भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव पर निबंध (Effect of Rising Oil Prices on Indian Economy Essay in Hindi)

भारत में ऑयल मार्केटिंग कंपनियों द्वारा पेट्रोल एवं डीजल के दामों में रोजाना संशोधन होता रहता है तथा ये संशोधित कीमत (चाहे बढ़े या घटे) रिटेलर्स द्वारा प्रतिदिन अपडेट किया जाता है। पिछले कुछ सालों पर नजर डालते हैं तो हमें पता चलता है कि तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों में देखे जा सकते हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव पर छोटे एवं बड़े निबंध (Short and Long Essays on Effect of Rising Oil Prices on Indian Economy in Hindi, Bhartiya Arthvyavastha par tel ki Badhati Kimaton ke Prabhav par Nibandh Hindi mein)

दोस्तों आज मैं आप लोगों को इस निबंध के माध्यम से बढ़ते तेल की कीमतों का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव के बारे में बताऊंगा। यह निबंध आपके लिए अति उपयोगी सिद्ध होगा, इसी कामना के साथ मैं इसे आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत रहा हूँ।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव पर छोटा निबंध – 300 शब्द

प्रस्तावना

तेल आयातक देशों में भारत, चीन और अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा सबसे बड़ा देश है, भारत में तेल का सबसे अधिक आयात इराक एवं सऊदी अरब से किया जाता है। जिस देश में जितना अधिक तेल आयात होता है, उस देश की अर्थव्यवस्था उसपर उतनी ही निर्भर रहती है। इस कथन की पुष्टि आरबीआई की एक रिपोर्ट द्वारा होती है, जिसमें आरबीआई ने बताया था कि कच्चे तेल के दामों में प्रति बैरल $10 की वृद्धि से भारत सरकार को लगभग 12.5 बिलियन डॉलर का घाटा होता है। बढ़ते तेल की कीमत प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

बेतहाशा बढ़ते तेल की कीमतों का भारतीय अर्थव्यवस्था पर अत्यधिक गंभीर एवं नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि तेल के यही बढ़ते दाम भारतीय बाजारों में महंगाई के कारण बन सकते हैं, जिसके फलस्वरूप लोगों के कमाई के साथ – साथ उनके खर्च में भी गिरावट आ सकती है। कोरोना काल में लोगों की कमाई में पहले ही काफी कटौती हो चुकी है, ऊपर से तेलों के बढ़ते दाम ने इसके प्रभाव को दोगुना कर दिया है। कोरोना काल में आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से न चलने के कारण वित्तीय घाटे में अप्रत्याशित बढ़ोतरी हुई है।

संभावित हल

कुछ निम्नलिखित उपायों के द्वारा हम इस समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं-

  • आपको तो पता ही होगा की सरकार ने पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा है, अगर सरकार पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के अंदर लाती है तथा उसपर जीएसटी का सबसे उच्च दर (28 प्रतिशत) भी लागू करें तो भी पेट्रोलियम पदार्थों के दामों में बहुत ज्यादा कमी आ सकती है।
  • गैर पेट्रोलियम वाहनों के विकास को बढ़ावा देकर, क्योंकि यह अब बेहद जरूरी हो चुका है कि ऊर्जा के नए विकल्पों की तलाश की जाए।
  • हाइड्रोजन ऊर्जा एवं सौर ऊर्जा आदि नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों पर काम, पेट्रोलियम पदार्थों पर हमारी निर्भरता को कम कर सकता है। इत्यादि

निष्कर्ष

सरकार द्वारा जारी समस्त योजनाओं का खर्च, राजस्व से प्राप्त धन द्वारा ही वहन किया जाता है। कोविड-19 की वजह से देश की आर्थिक गतिविधियां काफी प्रभावित हुई है, जिसके कारण सरकार को मिलने वाले राजस्व में भी काफी कमी आयी है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव पर बड़ा निबंध – 600 शब्द

प्रस्तावना

तेल किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक मुख्य कारक है। तेल की बढ़ती कीमत किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित करने के लिए काफी है, बढ़ती तेल की कीमतों ने लोगों को खूब परेशान कर रखा है, क्योंकि बढ़ती तेल की कीमत प्रति दिन अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते जा रही है। कच्चे तेल की कीमतों में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कमी आने के बाद भी, देश में इनके दामों में कोई कमी होती नज़र नहीं आ रही है। देशवासी पेट्रोल एवं डीजल को उसके बेस प्राइज (Base Price) से तकरीबन तीन गुणा ज्यादा दाम पर खरीदने को मजबूर है।

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि का प्रभाव

  • ईंधन के खर्च पर प्रभाव

पेट्रोलियम पदार्थों के कीमतों में वृद्धि से दैनिक जीवन में इस्तेमाल होने वाले ईंधनों के मूल्यों में इजाफा हो जाता है, जिसका सीधा असर लोगों की जेब पर पड़ता है। जो लोगों के अन्य जरूरतों को प्रभावित करता है।

  • आवश्यक वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि

डीजल-पेट्रोल के मूल्यों में वृद्धि के साथ मालवाहनों का किराया भी बढ़ जाता है, जिसके कारण आवश्यक वस्तुओं (जैसे- सब्जियां, फल, आदि) के मूल्यों में भी वृद्धि हो जाती है।

