परिवहन मानव जीवन की मूल आवश्यकताओं में से एक है, मानव किसी ना किसी उद्देश्य से प्राचीन काल से यात्राएं करता आया है और निश्चित तौर पर यह आगे भी करता ही रहेगा। भले ही इन यात्राओं के कारणों में प्राचीन काल से लेकर अब तक कोई परिवर्तन नहीं हुआ है, परन्तु यात्रा के साधनों में समय–समय पर परिवर्तन होता रहा है। शुरुआत में लोग बिना किसी साधन के पैदल यात्रा करते थे, फिर बढ़ती तकनीक के सहारे मानव ने जल, भूमि तथा वायु में चलने वाले वाहनों का आविष्कार कर लिया। इतनी उपलब्धियों के बाद भी मानव रुका नहीं वर्तमान में वह परिवहन के एक नए साधन को विकसित करने की कोशिश में लगा है, जिसका नाम है हाइपरलूप तकनीक, इस तकनीक द्वारा विकसित वाहन की गति 1000 से 1300 किलोमीटर प्रति घंटा तक हो सकती है, जो परिवहन जगत में क्रांति लाने की क्षमता रखती है।
दोस्तों उपरोक्त लाइनों ने आप लोगों को संकेत तो दे ही दिया होगा कि हमारे आज के निबंध का विषय है, हाइपरलूप तकनीक। आज हम इस तकनीक से संबंधित जानकारियों को आपसे हाइपरलूप पर छोटे एवं बड़े निबंध के माध्यम से साझा करेंगे, हमें उम्मीद है कि ये जानकारियां आप को पसंद आएंगी एवं स्कूल तथा कॉलेजों में आपके उपयोग लायक होंगी।
प्रस्तावना
हाइपरलूप निर्वात एवं चुंबकीय शक्ति पर आधारित परिवहन का एक नया माध्यम है, 2012-2013 में एलन मस्क ने इस कॉन्सेप्ट के बारे में बताया था। इस तकनीक में खम्भों के ऊपर, रेल की पटरियों के जैसे ट्यूब (पारदर्शी) बिछाई जाती है, ट्यूब के भीतर चुंबकीय शक्ति के कारण एक बोगी तैरते हुए चलती है। भविष्य में वस्तु एवं यात्री इसी बोगी में बैठकर अपनी यात्राएं पूरी करेंगे।
हाइपरलूप के भाग
हाइपरलूप को अगर विभाजित करना हो तो हम उसको तीन भागों में विभाजित कर सकते हैं-
इसे हम हाइपरलूप का ढांचा भी कह सकते हैं। यह ट्यूब ऊंचे खंभों के ऊपर, रेल की पटरियों की तरह बिछी रहती है।
चुंबकीय शक्ति के सहारे यह बोगी ट्यूब में तैरते हुए चलती है।
जहां से यात्रा आरंभ या समाप्त होता है उस स्थल कोटर्मिनल कहते हैं।
हाइपरलूप तकनीक की विशेषताएँ
निष्कर्ष
पूर्णतः तकनीकी आधारित हाइपरलूप सिस्टम अगर सफल हो जाता है तो यह परिवहन के जगत में एक नया इतिहास रच देगा। शहर एक-दूसरे से चिपक जाएंगे तथा राज्यों के बीच की दूरियांसिमट के रह जाएंगी, समय की भी बचत होगी लेकिन इन सब के बीच हम इस बात को भी अनदेखा नहीं कर सकते कि लाभ के साथ–साथ हर नई तकनीक की कुछ हानियां भी होती है, यही कारण है कि अमेरिका ने लगभग 400 बार मानव रहित परीक्षण के बाद ही मानव सहित परीक्षण की अनुमति दी गई थी।
प्रस्तावना
हाइपरलूप तकनीक की अवधारणा सबसे पहले जॉर्ज मेडहर्स्ट द्वारा 1799 में दी गयी थी। उस समय इस तकनीक को वायुमंडलीय रेलवे या वायवीय रेलवे के नाम से जाना गया। फिर एक अमेरिकन इंजीनियर रॉबर्ट गोडार्ड ने 1904 में इसी तकनीक पर आधारित वैक्ट्रेन को पेश किया। उसके बाद टेस्ला और स्पेस एक्स के सीईओ एलन मस्क ने कुछ सुधार के साथ इस तकनीक को हाइपरलूप तकनीक के नाम से 2012–2013 में पूरी दुनिया के सामने रखा, उनके अनुसार एक निर्वात ट्यूब के माध्यम से लगभग 1200 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से यात्रा किया जा सकता है।
