मेरा प्रिय विषय पर निबंध (My Favourite Subject Essay in Hindi)

हमारे पाठ्यक्रम में कई विषय होते हैं, जिसमें से कुछ विषय हमें उबाऊ लगते है, तो कुछ को हम बिना रूके बिना थके घंटो तक पढ़ सकते है, ऐसे ही विषय को प्रिय विषय की संज्ञा दी गयी है। जहां कइयों को गणित बहुत रूलाती है, तो वहीं कुछ को गणित से खेलने में बड़ा मजा आता है। ये हमेशा एक-सा नहीं रहता, समय और रूचि के अनुसार उम्रभर बदलता रहता है, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं, हमारी आवश्यकताएं बदलती जाती है, उसी के अनुरूप हमारे शौक और पसंद भी बदल जाते है। यहां हम ‘मेरा प्रिय विषय’ पर छोटे तथा बड़े दोनों प्रकार के शब्द सीमाओं में बंधे निबंध उपलब्ध करा रहे हैं, आप अपनी आवश्यकतानुसार चुन सकते हैं।

मेरा प्रिय विषय पर छोटे-बड़े निबंध (Long and Short Essay on My Favourite Subject in Hindi, Mera Priya Vishay par Nibandh Hindi mein)

मेरा प्रिय विषय: चित्रकारी – निबंध 1 (300 शब्द)

प्रस्तावना

जब नर्सरी में मेरा दाखिला हुआ, मुझे स्कूल जाना बिल्कुल पसंद नहीं था। लेकिन जैसे-जैसे मेरी दोस्ती रंगो से हुई, मैने स्कूल को ही अपना घर और रंगो को अपना दोस्त बना लिया, बस फिर क्या था, मै दिनभर कक्षा में चित्रकारी ही किया करती थी, और सिर्फ स्कूल में ही नहीं, घर में भी। मुझे अलग-अलग रंगो से खेलना बहुत भाता था, और इस तरह मै हर समय व्यस्त भी रहती थी, और मेरे माता-पिता को मुझे सम्भालने के लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी पड़ती थी। वो मुझे अलग-अलग प्रकार के रंग दिया करते थे।

चित्रकारी से मेरा लगाव

इसका पूरा श्रेय मेरी कक्षा-अध्यापिका को जाता है। ये उन्ही की देन थी जिस कारण मेरा रूझान इस ओर हुआ। उनका चीजों को समझाने का तरीका इतना शानदार होता था, कि ना चाहते हुए भी आपका मन उस विषय में रम जाए। वो हर चीज को बड़े ही रचनात्मक तरीके से कहानी के माध्यम से बड़े ही रोचक तरीके से वर्णन करती थी, जिससे मन में हर वस्तु की छवि उभर जाती थी। मुझे हर वस्तु को रंगो में पिरोना अच्छा लगता था, धीरे-धीरे यह मेरा पसंदीदा विषय बन गया।

जैसे-जैसे मेरी उम्र बढ़ी, मुझे चित्रकारी की अलग-2 विधाओं से प्रेम होने लगा। मेरी अध्यापिका ने मुझे अलग-अलग चित्रण शैली से अवगत कराया, जिसमें मुख्यतः रेखीय चित्रण, कांच-चित्रण, एवम् तैलीय चित्रण है। मै ग्रीष्म-कालीन विविध प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेती थी और ईनाम भी जीतती थी।

पर्यावरणीय अध्ययन अन्य प्रिय विषय

बड़ी कक्षाओं में पहुंचकर हमें कुछ नये विषयों के बारे में भी पता चला, जिससे ध्यानाकर्षण नये-नये विषयों में हुआ। मुझे इन सबमें पर्यावरणीय अध्ययन ने सबसे ज्यादा आकर्षित किया। ड्राइंग के बाद ये दूसरा ऐसा विषय था जिसने मुझे सबसे अधिक आकृष्ट किया, क्योकि ये भी हमे प्रकृति से जोड़ कर रखने और उसके बारे मे जानने का अवसर प्रदान किया। इससे हमे पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, जल, वायु आदि के बारे में जानकारी मिलती है।

निष्कर्ष

पर्यावरणीय अध्ययन में पर्यावरण का अध्ययन होता है, और साथ ही चित्रकारी करने को भी मिलती है, इसलिए ये दोनो विषय मुझे सर्वाधिक प्रिय है।

मेरा प्रिय विषय: इतिहास – निबंध 2 (400 शब्द)

