महात्मा गाँधी को किसी तरह के परिचय की आवश्यकता नही है। वह देश के सबसे महानतम नेताओं में से और देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले में से एक है। वह देश की आजादी में अहिंसा को बतौर हथियार के तरह इस्तेमाल करने वाले पहले व्यक्ति थे। अपने इस अहिंसा मार्ग द्वारा उन्होंने ब्रिटिश साम्रज्य जैसे शक्तिशाली दुश्मन का भी डटकर सामना किया। भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान बापू को कई बार जेल भी जाना पड़ा तथा अंग्रेजी सरकार से कई तरह की यातनाओं को सहना पड़ा। लेकिन यह उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और साहस ही था, जिसने ब्रिटिश साम्रज्य के नीव को हिलाकर रख दिया।
महात्मा गाँधी के भाषण हर व्यक्ति के लिए प्रेरणा का काम करते हैं। महात्मा गाँधी ने स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान विभिन्न स्थानों पर कई भाषण दिए है, जो कि बहुत ही महत्वपूर्ण और काम के हैं। हमने उनके प्रसिद्ध भाषणों में कुछ प्रमुख भाषणों के अंशो को इकठ्ठा करके अपने वेबसाइट पर पोस्ट किया है। जिनका आप अपनी सुविधानुसार उपयोग कर सकते हैं।
“अगर दुनिया में कुछ ऐसा है जिसकी मुझे कामना है। जिसका मैने इस खुबसूरत स्थान पर वर्णन किया है, तो उसे मैं अपने गुरु के चरणों में अर्पित करना चाहुंगा। जो मेरे प्रेरणा स्त्रोत है और जिनके नेतृत्व में मैने दक्षिण अफ्रीका में निर्वासन की जिंदगी व्यतीत की।”
“जोहांसबर्ग जैसे शहर में यदि एक मद्रासवासी एक या दो बार जेल नही गया हो तो उसे दूसरे मद्रासियों द्वारा हेयदृष्टि से देखा जाता है, तो आप सोच सकते हैं कि आपके देशवासी इन आठ वर्षो से किस प्रकार के गंभीर संकटों से गुजर रहें है।”
सन् 1915 में महात्मा गाँधी का मद्रास आगमन पर काफी विशेष सम्मान हुआ था। यह भाषण उन्होंने मद्रास में धन्यवाद भाषण के रुप में दिया था। इसके साथ ही उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में रह रहे भारतीयों के बलिदान के प्रति भी सहानभूति व्यक्त की। यह भाषण जी.ए. नेस्टन के तरफ से दिये गये स्वागत भाषण के उत्तर में दिया गया था।
“यह हमारे लिए काफी अपमान और दुर्भाग्य की बात है कि मैं आज की शाम इस महान विश्वविद्यालय तथा काशी जैसे पवित्र शहर में मुझे अपने देशवासियों को एक विदेशी भाषा में संबोधित करना पड़ रहा है।”
“यदि हमारे मंदिर स्वच्छता और सभी के लिए खुले स्थान के आदर्श नही है, तो भला हमारा स्वराज कैसा होगा?”
