आप सभी ने फिल्मों, विज्ञापनों या किसी के मुख से ये अवश्य सुना होगा की “डर के आगे जीत है”। पर क्या आपने कभी ये सोचा है की वो कौन/क्या चीज़ है जो हमें अपने डर पर जीत दिलाती है? वो है हमारा “नैतिक” या “मनोबल”। वह साहस ही है जो हमें अपने डर से आगे कर हमें जीत दिलाती है। किसी भी चुनौतीपूर्ण कार्य के लिए हमें साहस के साथ उसपर जीत हासिल करने की आवश्यकता है, तभी उस जीत का असली मजा है।
परिचय
बहादुरी के साथ किये जाने वाले कार्य को “साहस” कहा जाता है। साहस वह महत्वपूर्ण गुण हैं जो हमारे अंदर शारीरिक या नैतिक रूप में शामिल होता है। इसके द्वारा हम किसी भी परिस्थिति से लड़ने के लिए सक्षम रहते है। किस परिस्थिति में कौन से साहस का उपयोग करना है, यह पूरी तरह से आप पर निर्भर करता है। कोई भी चुनौतीपूर्ण कार्य केवल कहने से नहीं बल्कि उसे बहादुरी के साथ करना ही साहस है। इस प्रकार का साहसी गुण हर किसी में नहीं बल्कि कुछ खास लोगों में ही होता है।
साहस क्या है?
साधारण शब्दों में कहा जाये तो “साहस” का अर्थ है “हिम्मत”। किसी भी व्यक्ति में साहस से मतलब है- निडरता, बहादुरी, या निर्भय होना। इसका सीधा सामना डर से होता है। जिसके अंदर डर होता है वो साहस से कोसों दूर होता है, और इसी डर से लड़कर हिम्मत से काम करना ही साहस है। व्यक्ति के अंदर साहस हो तो डर के लिए कोई जगह नहीं होता। बहादुरी और साहस का गुण कुछ खास लोगों में ही होता है।
साहस का मतलब शारीरिक ताकत से नहीं बल्कि अपने आत्मविश्वास, हिम्मत, दृढ़ संकल्प और सकारात्मकता साथ परेशानियों का सामना करते हुए उस लक्ष्य की प्राप्ति है। हम सभी के भीतर साहस होता है, बस व्यक्ति को जरुरत है उसको पहचानने और उसे जीवन में अपनाने की। किसी चुनौतीपूर्ण कार्य को करने में आने वाली बाधाओं या नकारात्मकता से लड़ना ही साहस कहलाता है।
साहस के प्रकार
मुख्य रूप से साहस को दो भागों में बाटा गया है- शारीरिक साहस और नैतिक साहस। दोनों प्रकार के साहस हर व्यक्ति में निहित होते है पर ये साहस केवल परिस्थिति के उपरांत ही दिखाई देते है, किस परिस्थिति में कौन से साहस का परिचय दिया जाये ये व्यक्ति पर निर्भर करता है।
जैसा की नाम से ही पता चलता है की इसका ताल्लुक शरीर से है। मतलब शरीर की ताकत, बनावट इत्यादि से इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। शारीरिक साहस हर कोई अपनी रोजाना की मेहनत से बना सकता है। हर व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्र ने शारीरिक मजबूती रखता है, जैसे की पहलवान, मजदूर, खिलाड़ी, सैनिक इत्यादि, सभी ने अपने-अपने कार्य क्षेत्र में अभ्यास द्वारा शारीरिक शक्ति को बनाया है। इसका सम्बन्ध मुख्य रूप से शरीर को देख इसकी शारीरिक शक्ति या साहस का पता लगाया जा सकता है।
जीवन के अलग-अलग परिस्थितियों में शारीरिक साहस की आवश्यकता होती है। जो अपने अधिकारों को प्राप्त करने के लिए मेहनत और शारीरिक काम करके अपने लक्ष्य को पाना ही शारीरिक सहस होता है। इस प्रकार की साहस हमारे शरीर के रूप में होती है।
नैतिक साहस लोगों की मानसिक शक्ति को दर्शाता है। इस प्रकार का गुण शारीरिक साहस से बिल्कुल अलग होती है। यह केवल उन्हीं लोगों के पास होता है, जिनका इरादा सच्चा और मजबूत हो। ऐसे व्यक्ति समाज के लिए प्रेरणा और सम्मान के पात्र होते है।
मुख्य रूप से नैतिक साहस आपकी बुद्धिमत्ता या आपकी सोच के बारे में होती है। किसी भी कार्य को करने में जोखिमों, गलतियों, परिणाम इत्यादि की कल्पना पहले से ही कर लेना नैतिक साहस का परिचय देते है। महात्मा गाँधी नैतिक साहस के एक विस्मित परिचय थे।
