लाल बहादुर शास्त्री पर निबंध (Lal Bahadur Shastri Essay in Hindi)

लाल बहादुर शास्त्री एक सच्चे देशभक्त थे, जिन्होंने स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रुप में काम किया। इसके साथ ही उन्होंने भारत के स्वाधीनता संग्राम में भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था। वह भारत के महत्वपूर्ण नेताओं मे से एक थे। जिन्होंने देश के स्वाधीनता के लिए लड़ाई लड़ी और औरो को भी इस संघर्ष में साथ आने के लिए प्रेरित किया। उनका जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के समीप मुगलसराय में हुआ था। लगभग 20 वर्ष के ही आयु में वह स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गये थे।

लाल बहादुर शास्त्री पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Lal Bahadur Shastri in Hindi, Lal Bahadur Shastri par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (400 शब्द)

प्रस्तावना

लाल बहादुर शास्त्री अपने समय में देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। उन्होंने महात्मा गाँधी के नेतृत्व में स्वाधीनता संघर्ष में भी हिस्सा लिया था। वह हमेशा गाँधी जी के सत्य और अहिंसा की नीतियों का पालन करते थे। आजादी के बाद उन्होंने कई महत्वपूर्ण राजनीतिक पदो को संभाला, इस दौरान उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए लोग सदैव ही उनकी प्रशंसा किया करते थे।

भारत के प्रधानमंत्री के रुप में लाल बहादुर शास्त्री

पंडित जवाहर लाल नेहरु के अकस्मात निधन के पश्चात, कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के. कामराज ने अगले प्रधानमंत्री के रुप में शास्त्री जी के नाम का सुझाव दिया। जिसपर पार्टी के दुसरे नताओं ने उनका समर्थन किया और इस प्रकार से शास्त्री जी देश के दुसरे प्रधानमंत्री बने।

जब शास्त्री जी ने राष्ट्रीय एकता और शांति को बढ़ाया

शास्त्री जी ने धर्म निरपेक्षता के विचार को बढ़ावा दिया और देश की एकता तथा शांति व्यवस्था को बरकरार रखा और इसके साथ ही दूसरे देशो के साथ संबंधो को मजबूत करने का भी कार्य किया।

उनके कार्यकाल में नेहरु मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों ने अपने जिम्मेदारियों का पूर्व की तरह पालन किया। इसके अलावा शास्त्री जी ने इंदिरा गांधीको सूचना एंव प्रसारण मंत्रालय का महत्वपूर्ण पद सौपा।

1964 से लेकर वह 1966 तक देश के प्रधानमंत्री रहे अपने इस छोटे से कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया, लेकिन अपने नेतृत्व कौशल और आत्मविश्वास से वें हर बाधा को पार करने में कामयाब रहे।

उन्हें अपने शासनकाल के दौरान 1965 में मद्रास में हिंदी विरोधी आंदोलनो का भी सामना करना पड़ा। भारत सरकार हिंदी को देश की राष्ट्रीय भाषा बनाना चाहती थी। लेकिन यह बात गैर हिंदी राज्यों के लोगों को पसंद नही आई और इसी कारणवश मद्रास में छात्र और प्रोफेसर इसके विरोध में प्रदर्शन करने लगे। जिसने देखते ही देखते दंगे का रुप ले लिया और इन दंगो पर तब नियंत्रण पाया जा सका जब शास्त्री जी ने लोगों को इस बात का भरोसा दिलाया कि गैर हिंदी राज्यो की आधकारिक भाषा अंग्रेजी ही रहेगी।

उनके शासनकाल के दौरान सन् 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध भी छिड़ गया लेकिन शास्त्री जी ने हर चुनौती की तरह इस समस्या का डट कर सामना किया। और अंततः उनके नेतृत्व में 22 दिन बाद भारत को इस युद्ध में विजय हासिल हुई।