प्रस्तावना

मै बहुत से मामलों में बहुत चूजी रही हूं, जिन्दगी जीने का तरीका हमेशा औरो से जुदा रहा है। मुझे भीड़ में खोना पसंद नहीं। आप अलग तभी दिखोगे जब अलग करोगे, इसी सोच के साथ मै बड़ी हुई। हमेशा लोगो से अलग करमे की चाह, मेरी रूचि और व्यक्तित्व को भी औरो से अलग रखा। जो विषय दूसरे छात्रो को उबाऊ प्रतीत होते थे, मुझे मजेदार लगते थे। इसका जीवंत उदाहरण इतिहास विषय रहा, जो किसी को नहा भाता था, मेरा सर्वाधिक प्रिय विषय रहा।

इतिहास – मेरा प्रिय विषय

जहां आजकल सभी अभिभावक अपने बच्चो को केवल विज्ञान और गणित पढ़ाने के इच्छुक रहते है, मेरे मां-बाप भी इसके अपवाद नहीं थे, मेरा रूझान कला और कला-वर्ग के विषयों के तरफ देखकर उनके आश्चर्य का ठिकाना न था। फिर भी उन्होने ने सेरे पसंद का मान रखा, और अपने पसंदीदा विषय को पढ़ने की पूरी आजादी दी।

बहुत ही गौरवशाली इतिहास रहा है हमारा। मै बहुत ही आश्चर्यचकित होती हूं, कैसे किसी को अपनी सभ्यता-संस्कृति के बारे में पढ़ना अच्छा नहीं लगता। मुझे इतिहास पढ़ना बहुत पसंद है, तत्कालीन राजा-रानी कैसे शासन किया करते थे, कौन-कौन शासक अपनी प्रजा के प्रति दयालु था, कौन क्रूर, इनका पता केवल इतिहास से ही संभव है।

प्राचीन-काल मे भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था, जिस कारण तमाम विदेशी आक्रमणकारियों की बूरी नज़र हमेशा देश पर बनी रही, जिसका खामियाजा हमारे देश को अपनी आजादी खो कर चुकाना पड़ा। अरबी, फ्रांसीसी, डच, पुर्तगाली, आदि आए और लूटकर चले गए, किन्तु अंग्रेजो ने लूटा ही नहीं वरन् हमारे देश की आत्मा को अंदर तक छलनी कर दिया।

किसी भी देश की आजादी उसके अपने देश के लोगो के हाथ में होती है, हमारा देश परतंत्र हुआ, इसका कहीं न कहीं उत्तरदायी तत्कालीन लोग और उनकी सोच भी है। हम ऐसा इसलिए कह पा रहे हैं, क्योंकि अगर भारतीय शासक अपने स्वार्थ के वशीभूत बाबर को न्यौता नहीं दिया होता, तो कभी भारत पर मुगलों का साम्राज्य न होता, इसी प्रकार जहांगीर के दरबार में आए अंग्रेज आगंतुक हॉकिंस को उसी वक्त़ लौटा दिया होता तो अंग्रेज हम पर 350 साल राज नहीं करते। ये सब चीजें हमें इतिहास से ही मालूम पड़ती है।

निष्कर्ष

इतिहास हो या कोई भी विषय, मैं हर विषय को समान वरीयता देती हूँ। कला वर्ग के सभी सब्जेक्ट अपने आप में खास होते है। इतिहास से जहाँ हमारे गौरवशाली अतीत के बारे में पता चलता है, वहीं दूसरी ओर अपनी कमियाँ भी दिखाई देती है, जिनसे सबक लेकर हम खुद में और समाज में सुधार कर सकते है।

Essay on My Favourite Subject

मेरा प्रिय विषय – अंग्रेजी – निबंध 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना

व्यक्ति की रूचि उसके व्यक्तित्व का आइना होता है। हर आदमी अपनी पसंद के हिसाब से ही चीजों को चुनता है, बात चाहे प्रिय खाने की हो, कपड़ो की हो या प्रिय विषय की ही क्यों न हों। मेरा शुरू से प्रिय विषय अंग्रेजी रहा है, चूंकि शुरू से हमारे समाज में यह बीजारोपण किया जाता है, अगर अंग्रेजी नहीं सीखा तो किसी स्कूल में दाखिला नहीं मिलेगा, अच्छी शिक्षा नहीं होगा। अच्छी शिक्षा नहीं होगी तो अच्छा करियर नहीं बन पायेगा, अच्छे करियर के बिना आप अच्छे भविष्य की संकल्पना नहीं कर सकते। इन कारणों से भी यह मेरा प्रिय विषय बना।

