मकर संक्रांति

Makar-Sankranti

मकर संक्रांति हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। यह तब मनाया जाता है जब पौष माह में सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। मकर संक्रांति एक ऐसा त्योहार है, जिसे भारत तथा नेपाल में काफी धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति को उत्तराखंड तथा गुजरात के कुछ क्षेत्रों में उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति के पर्व पर किये गये दान कार्यों द्वारा अन्य दिनों के अपेक्षा सौ गुना अधिक पुण्य प्राप्त होता। इसके साथ ही मकर संक्रांति का यह त्योहार भारत भर में पतंजबाजी के लिए भी काफी प्रसिद्ध है।

मकर संक्रांति 2025

वर्ष 2025 में मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी, मंगलवार के दिन मनाया जायेगा।

मकर संक्रांति क्यों मनाया जाता है?

मकर संक्रांति के पर्व को लेकर कई सारी मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन इस विषय की जो सबसे प्रचलित मान्यता है, वह यह है कि हिंदू धर्म के अनुसार जब सूर्य एक राशि से दूसरे राशि में प्रवेश करता है, तो उसे संक्रांति कहा जाता है और इन राशियों की संख्या कुल मिलाकर बारह हैं लेकिन इनमें मेष, मकर, कर्क, तुला जैसी चार राशियां सबसे प्रमुख हैं और जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है तो मकर संक्रांति का यह विशेष पर्व मनाया जाता है।

इस दिन को हिंदू धर्म में काफी पुण्यदायी माना गया है और मान्यता है कि इस दिन किया जाने वाला दान अन्य दिनों के अपेक्षा कई गुना अधिक फलदायी होता है। इसके साथ ही यदि मकर संक्रांति के इस पर्व को समान्य परिपेक्ष्य में देखा जाये तो इसे मानने का एक और भी कारण है क्योंकि यह वह समय होता है, जब भारत में खरीफ (शीत श्रृतु) के फसलों की कटाई की जाती है और क्योंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए यह फसलें किसानों के आय तथा जीवनयापन का एक प्रमुख जरिया है। इसीलिए अपने अच्छी फसलों के प्राप्ति के लिए, वह इस दिन का उपयोग ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए भी करते हैं।

मकर संक्रांति कैसे मनाते हैं?

मकर संक्रांति उत्सव और आनंद का पर्व है क्योंकि यह वह समय भी होता है, जब भारत में खरीफ की नई फसल के स्वागत की तैयारी की जाती है। इसलिए इस त्योहार के दौरान लोगों में काफी प्रसन्नता और उत्साह देखने को मिलता है। इस दिन किसान भगवान से अपनी अच्छी फसलों के लिए आशीर्वाद भी मांगते है। इसलिए इसे फसलों और किसानों के त्योहारों के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग सुबह में सर्वप्रथम स्नान करते हैं और उसके बाद दान कार्य करते हैं।

इस दान को सिद्धा के नाम से भी जाना जाता है जिसे ब्राम्हण या किसी गरीब व्यक्ति को दिया जाता है, इसमें मुख्यतः चावल, चिवड़ा, ढुंढा, उड़द, तिल आदि जैसी चीजें होती है। हालांकि महाराष्ट्र में इस दिन महिलाएं एक दूसरे को तिल गुढ़ बांटते हुए “तिल गुड़ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोला” बोलती हैं। जिसका अर्थ होता है तिल गुढ़ लो और मीठा बोलो, वास्तव में यह लोगो से संबंधों को प्रगाढ़ करने का एक अच्छा तरीका होता है। इस दिन बच्चों में भी काफी उत्साह देखने को मिलता है क्योंकि यह वह दिन होता है, जिस पर उन्हें बेरोक-टोक पतंग उड़ाने तथा मौज-मस्ती करने की अनुमति होती है।

इस दिन को भारत के विभिन्न राज्यों में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में मकर संक्रांति के पर्व को खिचड़ी कहकर भी पुकारा जाता है। इस दिन इन राज्यों में खिचड़ी खाने तथा दान करने की प्रथा है। पश्चिम बंगाल में इस दिन गंगासागर स्थान पर काफी विशाल मेला भी लगता है, जिसमें लाखों के संख्या में श्रद्धालु इकठ्ठा होते हैं। पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के पर्व पर तिल दिन करने की परम्परा है।

मकर संक्रांति मनाने की आधुनिक परम्परा

आज के वर्तमान समय में हर पर्व के तरह मकर संक्रांति का भी आधुनिकरण तथा बाजारीकरण हो चुका है। पहले समय में इस दिन किसान अपने अच्छी फसल के लिये ईश्वर को धन्यवाद देता था और घर पर उपलब्ध चीजों से खाने की तमाम तरह की सामग्रियां बनाई जाती थीं। इसके साथ ही घर बनी यह सामग्रियां लोग अपने आस-पड़ोस में भी बांटते थे, जिससे लोगों में अपनत्व की भावना का विकास होता था, परन्तु आज के समय में लोग इस पर्व पर खाने से लेकर सजावटी सामान जैसी सारी चीजें बाजार से खरीद लाते हैं।

