धर्म एकता का माध्यम है पर निबंध (Dharm Ekta Ka Madhyam Hai Essay in Hindi)

लोगों को संगठित रखने में धर्म की निश्चित रूप से महत्वपूर्ण भूमिका रही है। धर्म की वजह से प्राचीन काल से ही कई प्राचीन सभ्यताओं ने अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहे हैं। धर्म किसी भी व्यक्ति को व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक सभी स्तरों पर प्रभावित करता है और साथ ही धर्म किसी भी समाज में एकजुटता का एहसास भी दिलाता है। धर्म की वजह से लोगों की विचारधाराओं में समानता होती है और एक धर्म के लोग विश्वस्तर पर एक दूसरे से जुड़ाव महसूस करते हैं और सामूहिक उन्नति के लिए अग्रसर होते हैं।

‘धर्म एकता का माध्यम है’ पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Dharm Ekta Ka Madhyam Hai in Hindi, Dharm Ekta Ka Madhyam Hai par Nibandh Hindi mein)

निबंध 1 (300 शब्द) – Dharm Ekta Ka Madhyam Hai par Nibandh

धर्म आपसी सद्भाव एवं एकता का प्रतीक है क्योंकि किसी धर्म विशेष को मानने वाले लोग एक ही प्रकार की जीवन पद्धति का पालन करते हैं। धर्म या मजहब अपने अनुयायिओं को एकता के सूत्र में पिरोकर रखने का कार्य भी करता है। अनेकता में एकता का सर्वोत्तम उदाहरण पेश करते हुए भारत के प्रसिद्ध कवी महम्मद इकबाल की १९०४ में लिखी गई पंक्तियां “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” अर्थात् दुनिया का हर धर्म आपस में एकता का पाठ पढ़ाते हैं, आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।

जब-जब किसी भी विदेशी आक्रांता ने भारत पर आक्रमण किया है उसने धर्म के बजाए समाज मे साम्प्रदायिक की भावनाओं को पनपाकर राष्ट्रीय एकता को खंडित करने का प्रयास किया है। धार्मिक एकता को विखंडित करने के बाद ही वे भारत पर कब्जा करने में कामयाब हो पाए। अंग्रेजों ने भी यही किया और 200 वर्षों तक भारत पर शासन किया। हम निश्चित रूप से इतने वर्षों की गुलामी से बच जाते अगर हमने साम्प्रदायिकता की भावनाओं पर अंकुश लगाते हुए, सर्वधर्म समभाव एवं धर्म की मूल भावना को सही अर्थों में समझा और अपनाया होता।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म लोगों को संगठित करने का कार्य करता है और भाईचारे की भावना के साथ समाज को समग्र विकास के पथ पर अग्रसर करता है। सामाजिक एकता को बढ़ाना विश्व के सभी धर्मों की स्थापना का मूल उद्देश्य है। महात्मा बुद्ध ने भी धम्मं शरणं गच्छामि, संघम शरणं गच्छामि का संदेश दिया। अर्थात् उन्होंने धर्म के शरण में और इस प्रकार संघ के शरण में अर्थात संगठित होने का आह्वान किया जो कि आपसी एकता एवं भाईचारे का परिचायक है।

धर्म का उद्देश्य अपने अनुयायियों को जीवन जीने के लिए जरूरी सभी गुणों से परिपूर्ण करते हुए एक ऐसा आधार प्रदान करना है जिससे वे एकता की भावना से संगठित होकर समाज की भलाई के लिए कार्य कर सकें। इन संदेशों का सार यह है कि हर मजहब या धर्म एकता का ही पाठ पढ़ाते हैं।

निबंध 2 (400 शब्द)

किसी भी पंथ विशेष या संप्रदाय को मानने वाले लोगों को एक साथ जोड़ कर रखने में धर्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। साथ ही, यह भी सर्वविदित है कि दुनिया के सभी धर्म कौमी एकता का संदेश देते हैं।