“अगर हमें स्वराज नही दिया जाता तो हमें उसे हासिल करना होगा, क्योंकि ऐसा हुआ तो बिना प्रयास के हमें कभी भी स्वराज और स्वायत्तता की प्राप्ति नही हो सकती है।”
यह भाषण महात्मा गाँधी ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह में दिया था। इस अवसर पर पंडित मदन मोहन ने महात्मा गाँधी को स्वागत भाषण देने के लिए बुलाया था। इस अवसर का उपयोग महात्मा गाँधी ने जनसभा और भाषणो में अंग्रेजी के उपयोग की जगह भारतीय भाषा के महत्व को समझाने के लिए किया था। इसके अलावा इस अवसर पर उन्होंने सफाई के महत्व को भी समझाने का प्रयास किया, जिसमें उन्होंने विशेषतः मंदिरो और ट्रेनो का उदाहरण दिया था। उनका कहना था, कि यदि हम अपने मंदिरो और शहरों का साफ-सुथरा रखने का सामर्थ्य नही रखते हैं, तो भला देश कैसे चला पायेंगे।
“मैं अपनी सजा को कम करने के लिए या अपने बचाव के लिए निवेदन नही करना चाहता हुं। मैं यहाँ इसलिए आया हुं कि से मुझे जानबूझ कर कानून तोड़ने के लिए जो बड़ा से बड़ा दंड हो सके दिया जाये। क्योंकि जो कार्य मैंने किया है, वह एक नागरिक के रुप में मेरा सबसे बड़ा कर्तव्य है और उससे मैं पीछे नही हट सकता।”
“सभी तथ्यों पर गौर करते हुए मैं अनिच्छा सेइस नतीजे पर पहुंचा हुं कि ब्रिटिश शासन ने भारत को राजनैतिक और आर्थिक रुप से इतना लाचार बना दिया है, जितना यह शायद ही पहले कभी रहा हो।”
महात्मा गाँधी के द्वारा बोली गयी यह बातें एक भाषण नही है, बल्कि कि 1922 की ग्रेट ट्रायल की में दिया गया उनका कानूनी बयान है। महात्मा गाँधी को ब्रिटिश शासन के विरुद्ध असंतोष फैलाने का दोषी पाया गया था। अपने पेशी के दौरान महात्मा गाँधी ने यह बयान जज के सामने दिया था और अपने उपर लगे सभी आरोपों को स्वीकार किया था तथा इसके साथ ही उन्होंने इस अपराध के लिए कठोर से कठोर सजा मांगी थी।
महात्मा गाँधी ने यह स्वीकार किया की इस अहिंसक आंदोलन में हो रहे घटनाओं के लिए वह जिम्मेदार है। उनके इस बयान ने न्यायधीश को झकझोर के रख दिया क्योंकि यह पहली बार हुआ था, कि किसी व्यक्ति ने अपने उपर लगे सारे अरोपों को ना सिर्फ स्वीकार किया बल्कि खुद के लिए कठोर से कठोर सजा की भी मांग की। इसके साथ ही गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार के दमनकारी और क्रूर नितीयों की भी आलोचना की।
“भले ही हमें गिरफ्तार कर लिया गया हो फिर भी हम शांति बनाये रखेंगे। हम सब ने अपने संघर्ष के लिए इस अहिंसक मार्ग का चयन किया है और हमें इस पर कायम रहना है। हम में से किसी को भी क्रोध में आकर कोई गलत कदम नही उठाना है। बस यही आप सबसे मेरी आशा और प्रर्थना है।”
“इतिहास आत्मविश्वास, बहादुरी और दृढ़ता के बल से नेतृत्व और सत्ता प्राप्त करने वाले पुरुषों के उदाहरणों से भरा है। अगर हम भी स्वराज की इच्छा रखते हैं और यदि इसे प्राप्त करने के लिए उतने ही उत्सुक हैं, तो हममें भी समान आत्मविश्वास का होना बहुत ही आवश्यक है।”
