ग्लोबल वार्मिंग का तात्पर्य मीथेन और कार्बन जैसी हानिकारक ग्रीनहाउस गैसो के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी के तापमान में हो रहा लगातार बदलाव से है। यह गैसे पृथ्वी के तापमान को और भी ज्यादे गर्म बनाती जा रही है। ग्लोबल वार्मिंग के इतिहास का आरंभ औद्योगिक क्रांति के शुरुआत से हुआ है। इस विषय में पिछले दो दशक से कई सारे शोध चल रहे है, पर वह बीसवीं शताब्दी का समय था, जब वैज्ञानिको द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के सिद्धांत को लोगो के सामने प्रस्तुत किया गया।
ग्लोबल वार्मिंग के इतिहास पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on History of Global Warming in Hindi, Global Warming ka Itihas par Nibandh Hindi mein)
निबंध – 1 (300 शब्द)
प्रस्तावना
इन हानिकारक गैसों की मात्रा में वृद्धि के लिए बढ़ती आबादी, शहरीकरण, प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग और कारखानों की बढ़ती संख्या सहित विभिन्न अन्य कारणो को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
ग्लोबल वार्मिंगः इतिहास
लगभग एक शताब्दी पहले, शोधकर्ताओं द्वारा कार्बन उत्सर्जन के कारण पृथ्वी के सतह के बढ़ते तापमान को लेकर चिंता व्यक्त की गया थी। कार्बन और दूसरे हानिकारक गैसो के बढ़ते स्तर के कारण ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हुई है। वैज्ञानिको द्वारा बीसवीं सदी के मध्य से ही इस विषय को लेकर शोध और जानकारी इकठ्ठा की जा रही है, इन शोधो से पता चला है कि पिछले एक शताब्दी में पृथ्वी का तापमान बहुत ही खतरनाक रुप से बढ़ गया है।
ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हमारे वायुमंडल में भीषण रुप से परिवर्तन हुआ है। यहां ग्लोबल वार्मिंग के द्वारा होने वाले कुछ प्रभावो के विषय में बताया गया हैः
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर पिघलने लगे है, जिसके कारण महासागरों और समुद्रो में जल का स्तर बढ़ने लगा है और समुद्रो का यह बढ़ता जलस्तर तटीय क्षेत्रो में रहने वाले लोगो के लिए एक संकट बनता जा रहा है।
- ग्लोबल वार्मिंग का वर्षा के क्रम पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। जिससे कई सारे क्षेत्रो में सूखे जैसे स्थिति उत्पन्न हो गयी है वही कुछ क्षेत्रो में भीषण वर्षा जैसी समस्या उत्पन्न हो गई है।
- इसी के कारण से ताप के लहर की तेजी काफी बढ़ गयी है, जिसके कारण कई सारी स्वास्थ्य संबधी बीमारियां उत्पन्न हो गयी है जैसे कि लू लगना और सरदर्द आदि।
- इसके अलावा वायुमंडल में उत्सर्जित होने वाली हानिकारक गैसो का महासागरों द्वारा अवशोषण कर लिया जाता है, जिसके कारण महासागर अम्लीय होते जा रहे है। जिसके कारण समुद्री जीवन पर भी संकट आ गया है।
- कई सारे जीव-जन्तु और पशु-पक्षी ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न हुई जलवायु परिवर्तन की समस्या का सामना नही कर पा रहे है। जिसके कारण कई सारी प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो चुकी है या फिर विलुप्त होने के कगार पर है।
- ग्लोबल वार्मिंग के ही कारण कई सारी स्वास्थ्य समस्याएं भी उत्पन्न हो गयी है। इसी के कारण लोगो में फेफड़ो का संक्रमण, चक्कर आना के साथ ही और कई सारी गंभीर बीमारियां उत्पन्न हुई है।
निष्कर्ष
इस प्रकार से, ग्लोबल वार्मिंग एक वैश्विक चिंता का कारण बन गयी है, यह वह समय है जब हमें इस समस्या को गंभीरता से लेना होगा और इसके समाधान के लिए साथ मिलकर प्रयास करना होगा।
निबंध – 2 (400 शब्द)
प्रस्तावना