शास्त्री जी द्वारा किए गये आर्थिक विकास

शास्त्री जी ने अपने कार्यकाल के दौरान देश के तरक्की और खुशहाली पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने देश में दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए कई प्रयास किए। इसके लिए उन्होंने गुजरात में स्थित अमूल कोआपरेटिव को बढ़ावा देने के साथ ही देश में राष्ट्रीय दुग्ध विकास बोर्ड का गठन किया। उनके ही शासनकाल में देश में फूड कार्पोरेशन की भी स्थापना हुई।

अपने इस दो वर्षीय छोटे से कार्यकाल में उन्होंने देश के किसान तथा मजदूर वर्ग के हालात सुधारने के लिए कई फैसले लिए। जिसने देश को तरक्की की एक नई दिशा दी।

निष्कर्ष

शास्त्री जी ने एक प्रधानमंत्री के साथ ही स्वाधीनता सेनानी के रुप में भी देश की सेवा की, यही वजह कि हर भारतीय के ह्रदय में उनके लिए इतना सम्मान है। देश के किसान और सैनिक के प्रति उनका सम्मान उनके “जय जवान, जय किसान” के नारे में झलकता है, यही कारण है कि उनका यह नारा आज भी इतना प्रसिद्ध है।

निबंध – 2 (300 शब्द)

प्रस्तावना

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को हुआ था, यह तो हम सब जानते है कि 2 अक्टूबर को गाँधी जयंती का कार्यक्रम देश भर में बहुत ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। लेकिन 2 अक्टूबर का यह दिन हमारे देश के दो महापुरुषो को समर्पित है। इस दिन सिर्फ गाँधी जी की ही नही लाल बहादुर शास्त्री जी की भी जंयती मनाई जाती है। इस दिन लोग गाँधी जी के विचारों के साथ शास्त्री जी के देशप्रेम और त्याग को भी याद करते हैं। 2 अक्टूबर का यह विशेष दिन हमारे देश के दो महान नेताओं को समर्पित है, जो हम करोड़ो भारतीयों के प्रेरणा स्त्रोत हैं।

लाल बहादुर शास्त्री जयंती का उत्सव

गाँधी जयंती के तरह ही लाल बहादुर शास्त्री जयंती भी देश भर के विद्यालयों, कालेजों और कार्यलयों में मनाई जाती है। इस दिन विद्यालयों में एक ओर जहां कई बच्चे गाँधी जी की वेषभूषा धारण करके आते हैं, वही कई बच्चे लाल बहादुर शास्त्री का वेष धारण करके उन्हें प्रसिद्ध नारे जय जवान, जय किसान का नारा लगाते हुए आते हैं।

इसके साथ ही इस दिन कई सारे प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है, इन प्रतियोगिताओं में लाल बहादुर शास्त्री जी से जुडे कई सवाल पुछे जाते है तथा उनके महान कार्यों और कठिन संघर्षो पर भाषण दिये जाते है। एक तरह से इस विद्यालयों, कार्यलयों, आवासीय स्थानो तथा अन्य जगहों पर लाल बहादुर शास्त्री के सम्मान में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

निष्कर्ष

2 अक्टूबर का यह दिन हम भारतीयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन हमारे देश के दो महान व्यक्तियों का जन्म हुआ था। जिन्होंने देश के आजादी और विकास में अपना अहम योगदान दिया, इसलिए यह दिन हमारे लिए दोहरे उत्सव का दिन है।

निबंध – 3 (500 शब्द)

प्रस्तावना

लाल बहादुर शास्त्री ने अपना पूरा जीवन अनुशासन और सादगी के साथ जीया। उनका जन्म वाराणसी के समीप मुगलसराय में हुआ था। हालांकि उनके परिवार का उस दौर में हो रहे स्वतंत्रता संघर्ष से कोई संबंध नही था, परन्तु शास्त्री जी के ह्रदय में देश प्रेम कूट-कूट कर भरा था। यह उनका राष्ट्र प्रेम ही था, जो वह इतने कम उम्र में देश के स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