विश्व के प्राचीनतम धर्मों से ही प्रेरणा लेकर कई नए धर्मों की स्थापना हुई है। जैसे कि हिंदु धर्म जिसे सत्य सनातन धर्म भी कहा जाता है, से कई धर्म, पंथ एवं विचारधाराओं का अविर्भाव हुआ है लेकिन अलग-अलग पंथों ने अपनी एकल इकाईयां तैयार की है जो कालांतर में पंथ विशेष में परिवर्तित होते चले गए।

इन सभी पंथों को मानने वाले लोगों में व्यापक स्तर पर विभिन्न मद्दों पर एकजुटता परिलक्षित होती है। धार्मिक एकजुटता की वजह से ही कोई भी समाज प्रगति की राह पर चल सकने में समर्थ होता है। यही वजह है कि हर राष्ट्र अपने सीमाओं के भीतर कौमी एकता को प्रोत्साहित करते हैं। लोगों के बीच अगर एकता एवं सामंजस्य न हो तो धर्म की परिकल्पना ही बेमानी हो जाती है। हिंदु धर्म की तरह ही मुस्लिम, सिख एवं इसाई धर्मों में भी एक विचारधारा की वजह से लोगों में एकजुटता की भावना का विकास हुआ है।

मूलतः सभी धर्मों का प्रादूर्भाव लोगों में एकता की भावना को बढ़ाने के लिए ही हुआ है। लोगों के बीच अगर एकता एवं सामंजस्य न हो तो वे किसी एक धर्म विशेष को नहीं अपना सकते। सभी धर्मों की स्थापना के पीछे एक प्रकार की जीवनशैली एवं वैचारिक सामंजस्य ही होता है जो सामूहिक एकता के रूप में प्रखर होकर समाज की स्थापना करते हैं। समाज में एकता को बनाए रखने मे धर्म अहम भूमिका निभाता है। धर्मपरायणता का पालन किसी भी समाज के विकास एवं उसेक नागरिकों के कल्याण के लिए अनिवार्य है। जैसे-जैसे दुनिया में सभ्यता का विकास हुआ है धर्म की आवश्यकता महसूस होने लगी, क्योंकि हर समाज को संचालित करने के लिए एक आदर्श आचार संहिता का पालन किया जाना जरूरी था।

इस आदर्श आचार संहिता अर्थात् धर्म का उद्देश्य मनुष्य को सही तरीके से जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है। धार्मिक एकता एवं समभाव की वजह से ही एक समुदाय बनता है जिससे अपने नागरिकों के प्रगति के लिए सामूहिक रूप से किए गए प्रयासों की अपेक्षा होती है। धार्मिक समरसता एवं एकता की वजह से ही समाज के सभी लोगों में साझा संस्कृति का विकास होता है। ऐसी स्थिति को ही दूसरे शब्दों में सामाजिक एकता भी कहते हैं। इस प्रकार निश्चित रूप से धर्म एकता का माध्यम है।

निबंध 3 (500 शब्द)

धर्म किसी भी समाज में संगठन का पर्याय होता है। संगठन की उत्पत्ति ही एकता की भावना से होती है। इस प्रकार धर्म एकता का माध्यम है। खासतौर पर भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में जब राष्ट्रहित की भावना से विभिन्न धर्मों के लोग जब एक साथ खड़े होते हैं तो पूरे विश्व की निगाहें भारत की धार्मिक एकता की मिसाल दी जाती है। हालांकि कुछ विदेशी ताकतों द्वारा भारत मे समय-समय पर धार्मिक कट्टरवाद एवं धार्मिक उन्माद  की भावना को बढ़ावा दिए जाने की कोशिशें भी की जाती रही है, लेकिन बहुमत द्वारा ऐसी शक्तियों को विफल किए जाने का प्रयास भी लगातार जारी है।

अब यहां प्रश्न यह उठता है कि धर्म समाज को विघटित करने का प्रयास करता है या यह एकता का माध्यम है। भारत जैसे विशाल देश में जहां हर 50 से 100 किलोमीटर पर मौखिक बोलियां बदल जाती है, लोगों को एकता के सूत्र में बांधे रखने का श्रेय धर्म को ही जाता है और यहां धर्म से हमारा अभिप्राय हिंदु, मुस्लिम, सिख या इसाई नहीं है बल्कि राष्ट्रधर्म है। राष्ट्रधर्म हमें यह सिखाता है कि हम पहले भारतीय हैं और उसके बाद ही हमारा अपना कोई धर्म है जो हमारी जीवन पद्धति को निर्धारित करता है।