ग्लोबल वार्मिंग मनुष्य की कई सारी दैनिक गतिविधियों का नतीजा है। हमारा ग्रह इतने शताब्दियों से सुरक्षित हैं क्योंकि मनुष्य इसके बहुत ही करीब था और एक समान्य जीवन जीता था। एक तरफ जहा प्रौद्योगिक प्रगति के कारण लोगो का जीवन आसान बन गया है, वही दूसरी तरफ पर्यावरण पर इसके कई सारे नकरात्मक प्रभाव है। ग्लोबल वार्मिंग प्रोद्योगिकी के सबसे बड़े दुष्परिणामो में से एक है, जिसका नकरात्मक प्रभाव हमारी इस खूबसूरत पृथ्वी पर पड़ता है।
ग्लोबल वार्मिंग का इतिहास
19 शताब्दी के अंत में ऐसा देखा गया था कि आने वाले समय में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि होगी, जिसका कारण वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन की बढ़ती मात्रा होगी। लेकिन इस विषय को साबित करने के लिए कोई ठोस प्रमाण नही था। वह 1938 का समय था, जब पिछले 50 वर्षो में एकत्रित की गयी जानकारियों के आधार पर ग्लोबल वार्मिंग के सिद्वांत की उत्पत्ति हुई है। इन इकठ्ठा की गयी जानकारियों में यह साफ-साफ दिख रहा था कि इन बीते वर्षो में हमारे ग्रह का तापमान बढ़ा है। इस विषय को लेकर लोगो में जिज्ञासा बढ़ी और जिसके बाद कई वैज्ञानिक तथा शोधकर्ता इस विषय के अध्ययन में शामिल हो गए।
1970 और 1980 के बीच में पृथ्वी के तापमान में वृद्धि देखने को मिली और इसी समय इसे ग्लोबल वार्मिंग का नाम दिया गया। तब से लेकर अब तक पृथ्वी के तापमान में ही वृद्धि देखने को मिली है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन
शोध द्वारा पता चला है कि पिछले सदी से लेकर अब तक हमारा ग्रह में कई तरह के परिवर्तन हुआ है। नासा के द्वारा किये गए एक शोध से पता चला है कि 1980 से लेकर अबतक पृथ्वी का तापमान 1.4 डिग्री फारेनहाइट बढ़ गया है।
और यह लगातर बढ़ता ही जा रहा है, 20 सदी के शुरुआत से ग्रीन हाउस गैसो के उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि काफी खतरनाक है और अनुमान लगाया जा रहा है कि यदि वैश्विक गतिविधियों को नियंत्रित नही किया गया, तो आने वाले समय में यह स्थिति और बदतर हो सकती है।
पिछले दो दशको में जलवायु में कई प्रकार के परिवर्तन देखने को मिले है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर भी पिघलने लगे है, जिसके कारण ध्रुवीय क्षेत्रो के तापमान की में वृद्धि हुई है। इससे पहले हमारा ग्रह इतने बुरे तरीके से कभी प्रभावित नही हुआ था, हमारे ग्रह पर इससे पहले कभी भी इतनी तीव्र ताप लहरो का अनुभव नही किया गया था, जितना की वर्तमान में देखने को मिल रहा है। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग के ही कारण मौसम चक्र में भी परिवर्तन हुआ है।
निष्कर्ष
विभिन्न मानवीय गतिविधियों के द्वारा उत्पन्न होने वाली ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के कारण हमारे ग्रह का तापमान बढ़ता जा रहा है और इस समस्या का कारण तो हमें पता चल ही चुका है। तो अब हमें और समय नही व्यर्थ करना चाहिए और इस विषय को लेकर सार्थक उपायो को अपनाते हुए, इसके समाधान के लिए प्रयास करना चाहिए।
निबंध – 3 (500 शब्द)
प्रस्तावना
ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान काफी बुरे तरीके से प्रभावित हो गया है। जिसका कारण कई सारी मानवीय गतिविधियां है, ग्लोबल वार्मिंग के हमारे ग्रह पर कई सारे नकरात्मक प्रभाव पड़ते है। हालांकि इन दिनो ग्लोबल वार्मिंग शब्द का उपयोग काफी व्यापक रुप से हो रहा है, परन्तु इसकी कई सारे तथ्य और घटनाएं है जिससे एक समान्य व्यक्ति अवगत नही है।
ग्लोबल वार्मिंग के तथ्य
यहा ग्लोबल वार्मिंग के विषय में कुछ तथ्य दिये गए है। जिसमें ग्लोबल वार्मिंग के कारणो की संक्षिप्त जानकारी दी गयी है कि आखिर यह कैसे हमारे ग्रह के पूरे जलवायु को परिवर्तित करता है।
- पिछले एक शताब्दी के मुकाबले पृथ्वी के सतह का तापमान 1.62 डिग्री फारेनहाइट बढ़ चुका है।
- पिछले चार दशको पृथ्वी के तापमान में काफी वृद्धि देखी गयी है, जिसने ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में अपना योगदान दिया है।
