एक ऐसे व्यक्ति जिसने भक्ति काल के उस दौर में कभी किसी धर्म विशेष को स्थान नहीं दिया; और मूर्ति पूजन और उपवास जैसे आडम्बर का खुल कर विरोध किया। 13वीं सदी में लोग जाति और धर्म को ले कर बेहद कट्टर विचारधारा रखते थे और ऐसे में किसी का इस कदर विरोध करने के लिये बेहद हिम्मत चाहिए थी। कबीर दास जी निराकार ब्रह्म की उपासना करते थे और उनके मुताबिक भगवन हर जगह होते हैं और हर प्राणी, जीव, जंतु में वे साक्षात् उपस्थित रहते हैं, इस लिये हमें स्वर्ग के सपने देखने के बजाये धरती पर ही अपना व्यवहार अच्छा रखना चाहिए क्यों की सब यहीं है।
कबीर दास जी के विचारों की मार्मिकता को समझते हुए हमने आपके लिये इस विषय पर कुछ भाषण तैयार किए हैं जिसकी भाषा बेहद सरल व आकर्षक है और इसे याद करने में भी आपको परेशानी नहीं आएगी।
आदरणीय प्रधानाचार्य महोदय, यहाँ उपस्थित शिक्षक, अतिथि गण एवं अभिभावकों को मेरा प्रणाम। आज मुझे आप सब के समक्ष संत कबीर दास जी के बारे में बोलने का सुनहरा मौका मिला है, क्यों की मैं एक कबीर पंथी हूँ तो इस मौके को पा कर मैं बेहद खुश हूँ और आशा करती हूँ की मेरा यह भाषण आपको अवश्य पसंद आएगा।
भक्ति काल में जहाँ सारी दुनिया भगवान की भक्ति में लीन थी एक शख्स ऐसा था जो निराकार ब्रह्म की उपासना करता था। अचंभे की बात यह थी की उनका जन्म एक ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था तो वहीं उनका पालन पोषण एक मुस्लिम परिवार में हुआ, इन सब के बावजूद वे इन सब को आडम्बर समझते थे। हम हर वर्ष ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कबीरदास जयंती के रूप में मानते हैं।
उन्होंने हिन्दू धर्म के आडम्बरों का जम कर और डट कर विरोध किया। यही नहीं उन्होंने मुसलमानों में होने वाले ‘रोजे’ को भी आडम्बर बताया और किसी भी प्रकार के व्रत, उपवास का खंडन किया। उनके मुताबिक भूखे रहने से भला भगवान कैसे प्रसन्न हो सकते हैं।
उनके मुताबिक हर व्यक्ति के भीतर भगवान मौजूद होते हैं, उन्हें मंदिरों में, मूर्तियों में ढूंढने के बजाये, एक दूसरे से अच्छा व्यवहार करें, इसी से हमारी भक्ति पता चलती है। कोई स्वर्ग और नरक नहीं हैं, जो है यहीं है और हमारा व्यवहार ही सब निर्धारित करता है। किसी जाती या कुल में जन्म लेने से कोई बड़ा नहीं होता, बड़े उसके कर्म होते हैं।
उस दौर में जाती प्रथा अपने चरम पर था और ऐसे में किसी का जातिवाद को लेकर एक शब्द भी बोलना बेहद खतरनाक सिद्ध होता था, ऐसे में बिना किसी से डरे कबीर दास जी अपने विचारों पर अडिग रहे और अपने मरते दम तक अपने विचारों से पीछे नहीं हटे। इसके कारण कई बार समाज से उनका बहिष्कार भी किया गया और कई उलाहनाओं का भी सामना करना पड़ा। वे सदैव अपने गुरु श्री रामदास के कथनों का समर्थन करते थे और समाज के कल्याण एवं बदलाव के लिये, जन समारोहों और लोगों को प्रेरित करते रहे।
कबीर दास जी का जीवन बेहद संघर्षपूर्ण रहा परन्तु वे अमर हो गए और वे आपने महान विचारधारा के कारण आज भी हमारे बीच मौजूद हैं। उन्होंने स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की लेकिन उनकी रचनाएँ हमें ‘बीजक’ जैसे ग्रन्थ में मिलते हैं, जिसे इनके शिष्यों ने लिखा है। इसमें मौजूद सभी दोहे व अन्य रचनाएँ कबीर दास जी के ही हैं बस उसे उनके शिष्यों ने संग्रहित कर दिया।
आज हमारे समाज में कई सुधार हो चुके हैं, परन्तु अभी भी कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें सुधार की आवश्यकता होती है। और जब तक समाज का हर व्यक्ति अपने अन्दर इसे सुधारने का संकल्प न ले यह मुमकिन नहीं है। बदलाव लाने के लिये हमें दूसरों को नहीं अपितु खुद को बदलना पड़ता है। और अंत में जाते-जाते मैं कबीर दास जी के इस दोहे के माध्यम से अपने शब्दों को विराम देना चाहती हूँ।
जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥
धन्यवाद।
यहाँ उपस्थित सभी बड़ों को मेरा प्रणाम, आज मैं आप सब के सामने कबीर दास जी के बारे में कुछ शब्द बोलना चाहती हूँ और आशा करती हूँ की उनके विचारों को आप तक पहुंचाने में सफल भी रहूंगी।
