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संत रविदास जयंती

संत शिरोमणि रैदास एक महान संत, ज्ञानाश्रयी शाखा के अतुल्य कवि, दार्शनिक और समाज-सुधारक थे। रैदास को रविदास, सतगुरु, जगतगुरु आदि नामों से सम्बोधित किया जाता है। संत रैदास ने सम्पूर्ण जगत को ध्रर्म के मार्ग पर चलने की सीख दी। कहते है न, जब-जब पृथ्वी पर अधर्म की विजय और धर्म का नाश होता है, तब-तब ईश्वर किसी न किसी रुप में प्रकट होकर धर्म स्थापित करते है और पुनः धरती को शुध्द और परिमार्जित करते है। रविदास का जन्म भी ऐसे ही उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ था। उस समय का समाज भी बहुत सारी कुरीतियों से पीड़ित था। जात-पात, छुआछुत और भेदभाव आदि से समाज दूषित हो गया था। संत रविदास ने इन सब कुरीतियों से समाज को उबारा और एक स्वस्थ समाज की नींव रखी।

समाज में सुधार और लोगो को भाई-चारा तथा मानवता का संदेश देने के इन्हीं कारणों से आज भी लोगो द्वारा उन्हें याद किया जाता है और उनकी याद में उनकी जयंती को पूरे देश भर में काफी भव्यता के साथ मनाया जाता है।

संत रविदास जयंती 2021 (Sant Ravidas Jayanti 2021)

वर्ष 2021 में संत रविदास जयंती 27 फरवरी, शनिवार के दिन मनाया गया।

संत रविदास का इतिहास (जीवन परिचय)

शिरोमणि संत रविदास के जन्म संवत 1433 को काशी (अब वाराणसी) में हिन्दी मास के अनुसार माघ महीने के पूर्णिमा को माना जाता है। हालांकि इस संबंध में कई मत है। उनके जन्म के सम्बंध में एक दोहा प्रचलित है –

चौदह सो तैतीस कि माघ सुदी पंदरास।

दुखियों के कल्याण हित प्रगटे रविदास।।”

इस दोहे से स्पष्ट है कि इनका जन्म दीन-दुखियों के उद्धार के लिए ही हुआ था। इनका जन्म वाराणसी के सीर गोवर्धन गाँव के एक शुद्र परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम रग्घू और माता का नाम घुरबिनिया माना जाता है। किंतु इसकी भी प्रमाणिकता संदिग्ध है। जन श्रुतियों के अनुसार आप कबीर के समकालीन माने जाते है। कुछ लोग तो यह भी कहते है, कि रैदास भी कबीर की भांति रामानंद के शिष्य थे।

रैदास का विवाह भी उस समय की परंपरा के अनुसार छोटी उम्र में हो गया था। इनकी पत्नी का नाम लोना था। इनकी दो संताने भी हुई। बेटे का नाम विजयदास और बेटी का नाम रविदासिनी था।

मीराबाई के गुरु

नाभादास कृत ‘भक्तमाल’ में रैदास के स्वभाव और जीवन के बारे में वर्णन मिलता है। ‘भक्तमाल’ से पता चलता है कि संत रैदास के वचनों से प्रेरित होकर चित्तौड़ की रानी ‘झालारानी’ इनकी शिष्या बन गयी थी। यही नहीं महान कृष्ण भक्त मीराबाई भी रैदास की शिष्या थी। मीरा ने अपने कई पदों में रैदास को गुरु के रुप में याद किया है।

गुरु रैदास मिले मोहि पूरे, धुरसे कलम भिड़ी।

सत गुरु सैन दई जब आके जोत रली।”