“तो चलिये जो हम आज सरकार की किसी भी प्रकार से सहायता कर रहें है, चाहे वह कर देकर हो, सम्मान या उपाधि लेकर या फिर अपने बच्चों को आधिकारिक विद्यालयों में भेजकर, उन्हें हर तरह से सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेना चाहिये। इसके साथ ही स्त्रियों को भी पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होने की आवश्यकता है।”
दांडी यात्रा की शाम को महात्मा गाँधी ने लगभग 10000 लोगों को संबोधित किया था। उस दिन उनके द्वारा दिया गया इस भाषण ने असहयोग आंदोलन के लिए एक रास्ता तैयार करने का कार्य किया। अपने इस भाषण में उन्होंने जोर देकर कहा कि इस आंदोलन के दौरान चाहे वह जिंदा रहे या ना रहे लेकिन आंदोलन का मार्ग सदैव शांति और अहिंसा ही रहना चाहिए। उन्होंने समाज के हर तबके से आगे आकर अंग्रेजी सरकार के बनाये हुए कानूनों को तोड़ते हुए असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए कहा।
इसके साथ ही उन्होंने आंदोलन में औरतों की भी सहभागिता को लेकर जोर दिया, उन्होंने कहा कि इस आंदोलन में औरतो को भी पुरुषों के कंधों से कंधा मिलाकर हिस्सा लेना चाहिए। उनके भाषण को लेकर कुछ ऐसा प्रभाव हुआ कि एक चुटकी नमक से शुरु हुआ, यह आंदोलन देखते ही देखते पूरे देश में फैल गया।
“जब देश में ब्रिटिश शासन नही था और नाही कोई अंग्रेज यहां देखा गया था। तब भी हम हिंदू, मुसलमान और सिक्ख हमेशा एक दूसरे से लड़ा करते थे, लेकिन हमारे पास हिंदू इतिहासकारों तथा मुसलमान इतिहासकारों के द्वारा बताई गयी ऐसे कई कहानियां और तथ्य हैं। जिनसे पता चलता है कि उन दिनों भी हम एक दूसरे के साथ भाईचारे के साथ रहते थे और आज भी गांवो में हिंदू और मुसलमान एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रह रहे है तथा उनके बीच किसी भी प्रकार का विवाद या लड़ाई-झगड़ा नही है।”
“तो आइये हम सब भारत को मिलकर वह सम्मान दिलायें, जिसकी वह हकदार हैं, चाहे वह उसे जब भी या जैसे भी मिलता है। इसके साथ ही सीमांत प्रांतो को पूर्ण स्वायत्तता भी मिलनी चाहिए।”
“यह उन सबसे मूल्यवान पुरस्कारों में से होगा, जो यहाँ से अपने साथ ले जाउंगा। मुझे यहाँ आप सबसे बस विनम्रता ही मिली है और इसके साथ ही लोगो का सच्चा प्रेम प्राप्त हुआ है। मेरा यहां कई अग्रेंज सज्जनों से परिचय हुआ, जो कि मेरे लिए एक यादगार अनुभव रहेगा।”
यह भाषण महात्मा गाँधी द्वारा लंदन के गोलमेज सम्मेलन के दौरान दिया गया था, जहां कई अंग्रेज और भारतीय राजनैतिक अधिकारी मौजूद थे। इस दौरान गाँधी जी ने अंग्रेजो के “बांटो और राज करो” निती की भर्त्सना की और इस बात को बताया कि भारत में कई धर्मों के लोग सदियों से एक-साथ रहते आ रहे है और उनमें कभी कोई संघर्ष नही होता था, लेकिन अंग्रेजो के आ जाने के बाद से उन्होंने “बांटो और राज करों” निती का उपयोग करते हुए भारत में लोगो को बांटने और लड़ाने का कार्य किया है।
उन्होंने अपने भाषणों द्वारा भारत को स्वराज प्रदान करने के मुद्दे को भी प्रमुखता से उठाया। इसके साथ ही उन्होंने इंग्लैड के लोगो द्वारा उन्हें दिये गये सम्मान और प्रेम के लिए उनका धन्यवाद भी अदा किया।
