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अपनी पत्नी की पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन से निपटने में कैसे मदद करें (How to Help your Wife to Deal with Postpartum Depression)

अवसाद (डिप्रेशन) क्या है?

यह एक प्रकार की मानसिक बीमारी होती है, जो हमारी भावनाओं, विचारों और व्यवहार को प्रभावित करता है। यह आपको एक ही बार में कई तरह की भावनाओं का एहसास करा सकती है और हमारे व्यवहार को बदल सकती है। कभी-कभी परिवर्तित शारीरिक गतिविधि दूसरों को नुकसान भी पहुंचा सकती है। एक उदास व्यक्ति भी पीठ दर्द, जोड़ों में दर्द, विभिन्न प्रकार की पाचन समस्याओं, नींद न आना आदि समस्याएं को महसूस कर सकता है। यह किसी भी आयु वर्ग में देखा जा सकता है। हम यहाँ प्रसवोत्तर अवसाद के बारे में चर्चा करेंगे।

क्या है पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन – प्रसवोत्तर (प्रसव के बाद) अवसाद

एक मानसिक विकार जिसमें एक महिला बच्चे के जन्म के बाद प्रभावित होती है, जिसे प्रसवोत्तर अवसाद या पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है। इसे एक नई मां में अवसाद भी कह सकते हैं। एक नई माँ आमतौर पर चिंता और उदासी महसूस कर सकती है और उस स्थिति में उसके लिए अपने दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों का सामना करना भी कठिन हो जाता हैं। वो बच्चे के साथ-साथ खुद की देखभाल करने में स्वयं को सक्षम नहीं पाती है।

यह सामान्य रूप से अवसाद का एक प्रकार है, जो गर्भावस्था के बाद महसूस किया जाता है और जब यह लंबे समय तक रहता है तो इसे प्रसवोत्तर अवसाद का नाम दिया जाता है। लगभग 50 से 60% महिलाएं इस प्रकार के अवसाद से पीड़ित हैं।

क्या करें/प्रसवोत्तर अवसाद से कैसे निपटें (What to do/How to Deal with Postpartum Depression)

इसका इलाज दो तरह से किया जा सकता है, एक है प्राकृतिक उपचार और दूसरा है औषधीय। गर्भावस्था के दौरान, डॉक्टर आमतौर पर किसी भी बीमारी के इलाज के लिए प्राकृतिक चीजों को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि दवा बच्चे को प्रभावित कर सकती है। हालाँकि कई दवाएं हैं जिनका कोई साइड इफेक्ट नहीं है लेकिन फिर भी यह आपके ऊपर है कि आप कौन सी विधि चुनना पसंद करेंगे।

  1. प्राकृतिक उपचार

बहुत गंभीर परिस्थितियों में प्राकृतिक उपचार को वरीयता नहीं दी जानी चाहिए। जैसा कि हम जानते हैं कि एक नई माँ उपरोक्त लक्षणों का सामना कर सकती है, इसलिए हमें कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना चाहिए ताकि हम बच्चे के जन्म के बाद, माँ को सुरक्षित रख सके। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि रोकथाम इलाज से बेहतर है।

  • विटामिन

कुछ प्राकृतिक उपाय, जैसे कि ट्रिप्टोफैन और टायरोसिन एमिनो एसिड, विटामिन सी और डी 3, जस्ता से भरपूर भोजन का सेवन अवसाद से बचाता है। लेकिन आपको अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य ले लेनी चाहिए।

  • फोलिक एसिड

अवसाद के रोगियों में फोलिक एसिड का स्तर कम पाया जाता है। यह डिप्रेशन के लिए एक तरह की दवा है। फोलिक एसिड से भरपूर भोजन करना बच्चे के साथ-साथ माँ के लिए भी फायदेमंद होता है। फोलिक एसिड एनीमिया को रोकता है। आप अपने डॉक्टर से फोलिक एसिड की मात्रा पूछ सकते हैं कि कितना आपको सेवन करना चाहिए क्योंकि गर्भावस्था के दौरान आपके शरीर की ज़रूरतें दूसरों से अलग होती हैं और आपका डॉक्टर बेहतर जानता है कि आपकी ज़रूरत क्या है।

  • प्राकृतिक सप्लीमेंट्स

प्रैक्टिस किए गए कुछ थेरेपी में ओमेगा-3 फैटी एसिड, फोलिक एसिड, एस-एडेनोसिल, 1-मेथियोनीन, सेंट जॉन वर्ट थेरेपी, लाइट थेरेपी (धूप), व्यायाम और कुछ मनोचिकित्सकीय उपचार, पोस्टपार्टम अवसाद के लिए कारगर तरीकों में से हैं।

