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भारत का राष्ट्रगीत – वन्दे मातरम्

वन्दे मातरम्

भारत का राष्ट्रगीत वन्दे मातरम् है जिसे बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा 1882 में आनन्दमठ् उपन्यास में लिखा गया। वास्तव में, इसे दो भाषाओं में लिखा गया था बंगाली और संस्कृत।

किसी भी राष्ट्रीय अवसर पर अपनी मातृभूमि के लिये राष्ट्रगीत को गाया जाता है। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के लिये इस गीत ने प्रेरणास्रोत का कार्य किया। ये बहुत ही शक्तिशाली है और अभी भी हमें अपने देश की खुशहाली के लिये लड़ने की प्रेरणा देता है। इसे पहली बार 1896 में रविन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के अधिवेशन में गाया था।

1950 में भारत की आजादी के बाद वास्तविक वन्दे मातरम् के दो खूबसूरत छंदों को भारत के राष्ट्रगीत के रुप में आधिकारिक तौर पर घोषित किया गया।

भारत के राष्ट्रगीत का इतिहास

बंकिमचन्द्र चैटर्जी को बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के नाम से भी जाना जाता है। वो भारत के महान कवि और प्रसिद्ध उपान्यासकार थे। उन्होंने वन्दे मातरम् लिखा था (7 नवंबर 1875 में) जिसको कि आधिकारिक तौर पर भारत के राष्ट्रगीत के लिये लिया गया। राष्ट्रगीत में ये दो शब्द (वन्दे मातरम्) बेहद महत्वपूर्ण शब्द है और अपने राष्ट्र के लिये बहुत मायने रखता है। ये दो शब्द बहुत प्रेरणादायक और सर्वाधिक शक्तिशाली है जो भारत के कई स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा वर्णन किया जाता है जब उन्हें अंग्रेजों के द्वारा सजा दिया जाता था।

हिन्दू संस्कृति का एक महत्वपूर्ण तत्व है मातृभूमि। भारत के सभी महान योद्धा (भगवान राम, छत्रपति शिवाजी महाराज आदि) अपनी मातृभूमि के लिये पूरे समर्पण से लड़े। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएट थे। वो एक सरकारी अधिकारी थे जब उन्होंने “वन्दे मातरम् ” गीत बनाया। उन्होंने बंगाली और संस्कृत शब्द का इस्तेमाल कर ये गीत लिखा जो पहली बार 1882 में उनके अपने उपन्यास आनन्दमठ् (बंगाली में लिखा गया) में प्रकाशित हुआ था। फिर जल्दी ही उनसे इस गीत के लिये खास धुन देने के लिये कहा गया।

वन्दे मातरम् बहुत प्रसिद्ध भाव है जो कि ब्रिटीश शासन से आजादी पाने के लिये राष्ट्रीय माँग के रुप में स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा प्रदर्शित किया गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस गीत ने हमें बहुत प्रभावित किया। इसका उपयोग राष्ट्रवादी उत्साह को बढ़ाने के लिये किया गया और पूरे स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान नारे के रुप में चिल्ला कर कहा गया। इस गीत को पहली बार रविन्द्रनाथ टैगोर (राष्ट्रगान के लेखक) ने 1896 में कलकत्ता के काँग्रेस मीटिंग में गाया गया था। कलकत्ता के दूसरे काँग्रेस मीटिंग के दौरान पाँच साल के बाद इसे 1901 में धकिना चरन सेन द्वारा पुनः गाया गया था।

1905 में, बनारस में काँग्रेस की मीटिंग में इसे दुबारा महान कवयित्री सरला देवी चौधरानी द्वारा गाया गया। इसी नाम से लाला लाजपत राय द्वारा एक पत्रिका की शुरुआत हुई और 1905 में ही इसी नाम से हीरालाल सेन द्वारा एक राजनीतिक फिल्म बनायी गई। 1907 में भिकाईजी कामा द्वारा भारत का ध्वज पहले संस्करण के केन्द्र में वन्दे मातरम् लिखा गया था।