“हम में ताकत और सत्ता प्राप्त करने की भूख नही है, हम बस शांतिपूर्वक भारत के स्वाधीनता की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। एक सफल कप्तान हमेशा एक सैन्य तख्तापलट और तानाशाही रवैये के लिए जाना जाता है। लेकिन कांग्रेस के योजनाओं के अंतर्गत सिर्फ अहिंसा के लिए स्थान है और तानाशाही के लिए यहां कोई स्थान नही हैं।”
“लोग शायद मुझ पर हसेंगे पर यह मेरा विश्वास है, कि समय आने पर मुझे अपने जीवन का सबसे बड़ा संघर्ष करना होगा लेकिन फिर भी मैं किसी के विरुद्ध को विद्वेष नही रखुंगा।”
“मैने कांग्रेस के साथ देश की स्वतंत्रता के लिए करो या मरो का संकल्प लिया है।”
भारत छोड़ो आंदोलन की शाम को महात्मा गाँधी ने बाम्बे के अगस्त क्रांति मैदान में यह भाषण दिया था। गाँधी जी के इस भाषण में कई महत्वपूर्ण बिन्दु थे, लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण थी, उनके द्वारा उल्लेखित अंहिसा की महत्ता। उन्होंने कहा की कांग्रेस ओर से तैयार किया गया ड्राफ्ट रेजोल्यूशन पूर्ण रुप से अंहिसा के मूल्यों को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है और यदि कीसी को भी अंहिसा में ना विश्वास हो तो वह खुद को विनम्रतापूर्वक इससे अलग कर सकता है।
इसके साथ ही उन्होंने क्रांति के ऐसे कई उदाहरण दिये जिसमें लोगो ने हथियारों द्वारा कई लड़ईया लड़ी, लेकिन फिर भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उन्होंने लोगो को यह भी समझाने का प्रयास किया की हमारी लड़ाई अंग्रेजी हुकूमत से है ना कि अंग्रेज लोगो से, इसलिए भारत के लोगो को अंग्रेजो के खिलाफ किसी तरह का विद्वेष नही रखना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने संयुक्त राष्ट्र से भारत स्वतंत्र घोषित करने की भी महत्वपूर्ण मांग की, जो कि भारत छोड़ो आंदोलन भाषण का एक महत्वपूर्ण पहलू था।
उन्होंने अपने इस भाषण का समापन “करो या मरो” नारे के साथ किया। जिसका मतलब आजादी के लिए लड़ना या फिर उसकी प्राप्ति के लिए लड़ते हुए मर जाना था। महात्मा गाँधी का यह भाषण भारत के स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त करने के साथ ही अंग्रेजी हुकूमत को भी एक खुली चुनौती थी।
“आज के समय हर तरफ युद्ध की चर्चा है। हर कोई इस बात से डर रहा है कि कही दोनो देशो के मध्य युद्ध ना छीड़ जाये। अगर ऐसा हुआ तो यह भारत और पाकिस्तान दोनो के लिए हानिकारक होगा।”
“इसलिए मैं पाकिस्तान के नेताओं से विनम्र निवेदन करना चाहुंगा कि भले ही अब हम दो अलग-अलग देश है, जो कि मैं कभी नही चाहता था, लेकिन फिर भी इन मतभेदों के बाद भी चाहे तो सहमती और शांतिपूर्वक एक-दूसरे के पड़ोसी के रुप में रह सकते हैं।”
4 जनवरी 1948 को प्रर्थना सभा में गाँधी जी ने पाकिस्तान और भारत के बीच चल रहे कश्मीर विवाद को लेकर चर्चा की, अंहिसा और शांति का समर्थक होने के नाते गाँधी जी कभी भी भारत-पाकिस्तान के मध्य कोई संघर्ष नही चाहते थे। वह मामलो को हमेशा बातचीत से सुलझाने में विश्वास रखते थे और चाहते थे कि दोनो देश अपने विवादों को बातचीत द्वारा हल करें। इसके साथ ही वह इस मामले को संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में सुलझाना चाहते थे।
