गुजरात के नडियाद जिले में सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को पटीदार जाति के एक जमींदार परिवार में हुआ था। सरदार पटेल का वास्तविक नाम वल्लभभाई झावेरभाई पटेल था। इन्होंने देश की आजादी में और स्वतंत्रता के बाद देश के एकीकरण में प्रमुख भूमिका निभाई थी।
सरदार पटेल के जीवन से जुड़ी कुछ रोचक किस्सों के बारे में आज हम इस निबंध के माध्यम से जानेंगे।
प्रस्तावना
वकालत में महारत हासिल किए हुए सरदार वल्लभभाई पटेल जी ब्रिटिश न्यायाधीशों के लिए एक चुनौती समान थें। इंग्लैंड से उन्होंने बैरिस्टर की पढ़ाई पूरी की। जहां उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्य के समस्त छात्रों में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। सरदार पटेल एक कुशल अधिवक्ता होने के साथ साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता भी थें। उन्होंने भारत के प्रथम उपप्रधानमन्त्री और गृह मंत्री का पद संभाला था। सरदार पटेल का व्यवहार स्वार्थ और अहंकार से परे था।
सरदार वल्लभभाई पटेल (Sardar Vallabhbhai Patel)
सरदार पटेल के पिता झावेरभाई और माता लाडबा देवी थीं। वे अपने माता पिता की चौथी संतान थें। उन्होंने प्राथमिक शिक्षा करमसाद से तथा पेटलाड से हाई स्कूल की पढ़ाई की थी। 16 वर्ष की अवस्था में ही उनका विवाह हो गया था। 22 वर्ष की उम्र में मेट्रिक पास करने के बाद उन्होंने वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1900 में उन्होंने गोधरा में जिला अधिवक्ता का स्वतंत्र कार्यालय स्थापित किया। 1908 में उनकी पत्नी के स्वर्गवास होने के बाद उन्हें ही अपने एक बेटे और बेटी की सारी जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ी। देश के लिए अपना योगदान देते हुए सरदार पटेल 15 दिसंबर 1950 को अपने देश भारत को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चले गए।
पटेल को भारत का लौह पुरुष क्यों कहा जाता है? (Why is Patel called the Iron Man of India?)
15 अगस्त 1947 को देश के आजाद होने के बाद भी पूरा भारत 562 छोटी-बड़ी रियासतों में बंटा हुआ था। आजादी के बाद प्रथम उपप्रधानमन्त्री, प्रथम गृह मंत्री, प्रथम सूचना मंत्री पद के साथ साथ उन्हें 5 जुलाई 1947 को गठित रियासत विभाग के मंत्री पद की भी जिम्मेदारियाँ दी गई थी। इस विभाग के अंतर्गत समस्त रियासतों का एकीकरण करना था जिसका कार्यभार सरदार पटेल के कंधों पर था।
एक बार जब उन्हें पता चला कि बस्तर रियासत के कच्चे सोने के क्षेत्र को हैदराबाद के नवाब निजाम पट्टे पर खरीदना चाहते हैं तो सादर पटेल अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने निकल पड़ें। उन्होंने उड़ीसा, नागपुर, काठियावाड़, मुंबई, पंजाब जैसे बड़े बड़े रियासतों का एक एक करके भारत में विलय करवाया।
कश्मीर, जूनागड़ तथा हैदराबाद रियासत का एकीकरण करने में सरदार पटेल को थोड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था परंतु उन्होंने अपनी बुद्धिमता और सूझ बूझ से इन तीनों रियासतों को भी भारत में मिला लिया। हैदराबाद रियासत के लिए सरदार पटेल को लगभग चार दिनों के लिए सेना और पुलिस प्रशासन की जरूरत पड़ी थी। सबसे अंत में भोपाल रियासत भारत में मिला था। सरदार पटेल के इन्हीं योगदानों के लिए उन्हें “लौह पुरुष” की संज्ञा दी गई।
वल्लभभाई पटेल को सरदार की उपाधि किसने दी? (How did Vallabhbhai Patel became Sardar?)