कबीर दास जी भारतीय इतिहास के एक अनमोल रत्नों में से एक हैं, जिन्होंने स्कूली शिक्षा न लेते हुए भी उनकी रचनाएँ इतनी सटीक व समाज पर कटाक्ष के रूप में लिखा की अज तक कोई ऐसा दूसरा न हो पाया। हर वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को कबीर दासजयंती के रूप में मनाया जाता है।
जैसा की हम जानते हैं उन्होंने एक ब्राह्मण स्त्री के गर्भ से, एक वरदान के परिणामस्वरूप जन्म लिया परन्तु लोक लाज के डर से उनकी माता ने उनका परित्याग कर दिया। इसके बाद वे एक मुस्लिम युगल को मिले, जिनका नाम नीमा और नीरू था। वे पेशे से जुलाहे थे। उन्होंने कबीर दास जी का पालन पोषण अच्छे से किया और अपनी खानदानी शिक्षा थी, जो की इनका पेशा था। क्यों की वे बहुत अमीर नहीं थे, वे कबीर जी को स्कूल न भेज पाए।
एक बार की बात है जब कबीर दास जी घाट की सीढ़ियों पर लेते थे, सुबह का समय था और स्वामी रामदास जी स्नान के लिये जा रहे थे और उन्होंने कबीर दास जी को देखा नहीं और गलती से उनके ऊपर अपने पैर रख दिए। जब उन्हें इस बात का एहसास हुआ तो वे कबीर से क्षमा मांगने लगे, और परिणाम स्वरुप उन्होंने कबीर जी को अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
कबीर जी जन्म से हिन्दू थे और परवरिश एक मुस्लिम परिवार में हुआ, परन्तु वे इन दोनों धर्मों में होने वाले ढोंग का कुल जोर विरोध करते थे। वे मूर्ति पूजन, व्रत-उपवास, जैसे ढोंग का खुल कर विरोध किया। सच में वे एक योद्धा से कम नहीं थे, जिसने समाज के ठेकेदारों से कई यातनाएं भी सहीं लेकिन अपने विचारों से अडिग रहे।
उनका मानना था की भगवन हर प्राणी में बसते हैं और वे किसी भोग, त्याग से प्रसन्न नहीं होते, अपितु वे अपने भक्तों का हृदय देखते हैं। वे इस बात से भेद नहीं करते की किसने कितना चढ़ावा चढ़ाया है या उनकी पूजा किस जाती का व्यक्ति कर रहा है। वे हमारे समाज के एक कीर्तिमान ज्वाला थे जिसकी चमक शायद कुछ कुलीन बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे।
भारत का इतिहास जितना ही विशाल है उसमें इस प्रकार की घटनाएँ भी बहुत अधिक हुई हैं जिसके तहत कुछ तबकों और जाती के लोगों को कई यातनाएं भी सहनी पड़ी। ऐसा लगता है मानो भगवन इन यातनाओं को सह नहीं पाए और अपने एक नुमाइंदे को उन्होंने मनुष्य रूप में धरती पर भेज दिया हो। क्यों की संसार में जब-जब अति होती है तो भगवान स्वयं अवतरित होते हैं समाज से बुराइयों का नाश करने के लिये। कबीर जैसे श्रेष्ठ मानव कई दशकों में एक बार ही जन्म लेते हैं और यह सत्य ही है क्यों की उनकी रचनाएँ अमर हो चुकी हैं और आज भी हमें उनके दोहे और भजन कही न कही सुनने को मिल ही जाते हैं। वे महान प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे।
उनके दो बच्चे भी हुए जिन्हें उन्होंने इसी काम में लगा दिया और जैसे उस दौर में समाज सेवा का सारा जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। इसके कट्टर जवाबों और दोहों से लोग बहुत प्रभावित होते थे और कई बार इन्हें समाज से बहिष्कृत भी होना पड़ा। परन्तु वे अडिग थे और आजीवन समाज को सुधारने में लगे रहे।
ऐसा माना जाता है की काशी में मृत्यु होने से मोक्ष की प्राप्ति होती है, परन्तु कबीर जी इसे नहीं मानते थे और अपने मृत्यु के समय काशी छोड़ के मगहर (काशी के आस पास का क्षेत्र) चले गए। और उनकी मृत्यु मगहर में हुई। कबीर जैसे संत आदमी को तो कहीं भी मोक्ष मिल जाता परन्तु समझने वाली बात यह है की काशी में रह कर सैकड़ों पाप करने वाले क्या मोक्ष पा सकते हैं?
आपका जीवन आपके कर्मों और विचारों से उच्च होता है, उसे किसी जाती, धर्म, स्थान में जन्म लेने से उच्च नहीं बनाया जा सकता। सदैव अच्छा कर्म करें और फल की चिंता न करें, मन में सदैव अच्छे विचार रखें, जिससे आपका मनुष्य जीवन सार्थक हो।
सत्य की पूजा करते हैं जो,
वही ईश्वर कहलाते हैं।
और वे कबीर थे उस दौर में जो,
हर मनुष्य में ईश्वर को दिखा गए थे।
धन्यवाद!