भारत हमेशा से ही महान लोगों और विद्वानों का देश रहा है। हमारे देश की इस पवित्र धरती पर कई प्रमुख और महान लोगों ने जन्म लिया है, इसलिए भारत को विद्वानों का देश कहा जाता है। महर्षि वाल्मीकि हमारे देश के उन महानतम लोगों मे से एक थे। वह एक संत थे और वो एक साधारण जीवन और उच्च विचार रखने वाले व्यक्ति थे। वह बहुत ज्ञानी होने के साथ-साथ एक महान व्यक्तित्व वाले व्यक्ति थे।
वह पूरे देश मे काफी प्रसिद्ध है, क्योकि वह भारत के प्राचीन काल के महानतम कवियों मे से एक थे। तो आइए यहां निचे दिए गए दो अलग-अलग निबन्धों पर नजर डालते है। मुझें पूरी उम्मीद है कि यह निबन्ध आपको वाल्मीकि जयंती या परगट दिवस के बारे मे अधिक से अधिक जानकारी प्रदान करने मे सहायक होगा।
महर्षि वाल्मीकि जयंती पर लघु और दीर्घ निबन्ध (Short and Long Essays On Maharishi Valmiki Jayanti in Hindi, Maharishi Valmiki Jayanti par Nibandh Hindi mein)
निबन्ध 1 (250 शब्द) – महर्षि वाल्मीकि जयंती
महर्षि वाल्मीकि हमारे देश के महानतम कवियों मे से एक है। वह चारशानी और सुमाली के पुत्र थे। उनका जन्म भारत मे ही हुआ था परन्तु उनकी जन्मतिथि आज भी विवादों मे ही है, क्योकि उनके जन्म के बारें मे कोई पुख्ता सबूत नही मिला है जिससे उनकी सही जन्म तिथि के बारे मे कुछ भी कहा जा सके।
लेकिन रामायण के समयकाल को शामिल करते हुए यह कहा जाता है, कि वह पहली शताब्दी से लेकर पांचवीं शताब्दी के बीच के रहे होगें। उनका पुराना नाम रत्नाकरदाह था, लेकिन अपने महान कार्यो के कारण वो महर्षि वाल्मिकी के नाम से चर्चित हुए। वह हमारे देश के सबसे प्रचीन कवि है।
संत वाल्मीकि को “महर्षि” और “आदि कवि” नामक उपाधियों से भी सम्मानित किया गया है, जहां ‘महर्षि’ का अर्थ ‘महान संत’ या ‘महान ऋषि’ है, और ‘आदि कवि’ का अर्थ है ‘प्रथम कवि’। यह वही है जिन्होने हमें संस्कृत के पहले छन्द या श्लोक के बारें मे बताया। यह हमारे हिन्दू महाकाव्य के महान पवित्र पुस्तक “रामायण” की लेखक भी है।
महर्षि वाल्मीकि जयंती (परगट दिवस के रुप मे भी जाना जाता है), हमारे हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध त्योहारों मे से एक है। यहां जयंती शब्द से ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते है कि यह महान ऋषि वाल्मीकी के जन्मदिवस के अवसर के रुप मे मनाया जाता है। यह पूरे चांद के दिन यानी कि पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
महर्षि वाल्मीकि के कई मंदिर और कई वाल्मीकि तीर्थ स्थल है, जो कि वाल्मीकि के जन्म दिवस के अवसर पर सजाए जाते है। यहां वाल्मीकि की प्रतिमा को फूलों और फूलों की मालाओं से सजाया जाता है। यह त्योहार पूरे जोश और उत्साह के साथ पूरे भारत मे मनाया जाता है।
निबन्ध 2 (600 शब्द) – महर्षि वाल्मीकि का ऐतिहासिक जीवन और जयंती समारोह
परिचय
महर्षि वाल्मीकि सतयुग के एक महान ऋषि थे। वो हमारे देश के सबसे पहले कवि है। उन्होने अपने पहले छंद का अविष्कार गंगा नदी के तट पर किया था। वह उत्तर कांड मे अपनी प्रमुख भूमिका के लिए बहुत प्रसिद्ध है। उन्होने अपने जीवन के घटनाओं के माध्यम से हमें जीवन मे अनुशासन और जीवन जीने के तरीके के बारे मे बताया है।
ऋषि वाल्मीकि की डाकू से संत बनने तक की कहानी (Story of Rishi Valmiki from Being a Robber to Sage)
महर्षि वाल्मीकि का जन्म भृगु गोत्र के एक हिन्दू परिवार मे हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि शुरुआती जीवन मे वो एक डाकू थे, जिनका पिछला नाम रत्नाकरदाह था। वह लोगों पर बिल्कुल दया नही करता था, वह लोगों को लूटता था और उन्हे मार डालता था। वह अपने परिवार के लिए ऐसा करता था, क्योकि उसका परिवार बहुत ही गरीब था जिसे दो वक्त का खाना भी बहुत मुश्किल से मिलता था।