  • विदेश यात्रा, शिक्षा तथा व्यापार के खर्च में वृद्धि

डीजल-पेट्रोल के मूल्य में वृद्धि से परिवहन का खर्च बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप अप्रत्यक्ष रूप से उपरोक्त खर्चों में भी वृद्धि हो जाती है।

आम लोगों तक तेल की पहुंच

पेट्रोलियम पदार्थों की कीमत कच्चे तेल के आधार पर तय नहीं की जाती क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार से इसे ग्राहक तक पहुंचने में कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है, जो निम्न हैं-

  • रिफाइनरी

इसमें अंतरराष्ट्रीय बाजार से खरीदे कच्चे तेल से डीजल, पेट्रोल तथा अन्य पेट्रोलियम पदार्थ को अलग किया जाता है।

  • कंपनियां

ये अपना मुनाफा बनाती है और पेट्रोल तथा डीजल को पेट्रोल पंप तक पहुंचाती है।

  • पेट्रोल पंप

पेट्रोल पंप का मालिक इसपर अपना तय कमीशन जोड़कर इसे ग्राहकों को बेचता है।

  • उपभोक्ता

उपभोक्ता केंद्र तथा राज्य सरकार द्वारा निर्धारित एक निश्चित एक्साइज ड्यूटी और वैट देकर तेल खरीदते हैं।

तेल की कीमत बढ़ने का कारण

लॉकडाउन के समय आवागमन के बाधित होने के कारण तेल की मांग घटकर लगभग 50-60 प्रतिशत ही रह गई थी, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत कम हो गई थी तो केंद्र एवं राज्य सरकारों ने टैक्सेज़ बढ़ा दिए। अब लॉकडाउन के बाद तेल की मांग में वृद्धि हुई तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसके कीमत में भी इजाफा हो गया। अब दोनों सरकारों द्वारा बढ़ाए गए टैक्सेज़ कम नहीं किए जा रहे हैं, यही कारण है कि तेल की कीमत में बढ़ोतरी आ रही है।

नोट-. केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए टैक्स तथा तेल का मूल्य संयुक्त रूप से बेस प्राइस कहलाता है, बेस प्राइस के ऊपर राज्य सरकार द्वारा 25-30 फीसदी अपना टैक्स लगाया जाता है।

वर्ष 2014 के बाद बढ़ाये गए टैक्सेज़

  • साल 2014 में एक्साइज ड्यूटी पेट्रोल पर 9.48 तथा डीजल पर 3.56 रुपये प्रति लीटर था।
  • इसके बाद नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 तक इसमें केंद्र सरकार द्वारा 9 बार इजाफा किया गया।
  • उसके पश्चात सिर्फ 15 सप्ताह में पेट्रोल पर 11.77 तथा डीजल पर 13.47 रुपये प्रति लीटर ड्यूटी बढ़ा दिया गया। जिसके फलस्वरूप केंद्र सरकार को 2016-17 में 2,42,000 करोड़ रुपये मिले, जो 2014-15 में मात्र 99000 करोड़ रुपये थे।
  • इसके बाद अक्टूबर 2017 में ड्यूटी में 2 रुपये की कमी तो जरूर हुई, परन्तु फिर एक साल बाद इसे 1.50 रुपये बढ़ा दिया गया।
  • उसके बाद पुनः इसे जुलाई 2019 में फिर से 2 रुपये प्रति लीटर बढ़ा दिया गया।
  • 16 मार्च 2020 तथा 5 मई 2020 को दो किस्तों में 13 रुपये तथा 16 रुपये प्रति लीटर एक्साइज बढ़ाया गया।

निष्कर्ष

पेट्रोलियम मानव के रोजमर्रा की जरूरतों में से एक है, जो प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है। हालांकि इसकी बढ़ती कीमतों ने सभी वर्गों के जीवन शैली को प्रभावित किया है, परन्तु मध्यम वर्ग के लोगों पर इसने कुछ ज्यादा ही प्रभाव डाला है। ऐसे में सरकार को चाहिए की अपने राष्ट्र के नागरिकों के हित को समझे तथा पेट्रोलियम पदार्थों के बढ़ते दामों को नियंत्रित करने के लिए उचित कदम उठाए।

इन्ही चंद शब्दों के साथ मैं अपने विचारों को विराम देता हूँ और उम्मीद करता हूँ कि उपरोक्त निबंध आपके लिए सहायक सिद्ध हुआ होगा तथा आपको पसंद भी आया होगा।

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भारतीय अर्थव्यवस्था पर तेल की बढ़ती कीमतों के प्रभाव पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (Frequently Asked Questions on Effect of Rising Oil Prices on Indian Economy)

प्रश्न.1 विश्व में सबसे अधिक कच्चे तेल का आयातक कौन सा देश है?

उत्तर-विश्व में सबसे अधिक कच्चे तेल का आयात चीन है।

प्रश्न.2 तेल आयात करने में भारत किस स्थान पर है?

उत्तर– तेल आयात करने में भारत तीसरे स्थान पर है।

प्रश्न.3 सबसे अधिक कच्चे तेल का उत्पादनकिस देश में होता है?

उत्तर-सबसे अधिक कच्चे तेल का उत्पादन अमेरिका में होता है।

प्रश्न.4 पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन को किस नाम से जानते है?

उत्तर– ओपेक (OPEC- Organization of the Petroleum Exporting Countries)

प्रश्न.5 ओपेक कुल कितने देशों का संगठन है?

उत्तर- वर्तमान में ओपेक 13 देशों का संगठन है।

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