पितृपक्ष हिन्दू धार्मिक कैलेंडर की वो अवधि है जो भाद्रपद के महीने में 15 से 16 दिनों तक रहती है और इन दिनों हिन्दू धर्म के लोग कोई भी शुभ कार्य नहीं करते हैं। इन दिनों लोग अपने पितरों अर्थात मृत पिता या परिवारजनों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध क्रिया करते हैं। मान्यता है की हमारे 3 पीढ़ी के पूर्वज मृत्युलोक और स्वर्गलोग के मध्य पितृलोक में रहते हैं और पितृपक्ष में उनका पिंडदान और श्राद्ध करने के बाद वे स्वर्ग में जाते हैं। प्राचीन समय में इसे लोग बड़े ही श्रद्धा से मनाते थें।
आईए आज इस लेख के माध्यम से हम हिन्दू कैलेंडर की एक विशेष अवधि पितृपक्ष के बारे में जानते हैं।
1) पितृपक्ष हिन्दी पंचांग के भाद्रपद माह मे आने वाला 15 से 16 दिनों की अवधि होती है।
2) पितृपक्ष की अवधि में हिन्दू लोग अपने पूर्वजों व मृत परिवार वालों का श्राद्ध करते हैं।
3) ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार पितृपक्ष वर्ष के सितंबर से अक्टूबर माह में पड़ता है।
4) पितृपक्ष के सभी दिन, हिन्दू धर्म के लोग अपने पूर्वजों को समर्पित करते हैं।
5) हिन्दू मान्यताओं के अनुसार पितृपक्ष में कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है।
6) यह भाद्रपद माह की पूर्णिमा से शुरू होकर 15 दिनों बाद अमावस्या पर समाप्त होता है।
7) इन दिनों लोग अपने पूर्वजों को पूजते हैं और उनसे सुख-समृद्धि का आशीर्वाद लेते हैं।
8) श्राद्ध के लिए एक मुख्य दिन होता है जिसे ‘तर्पण’ का दिन कहा जाता है।
9) लोगों का मानना है कि इन दिनों पूर्वज धरती पर आते हैं और चढ़ावा ग्रहण करते हैं।
10) पितृपक्ष में लोग विशिष्ट स्थानों पर अपने मृत परिवारजनों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करते हैं।
1) पितृपक्ष वैदिक काल से हिन्दुओं के लिए पूर्वजों की पूजा की रूप में मनाये जाने वाला एक पर्व है।
2) पितृपक्ष में अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है।
3) हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार श्राद्ध क्रिया दोपहर मे किया जाना अच्छा माना जाता है।
4) मृत पूर्वजों की आत्मा की संतुष्टि के लिए श्राद्ध क्रिया पुत्र द्वारा किया जाना आवश्यक माना जाता है।
5) पुराणों के अनुसार बिना पितरों को प्रसन्न किये हम देवताओं को प्रसन्न नहीं कर सकते हैं।
6) पितृपक्ष के अंतिम दिन को पितृ-विसर्जन कहते हैं इस दिन हवन क्रिया, भिक्षा देना और जानवरों को भोजन कराया जाता है।
7) पितृपक्ष के दौरान बहुत से हिन्दू लोग मांस-मदिरा और तामसिक भोजन नहीं करते हैं।
8) पितृपक्ष में पूर्वजों का अंतिम संस्कार करने के कारण हिन्दू धर्म में यह अशुभ अवधि मानी जाती है।
9) पितृपक्ष में लोग अपने घरों में ‘श्रीमद् भागवातगीता’ या ‘गरुण-पुराण’ का पाठ कराते हैं।
10) वर्ष 2021 में पितृपक्ष 20 सितंबर से आरंभ है और 6 अक्टूबर को पितृ-विसर्जन तक रहेगा।
हमारे पूर्वज मृत्यु के बाद भी हमें आशीर्वाद देते हैं और उनके कर-कमलों से ही हम आगे बढ़ते हैं। पितृपक्ष में हम उन पूर्वजों को स्मरण करते हैं और उनके लिए पूजा-पाठ तथा अन्य कर्मकांड करते हैं। ईश्वर भी कहते हैं की पहले पितरों को तृप्त करने के बाद ही उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। लोग बाल और दाढ़ी बनवाकर पिंडदान व अन्य क्रिया करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।