भारत जैसे विशाल देश में कश्मीर से कन्याकुमारी तक अगर हम एकजुट हैं तो इसमें धर्म की अहम भूमिका है। भारत की ही तरह पूरे विश्व में लोगों को एकजुट रखने में भी धर्मिक मूल्यों का योगदान है क्योंकि सभी धर्म मनुष्य को एक सूत्र में बांधने का कार्य करते हैं।

महात्मा गांधी के अनुसार “विभिन्न धर्म एक फुलवारी के विभिन्न फूलों की तरह होते है जो विभिन्न रंगों एवं गंधो के होने के बावजूद एक उद्यान के रूप में एकता के सूत्र में बंधे रहते हैं। एक बगीचे में खिले सुन्दर फूलों के समान या एक ही विशाल वृक्ष की अलग-अलग शाखाओं की तरह हैं। उन्होंने कहा हम में अपने ही धर्म की तरह दूसरों के धर्मों के प्रति भी सहज सम्मान का भाव होना चाहिए”।

‘सरहदी गांधी’ खान अब्दुल गफ्फार खान ने भी मजहब को दुनिया में अमन, प्रेम एवं कौमी एकता का प्रतीक माना है। उन्होंने कहा था कि धर्म या मजहब खुदा के बंदों की सेवा के लिए हैं जिससे वे प्रेम, आपसी सद्भाव एवं भाईचारे के साथ एक दूसरे के साथ प्रेमपूर्वक रह सकें। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामचरितमानस में भी धर्म को प्रेम, एकता एवं सद्भाव का प्रतीक माना गया है। सिखों के पवित्र धार्मिक ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब विभिन्न धर्मों के बीच एकता का अनूठा उदाहरण है। पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब में गुरनानक देव ने सभी धर्म  की अच्छाईयों को समाहित किया है।

पैगम्बर मोहम्मद ने भी धर्म को सभी इंसानों की भलाई के लिए एकता स्थापित करने का जरिया माना है। उसी प्रकार संत कबीर एवं रविदास ने भी धर्म की व्याख्या सभी इंसानों की भलाई एवं आपसी भाईचारे एवं एकता के प्रतीक के तौर पर की है। ईसा मसीह ने धर्म को पूरे विश्व में एकता स्थापित करने का साधन माना है। महावीर जैन ने तो सैकड़ों वर्ष पहले ही धर्म को प्राणिमात्र के लिए करुणा, भाईचारे एवं एकता का माध्यम माना है। स्वामी विवेकानंद के अनुसार धर्म कट्टरवाद एवं संकीर्णतावादी प्रवृत्ति से दूर रहने एवं आपस मे भाईचारे एवं एकता को बढ़ाने में सहायक है।

निबंध 4 (600 शब्द)

पूरी दुनिया में सभ्यता के विकास के साथ ही विभिन्न धर्मों की स्थापना हुई और हरेक धर्म मनुष्य जीवन को नैतिकता, इमानदारी एवं सच्चाई का साथ देते हुए जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। विश्व के लगभग सभी धर्म हमें दूसरों की भलाई करना एवं एक संतुलित जीवन जीने की प्रेरणा देते हैं। साथ ही, हर धर्म की पूजा पद्धति भी अलग-अलग होती है लेकिन वे सभी अलग-अलग तरीकों से लोगों को एक साथ जुड़े रहने की प्रेरणा देते हैं। अर्थात् सभी धर्मों के मूल में कौमी एकता को प्रोत्साहित करने की भावना का समावेश होता है। दूसरे शब्दों में अगर कहा जाए तो हर धर्म की स्थापना के पीछे एकमात्र उद्देश्य पारस्परिक एकता को बढ़ाना है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हर धर्म लोगों को एक साथ मिलकर समाज को बेहतरी के रास्ते पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं।