लाल बहादुर शास्त्री का शुरुआती जीवन

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के एक हिंदू, कायस्थ परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम शारदा प्रसाद श्रीवास्तव था, जो पहले एक अध्यापक थे, परन्तु बाद में उन्हें इलहाबाद के राजस्व कार्यलय में क्लर्क की नौकरी मिल गयी थी। लेकिन यह विधि का विधान और समय का दुर्भाग्य ही था कि जब शास्त्री जी मात्र एक वर्ष के थे, तब प्लेग के कारण उनके पिता जी की मृत्यु हो गयी। उनकी माता का मान रामदुलारी देवी था, जो कि एक गृहणी थी, जिन्होंने अपना सारा जीवन अपने पति और बच्चों को समर्पित कर दिया था। इसके अलावा शास्त्री जी की दो बहने भी थी, उनके बड़ी बहन का नाम कैलाशी देवी तथा छोटी बहन का नाम सुंदरी देवी था।

पिता का देहांत हो जाने के कारण शास्त्री जी और उनकी बहनों का पालन-पोषण उनके नाना-नानी के घर हुआ।

लाल बहादुर शास्त्री की शिक्षा

लाल बहादुर शास्त्री ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा 4 वर्ष की उम्र से शुरु की थी। उन्होंने छठवीं कक्षा तक की पढ़ाई मुगलसराय के ईस्ट सेंट्रल रेलवे इण्टर कालेज से की थी। उनके छठे दर्जे की शिक्षा पूरी होने के बाद उनका परिवार वाराणसी स्थानांतरित हो गया। अपनी सातवीं कक्षा की पढ़ाई के लिए उन्होंने हरिशचन्द्र इण्टर कालेज में दाखिला लिया।

जब वह दसवी कक्षा में थे, तो उन्होंने गाँधी जी के एक व्याखान को सुना, जिससे वह काफी प्रभावित हुए। गाँधी जी ने छात्रों से अपील की वह सरकारी विद्यालयों से अपना दाखिला वापस ले ले और असहयोग आंदोलन में हिस्सा ले। गांधी जी के विचारों से प्रभावित होकर, शास्त्री जी ने हरिशचन्द्र हाई स्कूल से अपना दाखिला वापस ले लिया और इसके बाद उन्होंने सक्रियता से देश के स्वतंत्रता आंदोलनो में हिस्सालिया, जिसके कारणवश उन्हें जेल भी जाना पड़ा। हालांकि नाबालिग होने के वजह से उन्हें जल्द ही रिहा कर दिया गया।

उस समय देश के वरिष्ठ नायकों और स्वतंत्रता सेनानियों को लगा यदि देश को आजाद कराना है, तो नवयुवको को शिक्षित करना जरुरी है। इसी लक्ष्य को पूरा करने के लिए काशी विद्यापीठ की स्थापना हुई। जहां से शास्त्री जी ने दर्शन और नैतिक शास्त्र में उपाधि (डिग्री) प्राप्त की।

लाल बहादुर शास्त्री का व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता संघर्ष में उनका योगदान

शास्त्री जी गांधीवादी विचारधारा के अनुयायी थे और गाँधी जी के नेतृत्व में कई आंदोलनो में हिस्सा लिया था। उन्होंने सक्रियता से कई आंदोलनों में हिस्सा लिया था। जिसके चलते उन्हे कई बार जेल भी जाना पड़ा था।

वह सर्वेन्ट आँफ पीपल सोसाइटी के आजीवन सदस्य भी थे। यह सोसाइटी लाला लाजपत राय द्वारा देश और लोगों के भलाई के लिए बनाई गई थी। इसके साथ ही उन्होनें लाला लाजपत राय और गाँधी जी के मार्गदर्शन में इस सोसाइटी में अपनी सेवा दी, उनके कार्यों से प्रभावित होकर बाद में उन्हें सर्वेन्ट आँफ पीपल सोसाइटी का अध्यक्ष मनोनीतकिया गया।

