हर कोई पटाखों के द्वारा उत्पन्न होने वाले शानदार रंगो और आकृतियों से प्यार करता हैं। यहीं कारण है कि यह अक्सर त्योहारों, मेलों और शादियों जैसे कार्यों के जश्न में उपयोग किए जाते हैं। हालांकि, आतिशबाजी के कारण वायु और ध्वनि प्रदूषण में भी वृद्धि होती हैं जोकि बहुत हानिकारक हो सकती हैं। नीचे पटाखों और आतिशबाजी द्वारा होने वाले प्रदूषणों पर कुछ निबंध दिये गयें हैं, जो आपकी परीक्षाओं और आपके स्कूली कार्यों में आपकी आपकी सहायता करेंगे।
प्रस्तावना
दिवाली भारतीयों के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है और हमारे लिए लगभग कोई भी त्योहार आतिशबाजी के बिना पूरा नही माना जाता है। लोग पटाखों और आतिशबाजी को लेकर इतने उत्सुक होते हैं कि वह दिवाली के एक दिन पहले से ही पटाखे फोड़ना शुरु कर देते हैं और कई बार तो लोग हफ्तों पहले ही पटाखे फोड़ना शुरु कर देते है। भले ही पटाखे आकर्षक रंग और कलाकृतियां उत्पन्न करते हो पर यह कई प्रकार के रसायनों का मिश्रण होते हैं, जिनके जलने के कारण कई प्रकार के प्रदूषण उत्पन्न होते है।
वायु प्रदूषण
पटाखों में मुख्यतः सल्फर के तत्व मौजूद होते हैं। लेकिन इसके अलावा भी उनमें कई प्रकार के बाइंडर्स, स्टेबलाइजर्स, ऑक्सीडाइज़र,रिड्यूसिंग एजेंट और रंग मौजूद होते हैं। जोकि रंग-बिरंगी रोशनी पैदा करते हैं यह एंटीमोनी सल्फाइड, बेरियम नाइट्रेट, एल्यूमीनियम, तांबा, लिथियम और स्ट्रोंटियम के मिश्रण से बने होते हैं।
जब यह पटाखें जलाये जाते हैं तो इनमें से कई प्रकार के रसायन हवा में मिलते हैं और हवा के गुणवत्ता को काफी बिगाड़ देते हैं। क्योंकि दिवाली का त्योहार अक्टूबर या नवंबर में आता है जिस समय भारत के ज्यादेतर शहरों में कोहरे का मौसम रहता है और यह पटाखों से निकलने वाले धुओं के साथ मिलकर प्रदूषण के स्तर को और भी ज्यादा बढ़ा देता है।
बड़ो के अपेक्षा बच्चे इसके हानिकारक प्रभावों द्वारा सबसे ज्यादे प्रभावित होते हैं। लेकिन पटाखों से निकलने वाले रसायन सभी के लिए हानिकारक होते हैं और अल्जाइमर तथा फेफड़ो के कैंसर जैसी गंभीर बीमारियां का कारण बन सकते हैं।
ध्वनि प्रदूषण
हमारे सबसे पसंदीदा पटाखों की धूम-धड़ाम हमारे कानों को क्षतिग्रस्त करने और ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाने का कार्य करते हैं। मनुष्य के कान 5 डेसीबल के आवाज को बिना किसी के नुकसान के सह सकते हैं। लेकिन पटाखों की औसत ध्वनि स्तर लगभग 125 डेसीबल होती है। जिसके कारण ऐसे कई सारी घटनाएं सामने आती है जिनमें पटाखे फूटने के कई दिनों बाद तक लोगों के कानों में समस्या बनी रहती है।
निष्कर्ष
प्रकाश पर्व दिवाली पर पटाखों ने निश्चित रूप से हमारे लिए चीजों को अंधकारमय कर दिया है। यह प्रदूषण इस तरह के स्तर तक पहुंच गया है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने दिवाली पर पटाखों का उपयोग करने पर प्रतिबंध जारी किया है। इसके कारण पर्यावरण को कितना नुकसान पहुचता है इसकी पुष्टि इस तथ्य से होती है कि इस प्रदूषण को समाप्त करने में लगभग 5000 पेड़ो को आजीवन का समय लगेगा। हमें अपने स्वास्थ्य के साथ-साथ अपने बच्चों के स्वास्थ्य पर इनके होने वाले प्रभावों के विषय में सोचना होगा तथा इनके उपयोग को कम करने के लिए जरुरी कदम उठाने होंगे।
प्रस्तावना