निर्वात ट्यूब के अंदर एक बोगी होती है, जिसको इस प्रकार से डिज़ाइन किया जाता है कि उसे चुंबकिय ऊर्जा द्वारा चलाया जा सके, चुंबकिय ऊर्जा के कारण ही बोगी निर्वात ट्यूब के अन्दर तैरते हुए चलती है। ट्यूब के अन्दर से हवा को बाहर निकाल कर उसमें निर्वात की स्थिति बनाई जाती है, ताकि बोगी पर वायु का लगने वाला घर्षण लगभग शुन्य हो।
भारत में हाइपरलूप परिवहन
दुनिया के तमाम विकसित देशों के साथ-साथ भारत भी हाइपरलूप की दौड़ में शामिल है, अन्य देशों के साथ–साथ भारत ने भी इस परियोजना पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है, भारत में इस परियोजना के अन्तर्गत मुम्बई से पुणे के बीच में पहली हाइपरलूप ट्रेन चलाई जाएगी। इस ट्रेन की अधिकतम गति लगभग 500 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है तथा यह दोनों शहरों के बीच की दूरी को 23 से 25 मिनट में तय करने में सक्षम होगी।
हाइपरलूप तकनीक की आवश्यकता
हाइपरलूप की वैश्विक स्थिति
हाइपरलूप की उपयोगिता को देखते हुए विश्व के लगभग सभी देश अपनी–अपनी अर्थव्यवस्था में विस्तार के लिए, इस तकनीक का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं। लास वेगास में वर्जिन हाइपरलूप वन नामक कंपनी ने अभी हाल में ही मानव सहित हाइपरलूप ट्रेन का परीक्षण किया था। अमेरिका के अलावा दुबई और अबू धाबी आदि देशों में भी हाइपरलूप प्रोजेक्ट पर जोरो–शोरों से काम जारी है।
हाइपरलूप की तकनीककी विशेषताएँ
हाइपरलूप परिवहन की गति
ट्यूब में वायु की अनुपस्थिति के कारण कैप्सूल (बोगी) पर, हवा द्वारा लगाया गया घर्षण बल लगभग शून्य होता है, जिसके कारण इसकी गति लगभग 1000 से 1300 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकती है।
चुनौतियाँ
निष्कर्ष
हाइपरलूप तकनीक परिवहन के चारों साधनों (जल परिवहन, थल परिवहन, वायु परिवहन तथा रेल परिवहन) से अलग, पाँचवा साधन है क्योंकि इस तकनीक में ट्यूब के अंदर निर्वात होता है। चूंकि हाइपरलूप तकनीक में परिवहन की गति, वायु परिवहन से भी लगभग दो गुणा तेज है, इसलिए यह पूरे विश्व के परिवहन प्रणाली को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। परन्तु वर्तमान समय में इसके मार्ग में अनेक बाधाएं है, जिनको निरन्तर विशेषज्ञों द्वारा दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।
मैं आशा करता हूँ कि हाइपरलूप तकनीक पर प्रस्तुत यह निबंध आपको पसंद आया होगा तथा साथ ही साथ मुझे उम्मीद है कि ये आपके स्कूल आदि जगहों पर आपके लिए उपयोगी भी सिद्ध होगा।
उत्तर– हाइपरलूप परिवहन का एक तकनीक है, जो निर्वात तथा चुंबकीय उत्तोलन पर आधारित है।
उत्तर– अमेरिका के लास वेगास (Las Vegas) में।
उत्तर– हाइपरलूप ट्रेन की गति 1000 से 1300 किलोमीटर तक हो सकती है
उत्तर -हाइपरलूप तकनीक का आंशिक रूप से वर्णन सबसे पहले जॉर्ज मेडहर्स्ट (George Medhurst) ने 1799ई0 में किया था, हालांकि इसको सफलतम रूप से उल्लिखित करने का श्रेय एलन मस्क (Elon Musk) (2012) को जाता है।