दिवाली उत्सव का समय होता है, यह वह समय होता है जब हम अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। इस पर्व पर चारो ओर मनोरंजन और प्रेम का माहौल होता है। लेकिन इन खुशियों के बीच एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात भूल जाते हैं कि उत्सव के नाम पर अंधाधुंध पटाखे जलाना हमारी माँ तुल्य प्रकृति के लिए कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न करता है। यही कारण है कि दिवाली के दौरान और इसके पश्चात प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है।
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दिवाली का त्योहार हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह हर वर्ष बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान मोमबत्ती तथा दिपों द्वारा घरों, बजारों तथा दुकानों को सजाना, रंगोली बनाना, मिठाई तैयार करना। दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलना, तोहफे भेंट करना, लक्ष्मी तथा गणेश जी की पूजा करना और पटाखे जालाना आदि दिवाली के त्योहार के प्रमुख भाग हैं।
यह सारे कार्य सदियों से हमारे परंपरा का हिस्सा रहे हैं, परन्तु पटाखे जलाने का प्रचलन काफी बाद में शुरु हुआ। भले ही यह दिवाली उत्सव के खुशी को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता हो, पर यह अच्छा कार्य नही है क्योंकि इसके कारण दिवाली के त्योहार की खुबसुरती छिन जाती और आलोचना के कारण इस त्योहार के साख पर भी बट्टा लगता है। इसके साथ ही पटाखों के द्वारा पृथ्वी के प्रदूषण स्तर में भी वृद्धि होती है।
1.वायु प्रदूषण
दीपावली के त्योहार के दौरान वायु प्रदूषण का स्तर काफी ज्यादा बढ़ जाता है। पटाखों के जलने के कारण निकलने वाले धुएँ के कारण वायु काफी प्रदूषित हो जाती है। जिससे लोगों को सांस लेने में भी काफी दिक्कत होती है। भारी मात्रा में पटाखों को जलाने का यह प्रभाव दिवाली के कई दिनों बाद तक बना रहता हैं। जिसके कारण कई सारी बीमारिया उत्पन्न होती हैं और इसके कारण फेफड़े सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
2.भूमि प्रदूषण
जले हुए पटाखों के बचे हुए टुकड़ो के कारण भूमि प्रदूषण की समस्या भी उत्पन्न होती है और इन्हे साफ करने में कई दिन समय लगता है। इनमें से कई टुकड़े नान बायोडिग्रेडिल होते है और इसलिए इनका निस्तारण करना इतना आसान नही होता है तथा समय बितने के साथ ही यह और भी जहरीले होते जाते हैं और भूमि प्रदूषण की मात्रा में वृद्धि करते हैं।
3.ध्वनि प्रदूषण
दीपावली के दौरान ध्वनि प्रदूषण अपने चरम पर होता हैं। पटाखे सिर्फ उजाला ही नही बिखरते है बल्कि इसके साथ ही वह काफी मात्रा में धुआ और ध्वनि प्रदूषण भी उत्पन्न करते हैं। जोकि मुख्यतः बुजुर्गों, विद्यार्थियों, जानवरों और बिमार लोगों के लिए कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न करता है। पटाखों की तेज आवाजे काफी परेशान करने वाली होती हैं। पटाखों के तेज धमाकों के वजह से जानवर इससे ज्यादा बुरे तरीके से प्रभावित होते हैं।
निष्कर्ष
हमारे द्वारा पटाखे जलाने के कारण पर्यावरण पर कई गंभीर प्रभाव पड़ रहे हैं। इसके साथ ही यह पृथ्वी के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है। यह काफी विडंबनीय ही है कि लोग पटाखों के इन दुष्प्रभावों को जानने के बाद भी इनका उपयोग करते हैं। यह वह समय है, जब हमें अपने आनंद के लिए पटाखे जलाने को त्यागकर बड़े स्तर पर इसके दुष्प्रभावों के विषय में सोचने की आवश्यकता हैं।
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प्रस्तावना
दिवाली प्रकाश का त्योहार है और वर्ष भर लोग इसका इंतजार करते हैं। इस दौरान लोग अपने घरो, कार्यलयों और दुकानों की सफाई किया करते हैं। इसके साथ ही लोग अपने घरों तथा स्थानों को सजाने के लिए नए पर्दे, बिस्तर की चादरें तथा अन्य सजावटी वस्तुओं की खरीदारी करते हैं। दिवाली के दिन को एक बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है और कई लोग इसे अपने नए घर में स्थानांतरित होने, व्यापार और सौदा करने तथा शादी की तारीख को तय करने जैसे कुछ नया शुरू करने के लिए सबसे उपयुक्त दिन मानते हैं।