सरदार पटेल ने अपने बैरिस्टर की वेशभूषा को छोड़कर गांधीमार्ग पर चलते हुए खादी वस्त्र अपना लिया था। 1918 के लगभग, किसानों का फसल खराब हो जाने के बावजूद भी ब्रिटिश सरकार द्वारा कर में कटौती न करने पर गांधी जी ने सरदार पटेल को खेड़ा आंदोलन के कमांडर के रूप में चुना। सरदार पटेल ने सभी ग्रामीणों को इकट्ठा करके कर न देने का आग्रह किया। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार को किसनों की मांग माननी पड़ी और खेड़ा आंदोलन की सफलता के बाद सरदार पटेल किसानों के लिए एक आदर्श बन गए।
गुजरात में शराब बंदी, महिला सशक्तिकरण, अस्पर्शीयता और जातिगत भेदभाव के साथ साथ उन्होंने 1920 में कानूनी प्रथा को समाप्त करने जैसे महत्वपूर्ण कार्य किए। जिसके कारण उन्हें 1922, 1924 तथा 1927 में अहमदाबाद नगर का अध्यक्ष चुना गया। 1928 में उन्होंने गुजरात में अकाल के कारण पीड़ित हुए लोगों की भरपूर मदद की और ब्रिटिश सरकार से पूरे कर वापसी की मांग की। उनके इस मांग के आगे भी ब्रिटिश सरकार को घुटने टेकने पड़े। वल्लभभाई पटेल के इन्हीं योगदानों के कारण उन्हें बारदौली के किसानों ने प्यार से सरदार कहना शुरू किया और धीरे धीरे वो इसी नाम से विध्यात हो गए।
सरदार वल्लभभाई पटेल प्रधानमंत्री क्यों नहीं बने? (Why Sardar Patel Not became Prime Minister)
1946 में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के लिए कांग्रेस समितियों की राय मांगी गई जिसमें सरदार पटेल को पंद्रह प्रदेश कांग्रेस समितियों ने चुना, एक ने जे. बी. कृपलानी को चुना जबकि नेहरू को एक भी वोट नहीं मिले। इस परिणाम से महात्मा गांधी बिल्कुल भी खुश नहीं थे और उन्होंने सरदार पटेल से पीछे हटने तथा जवाहर लाल नेहरू को अध्यक्ष बनाने के लिए सहयोग करने को कहा। महात्मा गांधी की बात का आदर करते हुए पटेल जी ने खुद को चुनाव के दौड़ से बाहर कर लिया और जवाहर लाल नेहरू अध्यक्ष बनाए गए। उस दौरान कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में जो भी होता उसे ही भारत का पहला प्रधानमंत्री बनाए जाने का निश्चय किया गया था। जिसके कारण सरदार पटेल की बजाय जवाहर लाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने।
गांधी जी के सरदार पटेल को पीछे हटने के कहने का कारण यह था कि उनके अनुसार जवाहर लाल नेहरू का विदेश से अच्छा संबंध था और नेहरू विदेशी विचारधारा से भली भांति वाक़िफ़ थें जबकि सरदार पटेल भारत की समस्याओं और लोगों से अच्छि तरह से परिचित थें। इसीलिए नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री और सरदार पटेल को प्रथम उपप्रधानमंत्री बने।
निष्कर्ष
सरदार पटेल ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत और भरवासियों के हित के लिए लगा दिया। उन्होंने हर जाति वर्ग के लोगों के विचारों को बहुत मान दिया और उनको आवश्यकता अनुसार हर सुविधाएं मुहैया करवाने का भरसक प्रयास किया। अगर साफ़ शब्दों में कहें तो इतिहास में सरदार पटेल के अलावा कोई दूसरा नाम उपयुक्त नहीं लगता है जो कि सभी 562 छोटे-बड़े रियासतों को भारत के संघ में मिलाने का साहस कर पाता। राष्ट्रीय एकता/एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान हमें कदापि नहीं भूलना चाहिए।
सरदार वल्लभ भाई पटेल का नारा – “लोहा भले ही गर्म हो लेकिन हथौड़ा ठंडा रखना चाहिए वरना स्वयं का ही हाथ जल जाएगा।”
उत्तर – “पटेल: अ लाइफ” नामक पुस्तक राजमोहन गांधी ने लिखी।
उत्तर – भारत के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे।
उत्तर – सरदार पटेल को भारत के बिस्मार्क के नाम से जाना जाता है।
उत्तर – सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण में सरदार पटेल की प्रमुख भूमिका थी।