प्रिय विषय – अंग्रेजी

कहते है न, आप जैसा बीज रोपेगें, फल भी आपको उसी का मिलेगा। यह बात हर जगह लागू होती है। अंग्रेजी पढ़ना मेरे लिए शौक बन गया है, मैं कभी भी इसे पढ़-लिख सकती हूं। चूंकि आजकल इस भाषा में ही सारे विषय होते है, इसी बहाने सब विषय पढ़ लेती थी, मुझे पढ़ना अच्छा भी लगता था और सब विषय तैयार भी हो जाते थे।

  • मां मेरी प्रेरणा

इसका एक और कारण मेरी मां का मुझे बचपन में कहानियां सुनाना भी है। वो मुझे अलग-अलग राजाओं-महाराजाओं और परियों की कहानियां सुनाया करती थी, जिसे सुनने में मुझे बड़ा मजा आता था। धीरे-धीरे अपनी मां को देखकर मुझे भी पढ़ने का शौक चढ़ गया। वो खुद भी पढ़ती थी और मुझे भी प्रेरित करती थी, किताबें पढ़ना आपके ज्ञान को विस्तार देता है साथ ही आपकी सोचने की शक्ति को भी बढ़ाता है।

पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी मेरे शौक का भाग बन गया। यह अचानक नहीं हुआ,शुरूवाती चरणों का नतीजा था। अब मैनें निबंध,आर्टिकल,छोटे-बड़े लेख लिखना शुरू कर दिया है। इन्हीं सब कारणों से यह मेरा सर्वाधिक प्रिय विषय बन गया।

  • विद्यालय का पूर्ण सहयोग

मैं अपनी कक्षा में औसत दर्जे की छात्रा रही, पर जब बात अंग्रेजी विषय की आती है मेरा प्रदर्शन सबसे अच्छा हो जाता है। इसका कुछ श्रेय मेरी विषय-अध्यापिका को भी जाता है। उनका मुझे कदम-कदम पर उत्साहित और प्रेरित करना मेरे प्रदर्शन को कई गुना बढ़ा देता है। यहां तक की कई बच्चे अपनी समस्या लेकर मेरे पास आते है, और मै उनका समाधान कर देती हूं। मुझे अपार खुशी मिलती है। इतना ही नहीं, जब टीचर मेरी पीठ थपथपाती है, तो मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। यह मुझे और अच्छा करने का प्रेरणा देता है। इस कारण मैं हर समय खुद को अपडेट रखती हूं, अपने कौशल को निखारती रहती हूं।

आपका का किसी भी विषय में अच्छा होना, पूरा का पूरा आपके पसंद पर निर्भर करता है। जब हमें कोई चीज अच्छी लगती है तो उसे हम बार-बार करते हैं, लगातार प्रयास से किसी भी क्षेत्र में कमांड किया जा सकता है। प्रसिध्द कहावत है, “करत-करत अभ्यास ते, जड़मति होत सुजान। रसरी आवत-जात है, सिल पर पड़े निसान”।

निष्कर्ष

आपकी सफलता में बड़े-बूढ़ो का बहुत बड़ा हाथ होता है, खासकर माता-पिता और गुरू जनों का। केवल एक शिक्षक ही ऐसा आदमी होता है जो अपने बच्चो की तरक्की चाहता है वरना दूसरा कोई पेशा लोगों की सलामती की कामना नहीं करता। इंग्लिश में मेरा रूझान और समय की मांग को देखकर मेरे पिता ने मुझे इसी क्षेत्र में आगे बढ़ने की इजाजत भी दी और मेरा हौसला भी बढ़ाया।

मेरा प्रिय विषय: गणित – निबंध 4 (600 शब्द)

प्रस्तावना

हमारी पसंद समय के साथ बदलती रहती है। फेवरेट कलर, खाना, आदमी, या फिर खेल। हर जगह यह नियम काम करता है। बचपन में हमें कुछ और पसंद होता है, जैसे-जैसे बड़े होते हैं, हमारे पसंद भी शिफ्ट होते जाते है। बहुत बच्चों को प्राइमरी स्कूलों में कुछ खास सब्जेक्टस् ही पसंद होते है, धीरे-धीरे जब वे बड़े होते हैं, तो अपनी मानसिक क्षमता और रूचि के अनुसार सब्जेक्ट शिफ्ट कर देते हैं, मैं भी इसका अपवाद नहीं।