  • एक्यूप्रेशर

उपचार की इस पुरातन विधि का जन्म एशिया में हुआ था। यह गर्भावस्था के दौरान हुए अवसाद से लड़ने में भी मदद करता है। अक्सर डॉक्टर्स प्रेगनेंसी के दौरान कुछ दवाएं देते हैं, जिसका साइड-इफेक्ट नवजात पर पड़ता है। अतः सबसे उत्तम होगा कि प्राकृतिक तरीकों का प्रयोग किया जाय, जिसमें एक्यूप्रेशर सबसे सुरक्षित है।

  • मालिश

मालिश एक बहुत अच्छा दर्द निवारक है; यह प्रसवपूर्व और प्रसव के बाद के अवसाद के लिए अच्छा है। यह तनाव हार्मोन ‘कोर्टिसोल’ को कम करता है और सेरोटोनिन और डोपामाइन जैसे हार्मोन को बढ़ाता है। अगर डिप्रेशन हाइपर न हो तो मालिश करना अच्छा होता है।

  • योग

योग एक स्वास्थ्य वर्धक है और सभी को इसका पालन करना चाहिए। यह आंतरिक शांति बनाए रखता है और सभी प्रकार के तनावों को कम करता है, आपको तरोताजा रखता है और आपमें सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा करता है। योग करने से आमतौर पर शरीर हमारे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है और यह एक नए दिमाग की ओर जाता है और आपको किसी भी तरह के मानसिक असंतुलन से दूर रखता है।

2. दवा

आप अपने चिकित्सक द्वारा बतायी गईं एंटी-डिप्रेशन की दवाइयां ले सकते हैं। एंटीडिप्रेसेंट बच्चों के लिए हानिकारक नहीं हैं, इसलिए आप उन्हें ले सकते हैं और यदि आवश्यक हो तो अन्य चिकित्सा भी प्रदान की जा सकती है।

3. थैरेपी

प्रसवोत्तर अवसाद के उपचार के लिए विभिन्न उपचार (थेरेपी) उपलब्ध हैं:

  • कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी, सीबीटी (Cognitive Behavioural Therapy, CBT)

यह थेरेपी मां को उनके नकारात्मक विचारों, आदतों और व्यवहार को पहचानने और तदनुसार बदलने में मदद करती है। यह एक टॉक थेरेपी है।

  • इंटरपर्सनल थेरेपी, आईपीटी (Interpersonal Therapy, IPT)

यह थेरेपी व्यक्तिगत संबंध से संबंधित है। क्योंकि प्रसवोत्तर अवसाद रिश्तों को प्रभावित करता है क्योंकि आम तौर पर, लोग ऐसे व्यवहार परिवर्तनों के बारे में बहुत अधिक जागरूक नहीं होते हैं। यह भी एक तरह की टॉक थेरेपी ही है।

कुछ अन्य उपाय

  • पर्याप्त नींद लें क्योंकि नींद अवसाद में टॉनिक की तरह काम करती है।
  • कुछ व्यायाम का अभ्यास करें क्योंकि वे स्वास्थ्य के लिए अच्छे हैं।
  • सकारात्मक लोगों के साथ रहें।
  • गर्भावस्था के बहुत प्रारंभिक चरण में एक अच्छा आहार लेने की कोशिश करें और प्रसवोत्तर अवसाद को रोकने के लिए अपने आहार में फोलिक एसिड, विटामिन सी और डी युक्त भोजन शामिल करें।

पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन के बारे में और जानें

पोस्ट-पार्टम डिप्रेशन के विविध स्वरुप

सामान्यतया प्रसवोत्तर अवसाद के तीन रूप होते हैं,

  • बेबी ब्लूज़ (Baby Blues)
  • प्रसवोत्तर अवसाद (postpartum or postnatal depression)
  • पेरुपरल (ज़च्चा) डिप्रेशन (Purpuric Psychosis)

प्रत्येक, अपने प्रकार और उपचार के आधार पर भिन्न हैं। यह अवसाद का एक गैर-मनोवैज्ञानिक रूप है जो अधिकांशतः प्रसव संबंधी कठिनाइयों से निपटता है। यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जो न केवल माँ को बल्कि उसके परिवार और उसके वैवाहिक संबंधों को भी प्रभावित करती है। अगर इस समय पर ध्यान न दिया जाय और बिना ईलाज के छोड़ दिया जाय, तो यह बहुत लंबे समय तक बना रह सकता है और बच्चे को कई भावनात्मक और व्यवहारिक परिवर्तनों का सामना करना पड़ सकता है।

