इच्छा मृत्यु तथा कुछ बिषम परिस्थियों में आत्महत्या को लेकर लगभग सभी देशों में अलग अलग राय है, दो चार गिने चुने देशों को छोड़कर भारत समेत बाकी सभी देशों में इसपर प्रतिबंध है। दुनिया में कुछ लोग इच्छा मृत्यु को वरदान मानते हैं तो कुछ लोग इसे एक क्रुर कार्य की श्रेणी में रखते हैं, इन बातों के मद्दे नजर सभी देशों में बहस छीड़ी ही रहती थी कि उसपर से सुसाइड मशीन के निर्माण ने लोगों को आश्चर्य चकित भी कर दिया तथा उसके उपर स्वीट्जरलैंड की सरकार द्वारा इसे दी गई कानुनी मंजूरी ने लोगों को एकदम से भौचक्का कर दिया है।
साथियों आज मैं सुसाइड मशीन पर 10 लाइन के द्वारा आप लोगों से सुसाइड मशीन के बारे में चर्चा करूंगा, दोस्तों मुझे उम्मीद है कि ये लाइन आपको जरूर पसंद आएंगी तथा आप इसे अपने स्कूल तथा अन्य स्थानों पर इस्तेमाल भी कर सकेंगे।
1) विश्व के अधिकतर देशों ने सुसाइड को बैन कर रखा है वही स्विट्जरलैंड ने 1942 में ही इच्छामृत्यु को कानूनी वैधता दे दी थी।
2) कानूनी वैधता प्राप्त होने को बाद स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने मृत्यु के सबसे आसान तरीके की खोज में एक सुसाइड मशीन का निर्माण कर दिया है।
3) इस मशीन के माध्यम से कोई भी व्यक्ति बिना किसी दर्द के बड़ी ही आसानी से मौत के गोंद में सो सकता है।
4) यह मशीन ऐसे लोगों के लिए बनायी गई है जो गंभीर बीमारी के कारण चल-फिर तथा बोल नहीं पाते हैं।
5) इस मशीन के इसके निर्माता ने इसे “सार्को सुसाइड पॉड” नाम दिया है।
6) इस मशीन का निर्माण एक गैर- लाभकारी संस्था “एक्जिट इंटरनेशनल (Exit International)” के निदेशक डॉक्टर फिलिप निट-सके (Dr. Philip Nitschke) के विचारों पर किया गया है।
7) “एक्जिट इंटरनैशनल” के निदेशक डॉक्टर फिलिप निट-सके को ‘डॉक्टर डेथ’ के नाम से भी जाना जाता है।
8) स्विट्जरलैंड में बने इस ताबूत के आकार के सुसाइड मशीन को वहाँ की सरकार ने कानूनी मंजूरी भी दे दी है।
9) विशेषज्ञों का कहना है कि इस मशीन को स्टार्ट करते ही इसमें ऑक्सीजन का लेवेल बहुत तेजी से गिर जाता है जिससे लोगों की हाइपोक्सिया तथा हाइपोमेनिया से मौत हो जाती है।
10) इस मशीन को रोगी अंदर बैठकर भी बड़ी आसानी से ऑपरेट कर सकता है।
1) 2017 में Dr. Philip Nitschke ने सार्को सुसाइड पॉड का आविष्कार किया था तथा इसे स्विट्जरलैंड सरकार ने 2021 में कानूनी मंजूरी दे दी।
2) पिछले साल स्विट्जरलैंड में कुल लगभग 1300 लोगों ने इस मशीन का इस्तेमाल करके सुसाइड किया था।
3) वर्तमान समय में तीसरी सार्को मशीन बनाई जा रही है, जबकि इसके दो प्रोटोटाइप पहले से ही बनकर तैयार है।
4) इस मशीन को ऑपरेट करना इतना आसान है कि बीमार व्यक्ति भी इसे आसानी से चला सकता है।
5) इस मशीन में ताबूत के तौर पर एक बायोडिग्रेडेबल कैप्सूल (जिसमें इंसान लेटा रहता है) लगा होता है।
6) मशीन को शुरू करने के कुछ ही पल बाद बायोडिग्रेडेबल कैप्सूल मशीन से अलग हो जाता है, इस कैप्सूल का इस्तेमाल ताबूत की तरह किया जाता है।
7) ऑक्सीजन का स्तर तेजी से गिरने के कारण शरीर बेजान हो जाता है तथा बेहोश होने के एक मिनट के अंदर ही इंसान मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।
8) मशीन बनाने वाली कम्पनी की माने तो इस प्रकार की मृत्यु में जरा सा भी दर्द नहीं होता है।
9) ऐसा माना जा रहा है कि यह अब तक का सबसे महंगा प्रोजेक्ट है।
10) जहाँ एक तरफ यह मशीन गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों के लिए वरदान है वही कुछ लोग इसकी घोर निंदा ही कर रहे है।
निष्कर्ष
इतिहास इस बात का गवाह है कि दुनिया में कोई भी वैज्ञानिक अविष्कार पूर्ण रूप से मावन सामाज को लाभ नही पहुंचाता है उसके लाभ के साथ-साथ उसकी कुछ हानियां भी अवश्य होती है। लेकिन वो अविष्कार हमे लाभ देगा या हानी ये इस बात पर निर्भर करता है की हम उसका प्रयोग कैसे करते हैं। सुसाइड मशीन का हाल भी कुछ इसी तरह का है, ये लोगों को सुसाइड करने के लिए उकसा सकता है तथा अन्य कई तरिकों से मानव को नुकसान पहुंचा सकता है मगर हम गौर करे तो पाएंगे की जो लोग असाध्य रोगों से पीड़ित है, जीवन जिनके लिए श्रॉप है, दर्द जिनसे सहा नही जाता, जिंदगी के दर्द से मौत का दर्द जिन्हें आसान लगता है, यह मशीन उनके लिए एक मुक्ति दाता का काम करेगी।
दोस्तों मैं आशा करता हूँ कि सुसाइड मशीन पर 10 लाइन आपको पसंद आयी होंगी तथा आप इसे भलिभांति समझ गए होंगे।
धन्यवाद!
उत्तर- सुसाइड मशीन का नाम “सार्को सुसाइड पॉड” है।
उत्तर- सुसाइड मशीन का अविष्कार डॉक्टर फिलीप निट-स्चके (Dr. Philip Nitschke) ने किया था।
उत्तर- सुसाइड मशीन का अविष्कार 2017 में हुआ था।