दिवाली के इस उत्सव दौरान कई प्रकार के रिवाज प्रचलित हैं, पटाखे फोड़ना उन्हीं में से एक है। एक ओर जहां अन्य सभी परंपरा और अनुष्ठान इस उत्सव को और भी ज्यादा खूबसूरत बनाते हैं, वही पटाखे फोड़ने जैसे कार्य इसकी साख पर बट्टा लगाने का काम करते हैं। यह रिवाज दिवाली उत्सव का दुखद हिस्सा है क्योंकि यह ना सिर्फ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है बल्कि कई स्वास्थ्य समस्याओं को भी जन्म देता है।
पटाखों को ‘ना’ कहिये
दीपावली पर भारी मात्र में पटाखों को जलाया जाता है। पहले से प्रदूषित वातावरण पटाखों द्वारा उत्सर्जित धुएं के कारण और भी ज्यादाप्रदूषित हो जाता है। जिससे सांस लेने में भी मुश्किल होने लगती है। पटाखें फोड़ने से कई अन्य स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न होती हैं जैसे आंखों में जलन, आंखों का लाल होना और त्वचा और फेफड़ों के संक्रमण आदि। इसके अलावा, इनकेद्वारा उत्पन्न होने वाले ध्वनि प्रदूषण का विशेष रूप से नवजात बच्चों, वृद्धोंतथाजीव-जन्तुओं पर काफी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रेम फैलाइये प्रदूषण नही
इस त्योहार की सबसे बड़ी खूबसुरती यह है कि यह हमें एक-दूसरे के पास लाता है। दिवाली के त्योहार के दौरान लोग एक-दूसरे से मिलते है तथा उपहारों का आदान-प्रदान करते हैं। कई लोग इस दिन का जश्न मनाने के लिए अपने मित्रों और परिवारजनो तथा रिश्तेदारों के साथ जलसों का भी आयोजन करते हैं। यह त्योहार लक्ष्मी-गणेश जी के पूजा के साथ शुरु होता है। इसके बाद लोग दिया और मोमबत्ती जलाना शुरु करते हैं।
हमें इस त्योहार का अपने प्रियजनो के साथ प्रेम बढ़ाने और उनके साथ अच्छा समय व्यतीत करने के लिए करना चाहिए। अपने दोस्तों और परिवारजनों के साथ खाना खाना, हंसी-मजाक करना और उनके साथ बैठकर बाते करना पटाखे फोड़कर प्रदूषण फैलाने के अपेक्षाकृत कही ज्यादा आनंददायक हो सकता है।
हम कह सकते है कि दिवाली प्रेम और खुशी फैलाने का समय होना चाहिए, प्रदूषण फैलाने का नही।
निष्कर्ष
दिवाली एक बहुत ही खूबसूरत त्योहार है और हमे पटाखों के उपयोग को ना कर कर इसकी खूबसूरती और पवित्रता को ऐसे ही बनाए रखना चाहिए। हम सभी को पर्यावरण की रक्षा के लिए पटाखों को ना कहना चाहिए क्योंकि प्रदूषण मुक्त दिवाली ही मनुष्य और पर्यावरण के लिए सबसे उत्तम उत्सव हो सकता है।
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प्रस्तावना
ग्लोबल वार्मिंग की समस्या वायुमंडल में हानिकारक गैसों की बढ़ती मात्रा का परिणाम है। दिवाली पर पटाखे जलाने का भी बिल्कुल वैसा ही प्रभाव होता है। इन पटाखों को जलाने से उत्सर्जित धुआं बेहद खतरनाक होता है तथा यह वायुमंडल में हानिकारक गैसों के स्तर में काफी भाषण वृद्धि करता हैं। जिससे ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव में वृद्धि हो रही है।
वाहन प्रदूषण और औद्योगिक प्रदूषण को नियंत्रित करना काफी मुश्किल है, वही दूसरी तरफ दिवाली पर पटाखों द्वारा उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को हम आसानी से नियंत्रित कर सकते हैं क्योंकि पटाखे जलाना सड़को पर वाहन चलाने और कारखानों में वस्तुओं के उत्पादन जितना महत्वपूर्ण नही है।
दीपावली पर होने वाले प्रदूषण के कारण ग्लोबल वार्मिंग में होने वाली वृद्धि
कई बार लोग इस बात पर बहस करते हैं कि आखिर दिवाली पर पटाखे ना जलाने से कौन सा विशेष प्रभाव पड़ेगा। ज्यादातर लोगों का मानना है कि दिवाली के एक दिन पटाखे जलाने से हमारे ग्रह के वातावरण पर कोई खास प्रभाव नही पड़ेगा, लेकिन यह सत्य नही है। आकड़ो से पता चलता है कि दिवाली के दिन पटाखे जलाने के कारण कई सारी गड़ियों के सड़क पर कई दिनों तक के चलने के बराबर का प्रदूषण उत्पन्न होता है। इसलिए यह ग्लोबल वार्मिंग की मात्रा में भी प्रतिवर्ष काफी वृद्धि करता है।