  • बेबी ब्लूज़: यह सामान्यतः 3 से 4 दिनों तक चलता है और माँ डिलीवरी के बाद हर दिन कुछ घंटों के लिए अपने मनोदशा में बदलाव (मूड स्विंग) महसूस कर सकती हैं। बेबी ब्लूज़ के लिए कोई गंभीर उपचार की जरुरत नहीं पड़ती है। इसके सामान्य लक्षण होते हैं जैसे – चिंता, भूख का कम या ज्यादा लगना, नींद की कमी होना आदि।
  • प्रसवोत्तर अवसाद: प्रसवोत्तर अवसाद बच्चे के जन्म के कुछ हफ्तों या महीनों तक या कभी-कभी पूरे साल तक रह सकता है। ज्यादा दिनों तक बने रहने पर इसे उपचार की आवश्यकता होती है। यह प्रसव उपरान्त के सबसे आम जटिलताओं में से एक माना जाता है। शोध में, यह पाया गया है कि 14-18 वर्षीय माताओं में प्रसवोत्तर जोखिम अधिक होता है। भावनात्मक दायित्व की भावना के साथ अपराध-बोध की भावना, चिंता, भूख, थकान, खराब स्मृति आदि, इसके प्रमुख लक्षण हैं। यह एक बीमारी के रूप में वर्गीकृत नहीं है; यह एक प्रकार का मनोदशा विकार (मूड डिसऑर्डर) है।
  • पोस्टपार्टम साइकोसिस: इसे परपरिक साइकोसिस (Purpuric Psychosis) भी कहते हैं, यह जन्म के 2 सप्ताह के भीतर दिखाई देता है और कभी-कभी यह एक हफ्ते या कभी-कभी एक महीने तक बना रह सकता है और उस स्थिति में डॉक्टर से इलाज कराना आवश्यक हो जाता है।

पोस्टपार्टम अवसाद के मुख्य कारण क्या हैं?

प्रसवोत्तर अवसाद के लिए जिम्मेदार विभिन्न शारीरिक और भावनात्मक कारण हैं। महिलाओं में प्रोजेस्टेरोन और एस्ट्रोजन जैसे प्रजनन हार्मोन का स्तर बच्चे के जन्म के बाद तेजी से बढ़ता है और मूड स्विंग के लिए भी जिम्मेदार होता है। कभी-कभी नई माँओं को पर्याप्त आराम नहीं मिल पाता, जिसके कारण भी वे प्रसवोत्तर अवसाद से ग्रस्त हो सकती हैं। इसे दीर्घकालिक अवसाद भी कहा जा सकता है, क्योंकि अगर इसका इलाज न कराया जाय तो, यह 12 महीने तक बना रह सकता है।

प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षण क्या हैं?

प्रसवोत्तर अवसाद के कुछ सामान्य लक्षण हैं –

  • खुद को या अपने बच्चे को नुकसान पहुंचाने की सोच रखना।
  • मौज-मस्ती की गतिविधियों से दूर होना।
  • भूख बढ़ना या कम होना।
  • परिवार और दोस्तों से दूर और अकेले रहने का मन होना।
  • अपने बच्चे के साथ लगाव बनाने में परेशानी महसूस करना।
  • बहुत ज्यादा बेचैन या चिंतित महसूस करना।
  • कभी बहुत अधिक निराश और उदास महसूस करना।
  • सिरदर्द, पेट में दर्द और मांसपेशियों की समस्याओं का सामना करना।
  • कुछ याद रखने या कोई निर्णय लेने में कठिनाई महसूस करना।
  • हर समय थकान महसूस करना।
  • ज्यादातर समय सोचते रहना।
  • हर समय रोने का मन होना।
  • अचानक मिजाज बिगड़ जाना।
  • आत्महत्या के विचार आना।
  • बात-बात पर चिढ़ना या निराश होना।
  • हर दिन अनिद्रा या हाइपर्सोमनिया का होना।
  • बात-बात पर गुस्सा आना।
  • किसी काम में मन न लगना।
  • हर समय थकान महसूस होना।
  • घंटो बिस्तर पर लेटने के बावजूद नींद न आना।

अनुपचारित प्रसवोत्तर अवसाद के दुष्प्रभाव

प्रसवोत्तर अवसाद आपके पूरे परिवार को प्रभावित कर सकता है और कई परेशानियों का कारण बन सकता है।