दिवाली प्रकाश का त्योहार होने के साथ ही बुराई पर अच्छाई के जीत का प्रतीक भी है। लेकिन आजकल यह यह समृद्धि और विलसता दिखाने का जरिया बन गया है। यह खर्च केवल कपड़ो, समानों के खरीददारी और घरों की सजावट तक ही सीमित नही रह गया है बल्कि की लोग अब भारी मात्रा में पटाखों के खरीददारी पर भी खर्च करते हैं। इस खर्च के काफी भीषण परिणाम है ना सिर्फ हमारे जेब पर बल्कि की पर्यावरण पर भी।
दिवाली पर पटाखों के कारण होने वाला वायु प्रदूषण
दिल्ली जोकि भारत की राजधानी है, वह विश्व के सबसे प्रदूषित शहरों में एक है। यहाँ कि हवा यातायात, उद्योगों तथा बिजली उत्पादन गृहों से निकलने वाले धुएं और हरियाणा, उत्तर प्रदेश तथा पंजाब जैसे प्रदेशों के कृषि अपशिष्ट जलाने के कारण पहले से ही दोयम दर्जे की है।
जब दिवाली का त्योहार निकट आता है तो यहां की दशा और भी ज्यादा दयनीय हो जाती है क्योंकि हवा में प्रदूषण की मात्रा काफी ज्यादे बढ़ जाती है। इसके साथ ही ठंड का मौसम होने के कारण पटाखों से निकलने वाले तत्व धुंध में मिलकर इसे और भी ज्यादे खतरनाक और प्रदूषित बना देते हैं। जिनके कारण फेफड़े तथा अन्य स्वास्थ्य संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो जाती है।
केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के 2015 के राष्ट्रीय गुणवत्तासूचकांक के आकड़ो से पता चला था कि लगभग हमारे देश आठ राज्य दिवाली की रात होने वाली आतिशबाजी के कारण सबसे ज्यादे प्रभावित होते हैं। जिससे इनके क्षेत्रों में वायु की गुणवत्ता काफी निचले स्तर पर पहुंच जाती है। सिर्फ दिल्ली में ही यह आकड़ा PM 10 तक पहुंच जाता है जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी हानिकारक है क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जो मानक तय किया गया है वह इससे लगभग 40 गुना कम है। यह प्रदूषण स्तर काफी ज्यादे है, यही कारण है की हाल के दिनों में श्वसन सम्बंधित बीमारियों में काफी वृद्धि देखने को मिली है।
निष्कर्ष
जो लोग पटाखे जलाना चाहते है, वह इसके विरुद्ध बनने वाले नियमों को लेकर काफी नाराज हो जाते है और पटाखों के प्रतिबंध में तर्क देते हैं कि इनके द्वारा उत्पन्न होने वाला प्रदूषण ज्यादे दिन तक नही रहेगा। लेकिन ऐसा तर्क देने वाले लोग यह भूल जाते हैं कि उन दिनों के दौरान हवा इतनी प्रदूषित रहती है कि लोगो के स्वास्थ्य पर गंभीर परिणाम होते हैं, खासतौर से बच्चों और बुजर्गों में इनका लंबे समय तक नकरात्मक स्वास्थ्य परिणाम देखने को मिलते हैं। ज्यादे से ज्यादे जागरुकता और बेहतर कानून ही पटाखों द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से लड़ने का सबसे अच्छा तरीका है।
प्रस्तावना
दिवाली की पूरी चमक-धमक, जोकि आज के समय में एक बहस और चर्चा का विषय बन गया है। दिवाली के विषय में होने वाली चर्चाओं में मुख्यतः पटाखों के दुष्प्रभावों का मुद्दा छाया रहता है। हाल के शोधों से पता चला है कि जब लोग प्रतिवर्ष पटाखे जलाते हैं तो उससे उत्पन्न होने वाले कचरें के अवशेषों का पर्यावरण पर बहुत ही हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होते हैं।
वायु पर आतिशबाजी के होने वाले प्रभाव
फूटते हुए पटाखें काफी ज्यादे मात्रा में धुआं उत्पन्न करते हैं, जो समान्य वायु में मिश्रित हो जाती है और दिल्ली जैसे शहरों में जहां हवा पहले से ही अन्य कारणों द्वारा काफी प्रदूषित है। जब पटाखों का धुआं हवा के साथ मिलता है तो वह वायु की गुणवत्ता को और भी ज्यादे खराब कर देता है, जिससे की स्वास्थ्य पर इस प्रदूषित वायु का प्रभाव और भी ज्यादे हानिकारक हो जाता है। आतिशबाजी द्वारा उत्पन्न यह छोटे-छोटे कण धुंध में मिल जाते हैं और हमारे फेफड़ो तक पहुंचकर कई सारे बीमारियों का कारण बनते हैं।