संत रैदास की शिक्षा

रैदास बचपन से ही बहुत होनहार थे। जितना उन्हें पढ़ाया जाता था, उससे कहीं ज्यादा वो समझ जाते थे। हाँ यह सत्य है कि, उन्हें भी उन दिनों चल रहे जात-पात से जूझना पड़ा था। शुद्र होने के कारण उच्च कुलीन (विद्यार्थी) लोग उन्हें पढ़ने में रुकावटें पैदा करते थे। लेकिन इनके गुरु पंडित शारदा नंद जी उनकी प्रतिभा को पहचान गए थे। वो रैदास को अलग से पढ़ाने लगे थे। उन्होंने बचपन में ही रैदास को देखकर भविष्यवाणी कर दी थी, कि यह बालक आगे जा कर सबके दुख दूर करेगा।

पारंपरिक व्यवसाय

इनके पिता का जुते सिलने का व्यवसाय था। रैदास जी ने भी अपना पारंपरिक व्यवसाय चुना। इन्हें बचपन से ही साधु-संतो की संगत अच्छी लगती थी। जिस कारण साधु-संतो को फ्री में ही जुते-चप्पल दे देते थे। उनका यह दयालु स्वभाव उन पर भारी पड़ा। उनके पिता ने क्रुध्द होकर उन्हें घर से निकाल दिया। लेकिन फिर भी रैदास जी ने साधु-संतो की सेवा करना नहीं छोड़ा।

वे अपना काम करते-करते लोगों को ज्ञान की बातें बताते रहते थे, जिस कारण दिनभर उनकी दुकान में लोगो का तांता लगा रहता। वो भी अपने मधुर स्वभाव और ज्ञान के कारण बहुत शीघ्र ही लोकप्रिय हो गए।

संत रैदास की समाज को सीख

संत अपना काम करते-करते दोहों को गाया करते थे, और बड़े मनोयोग से ईश्वर को याद करते और मगन होकर अपना काम करते। उनके अनुसार कर्म ही सच्ची पूजा होती है। वे समाज में फैली बुराई को देखकर बेचैन हो जाते थे। वो अपनी रचनाओं के जरिए समाज में फैली बुराईयों पर वार करते थे। साथ ही लोगों को इन बुराईयों से बचने का मार्ग भी दिखाते थे। वो धार्मिक प्रसंगो और कथाओं के जरिये लोगों का पथ प्रकाशित करते थे।

भक्ति-भावना

संत रैदास जात-पात से बहुत ऊपर थे। वे ईश्वर की भक्ति-भावना को ही श्रेष्ठ मानते थे। वे कहते थे, कि ईश्वर कर्म-कांड नहीं देखता, केवल आपकी सच्ची भावना, श्रद्धा, भक्ति और आस्था देखता है।

कृष्ण, करीम, राम, हरी, राघव, जब लग एक न पेखा।

वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहीं देखा।।“

कोई फर्क नही पड़ता कि आप कौन सी जाति-बिरादरी से है। हम सभी उस ऊपर वाले की संताने है। जब वो कोई फर्क नहीं करता तो हम कौन होते है, उस ईश्वर की रचना में भेद करने वाले।

यह बात आज भी उतनी ही प्रासंगिक है। आज भी लोगों को उनके दिखाए मार्ग पर चलने की जरुरत है।

कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावे।

तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।”

मन चंगा तो कठौती में गंगा”

एक प्रचलित जनश्रुति यह भी है कि एक बार संत रैदास के शिष्य गंगा स्नान के लिए जा रहे थे, तो उन्हें भी चलने को कहा। लेकिन रैदास को किसी को जुते सिल के देने थे, इसलिए उन्होंने जाने से मना कर दिया। क्योंकि उन्होंने किसी से वादा कर दिया था। साथ ही उन्होंने यह कहा कि, मैं तुम्हारे साथ चल भी जाऊँ, फिर भी मेरा मन तो अपने काम में ही लगा रहेगा, तो फिर गंगा स्नान का क्या लाभ। जब पुण्य मिलेगा ही नहीं। वही अगर मैं यहीं रहकर पूरे मन से अपना काम करूँ तो इस कठौती के जल से ही गंगा स्नान का पुण्य मिल सकता है। जब किसी को उनकी बात पर भरोसा नहीं हुआ, तब उन्होंने पूरे मन से अपने जुते धोने वाली कठौती में माँ गंगा का आह्वाहन किया और माँ गंगा उनकी कठौती में अवतरित हो गयी।