भारत के राष्ट्रगीत के बोल

भारत के “राष्ट्रगीत” के रुप में वन्दे मातरम् के असल संस्करण से दो छंदों को स्वीकार किया गया है।
“वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां
मलयजशीतलाम्
शश्य श्यालालां मातरं
वन्दे मातरम्
सुब्रज्योत्स्ना
पुलकित यामिनीम्
पुल्ल कुसुमित
द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं
सुमधुर भाषिनीम्
सुखदां वरदां मातरं
वन्दे मातरम्”

वन्दे मातरम् के वास्तविक बोल

“वन्दे मातरम्
सुजलां सुफलां, मलयजशीतलाम्,
शश्यश्यालालां, मातरं!
सुब्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,
पुल्लकुसुमित द्रुमदल शोभिनीम्
सुहासिनीं, सुमधुर भाषिनीम्,
सुखदां वरदां मातरं!
सप्त-कोटि-कण्ठ-कल-कल-निनाद कराले
कोट-भुजैधृत-खरकरवावाले,
अबला केन माएत बले।
बहुबलधारिणीं नमामि तारिणीं
रिपुदलवारिणीं मातरम्।।
तुमि विद्या, तुमि धर्म
तुमि हृदि, तुमि मर्म
त्वम् हि प्राणा: शरीरे
बाहुते तुमि मा शक्ति,
हृदये तुमि मा भक्ति,
तोमारई प्रतिमा गडि
मन्दिरे-मन्दिरे
त्वम् हि दुर्गा दशप्रहरणधरिणी
कमला कमलदलविहारिणी
वाणी विद्यादायिनी,
नमामि त्वाम्
नमामि कमलाम्
अमलां अतुलाम्
सुजलां सुफलाम् मातरम्।।
वन्दे मातरम्।
श्यामलाम् सरलाम्
सुस्मिताम् भुषिताम्
धरणीं भरणीं मातरम्।।
वन्दे मातरम्।।”

 

हिन्दी में भारत के राष्ट्रगीत का अर्थ

जलवायु अन्न सुमधुर, फलफूल दायिनी माँ!, गौरव प्रदायिनी माँ!!
शत-शत नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!
अति शुभ्र ज्योत्सना से, पुलकित सुयामिनी है। द्रुमदल लतादि कुसुमित, शोभा सुहावनी है।।
यह छवि स्वमन धरें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
कसकर कमर खड़े है, हम कोटि सुत तिहारे। क्या है मजाल कोई, दुश्मन तुझे निहारे।।
अरि-दल दमन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
तू ही हमारी विद्या, तू ही परम धरम है। तू ही हमारा मन है, तू ही वचन करम है।।
तेरा भजन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
तेरा मुकुट हिमालय, उर-माल यमुना-गंगा। तेरे चरण पखारे, उच्छल जलधि तरंगा।।
अर्पित सु-मन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
बैठा रखी है हमने, तेरी सु-मूर्ति मन में। फैला के हम रहेंगे, तेरा सु-यश भुवन में।।
गुंजित गगन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!! हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!
पूजा या पन्थ कुछ हो, मानव हर-एक नर है। हैं भारतीय हम सब, भारत हमारा घर है।।
ऐसा मनन करें हम, हे मातृभूमि भारत! तुझको नमन करें हम, हे मातृभूमि भारत!!
हे मातृभूमि भारत! हे पितृभूमि भारत!!

अर्चना सिंह

कई लोगो की प्रेरणा की स्रोत, अर्चना सिंह एक कुशल उद्यमी है। अर्चना सिंह 'व्हाइट प्लैनेट टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड' आई. टी. कंपनी की डायरेक्टर है। एक सफल उद्ममी होने के साथ-साथ एक कुशल लेखक भी है, व इस क्षेत्र में कई वर्षो का अनुभव है। वे 'हिन्दी की दुनिया' और अन्य कई वेबसाइटों पर नियमित लिखती हैं। अपने प्रत्येक क्षण को सृजनात्मकता में लगाती है। इन्हें खाली बैठना पसंद नहीं। इनका कठोर परिश्रम एवं कार्य के प्रति लगन ही इनकी सफलता की कुंजी है।

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द्वारा प्रकाशित
अर्चना सिंह