हिन्दू धर्म के महान ऋषियों में से एक महर्षि वाल्मीकि जी का नाम आता है। अपने जीवन के आरंभ में डाकू बनकर जीवन यापन करने वाले रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बनने तक के सफर में उन्होंने घोर तपस्या किया। मंदिरों में और संस्कृत विद्यालयों में इस दिन को बड़े ही उत्साह से मनाया जाता है और उनके योगदान के लिए उन्हें याद किया जाता है। उन्होंने जीवन को सार्थक बनाने के लिए अध्ययन योग्य महाकाव्य ‘रामायण’ की रचना किए।
आज इस लेख के माध्यम से हम अपनी शक्तियों से प्रभु श्रीराम की जीवन घटनाओं को देख उस का वर्णन करने वाले महर्षि वाल्मीकि के बारे में जानेंगे।
1) वाल्मीकि जयंती “रामायण” के रचयिता महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।
2) हिंदी पञ्चाङ्ग के आश्विन महीने की शरद पूर्णिमा को वाल्मीकि जयंती मनाया जाता है।
3) महर्षि वाल्मीकि को वैदिक काल का महान ऋषि माना जाता है।
4) रामायण महाकाव्य की रचना के बाद ये ‘आदिकवि वाल्मीकि’ के नाम से सुप्रसिद्ध हुए।
5) ये संस्कृत के महा पंडित थें और संस्कृत में ही रामायण की रचना किये थें।
6) महर्षि वाल्मीकि संस्कृत महाकाव्य लिखने वाले प्रथम कवि हैं।
7) वाल्मीकि रामायण लोगों को जीवन में सत्य और पुरुषार्थ का मार्ग दिखाता है।
8) इस दिन मंदिरों में रामायण का गुणगान किया जाता है और भंडारे लगाये जाते है।
9) संस्कृत ज्ञान के साथ साथ ये ज्योतिष ज्ञान के भी अच्छे जानकार थें।
10) वाल्मीकि जयंती पूरे भारत में वाल्मीकि जी के मंदिरों में मुख्य रूप से वाल्मीकि समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
1) महर्षि वाल्मीकि जयंती देश भर में लोगो द्वारा भक्तिभाव और सम्मान से मनाया जाता है।
2) इस अवसर पर लोग शोभयात्रा यें निकालते हैं और राम भजन गाते हैं।
3) वाल्मीकि जयंती ग्रेगोरियन कैलेंडर के सितम्बर से अक्टूबर माह में मनाया जाता है।
4) आदिकवि महर्षि वाल्मीकि को संस्कृत साहित्य का प्रतिपादक कहा जाता है।
5)वाल्मीकि रामायण में कुल 7 अध्यायों में 24000 श्लोकों का संस्कृत में उल्लेख हैं।
6) महर्षि वाल्मीकि,ऋषि जीवन से पूर्व ‘रत्नाकर’ नामक कुख्यात डाकू के रूप में जाने जाते थें।
7) असल में वाल्मीकि भगवान प्रचेता के पुत्र थें और बालकाल में एक भील औरत ने इन्हें चुरा लिया था।
8) माँ सरस्वती के आशीर्वाद से उन्हें संस्कृत ज्ञान प्राप्त हुआ और ब्रम्हा जी के मार्गदर्शन में इन्होंने रामायण की रचना की।
9) भगवान श्री राम के दोनों पुत्रों का जन्म महर्षि के आश्रम मे ही हुआ था।
10) इनके डाकू से महर्षि बनने तक की जीवन कथा लोगों केलिएप्रेरणा स्त्रोत है।
वाल्मीकि जयंती का भारत के विद्वानों में बड़ा महत्व है। महर्षि वाल्मीकि एक डाकू थें और जीवन यापन के लिए लूटपाट करते थें परन्तु नारद ऋषि से मिलने के बाद उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया और वे सत्य और भक्ति के रास्ते पर चल पड़े। उनके जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हम सभी अहिंसा और पाप के रास्ते को छोड़कर सत्य और अच्छाई का रास्ता अपना सकते हैं।