हम सभी ने लोगों को किसी नेता या अन्य लोगों का अनुसरण करते हुए अवश्य देखा होगा, भले ही वो जिसका अनुसरण करते है वो गलत ही क्यों न हो। ऑफिस में बॉस की हर बात को स्वीकारना, ये सब अपनी नौकरी के खोने के डर से किया जाता है। यदि आपके अंदर नैतिक साहस या हिम्मत है तो आप अपने इस डर पर काबू पा सकते है। नैतिक साहस हमेशा गलत बात को नकारता है और परिणामों के गलत होने पर उनका साहस हमेशा अडिग रहता है।
हम जीवन में हर जगह शारीरिक साहस या शक्ति को लागू नहीं कर सकते है। समस्याओं से निपटने के लिए बुद्धि या नैतिक साहस का प्रयोग किया जाना चाहिए, लेकिन आज के समाज में नैतिक साहस की कमी देखने को मिलती है। हर कोई बस शारीरिक जोर दिखाने की बात करता है, जब कि हमें परिस्थिति को देखते हुए नैतिक साहस का परिचय देना चाहिए। यदि दो पक्ष लड़ने को तैयार है, जिसमें एक शारीरिक मजबूत और दूसरा कमजोर तो उस स्थिति में लड़ने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें अपने नैतिक साहस का परिचय देना होगा और इस लड़ाई से बचकर आपस में प्यार और मेलजोल से रहने के लिए बुध्दि का इस्तेमाल करना चाहिए।
शारीरिक साहस की तुलना में नैतिक साहस कितना महत्वपूर्ण होता है?
शारीरिक और नैतिक दो प्रकार के साहस मनुष्यों में होते है, किसी के पास शारीरिक साहस होता है तो किसी के पास नैतिक साहस। परिस्थिति के हिसाब से ये उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वो किस साहस का परिचय देता है। नैतिक साहस वह गुण नहीं है जो सभी के अंदर निहित होता है। कुछ खास लोगों में ही ये मौजूद होता है, और ऐसे गुणों वाले लोग अपने नैतिक सिद्धांतो का पालन करना कभी नहीं छोड़ते है चाहे वो किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो।
समाज में नैतिक साहस वाले लोगों की बहुत कमी है। इस प्रकार की शक्ति हर व्यक्ति में निहित नहीं होती है की वो झूठ/गलत के खिलाफ अपनी आवाज़ उठा सके।
नैतिक साहस उन लोगों में मौजूद होती है जिनके अंदर डर और लालच नाम की कोई चीज नहीं होती। ऐसे लोग जीवन में हमेशा सही काम करते है, उन्हें किसी का कोई भय नहीं होता है। शारीरिक शक्ति/साहस को अपनाकर व्यक्ति उचाई तक तो पहुंच सकता है, पर बिना नैतिक क्षमता के वो वह सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता जो एक क्षमा करने वाला नैतिक व्यक्ति प्राप्त कर सकता है।
स्वामी विवेकानंद, मदर टेरेसा, महात्मा गांधी, नेल्सन मंडेला इत्यादि कुछ ऐसे महान व्यक्ति हुए जिन्होंने नैतिक साहस का बेहतरीन परिचय दिया। नैतिक शक्ति के साथ ही महात्मा गांधी ने भारत को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करवाया। बिना किसी हथियार के बड़ी बहादुरी के साथ उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लिया। महात्मा गांधी को कोई उनकी शारीरिक खूबसूरती से याद नहीं करता, बल्कि उनके महान विचारों और सिद्धांतों के कारण याद करते है। वो अपने सिद्धांतों और सत्यता के लिए हमेशा अडिग रहे है।
नैतिक साहस के साथ दुनिया भर में बदलाव लाया जा सकता है पर शारीरिक शक्ति से कोई बदलाव नहीं लाया जा सकता। शारीरिक साहस को बनाने के लिए और उसका प्रदर्शन करने के लिए भी नैतिक साहस की आवश्यकता होती है। इस प्रकार से नैतिक साहस शारीरिक साहस से अधिक महत्वपूर्ण होती है।
निष्कर्ष
शारीरिक साहस की अपेक्षा नैतिक साहस हमें अत्यधिक मजबूत बनाती है। यह हमें परेशानी या विकट परिस्थिति से लड़ने के लिए मजबूत बनाती है। शारीरिक साहस को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है परन्तु इसका मिलन नैतिक साहस के साथ हो जाये तो यह उस व्यक्ति को पूर्ण बनाती है। हमें अपने आसपास हो रहे गलत और अन्याय को खत्म करने के लिए नैतिकता को अपने अंदर लाना होगा और समाज को अन्याय से मुक्त कर एक बेहतर समाज की स्थापना करनी होगी।