- जीवाश्म ईंधन के दहन, जनसंख्या वृद्धि, कचरे का इकठ्ठा होना और वनोन्मूलन जैसी कई सारी मानवीय गतिविधियो के कारण ग्लोबल वार्मिंग की यह समस्या उत्पन्न हुई है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर भी पिघलने लगे है, जिसके कारण समुद्र स्तर में वृद्धि हुई है। जिसके कारण से तटीय क्षेत्रो में बाढ़ की संभावना बढ़ गयी है और इन क्षेत्रो में रहने वाले लोगो के अंदर बारिश के मौसम में हमेशा बाढ़ के चपेट में आने का भय बना रहता है।
- शोधकर्ताओं का दावा है कि आने वाले समय में समुद्र स्तर 7-23 इंच तक बढ़ जायेगा।
- शोधकर्ताओं का दावा है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ताप की धाराओं की तेजी काफी बढ़ गयी है। जिसके कारण सन स्ट्रोक जैसी समस्याएं उत्पन्न हो गयी है। पिछले एक दशक में सन स्ट्रोक के समस्या से जूझ रहे लोगो की संख्या में काफी वृद्धि हुई है।
- ताप के लहरो की बढ़ती तेजी के ही कारण पृथ्वी के कई स्थानो में लगातार जंगलो में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही है।
- ग्लोबल वार्मिंग के ही कारण कई सारे ग्लेशियर काफी तेजी से पिघलते जा रहे है। पिछले कुछ दशको में इसी कारण से कई सारे बड़े ग्लेशियर पिघल चुके है। सन् 1910 में मोंटाना नेशनल पार्क में 150 ग्लेशियर थे, परन्तु आज के समय में मात्र 25 ग्लेशियर बचे है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही विश्व भर में हरिकेन, तूफान और सूखे जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही है।
- ग्लोबल वार्मिंग के प्रतिकूल प्रभावो के कारण ही अब तक पृथ्वी पर से दस लाख से ज्यादे प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और कई विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण आर्कटिक क्षेत्र की बर्फ पिघलने लगी है और ऐसा अनुमान लगाया गया है कि सन् 2040 की गर्मी तक आर्कटिक क्षेत्र पूरे तरीके से बर्फ से मुक्त होगा। यह वह स्थान होगा जो ग्लोबल वार्मिंग की इस घटना से सबसे बुरे तरीके से प्रभावित होगा।
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण आने वाले समय में भोजन और पानी में काफी कमी होनी वाली है, जो कि पृथ्वी के सभी जीवित जीवो के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन जायेगा।
- ठंडे इलाको में निवास और प्रजनन करने वाली पेड़-पौधे और प्रजातियां आने वाले दिनो में विलुप्त हो जायेंगी, क्योंकि यह ठंडे स्थान ग्लोबल वार्मिंग के कारण दिन-प्रतिदिन गर्म होते जा रहे है।
निष्कर्ष
इस प्रकार से हम कह सकते है कि ग्लोबल वार्मिंग हमारे पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ रहा है, जिससे इसके अंतर्गत निवास करने वाले जीवो के लिए जिंदा रहना दिन-प्रतिदिन कठिन होते जा रहा है। यह वह समय है जब हमें अपनी मानवीय गतिविधियों पर काबू करना होगा, जिससे ग्लोबल वार्मिंग की इस समस्या को नियंत्रित किया जा सके।
निबंध – 4 (600 शब्द)
प्रस्तावना
ग्लोबल वार्मिंग के सिद्धांत और पृथ्वी पर इसके होने वाले प्रभावो के विषय में आज के समय में लगभग सभी को पता है। इंटरनेट, न्यूज चैनल और न्यूज पेपरो में इस विषय कि काफी चर्चा होती है। उनके द्वारा इस विषय पर अपनी जानकारी सामान्य जनता के बांटी जाती है।
ग्लोबल वार्मिंग की घटना जिसे पूर्व में नकारा गया
ग्लोबल वार्मिंग की इस घटना के विषय में कुछ दशक पूर्व तक लोगो को कोई विशेष जानकारी नही थी। वास्तव में वैज्ञानिको और शोधकर्ताओं जिन्होंने इस विषय का करीब से अध्ययन किया है, उन्होने इस बात की पुष्टि की है यदि इस समस्या को अभी भी गंभीरतापूर्वक नही लिया गया तो, भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामों को टाला नही जा सकता है। उनके सिद्धांतो को हल्के में नही लिया जा सकता ना ही इसे पूर्ण रुप से नकारा जा सकता है। पहले इस बात पर बहस हुआ करती थी कि मानव गतिविधियां इतनी शक्तिशाली नही है कि हमारे ग्रह पर कोई विशेष प्रभाव डाल सके, लगभग एक शताब्दी पहले किसी ने यह सोचा भी नही था कि आने वाले समय में यह इतना बड़ा संकट बन जायेगा।
