निवारक उपाय हैं जैसे, उद्योगों में साउड प्रूफ कमरों के निर्माण को बढ़ावा देना, उद्योग और कारखानें आवासीय इमारत से दूर होनी चाहिए, मोटरसाइकिल के खराब हुये पाइपों की मरम्मत, शोर करने वाले वाहनों पर प्रतिबंध, हवाई अड्डों, बस, रेलवे स्टेशनों और अन्य परिवहन टर्मिनलों का आवासीय स्थलों से दूर होना चाहिए, शैक्षणिक संस्थानों और हॉस्पिटल्स के आसपास के इलाकों को आवाज-निषिद्ध क्षेत्र घोषित किया जाये, सड़को पर शोर के कारण उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रदूषण को अवशोषित करने के लिये रिहायसी इलाकों के आस-पास हरियाली लगाने की अनुमति देनी चाहिये।
ध्वनि प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण वो औद्योगिक या गैर-औद्योगिक क्रियाएं हैं जो मनुष्य, पौधो और पशुओं के स्वास्थ्य पर बहुत से आयामों से विभिन्न ध्वनि स्त्रोतों के द्वारा आवाज पैदा करके प्रभावित करती है। निरंतर बढ़ते ध्वनि प्रदूषण के स्तर ने वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन को बड़े खतरे पर रख दिया है। हम नीचे ध्वनि प्रदूषण के स्त्रोतों, प्रभावों और ध्वनि प्रदूषण रोकने के लिये वैधानिक आयामों पर चर्चा करेंगे।
ध्वनि प्रदूषण के मुख्य स्त्रोत निम्न लिखित हैं
भारत में बहुत अधिक ध्वनि प्रदूषण शहरीकरण, आधुनिक सभ्यता, औद्योगिकीकरण आदि के द्वारा बढ़ा है। ध्वनि का प्रसार औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोतों के कारण हुआ है। ध्वनि के औद्योगिक स्त्रोतों में तेज गति से काम करने वाली उच्च तकनीकी की बड़ी मशीनें और बहुत से उद्योगों में ऊंची आवाज पैदा करने वाली मशीनें शामिल हैं। ध्वनि पैदा करने वाले गैर-औद्योगिक स्त्रोतों में यातायत के साधन, परिवहन और अन्य मानव निर्मित गतिविधियाँ शामिल हैं। ध्वनि प्रदूषण के कुछ औद्योगिक और गैर-औद्योगिक स्त्रोत नीचे दिये गये हैं:
ध्वनि प्रदूषण के प्रभाव निम्नलिखित हैं
ध्वनि प्रदूषण मनुष्यों, जानवरों और सम्पत्ति के स्वास्थ्य को बहुत अधिक प्रभावित करता है। उनमे से कुछ निम्न है:
ध्वनि प्रदूषण को रोकने के लिये वैधानिक कदम निम्नलिखित है:
निष्कर्ष
ध्वनि प्रदूषण ने इसके स्त्रोत, प्रभाव और ध्वनि प्रदूषण को रोकने के उपायों के बारे में सामान्य जागरुकता की तत्काल आवश्यकता का निर्माण किया है। कार्यस्थल, शैक्षणिक संस्थान, आवासीय क्षेत्र, अस्पताल आदि स्थानों पर ध्वनि का तेज स्तर रोका जाना चाहिये। युवा बच्चों और विद्यार्थियों को तेज आवाज करने वाली गतिविधियों जैसे; किसी भी अवसर पर तेज आवाज पैदा करने वाले उपकरणों और यंत्रो का प्रयोग आदि में शामिल न होने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। तेज आवाज करने वाले पटाखों के विशेष अवसरों जैसे; त्योहारों, पार्टियों, शादियों, आदि में प्रयोग को कम करना चाहिये। ध्वनि प्रदूषण से संबंधित विषयों को पाठ्यपुस्तकों में जोड़ा जाये और विद्यालय में विभिन्न गतिविधियों जैसे लेक्चर, चर्चा आदि को आयोजित किया जा सकता है, ताकि नयी पीढ़ी अधिक जागरुक और जिम्मेदार नागरिक बन सके।
उत्तर- ध्वनि प्रदूषण मानव के कान के पर्दो को अत्यधिक प्रभावित करता है?
उत्तर- कल कारखाने तथा यातायात के साधन।
उत्तर- 180 डेसीबल