मानव स्वास्थ्य पर आतिशबाजी के होने वाले प्रभाव
पटाखों में बेरियम नाइट्रेट, स्ट्रोंटियम, लिथियम, एंटीमोनी, सल्फर, पोटेशियम और एल्यूमिनियम जैसे हानिकारक रसायन मौजूद होते हैं। यह रसायन हमारे स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं। एंटीमोनी सल्फाइड और एल्यूमीनियम जैसे तत्व अल्जाइमर रोग का कारण बनते है। इसके अलावा पोटेशियम और अमोनियम से बने परक्लोराइट फेफड़ों के कैंसर का भी कारण बनते हैं। बेरियम नाइट्रेट श्वसन संबंधी विकार, मांसपेशियों की कमजोरी और यहां तक कि गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल जैसी समस्याओं का कारण बनते है तथा कॉपर और लिथियम यौगिक हार्मोनल असंतुलन का भी पैदा कर सकते हैं। इसके साथ ही यह तत्व जानवरों और पौधों के लिए भी हानिकारक हैं।
जावनरों पर पटाखों के होने वाले प्रभाव
दिवाली भले ही हम मनुष्यों के लिए एक हर्षोउल्लास का समय हो पर पशु-पक्षियों के लिए यह काफी कठिन समय होता है। जैसा की पालतू जानवरों के मालिक पहले से ही जानते होंगे की कुत्ते और बिल्ली अपने श्रवणशक्ति को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं। यही कारण है कि तेज आवाजें सुनकर वह काफी डर जाते हैं और पटाखों द्वारा लगातार उत्पन्न होने वाली तेज आवाजों के कारण यह निरीह प्राणी काफी डरे सहमें रहते हैं। इस मामले में छुट्टे जानवरों की दशा सबसे दयनीय होती है क्योंकि ऐसे माहौल में उनके पास छुपने की जगह नही होती है। कई सारे लोग मजे लेने के लिए इन जानवरों के पूछ में पटाखें बांधकर जला देते हैं। इसी तरह चिड़िया भी इस तरह की तेज आवाजों के कारण काफी बुरी तरीके से प्रभावित होती हैं, जोकि उन्हें डरा देता हैं। इसके साथ ही पटाखों के तेज प्रकाश के कारण उनके रास्ता भटकने या अंधे होने का भी खतरा बना रहता है।
निष्कर्ष
भलें ही रंग-बिरंगी और तेज आवाजों वाली आतिशबाजियां हमें आनंद प्रदान करती हो, लेकिन उनका हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, हमारे वायुमंडल तथा इस ग्रह के अन्य प्राणियों पर काफी हानिकारक प्रभाव पड़ता हैं। इनके इन्हीं नकरात्मक प्रभावों को देखते हुए हमें पटाखों के उपयोग को कम करना होगा, क्योंकि हम क्षणिक आनंद हमारे लिए भयंकर दीर्घकालिक दुष्परिणाम उत्पन्न कर सकता है।
प्रस्तावना
दिवाली लगभग सभी भारतीयों और खासतौर से हिंदु, जैन और सिख धर्मालम्बियों के लिए एक प्रमुख त्योहार है। यह त्योहार प्रकाश का पर्व है और बुराई पर अच्छाई के जीत को प्रदर्शित करता है। कई दशकों तक यह त्योहार दीप जलाकर मनाया जाता था, यही कारण है इसे दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन, अब दिवाली का त्योहार प्रकाश के त्योहार से बदलकर आवाज और शोर-शराबे का त्योहार बन गया है, अब हर गली-मुहल्ले के घरों में लोग पटाखें जलाते हैं। क्योंकि यह पटाखें कई सारे रसायनों के मिश्रण से बने होते है, इसलिए जलाने पर यह हानिकारक रसायन वायु में मिल जाते हैं। यही कारण है कि आज के समय में यह एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है।
दिवाली के दौरान आतिशबाजी से होने वाले प्रदूषण के तथ्य