मुख्यतः विश्व में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई एवं पारसी आदि प्रमुख धर्म हैं और इन सभी धर्मों का विकास लोगों को एकजुट रखने के लिए ही हुआ है। यह भी सर्वविदित है कि एक धर्म के लोगों के वर्चस्व से जनमत भी तैयार होता है। यही कारण है कि विश्व के कई प्रमुख धर्मों के धर्म प्रचारक भी हैं जो अपने धर्म के प्रचार में लगे रहते हैं। खुलकर तो लोग धर्म परिवर्तन आदि के मद्दों पर बात नहीं करते लेकिन कहीं न कहीं ज्यादा से ज्यादा लोगों का धर्मंतरण कराना और किसी एक धर्म के लोगों की संख्या बढ़ाना भी इन धर्म प्रचारकों का उद्देश्य होता है। ऐसा मानना है कि एक धर्म के लोगों के बीच एक समान विचारधारा पनपती है और फिर इस समान विचारधारा का प्रयोग राजनीतिक ध्रुवीकरण के लिए किया जाता है। इस एक समान विचारधारा के पीछे भी एकता की भावना ही है। जब एक धर्म विशेष के लोग एक जगह पर इकट्ठा होते हैं तो उनके बीच में वैचारिक एकता सीधे तौर पर परिलक्षित होती है।

मूलतः धर्मों का प्रादूर्भाव एकता की भावना को बढ़ाने के लिए ही हुआ है। लोगों के बीच अगर एकता एवं सामंजस्य न हो तो धर्म की परिकल्पना ही बेमानी हो जाती है। उदाहरण के तौर पर हिंदू धर्म में समय-समय पर कई उपवर्गों का निर्माण होता रहा है। विश्व के चार प्रमुख धर्मों – हिंदू, बौद्ध, जैन तथा सिक्ख की जन्मस्थली के रूप में भारत को जाना जाता है। इन सभी धर्मों की स्थापना का एकमात्र उद्देश्य एक प्रकार की जीवनशैली, वैचारिक सामंजस्य, साझा जीवन पद्धति का विकास एवं सामूहिक एकता के बल पर विकासोन्मुख समाज की स्थापना करना था। उदाहरण के तौर पर जीव हत्या को पूरी तरह से खत्म करने के उद्देश्य से भगवान महावीर ने जैन धर्म की स्थापना की। जैन धर्म के सभी लोग इस विचारधारा से समरसता रखते हैं। इसी प्रकार अन्य धर्म जैसे बौद्ध एवं सिक्ख धर्मों का भी प्रादूर्भाव हुआ लेकिन इन सभी धर्मों के केंद्र में एकता की ही भावना समाहित है।

जहां हिंदू धर्म “सर्वधर्म समभाव” एवं “वसुधैव कुटुंबकम” की भावना से प्रेरित है वहीं इस्लाम, “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना” का संदेश देता है। भारत विश्व में धार्मिक विविधता के बावजूद कौमी एकता का अनूठा उदाहरण पेश करता है। भारत एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है और यहां कि कुल जनसंख्या विभिन्न धर्मों के लोगों से मिलकर बनी है। इसके बावजूद यहां राष्ट्रधर्म ही सर्वोपरि है और भारत के संविधान में सभी धर्मों के लोगों को अपने-अपने धर्मों से संबंधित पद्धतियों के पालन की स्वतंत्रता है और संकट की स्थिति में राष्ट्रहित में सभी धर्मों के लोग यहां एकजुट हो जाते हैं। विश्व के धर्म प्रधान देशों, जिनमें से कुछ देशों में तो धार्मिक कट्टरवाद अपने चरम पर पहुंच चुका है, को भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र से बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है। उन्हें भारत से इस बात की प्रेरणा लेनी चाहिए की किस तरह यहां विभिन्न धर्मों के लोग राष्ट्रधर्म की भावना के साथ एकता के सूत्र में बंध कर एक साथ प्रेमपूर्वक रहते हैं और पूरे विश्व को कौमी एकता का संदेश देते हैं।

Essay on Dharm Ekta ka Madhayam Hai in Hindi

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