तभी से यह उक्ति प्रचलित हो गयी – मन चंगा तो कठौती में गंगा।

रविदास जयंती क्यों मनाई जाती है।

संत रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा को हुआ था। हर साल इसी उपलक्ष्य में संत रैदास की जयंती बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। इस वर्ष संत रविदास की जयंती शनिवार, 27 फरवरी 2021 को पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाई जाएगी। इस साल इनकी 644वीं जयंती मनाई जाएगी।

उनको मानने वाले लोग इस दिन उनकी दी हुई सीख को याद करते हैं। पूरे देश में इसे उत्सव की भांति मनाया जाता है। अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम और झाकियां निकाली जाती है।

  • वाराणसी में अलग रौनक

चूंकि वाराणसी इनका जन्म-स्थल है। अतः यहां अलग ही धूम रहती है। जगह-जगह पर भजन-कीर्तन और जुलुस निकाले जाते हैं। एवं उनके मंदिरो में विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है।

साई राम की ही भांति संत रैदास भी कहा करते थे कि सभी ईश्वर एक समान होता है, केवल उसके रुप अलग होते है। उन्होंने अपने जीवन के उदाहरण से पूरी दुनिया को दिखा दिया था कि कोई मनुष्य़ जन्म से श्रेष्ठ नहीं होता, बल्कि कर्म ऊंचे होने चाहिए। कोई किसी जाति, धर्म, संप्रदाय को मानने वाला हो, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आपके कर्म और विचार श्रेष्ठ होने चाहिए।

  • गुरु ग्रंथ साहिब में स्थान

उनकी सीख से प्रेरित होकर सिख धर्म के 5वें गुरु, गुरु अर्जुन देव ने गुरु ग्रंथ साहिब में उनके चालीस पदों को जोड़ा। यही कारण है कि, उन्हें सभी धर्म के लोग मानते है।

  • सिख सम्प्रदाय में विशेष महत्व

भारत के पंजाब प्रांत में रविदास जयंती बड़ी धूम-धाम से मनाई जाती है। गुरु-धामो को हफ्ते भर पहले से ही सजा दिया जाता है। और इस विशेष तौर पर उनके द्वारा लिखे पदो को पढ़ा जाता है, जो सिक्खों के धर्म-ग्रंथ में जोड़ा गया है।

रविदास जयंती कैसे मनाई जाती है।

  • आज के दिन पूरे देश में धूम रहती है। वाराणसी शहर में तो इसकी अनुपम छटा देखने को मिलती है। संत रविदास मंदिर में भजन-कीर्तन का आयोजन होता है। मंदिर को बड़ी भव्यता के साथ सजाया जाता है।
  • इसके अलावा गुरुद्वारो में भी उनके वचनों को याद किया जाता है। साथ ही ‘शबद कीर्तन’ जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते है।
  • कई स्थानों पर रैदास को मानने वाले लोग, जिन्हें रैदसिया पंथ कहते हैं, आकर्षक झाकियाँ और जुलूस निकालते है।

सीर गोवर्धन का भव्य उत्सव

  • इतिहास

रविदास मंदिर की आधारशिला सोमवार 14 जून 1965 को संत हरि दास द्वारा आषाढ़ संक्रांति के दिन रखी गई थी, साथ ही इस उद्देश्य के लिए संत सरवन दास द्वारा विशेष रूप से चित्रित डेरा बल्लन के भक्तों की एक बड़ी संख्या थी। भक्तों ने गुरु रविदास की जन्मभूमि का पता लगाया और मंदिर का निर्माण किया गया। ऐसा माना जाता है कि गुरु रविदास इसी स्थान पर रहते थे और भक्ति करते थे। मंदिर का निर्माण 1994 में पूरा हुआ। बसपा सुप्रीमो कांशी राम ने मंदिर के ऊपर स्वर्ण गुंबद की स्थापना करवाई थी।

  • सीर गोवर्धन में यह कैसे मनाया जाता है?