जब पटाखें जलाए जाते हैं, तो यह हवा में कई प्रदूषक मुक्त करते हैं। इनमें से कुछ प्रदूषक लीड, नाइट्रेट, मैग्नीशियम और सल्फर डाइ ऑक्साइड आदि हैं। इसके अलावा, आतिशबाजी और पटाखों के जलने से विभिन्न धातुओं जैसे स्ट्रोंटियम, एंटीमोनी और एल्यूमिनियम के छोटे-छोटे कणों भी मुक्त होते हैं। दिवाली के कई दिन पहले और त्योहार के दिन तक इतने ज्यादे पटाखे जलाये जाता हैं कि वायु का स्तर काफी निचले स्तर पर चला जाता है। इन कणों को पीम 2.5 कहा जाता है, यह नाम उन पार्टिकुलेट को दिया गया है जो 2.5 माइक्रोन या उससे कम माप के होते हैं।
जब दिल्ली जैसे शहर में जहां के वायु की गुणवत्ता पहले से ही इतनी खराब है, वहां आतिशबाजी के द्वारा जब यह प्रदूषक बढ़ जाते हैं तो वायु की दशा और भी दयनीय और हानिकारक हो जाती है। यद्यपि भले ही दीवाली साल में केवल एक बार मनाई जाती है, लेकिन फिर ऐसा देखा गया है कि कई लोग इस त्योहार के जश्न में हफ्तों पहले से ही पटाखें जलाना शुरु कर देते हैं। दिवाली के दिन तो आतिशबाजी की संख्या बहुत ही बढ़ जाती है। नतीजतन, दिवाली के त्योहार के दौरान कई सारे बड़े शहरों के वायु की गुणवत्ता काफी खराब हो जाती है।
पटाखों में पोटेशियम, सल्फर, कार्बन, एंटीमोनी, बेरियम नाइट्रेट, एल्यूमीनियम, स्ट्रोंटियम, तांबे और लिथियम जैसे तत्व होते हैं। जब वे जलते हैं, तो यह उत्सर्जित रसायन हवा में धुएं या पिर लौह कड़ों के रुप में मिल जाते है। भले ही यह कण एक हफ्ते से अधिक समय तक वायुमंडल में नहीं रह सकते हैं, पर जब लोग इस हवा में सांस लेते हैं तो इसके उनपर कई दीर्घकालिक नकरात्मक प्रभाव पड़ते है। ऐसा ही एक मामला 2016 में दिल्ली में देखने को मिला जब दिवाली के बाद बढ़े हुए प्रदूषण के कारण दिल्ली में कई दिनों तक विद्यालयों को बंद करना पड़ा था।
पटाखों के फूटने के बाद इसके सभी कण हवा में नहीं रहते हैं। उनमें से बहुत से जमीन पर वापस आ जाते हैं और मिट्टी में मिल जाते हैं और अन्त में यह कण फसलों में अवशोषित हो जाते हैं, और उन्हें नुकसान पहुंचाने के साथ ही मानव उपभोग के लिए भी खतरनाक बना देते हैं।
अगर नदियों और झीलों जैसे जल स्त्रोतों के आस-पास या उससे ऊपर आतिशबाजी की जाये तो पटाखों से निकले हानिकारक कण उनमें मिल जाते हैं। यह प्रदूषण के स्तर पर निर्भर करता है, यदि प्रदूषण मात्रा अधिक हो जाये तो यह पानी को हानिकारक बना देता है और यह हमारे उपयोग के लिए भी उपयुक्त नही रह जाता।
पर्यावरण पर आतिशबाजी के प्रभाव का एक अन्य पहलू, जिसे अक्सर अनदेखा किया जाता है या बहुत ही हल्के में लिया जाता है वह आतिशबाजी और पटाखों के जलने के कारण उत्पन्न होने वाला कचरा है। दिवाली की लोकप्रियता और इसे मनाने वाले लोगों की संख्या जैसे दो मुख्य पहलुओं को ध्यान में रखते हुए हम कह सकते हैं कि दिवाली पर पटाखें फोड़ने के कारण काफी ज्यादे मात्रा में कचरा उत्पन्न होता होगा। यदि दिल्ली और बैंगलोर जैसे शहरों के दैनिक कचरा निस्तारण संसाधनो की बात करें तो वह पहले से ही अपर्याप्त है और दिवाली के दौरान आतिशबाजी के कारण भारी मात्रा में उत्पन्न होने वाले कचरे के कारण यह समस्या और भी गंभीर हो जाती है।
निष्कर्ष
दुर्भाग्य से इन तथ्यों को जानने के बाद भी लोग हर दिवाली पर पटाखों को जलाना जारी रखते हैं। इस मामले को लेकर कई बार न्यायपालिका वायु गुणवत्ता को और भी ज्यादे खराब होने से बचाने के लिए पटाखों के उपयोग को प्रतिबंधित कर चुका है। पर्यावरण के प्रति इस जिम्मेदारी का बोझ सरकार और जनता दोनो के उपर है और हम चाहें तो दिवाली के इस खूबसूरत और प्रकाशमयी त्योहार को और भी खूबसूरत बना सकते हैं।
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