गणित – प्रिय विषय

प्री-प्राइमरी में औसतन सभी बच्चों को ड्राइंग पसंद होता है, मुझे भी पसंद था। प्राइमरी तक आते-आते मेरा मन ड्राइंग से उचट गया। प्राइमरी में खेल-खेल में गिनती- पहाड़ा सीखते-सीखते गणित से लगाव हो गया। जब क्लास में 10 तक की गिनती सिखाई जाती थी, मेरी मां ने मुझे 50 तक गिनती सिखा दिया था। मेरी मां मुझे घर का काम करते-करते काउंटिंग कराती थी। बचपन में फ्रूट गिनना, बर्तन गिनना बड़ा अच्छा लगता था। इसी तरीके से मेरी मां ने मुझे जोड़-घटाना बड़ी आसानी से सीखा दिया था। जहां दूसरे बच्चों को जोड़-घटाने में परेशानी होती थी, वहीं मैं बड़ी आसानी से फटाफट कर लेती थी।

गणित में मेरी रूचि को देखकर मेरी मां ने मेरा दाखिला अबेकस क्लास में करवा दिया। मुझे अबेकस की मदद से सवाल लगाने में बहुत मजा आता था, अबेकस ने मुझे मैथ समझने में बहुत मदद की, साथ ही साथ मेरे ज्ञान को बढ़ाने में भी।

गणित में मेरा रूझान मेरे भाई के कारण भी है। वो दिनभर मैथ लगाते रहते, जिस कारण मैं भी उनका नकल करने बैठ जाती और देखते ही देखते मैंने कठिन सवाल लगाना सीख लिया, अब इसमें मुझे मजा आने लगा। धीरे-धीरे क्लास में मेरा प्रदर्शन अच्छा होता चला गया, अक्सर मुझे मैथ में पूरे नंबर मिलते। जिस कारण मै पूरे जोश में रहती और मेहनत करती, जिससे सबकी तारिफें मिले।

अब मुझे कठिन-कठिन सवालों को क्रैक करना अच्छा लगता था, मैथ ओलंपियाड में मैने हिस्सा भी लिया और अच्छा स्कोर भी किया। यहां अच्छा स्कोर करने के कारण अब मुझे स्कूल की तरफ से इंटर-स्कूल मैथ ओलंपियाड में भी भेजा जाने लगा। मेरे बहुत से क्लासमेट्स मुझसे मैथ के सवाल पूछने आते। कई तो मेरे पास कठिन टॉपिक सीखने आते, मै उन सभी का भरपूर मदद करती, जहां भी उन्हे जरूरत हो।

फ्रेंच से लगाव

चूंकि में मैथ में अच्छी हूं, मेरे नाम की सिफारिश विभिन्न गणितीय प्रतियोगिताओं में किया जाता है, फिर भी मेरा मन एक नई भाषा सीखने को आतिर हो उठा जब मेरे स्कूल में विदेशी भाषा का भी विभाग खुला। नई चीजो को सीखने का एक अलग ही रोमांच होता है, मेरे अंदर भी था। जब हम 9वीं स्टैंडर्ड में थे, तो हमें संस्कृत और फ्रेंच में से कोई एक विषय चुनना था, मेरे मां-पापा ने मुझे संस्कृत चुनने की सलाह दी, ये कह कर कि यह हमारी भाषा है, देववाणी है, फिरंगी भाषी सीखने का क्या लाभ। लेकिन मैंने किसी की एक नहीं सुनी, अपनी मन की आवाज को सुनते हुए एक बिल्कुल नई भाषा फ्रेंच को तीसरी भाषा के रूप में चुन लिया।

मैने अपने इस फैसले को सही साबित करने के लिए खूब मेहनत की। इसमें मेरी फ्रेंच टीचर ने बहुत मदद की और हर कदम पर मेरा मार्गदर्शन किया। वो हमे बड़ी ही सरल भाषा में सिखाती थी, वो बड़े ही आकर्षक तरीके से सब कुछ नरेट करती थी, जो बड़ा ही रोचक लगता था।

मेरे मां-पापा को डर था कि कहीं नई भाषा के कारण मेरी रैंकिग न खराब हो जाए, उनका डर वाजिब भी था, क्योंकि उस साल मेरे साथ फ्रेंच लेने वाले तमाम बच्चे फेल हो गए थे। पर मेरी अच्छी रैकिंग देखकर उनका यह डर भी चला गया। बाद में मेरे इस भाषा को चुनने के फैसले को सराहा।

निष्कर्ष

निःसंदेह मेरा पसंदीदा विषय मैथ है, पर मुझे फ्रेंच भी उतना ही पसंद है। मैने सोच लिया है आगे की पढ़ाई भी इसी में करूंगी और इसी में अपना करियर बनाउंगी।

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