लाल बहादुर शास्त्री पंण्डित जवाहर लाल नेहरु के भी काफी करीबी माने जाते थे, वह स्वतंत्रता आंदोलनो में सदैव उनके साथ बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया करते थे। देश के प्रति सेवा और निष्ठा के कारण ही वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक बने। देश के आजादी के पश्चात वह देश के रेल मंत्री भी बने, इसके बाद उन्होंने गृह मंत्री के रुप में कार्यभार संभाला। सन् 1964 में नेहरु जी के मृत्यु के पश्चात उन्होंने भारत के दूसरे प्रधानमंत्री के रुप में कार्यभार संभाला,लेकिन दुर्भाग्यवश वह मात्र दो वर्ष तक ही भारत के प्रधानमंत्री रह सके सन् 1966 में भारत के लाल, लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गयी।

निष्कर्ष

लाल बहादुर शास्त्री एक सच्चे देशभक्त और दृढ़ इच्छाशक्ति वाले नेता थे। जिन्होंने अपना पूरा जीवन देश की सेवा में लगा दिया। अपने विनम्र स्वभाव और सादगी भरे जीवन के कारण वह देश के सबसे प्रिय नेताओ में से एक माने जाते है।

Essay on Lal Bahadur Shastri

निबंध – 4 (600 शब्द)

प्रस्तावना

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था,हालांकि उनका परिवार किसी भी तरीके से स्वतंत्रता संघर्ष से नही जुड़ा हुआ था। लेकिन यह उनका राष्ट्रप्रेम और देश के लिए कुछ करने की इच्छा ही थी, जो उन्हे देश के स्वाधीनता संग्राम की ओर खींच लाई। उन्होंने कई स्वतंत्रता संग्रामों में हिस्सा लिया और निस्वार्थ भाव से देश की सेवा की। अपनी कर्तव्यनिष्ठा और देशप्रेम के बदौलत वह उस समय के महत्वपूर्ण नेताओं में से एक बन गये थे। ना सिर्फ साधरण जनता बल्कि की कांग्रेस के दूसरे नेता भी उनका काफी आदर करते थे। यही कारण था कि सर्वमत द्वारा उन्हें देश का दूसरा प्रधानमंत्री चुना गया।

लाल बहादुर शास्त्री का पारिवारिक जीवन

शास्त्री जी का जन्म एक कायस्थ हिन्दू परिवार में हुआ था। उनके पिता शारदा प्रसाद शास्त्री, शुरुआती दौर में एक स्कूल शिक्षक थे, पर बाद में उन्होंने इलहाबाद राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी मिल गयी। उनकी माता रामदुलारी देवी एक गृहणी थी। शास्त्री जी की दो बहने थी। जिनका नाम कैलाशी देवी और सुंदरी देवी था। लेकिन दुर्भाग्य यह ही था कि जब शास्त्री जी मात्र एक वर्ष के थे, तब उनके पिता की मृत्यु हो गयी। इसके बाद उनकी माँ शास्त्री जी और उनकी बहनों को लेकर अपने पिता के घर आ गयी और शास्त्री जी का बाल्यकाल अपने नाना-नानी के घर ही बिता।

सन् 1928 में 24 वर्ष की आयु में लाल बहादुर शास्त्री का विवाह ललिता देवी के साथ हुआ था, जो कि उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर की रहने वाली थी। यह विवाह उनके परिवार द्वारा तय किया गया था। दोनो का दांपत्यजीवन बहुत ही खुशहाल था। और एक साथ उनके छह बच्चे थे, जिनमें चार बेटे और दो बेटियां थी।

जब महात्मा गाँधी से मिली प्रेरणा

जब लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय में थे, तो एक बार उन्होंने महात्मा गाँधी एक व्याखान को सुना, जिससे वह बहुत ही प्रभावित हुए। वह इस बात से काफी प्रभावित थे कि आखिर कैसे गाँधी जी ने बिना हथियार उठाये और हिंसा किये अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया था। यही विचार उनके लिए प्रेरणा के स्त्रोत बने और उन्होंने गाँधी जी के आंदोलनो में हिस्सा लेना शुरु कर दिया।