जिससे लोगों में इस त्योहार को लेकर पहले जैसा उत्साह देखने को नही मिलता है। पहले के समय में लोग खुले मैदानों या खाली जगहों पर पतंग उड़ाया करते थे। जिससे किसी तरह के दुर्घटना होने की संभावना नही रहती थी, लेकिन आज के समय में इसका विपरीत हो गया है। अब बच्चे अपने छतों पर से पतंग उड़ाते हैं और इसके साथ ही उनके द्वारा चाईनीज मांझा जैसे मांझे का प्रयोग किया जाता है। जो हमारे लिए काफी खतरनाक हैं क्योंकि यह पशु-पक्षियों के लिए जानलेवा होने के साथ ही हमारे लिए भी कई तरह समस्याएं उत्पन्न करता है।

मकर संक्रांति का महत्व

मकर संक्रांति के पर्व का धार्मिक तथा वैज्ञानिक दोनो ही दृष्टि से अपना महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मकर संक्रांति ही वह दिन है, जब गंगा जी राजा भागीरथ के पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होते हुए सागर में जा मिली थी। इसलिए यह दिन गंगा स्नान के लिए काफी पवित्र माना गया है।

इसके साथ ही इस दिन को उत्तरायण का विशेष दिन भी माना जाता है क्योंकि शास्त्रों में ऐसा वर्णित है कि उत्तरायण वह समय है, जब देवताओं के दिन का समय होता है। इसलिए इसे काफी पवित्र तथा सकरात्मक माना जाता है। यहीं कारण है कि यह दिन दान, स्नान, तप, तर्पण आदि जैसे कार्यों के लिए काफी पुण्य माना गया है और इस दिन दिया गया दान अन्य दिनों के अपेक्षा में सौ गुना अधिक फलित होता है।

इस विषय से जुड़ा एक काफी प्रसिद्ध श्लोक है, जो इस दिन के महत्व को समझाने कार्य करता है।

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

इस श्लोक का अर्थ है कि “जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन शुद्ध घी और कंबल का दान करता है, वह अपनी मृत्यु पश्चात जीवन-मरण के इस बंधन से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है”।

मकर संक्रांति का वैज्ञानिक महत्व

इसके साथ ही मकर संक्रांति मानने का एक वैज्ञानिक कारण भी है, क्योंकि जब सूर्य उत्तरायण में आता है तो यह सूर्य के ताप को कम करता है। चूकिं शीत ऋतु की ठंडी हवा हमारे शरीर में तमाम तरह की व्याधिया उत्पन्न कर देती हैं और यदि इस दौरान मकर संक्रांति के दिन सूर्य की रोशनी ली जाये तो यह हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायक होता है।

इसके साथ ही मकर संक्रांति के दिन नदियों में स्नान करने का भी एक वैज्ञानिक कारण है क्योंकि मकर संक्रांति के समय सूर्य के उत्तरायण में होने से एक विशेष वाष्पन की क्रिया होती है और ठंड में होने वाले इस वाष्पन से नदियों के पानी में कई विशेष गुण पैदा हो जाते हैं।

जिससे यदि इस दिन नदियों में स्नान किया जाये तो कई प्रकार के रोगों से मुक्ति भी मिल सकती है। इसी तरह मकर संक्रांति के दिन से राते छोटीं और दिन बड़े होने लगते है। इसलिए मकर संक्रांति के दिन अंधकार से प्रकाश के ओर अग्रसर करने वाला दिन भी माना जाता है, जो हममें एक नयी शक्ति तथा उम्मीद का संचार करने का कार्य करता है।

मकर संक्रांति का इतिहास

मकर संक्रांति का पर्व खगोलीय गणना के अनुसार मनाया जाता है। छठवीं सदी के महान शासक हर्षवर्धन के शासनकाल में यह पर्व 24 दिसंबर को मनाया गया था। इसी तरह मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में यह पर्व 10 जनवरी के दिन मनाया गया था, क्योंकि प्रतिवर्ष सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 20 मिनट के देरी से होता है, इसलिए यह तिथि आगे बढ़ती रहती है और यहीं कारण है कि हर 80 वर्ष में इस त्योहार की तिथि एक दिन आगे बढ़ जाती है। हिंदू धार्मिक ग्रंथ महाभारत के अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने अपना देह त्याग किया था।

इसके साथ ही इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से मिलने जाते हैं और चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी भी हैं तो इसीलिए इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है। इसके साथ ही इस दिन गंगा स्नान के विशेष महत्व को लेकर भी एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार मकर संक्रांति के दिन ही गंगा राजा भागीरथ के पीछे-पीछे चलते हुए सागर में जा मिली थी। यहीं कारण हैं कि इस दिन गंगा स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं की भारी भीड़ देखने को मिलती है, खासतौर से पश्चिम बंगाल के गंगासागर में जहां इस दिन स्नान के लिए लाखों के तादाद में श्रद्धालु आते हैं।

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