कांवड़ यात्रा पर 10 वाक्य (10 Lines on Kanwar Yatra in Hindi)

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को सर्वोपरि माना गया है, उन्हें महादेव कहा जाता है। कहते हैं की भगवान शिव जल्दी ही प्रसन्न हो जाते है, इसलिए उनको भोलेनाथ भी पुकारा जाता है। भगवान शिव के भक्तों द्वारा उन्हें प्रसन्न करने के लिए उनपर जल व गाय का दूध चढ़ाया जाता है। कांवड़ यात्रा, भगवान शिव के प्रति स्नेह और भक्ति को दर्शाता है। भक्त दूर-दूर से जल लेकर आते हैं और लगभग 150 किलोमीटर तक पैदल चलकर भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। अधिकतर लोग हरिद्वार, प्रयागराज, गौमुख व गंगोत्री आदि तीर्थस्थलों से जल भरते हैं।

कांवड़ यात्रा पर 10 लाइन (Ten Lines on Kanwar Yatra in Hindi)

आज हम हिन्दू धर्म की आस्था के प्रतीक कांवड़ यात्रा के बारे में जानेंगे और भगवान शिव के भक्ति के इस तरीके से परिचित होंगे।

Kanwar Yatra par 10 Vakya – Set 1

1) शिव मंदिरों में जल चढ़ाने के लिए भक्त कंधे पर कांवड़ लेकर दूर-दूर से गंगाजल भरकर पदयात्रा करते है जिसे कांवड़ यात्रा कहते हैं।

2) कांवड़ बांस का बना एक डंडा होता है जिसके दोनों सिरों पर जलपात्र बंधा होता है।

3) कांवड़ यात्रा प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में किया जाता है।

4) हिन्दू धर्म में कांवड़ यात्रा भगवान शिव के लिए आस्था का प्रतीक होता है।

5) कांवड़ लेकर चलने वाले भक्तों को मुख्यतः ‘बम’ या ‘कांवड़ियों’ कहा जाता है।

6) सामान्य कांवड़, डाक कांवड़, खड़ी कांवड़ तथा दांडी कांवड़, कांवड़ यात्राओं के प्रकार हैं।

7) कांवड़िए भगवा वस्त्र पहनकर ‘बोल-बम’ के नारे के साथ यात्रा करते हैं।

8) कांवड़िए कांवड़ पर जल लेकर विशिष्ट स्थानों के शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं।

9) कांवरिये मुख्यतः सावन की चतुर्दशी के दिन शिव मंदिरों में जल चढ़ाते हैं।

10) कई लोग बस, साईकिल और मोटर वाहनों से कांवड़ यात्राएं करते हैं।

Kanwar Yatra par 10 Vakya – Set 2

1) कांवर यात्रा में शिव भक्त सुदूर स्थानों से पवित्र नदियों का जल लाकर शिवलिंग पर अर्पित करते हैं।

2) यह भारत के उत्तरी व पश्चिमी भागों में अधिक प्रचलित है।

3) भारत में कांवड़ यात्रा का प्रचलन बहुत पहले से चली आ रही है।

4) कांवड़ यात्रा के आरम्भ को लेकर कई लोक कथाएं प्रचलित हैं।

5) मान्यता है कि भगवान परशुराम ने शिवलिंग पर कांवड़ से जल चढ़ाकर इसकी शुरुआत की थी।

6) एक मान्यता यह भी है कि समुद्र मंथन के दौरान शिव के विष पीने के बाद देवताओं ने उनका जलाभिषेक कर इसकी शुरुआत की थी।

7) शुरुआत में केवल साधू, पुजारी और पुराने भक्त कांवड़ यात्रा करते थें परन्तु अब सामान्य लोग भी कांवड़ यात्रा करते हैं।

8) बड़े जोश के साथ शिवभक्त नंगे पाँव कांवड़ यात्रा करते हैं।

9) कुछ लोग रास्तों में इन कांवरियों के लिए खाने-पीने व ठहरने का प्रबंध करते हैं।

10) भक्त काशी विश्वनाथ, बद्रीनाथ, बैद्यनाथ आदि स्थान पर स्थित ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाना अधिक पसंद करते हैं।


प्रत्येक वर्ष कांवड़ यात्राओं में बड़ी संख्या में भीड़ भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए निकलती है। भगवा वस्त्र पहनकर भगवान शिव का नाम लेते हुए भक्त बारिश, गर्मी सब झेलते हुए भक्ति में महादेव पर जल चढ़ाने के लिए चलते रहते हैं। एक बार कांवर उठाने के बाद जब तक जल नहीं चढ़ा लेते भक्त कांवर को जमीन पर नहीं रखते है। भगवान शिव अपने भक्तों की भक्ति से प्रसन्न होते हैं और उन्हें सुख-समृद्धि देते है और उनकी मनोकामना पूरी करते हैं।

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