संयुक्त परिवार प्राचीन भारतीय संस्कृति की तमाम पहचानों में एक मुख्य पहचान रखता है। इस प्रकार के परिवार में कम से कम तीन पीढ़ी के लोग साथ-साथ रहते हैं और आनंदपूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं। किसी भी बालक के सम्पूर्ण शारीरिक एवं मानसिक विकास के लिए यह उत्तम दशाएं प्रदान करता है, संयुक्त परिवार में पलने वाले बच्चे अनुशासित जीवन जीते हैं औऱ हमेशा किसी न किसी बड़े की निगरानी में रहते हैं।
आइये संयुक्त परिवार से संबंधित कुछ बिंदुओ का अवलोकन करते हैं-
1) संयुक्त परिवार एक पितृसत्तात्मक परिवार होता है।
2) परिवार का सबसे बुजुर्ग व्यक्ति (पुरूष) परिवार का मुखिया होता है।
3) परिवार के सभी सदस्यों पर मुखिया का नियंत्रण होता है।
4) संयुक्त परिवार के सभी सदस्य भावनात्मक रूप से एक दुसरे से जुड़े रहते हैं।
5) परिवार के सभी सदस्य समस्याओं का मिलकर सामना करते हैं।
6) सामाजिक स्तर पर संयुक्त परिवार की महत्ता उच्चतम होती है।
7) परिवार के सभी सदस्यो का एक दूसरे के प्रति रक्षात्मक रवैया होता है।
8) त्योहारों में सब मिल-जुल कर खुशियां मनाते हैं।
9) संयुक्त परिवार की रसोंई साझा तथा संपत्ति सामूहिक होती है।
10) संयुक्त परिवार का खर्च तुलनात्मक रूप से कम होता है।
1) संयुक्त परिवार के सदस्य अनुशासनशील एवं चरित्रवान होते हैं।
2) संयुक्त परिवार का आकार बड़ा होता है, कभी-कभी तो इसमें 50 से ज्यादा सदस्य होते हैं।
3) श्रम विभाजन इस परिवार की मुख्य विशेषता होती है।
4) ऐसे परिवार मे धार्मिक कार्यो को अधिक महत्व दिया जाता है।
5) ये परिवार सामाजिक रूढ़ियों का कठोरता से पालन करते हैं।
6) कर्मकाण्डों में इनकी अत्यधिक रूचि होती है।
7) बुजुर्गों, बच्चों तथा विधवा महिलाओं के लिए ऐसा परिवार बहुत उपयोगी होता है।
8) परिवार के सदस्यों को अकेलेपन का सामना नहीं करना पड़ता है।
9) परिवार के सदस्य, अपने से बड़ों के अनुभवों से लाभान्वित होते रहते हैं।
10) इसके सदस्य मिलकर कठिन से कठिन समस्या को हल करनें कि कोशिश करते रहते हैं।
पिछले कुछ दशकों से भारतीय परम्पराओ एवं संस्कृति में हो रहे पश्चिमी समावेशों ने संयुक्त परिवारों का खण्डन शुरू कर दिया एवं एकल परिवारों का प्रचलन शुरू किया इसके फलस्वरूप आज संयुक्त परिवार सिर्फ गाँवों तक ही सीमित रह गया है, शहरों में यह विलुप्तप्राय है।