ग्लोबल वार्मिंग के सिद्धांत की शुरुआत
हालांकि, जलवायु पर मानव गतिविधियों के प्रभाव से जुड़े अनुसंधानो को काफी हद तक महत्व नहीं दिया गया था। इस विषय में रुचि रखने वाले लोगों ने पृथ्वी के तापमान पर बारीकी से नजर रखी और इसके माध्यम से होने वाले परिवर्तनों को ध्यान में रखा, उन्होंने ध्यान देने योग्य परिवर्तनों पर विशेष नजर रखी।
यह 1896 का समय था, जब एक स्वीडिश वैज्ञानिक स्वेंटे अरनियस ने इस बात का सुझाव दिया कि वायुमंडल में कार्बन उत्सर्जन की बढ़ती मात्रा के कारण पृथ्वी का वातावरण बदल रहा है। हालांकि उस वक्त उनके अध्ययन को ज्यादा तवज्जो नहीं दी गयी, क्योंकि उस समय वैज्ञानिकों का मानना था कि धरती पर पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने का अपना तरीका है और इस प्रकार के कारणो का हमारे ग्रह के पर्यावरण या जीवन पर कोई व्यापक प्रभाव नहीं पड़ता है।
यह 1930 का समय था जब एक इंजीनियर ने इस विषय को लेकर अध्ययन और जानकारी इकठ्ठा की, जिसमें यह पता चला कि पिछले 50 वर्षो में पृथ्वी के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हुई थी। यह पहली बार था जब इस विषय को गंभीरता से लिया गया ओर शोधकर्ताओं को इस बात का संदेह हुआ की आने वाले समय में यह एक बहुत ही गंभीर समस्या बन जायेगा।
हालांकि अगले तीन दशको में इस तापमान में गिरावट देखी गयी और इस तापमान में लगभग 0.2 डिग्री सेंटीग्रेट की कमी आयी। लेकिन यह ज्वालामुखी विस्फोट और उस समय के औद्योगिक गतिविधियों के कारण हुई। इसके कारण काफी ज्यादे मात्रा में सल्फेट एरोसोल वायुमंडल में जमा हो गया। वायुमंडल में फैले एरोसोल के कारण सूर्य की उष्मा और ऊर्जा अंतरिक्ष में परावर्तित हो गयी है। जिसके कारण पृथ्वी के जलवायु पर प्रभाव पड़ा।
हालांकि इस सल्फेट एरोसोल की मात्रा को कम करने के लिए कई सारे मानवीय गतिविधियों को नियंत्रित किया गया, जिससे हमारा वायुमंडल का साफ-सुथरा बना रहा। लेकिन 1970 से पृथ्वी के तापमान बढ़ने में एक बार फिर से वृद्धि देखी गयी और पृथ्वी का यह बढ़ता हुआ तापमान एक चिंता का विषय बन गया है और इसी वजह से शोधकर्ताओं द्वारा इस पर हमेशा नजर रखी जाती है।
अंततः जब ग्लोबल वार्मिंग की अवधारणा को मान्यता प्राप्त हुई
यह 1975 का एक शोध पत्र था जिसमें पहली बार ग्लोबल वार्मिंग शब्द का प्रयोग किया गया। इसके बाद भी 1980 तक तापमान ऐसे ही बढ़ता रहा और यह एक चिंता का विषय बन गया। यह वह समय था जब इस घटना को लेकर सामान्य जनता जागृत हुई। यह समस्याएं उस समय में मीडिया द्वारा भी उठायी गयी थी और इसी समय के दौरान ही वायुमंडल में ग्रीन हाअस गैसो के प्रभाव को लेकर भी चर्चा शुरु हुई, शोधो से पता चला है कि 21 शताब्दी में अभी इसके और भीषण परिणाम देखने को मिलेंगे।
उस समय के वैज्ञानिको ने अनुमान लगाया कि वायुमंडल में हो रहे कई सारे बदलाव ग्लोबल वार्मिंग के कारण हो रहे है। कई सारी घटनाओं में हो रहे प्रत्याशित बदलाव जैसी कि महासागर स्तर में वृद्धि, जंगलो में तेजी से पकड़ती आग और तेजी से बढ़ रही ताप लहरे आदि जैसी घटनाएं 21 सदी के शुरुआत से ही दिख रही है और अब के समय में एक आम बात हो चुकी है।
निष्कर्ष
ग्लोबल वार्मिंग अब एक गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। यह वर्ष प्रति वर्ष हमारे वायुमंडल को और भी ज्यादे हानि पहुंचाते जा रहा है और यदि इसे समय रहते रोका नही गया, तो एक दिन यह हमारे सामूहिक विनाश का कारण बनेगा।
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