पटाखों के द्वारा उत्पन्न होने वाला भयंकर धुआं
पटाखे जलाने के कारण भारी मात्रा जहरीला धुआं उत्पन्न होता है। पटाखे जलाने से उत्पन्न यह धुआं कारखानों और गाड़ियों से निकलने वाले धुएं से भी अधिक खतरनाक होता है। यह वायुमंडल को काफी बुरे तरीके से प्रभावित करता है और कई सारे वायु जनित बीमारियों का कारण बनता है। इस हानिकारक धुएं के कारण लोगो में श्वास संबंधित के साथ ही अन्य कई बीमारियां भी उत्पन्न होती है। इसके साथ ही पशु-पक्षी और अन्य कई जीव-जन्तु पटाखों द्वारा उत्पन्न होने वाले हानिकारक धुएं से बुरी तरीके से प्रभावित होते है।
छोटे कदम – बड़े परिवर्तन ला सकते हैं
पटाखों को फोड़ने से न सिर्फ हवा की गुणवत्ता में बिगड़ती है बल्कि यहहमारे स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। तो भला हमें ऐसी गतिविधि में क्यों शामिल होना चाहिए,जिससे पर्यावरण के साथ-साथ हमारे जीवन पर भी इतने गंभीर दुष्प्रभाव पड़ते हो?
पटाखों के बिना दीवाली मनाकर हम वातावरण को स्वस्थ्य करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। दिवाली एक सुंदर और मनमोहक त्यौहार है। कई सारे रिवाज और परंपराएं इस त्यौहार का एक हिस्सा हैं। इस दिन लोग पारंपरिक कपड़े पहननेऔरअपने घरों को सजाने और रोशन करने का काम करते हैं तथा अपने प्रियजनों के साथ ताश खेलने, घर पर मिठाई तथा रंगोली बनाने जैसे मनोरंजक कार्यों में हिस्सा लेते हैं।
और इस सूची से आतिशबाजी को हटाने के बाद भीहमारे मनोरंजन पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। लेकिन हमारा यह फैसला पर्यावरण के लिए बहुत अच्छा साबित होगा। हमें स्वंय पटाखे फोड़ने बंद करने के साथ ही हमारे आस-पास के लोगों को भी इसके लिए प्रेरित करना होगा। इसके साथ ही हमें बच्चों को भी विशेष रूप से पर्यावरण पर पटाखों के हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित करना चाहिए। हमारे तरफ से किये गये यह छोटे-छोटे प्रयास बड़ा अंतर ला सकते हैं।
निष्कर्ष
दिवाली उत्सव का समय होता है। यह लोगो के चेहरों पर खुशी और मुस्कान लाने का समय होता है। पर्यावरण को प्रदूषित करके हमें इस मनमोहक पर्व का मजा खराब नही करना चाहिए। हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारे द्वारा किये जाने वाले यह छोटे-छोटे कार्य वैश्विक चिंता का कारण बन गये हैं। इनके द्वारा ग्लोबल वार्मिंग में भी काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिल रही है, जोकि आज के समय में पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा चिंता का कारण है। इसीलिए हमें स्वंय अपनी बुद्धिमता और विवेक का इस्तेमाल करते हुए पटाखों के उपयोग को बंद कर देना चाहिए।
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प्रस्तावना
दिवाली हिंदु धर्मके सबसे महत्वपूर्ण और प्रतीक्षित त्यौहारों में से एक है। यह त्योहार प्राचीनकाल से ही काफी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लोग देवी लक्ष्मी का स्वागत करने के लिए उत्सव से पहले अपने घरों की साफ-सफाई करना शुरू कर देते हैं। इस दिन घरो तथा दुकानों को प्रकाश, मोमबत्ती और दिपों को प्रकाशित करके सजाया जाता है।
इस दिन चारों ओर खुशी, उमंग देखने को मिलता है। इस त्यौहार के विषय में सिर्फ पटाखे जलाने जैसी एक चीज को छोड़कर बाकी सभी चाजे आनंद और खुशी से भरपूर हैं। दिवाली के उत्सव पर पटाखों को जलाने के वजह से प्रदूषण के मात्रा में काफी वृद्धि होती जा रही है। जिसके कारण यह हमारे पर्यावरण को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर रहा है और जीवित प्राणियों के लिए कई सारी समस्याएं उत्पन्न कर रहा है।
दीपावली पर होने वाले प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव
यहां दीपावली पर होने वाले प्रदूषण के नकरात्मक प्रभावों के विषय में बताया गया है, जो कि पर्यावरण और पृथ्वी के जीवन को प्रभावित करते है।
दीवाली पर पटाखे जलाने से उत्पन्न होने वाला धुएं वायु में मिलकर वायु प्रदूषण के स्तर और मात्रा को बढ़ाता है। यह पर्यावरण को गंभीर रूप से प्रभावित करता है। यह त्योहार सर्दी के मौसम की शुरुआत से ठीक पहले आता है। इस समय के आसपास वातावरण धुंध भरा रहता है। पटाखों द्वारा उत्पन्न धुआं धुंध में मिल जाता है और प्रदूषण के प्रभाव को और भी ज्यादाबढ़ा देता है।
जैसे-जैसे प्रदूषण का स्तर बढ़ता है, मानव स्वास्थ्य पर भी इसका काफी बुरा प्रभाव पड़ता है। हवा नकरात्मक प्रदूषको से भर जाती है, जिसके कारण लोगो में श्वास लेने में समस्या, फेफड़ो का जाम होना, आँखों में जलन महसूस होना, आँखों का लाल होना और त्वचा संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो जाती हैं। वह लोग जो पहले से ही अस्थमा और ह्रदय रोग जैसी बीमारियों से पीड़ीत होते हैं, वह पटाखे जलाने से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से सबसे बुरे तरीके से प्रभावित होते है। इसके कारण उनका सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इसके अलावा ध्वनि प्रदूषण के कारण दिवाली का खुशनुमा त्योहार दुखदायी बन जाता है। पटाखों द्वारा उत्पन्न शोर-शराबे के कारण लोगो में बहरेपन की समस्या भी उत्पन्न हो सकती है।
मनुष्यों के तरह ही दिवाली के उत्सव के दौरान बढ़े हुए वायु प्रदूषण के कारण जानवरों को भी कई तरह के समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उनके लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है और इसके साथ ही अन्य कई तरह के बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इसके साथ ही पटाखों द्वारा उत्पन्न ध्वनि प्रदूषण के कारण भी उनपर कई नकरात्मक प्रभाव पड़ते है। यह मासूम प्राणी पटाखों के फूटने के दौरान उत्पन्न होने वाले तेज आवाज से बचने के लिए डर के मारे इधर-उधर भागते हुए देखे जाते है।
दीपावली पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपाय
यहां दिवाली पर प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय बताये गये है।
बच्चे पटाखों को जलाने को लेकर सबसे ज्यादा उत्सुक होते है। बच्चे दिवाली के एक दिन पहले से ही पटाखे जलाना शुरु कर देते है। इसके लिए अभिभावको को बच्चों को इस मुद्दे के प्रति जागरुक करना चाहिए और उन्हे इसके नकरात्मक प्रभावों के प्रति संवेदनशील बनाना चाहिए, नाकि बिना कोई कारण बताये सिर्फ मना करना चाहिए। आजकल के बच्चे काफी समझदार है और इस बात को समझाने पर वह अवश्य समझ जायेंगे की हमें पटाखे क्यों नही जलाने चाहिए।
सरकार को इसके लिए सख्त कदम उठाना चाहिए और पटाखों के उत्पादन पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। यह दिवाली पर उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को नियंत्रित करने का सबसे कारगर तरीका हो सकता है। इस समस्या पर बिना सरकार के हस्तक्षेप के काबू नही पाया जा सकता है। अगर यह संभव ना हो तो कम से कम पटाखों के उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता को नियंत्रित अवश्य किया जाना चाहिए। जो पटाखे काफी ज्यादा मात्र में वायु और ध्वनि प्रदूषण फैलाते हो, उन्हे आवश्यक रुप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए।
अगर हमें पटाखे जलाने ही है तो कम से कम हमें उनका सावधानीपूर्वक चयन करना चाहिए। उन पटाखों का चयन करना काफी अच्छा उपाय है जो ज्यादाधुआँ और तेज आवाज ना करते हो।
निष्कर्ष
हमें एक जिम्मेदार नागरिक के तरह व्यवहार करना चाहिए और पटाखे जलाने जैसे बेवकूफीपूर्ण आदत का त्याग करना चाहिए। यह वह समय है जब हमें समझना होगा की पटाखे जलाना त्योहार मनाना नही है बल्कि प्रदूषण को बढ़ावा देना है, जोकि हमारे ग्रह को गंभीर नुकसान पंहुचा रहा है।
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