“मेरे प्रिय मित्रों आपने असली भारत नही देखा है, और नाही आप वास्तविक भारत के मध्य इस सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। दिल्ली, बाम्बे, मद्रास, कलकत्ता, लाहौर जैसे ये बड़े शहर पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित है, जिनमें असली भारत नही बसता। वास्तविक भारत हमारे देश के साधारण गांवो में बसता हैं।”
“निश्चित रुप से आज पश्चिम ज्ञान का केंद्र है और यह कई परमाणु बमों के समान है, क्योंकि परमाणु बमों का अर्थ सिर्फ विध्वंस होता है जो सिर्फ पश्चिम को ही नही बल्कि की पूरे विश्व को प्रभावित करेगा। यह एक प्रकार से उस जल-प्रलय के समान होगा, जिसका उल्लेख बाइबल में किया गया है।”
यह भाषण महात्मा गाँधी ने अंतर-एशियाई संबंध सम्मेलन में दिया था। जहां उन्होंने लोगो को गांवो में बसने वाले वास्तविक भारत के विषय में समझाने का प्रयास किया था। उनका मानना था कि अंग्रेजो द्वारा स्थापित बड़े शहर, पाश्चात्य सभ्यता से प्रभावित हैं और इनमें भारत का आम जनमानस नही बसता है।
इसके साथ ही महात्मा गाँधी ने अपने इस भाषण के दौरान ज्ञान और इसके दुरुपयोग को लेकर भी चर्चा की थी। अपने इस भाषण के समापन के में उन्होंने परमाणु बम और इसके खतरे को लेकर लोगो को आगाह किया। उनके अनुसार परमाणु बम की विध्वंसक घटनाए ना सिर्फ पश्चिम अपितु पूरे विश्व को प्रभावित करेंगी।
“उपवास की शुरुआत कल खाना खाने के समय के साथ होगी और इसका अंत तब होगा जब मैं इस बात से संतुष्ट हो जाउगा कि सभी समुदायों के बीच बिना किसी दबाव के एक बार फिर से स्वंय के अंतर्मन से भाईचारा स्थापित हो जायेगा।”
“निसहायों के तरह भारत, हिंदुत्व, सिख धर्म और इस्लाम की बर्बादी देखने से अच्छा मृत्यु को गले लगाना, मेरे लिए कही ज्यादे सम्मान जनक उपाय होगा।”
देश भर में हो रहे सांप्रदायिक दंगो ने महात्मा गाँधी को झकझोर के रख दिया था। दंगो के बाद के दृश्य ने उन्हें बहुत ही दुखित कर दिया था।उन्होंने लोगो में भाईचारा और प्रेम बढ़ाने के लिए उपवास शुरु कर दिया था। यह भाषण महात्मा गाँधी का आखिरी भाषण था, जो उन्होंने अपने हत्या से कुछ हफ्ते पहले दिया था।
अपने इस भाषण में उन्होंने गलत कार्यो के खिलाफ दंड स्वरुप उपवास के महत्व को समझाया है। उन्होंने सभी धर्म के लोगो से एक-दूसरे के साथ समभाव और भाईचारा बढ़ाने की अपील की। वह देश भर में लोगो के बीच धर्म के नाम पर उत्पन्न शत्रुता से काफी उदास थे और उन्होंने कहा कि उनके लिए देश के लोगों के बीच धर्म के नाम पर हो रही हत्या देखने से कही आसान मृत्यु को गले लगाना होगा।
निष्कर्ष
हमारे देश को आजाद हुए 70 वर्षो से अधिक का समय हो गया है, लेकिन महात्मा गाँधी के द्वारा दिया गया यह भाषण आज के समय भी पहले के तरह ही प्रासंगिक है। यह समय महात्मा गाँधी के विचारों को मानने और उनके द्वारा दिखाये गये रास्ते पर चलने का समय है। आज के विश्व में जब हर तरफ परमाणु हथियारों के विकास की होड़ मची हुई है तब अहिंसा के सिद्धांत और महात्मा गाँधी के विचार और भी ज्यादे महत्वपूर्ण हो जाते है, क्योंकि महात्मा गाँधी द्वारा दिखाये मार्ग पर चलकर हम एक शांतिपूर्ण और हथियार मुक्त विश्व की रचना कर सकते है।