एक बार उसने अपने परिवार के भोजन के लिए महान ऋषि नारद को लूटने और उन्हे मारने की कोशिश की। जब नारद ने उन्हे यह पाप के कार्य करते देखा, तो उन्होने उनसे ऐसा करने का कारण पुछा। रत्नाकरदाह ने कहा कि वह अपने परिवार के लिए ऐसा कार्य करते है। तो महान ऋषि नारद ने उनसे पूछा कि क्या आपका परिवार इस पाप के कार्य मे आपके पापों के परिणाम को साझा करेगा।
रत्नाकरदाह ने उत्तर दिया हां, लेकिन नारद ने उनसे कहा कि आप पहले इसकी पुष्टि अपने परिवार से कर लें। जब रत्नाकरदाह अपने घर गया और उसने अपने परिवार के सदस्यों से पूछा कि क्या वह सभी उसके पाप के कार्य को साझा करेगें, तो उनके परिवार के हर सदस्य ने उनके पाप के कार्यो को साझा करने से इनकार कर दिया।
तब रात्नाकरदाह को जीवन के वास्तविक अर्थ का पता चला। वो वापस ऋषि नारद के पास गए और उनसे क्षमा मांगी, तब ऋषि नारद ने उन्हें मोक्ष के मार्ग पर चलने का मंत्र बताया, जो उन्हे मोक्ष तक ले जाएगी। नारद ने उनसे कहां कि ‘राम’ नही कहते कि वह पापी है, लेकिन वह उनके नाम ‘मारा’ का जाप कर सकते है। रत्नाकरदाह ने कई वर्षो तक इस मंत्र का जाप किया और आखिरकार भगवान राम उनसे प्रसन्न हुए, जो की विष्णु के अवतार थे, और तभी से रत्नाकरदाह वाल्मीकि कहलाने लगे।
वाल्मीकि जयंती ‘परगट दिवस’ समारोह (Valmiki Jayanti ‘Pargat Diwas’ Celebration)
महर्षि वाल्मीकि जयंती अश्विन के महीने (सितम्बर-अक्टूबर) के पुर्ण चन्द्रमा यानी पुर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस अवसर पर वाल्मीकि की प्रतिमा को फूल-माला चढ़ाकर और दियों की रौशनी करके मनाया जाता है। कुछ लोगों के द्वारा वाल्मीकि मंदिर को फूलों और अन्य सजावटी सामानों से सजाया जाता है। यह पर्व वाल्मीकि के प्रति प्यार और स्नेह के साथ मनाया जाता है।
पहले श्लोक का अविष्कार (Invention of First Shloka)
“मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौञ्चमिथुनादेकमवधीः काममोहितम्॥”
इसका अर्थ है कि –
“अनंत काल तक आपको अपने कार्य से मुक्ति नही मिलेगी।
तुम्हारे लिए एक पक्षी को प्यार और बेदर्दी से मार ड़ाला”
उपर दिया गया यह श्लोक महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखा पहला श्लोक है। उन्होने गंगा किनारे दैनिक ध्यान करते हुए इसकी रचना की थी। जब वो गंगा के किनारे पर गए थे, तब उन्होने एक क्रेन के जोड़े के मिलन को देखा। वह इसे देखकर वहुत प्रसन्न हुए और इस दृश्य का आनंद लेने लगे।
लेकिन यह घटना ज्यादा देर तक न चला और एक शिकारी ने नर साथी को पकड़ लिया और मादा साथी अपने प्यार को खोने के दर्द मे चिल्लाकर सदमे से मर गयी। वाल्मीकि इस घटना को देखकर शिकरी पर बहुत क्रोधित होते हुए इन पंक्तियों की रचना कर ड़ाली।
रामायण मे वाल्मीकि की भूमिका (Role of Valmiki in Ramayana)
वाल्मीकि ने रामायण में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वह इस महान पवित्र पुस्तक के लेखक थे। उन्होने ही रामायण की इस कहानी को अपने शिष्यों, लव और कुश, को सुनाई थी जो कि सीता की संतान थे।
निष्कर्ष
महर्षि वाल्मीकि जयंती को महान ऋषि वाल्मीकि का जन्मदिवस के रुप मे मनाया जाता है। यह पर्व परगट दिवस के रुप मे भी मनाया जाता है। वाल्मीकि हिन्दूओं के महान महाकाव्य रामायण के रचयिता है। वह भारत के प्राचीन काल के एक महान ऋषि थे।