  1. बच्चे के लिए: प्रसवोत्तर अवसाद वाली माताओं के बच्चे विभिन्न समस्याओं का सामना कर सकते हैं जैसे कि वे विभिन्न भावनात्मक और व्यवहारगत परिवर्तनों का सामना कर सकते हैं, आपका बच्चा, जो अभी-अभी इस दुनिया में आया है। आपके बदलते व्यवहार के कारण सबसे अधिक उसी को दिक्कत हो सकती है। जैसे उसे सोने में कठिनाई हो सकती है, साथ ही एक भाषा सीखने और नई गतिविधियों को सीखने में देरी, आदि चीजें हो सकती हैं।
  2. माँ के लिए: यदि इसका समय रहते उपचार न किया जाए, तो यह छह महीने से अधिक समय तक बना रहता है और इससे कभी-कभी और भी दूसरे विकार उत्पन्न हो सकते हैं। उपचार के बाद भी, प्रसवोत्तर अवसाद के लक्षण कुछ मामलों में देखे जा सकते हैं।
  3. परिवार के लिए: एक अवसाद ग्रस्त, उदास मां बच्चे के साथ-साथ पिता को भी कुछ भावनात्मक क्षति पहुंचा सकती है, जिससे पूरे परिवार को इसके दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

बेबी-ब्लू और पोस्टपार्टम डिप्रेशन के बीच मुख्य अंतर क्या है?

आमतौर पर बेबी ब्लूज़ में, एक महिला प्रसव के बाद थकान और कुढ़न महसूस कर सकती है। जब कोई नया बच्चा पैदा होता है, तो ऐसी भावनाओं का होना सामान्य है, जैसे कि बच्चे के बारे में चिंतित होना, कभी-कभी चिड़चिड़ापन, अनिद्रा आदि महसूस करना। मां का ये सोचना कि, वो अच्छी मां बन सकती है या नहीं। वो अपने बच्चे को ठीक से सम्भाल पायेगी या नहीं आदि जैसे विचार उसे व्याकुल करते रहते हैं। ये भावनाएँ केवल कुछ दिनों तक रहते हैं।

पोस्टपार्टम अवसाद में एक माँ पूरे दिन दुख, चिंता, थकान, कभी-कभी चिड़चिड़ाहट महसूस कर सकती है, कभी-कभी आत्मघाती विचार भी कर सकती है, आदि। यह सब उसके और उसके परिवार के बीच खाई का काम करते है। जब एक महिला वास्तव में एक बच्चे के साथ खुश नहीं रहती है और न ही अपने बच्चे से जुङाव महसूस करती है, तो इस प्रकार की सभी भावनाओं को प्रसवोत्तर अवसाद कहा जा सकता है। अनुपचारित रहने पर यह 6 महीने से अधिक समय तक रह सकता है।

प्रसवोत्तर अवसाद के दौरान क्या नहीं करना चाहिए?

  • अकेले या अलग-थलग न रहें हमेशा परिवार या दोस्तों के साथ रहें।
  • आप अंधेरे कमरे में न रहे, आपके कमरे में उचित धूप आनी चाहिए। इससे सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है।
  • किसी भी बात को लेकर निराश न हों और अपने गुस्से को नियंत्रित करने की कोशिश करें, क्योंकि यह आपके बच्चे को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • चाय या कॉफी ज्यादा न लें, क्योंकि कैफीन की मौजूदगी आपकी नींद छीन सकती है और इस समय आपको नींद की सबसे ज्यादा जरुरत है।
  • शराब, सिगरेट आदि से बचें।
  • अपने डॉक्टरों द्वारा सुझाई गई अपनी दवाओं या उपचार को न छोड़ें क्योंकि यह एक मानसिक विकार है, और इसका समय पर उपचार किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

कुछ चरणों का पालन करके और उचित देखभाल करके डिप्रेशन को आसानी से ठीक किया जा सकता है। कभी-कभी हमें अपने रोजमर्रा के जीवन से एक ब्रेक की आवश्यकता होती है। अगर हम ऐसी चीजों का ध्यान रखें तो हम आसानी से अवसाद से छुटकारा पा सकते हैं। जैसा कि हम जानते हैं कि एक महिला अपनी गर्भावस्था के दौरान बहुत सारे बदलाव महसूस कर सकती है, इसलिए यह उनके परिवार खासकर उनके पति का दायित्व बनता है कि उसे खुश और तनाव-मुक्त रखने के सभी संभव प्रयास करें। पति और परिवार का साथ बड़े से बड़े मुसीबत से लड़ने की शक्ति दे सकता है।

मीनू पाण्डेय

शिक्षा स्नातक एवं अंग्रेजी में परास्नातक में उत्तीर्ण, मीनू पाण्डेय की बचपन से ही लिखने में रुचि रही है। अकादमिक वर्षों में अनेकों साहित्यिक पुरस्कारों से सुशोभित मीनू के रग-रग में लेखनी प्रवाहमान रहती है। इनकी वर्षों की रुचि और प्रविणता, इन्हे एक कुशल लेखक की श्रेणी में खड़ा करता है। हर समय खुद को तराशना और निखारना इनकी खूबी है। कई वर्षो का अनुभव इनके कार्य़ को प्रगतिशील और प्रभावशाली बनाता है।

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मीनू पाण्डेय