गुरु का जन्मदिन मनाने के लिए, धर्म के पवित्र ग्रंथ अमृतबानी गुरु रविदास जी के अनुयायियों द्वारा पढ़ा जाता है। एक ‘नगर कीर्तन’ और ‘शबद कीर्तन’ का कार्यक्रम किया जाता है और एक विशेष आरती की जाती है। भक्त पवित्र गंगा में डुबकी भी लगाते हैं और समर्पित होकर गुरु की मंदिर में पूजा और प्रार्थना करते हैं। वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर में श्री गुरु रविदास जन्म स्थान पर स्थित मंदिर में एक प्रमुख उत्सव का आयोजन होता है।

  • भव्य उत्सव

वाराणसी के संत रविदास का जन्म स्थान सीर गोवर्धनपुर, रंग-बिरंगे पंडालों के साथ एक उत्सव का रूप धारण कर लेता है, क्योंकि दूर-दूर से आए हजारों भक्त यहां रविदास का जन्मोत्सव मनाने आते हैं। इस वर्ष भी लाखों श्रध्दालु शनिवार 27 फरवरी, 2021 को रविदास जयंती मनाने के लिए इकट्ठा होंगे।

इस अवसर पर मेले जैसा माहौल हो जाता है, जिसमें खिलौने, कृत्रिम आभूषण, किताबें, साहित्य और संत रविदास के पोस्टर बेचने वाले कई स्टाल रविदास मंदिर के प्रवेश द्वार से लगभग एक किलोमीटर की दूरी तक लगाए जाते हैं। भक्तों की आवा-जाही को सुविधाजनक बनाने के लिए क्षेत्र को साफ करने के लिए सेवादारों और भक्तों को देखा जा सकता है। इस अवसर पर मंदिर के सफेद और सुनहरे गुंबद को आकर्षक रोशनी और फूलों से सजाया जाता है। यह बेहद ही भव्य और आकर्षक लगता है।

  • तीर्थ स्थान

यह गुरु रविदास की जन्मभूमि है। यह वह शहर था जहाँ भक्ति आंदोलन के दो महान संतों यानी सतगुरु कबीर और सतगुरु रविदास का जन्म हुआ था। वाराणसी का सीर गोवर्धनपुर गुरु जी के अनुयायियों लिए एक परम तीर्थ स्थान बन गया है। हर साल गुरु रविदास की जयंती के मौके पर, मंदिर देश-विदेश से लाखों भक्तों को आकर्षित करता है। यह वाराणसी के लंका से केवल दो किमी की दूरी पर स्थित है।

गंगा स्नान का महत्व

आज के दिन विशेष तौर पर गंगा स्नान करना अच्छा माना जाता है। लोग दूर-दूर से पूर्णिमा के दिन काशी आते है। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन गंगा में डुबकी लगाने से सारे पाप भी धुल जाते है और प्रभु रैदास का आशीर्वाद भी मिलता है।

संत रैदास श्रीराम और कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे, और सभी को सत्मार्ग पर चलने का उपदेश देते थे। आज भी उनकी सीख और शिक्षा उतनी ही प्रासंगिक है, जितना उस समय थी। हम सभी को उनके दिखाए मार्ग पर चलना चाहिए। प्रत्येक जीव उस विधाता की कृति है। उसका सम्मान करना चाहिए।

अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।

प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी।।

प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवन चंद चकोरा।।

प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राति।।

प्रभु जी, तुम मोती, हम धागा जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।।

प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै ‘रैदासा’।।”

Yogesh Singh

Yogesh Singh, is a Graduate in Computer Science, Who has passion for Hindi blogs and articles writing. He is writing passionately for Hindikiduniya.com for many years on various topics. He always tries to do things differently and share his knowledge among people through his writings.

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