उनके गाँधीवादी मार्ग पर चलने की कहानी तब शुरु हुई, जब वह दसवें दर्जे में थे। यह वह समय था जब गाँधी जी ने छात्रों से असहयोग आंदोलन के दौरान सरकारी विद्यालयों से दाखिला वापस लेने और पढ़ाई छोड़ने के लिए कहा, गाँधी जी के इसी आवाहन पर शास्त्री जी ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता संघर्षों में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने लगे, जिसके कारणवश उन्हें जेल भी जाना पड़ा, लेकिन ये सभी बाधाए कभी भी स्वतंत्रता संघर्ष के लिए उनके मनोबल और विश्वास को तोड़ने में सफल नही हो सकी।

इसलिए हम कह सकते कि भारत के यह दो महापुरुष महात्मा गाँधी और लाल बहादुर शास्त्री ना सिर्फ एक दिन पैदा हुए थे, बल्कि की उनके विचार भी एक से ही थे।

लाल बहादुर शास्त्री का राजनैतिक जीवन

शास्त्री जी कांग्रेस पार्टी के एक सम्मानित नेता थे और अपने राजनैतिक कार्यकाल के दौरान उन्हें कई महत्वपूर्ण पदों का दायित्व मिला। जब 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली तब शास्त्री जी उस समय के संयुक्त प्रांत (वर्तमान में उत्तर प्रदेश) के पुलिस और परिवहन मंत्री का कार्यभार सौपा गया।

अपने राजनैतिक जीवन में उन्होंने सदा सच्चे ह्रदय से देश की सेवा की तथा अपनी बुद्धिमता से कई गंभीर और विकट परिस्थितियों का सामना किया। सन् 1951 में शास्त्री जी आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के जनरल सेक्रेटरी बने और उन्होंने इस जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। इसके बाद 13 मई 1952 को उन्होंने देश के रेल मंत्री का भी कार्यभार संभाला।

1964 में पंण्डित जवाहर लाल नेहरु की एकस्मात मृत्यु के बाद, शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री पद का दायित्व संभाला। देश के प्रधानमंत्री के रुप में उन्हें जनता से काफी स्नेह मिला। उन्होंने भारत के सामाजिक और आर्थिक तरक्की के लिए कई कार्य किये। इसके साथ ही जिस तरह से उन्होंने भारत-पाक युद्ध की स्थिति को संभाला वह वाकई काबिले तारीफ है और यही कारण है कि लोग आज भी उनके दृढ़ इच्छा शक्ति का लोहा मानते हैं।

1966 में ताशकंद समझौते पर दस्तखत करने के बाद शास्त्री जी इस सदमें को झेल ना सके और ह्रदय घात से उनकी मृत्यु हो गयी। हांलाकि कई लोगो द्वारा इस बात पर संदेह व्यक्त किया जाता है और उनकी मृत्यु को एक सोची-समझी साजिश के तहत की गयी हत्या माना जाता है। लेकिन इसका कोई ठोस प्रमाण नही है क्योंकि उनका पोस्ट मार्टम किया ही नही गया था।

निष्कर्ष

शास्त्री जी एक ईमानदार राजनैतिक नेता थे और पूर्ण रुप से गाँधीवादी विचारधारा को मानने वाले व्यक्तियों में से एक थे। यह गाँधी जी का उनपर प्रभाव ही था, जो वह इतनी उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में शामिल हो गये। उन्होंने सदैव गाँधी जी का अनुसरण किया और उनके आंदोलनो में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके साथ ही वह पंडित जवाहर लाल नेहरु के करीबियों में से भी एक माने जाते थे और इन दो महान व्यक्तियों ने एक साथ मिलकर देश के कई लोगो को स्वतंत्रता संघर्ष में शामिल होने के लिए प्रेरित किया।

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