संत रविदास जयंती पर निबंध (Sant Ravidas Jayanti Essay in Hindi)

भारत भूमि को युगों युगों से अनेक साधु-संत पीर फकीर ने जन्म लेकर कृतार्थ किया है। जिन सब में से एक संत रविदास हैं। इन्होंने अपने मन, कर्म तथा वचनों से समाज में फैले कुरीति स्वरूप जातिवाद, बड़े-छोटे का भेद को मिटाया। यह एक समाज सुधारक तथा मनुष्य के देह (शरीर) में जन्में ईश्वर के अवतार थे। यह महाकवि कबीरदास के समकालीन कवि हैं। इनकी ख्याति (प्रतिष्ठा) भारत ही नहीं अपितु विश्व विख्यात है एवं कवि कबीरदास ने इन्हें संबोधित करते हुए कहा है “संतन में रविदास”।

संत रविदास जयंती पर छोटे-बड़े निबंध (Short and Long Essay on Sant Ravidas Jayanti in Hindi, Sant Ravidas Jayanti par Nibandh Hindi mein)

निबंध – 1 (300 शब्द)

परिचय

संतों में संत रविदास को ईश्वर का अनुयायी माना जाता है। रैदास के नाम से विश्व विख्यात कवि रविदास को मध्ययुगीन साधकों में विशिष्ठ स्थान प्राप्त है। हिन्दी पंचाग (कैलेन्डर) के अनुसार सन् 1388 के माघ पूर्णिमा को, बनारस के समीप बसे गोवर्धनपुर गांव में इनका जन्म हुआ। इन्होंने मीरा बाई समेत राजा पीपा, राजा नागरमल को ज्ञान का मार्ग दिखाया। इनकी ख्याति से प्रभावति हो कर, सिकन्दर लोदी ने इन्हें आमंत्रण भेज बुलाया था।

संत रविदास जयंती कब मनाई जाती है

इनके जन्म के संबंध में विद्वानों में एक मत नहीं है। ज्यादातर लोग 1388 को इनका जन्म वर्ष मानते हैं। जबकी कुछ विद्वान सन् 1398 के पक्ष में अपनी राय रखते हैं, पर माघ के पूर्णिमा को इन्होंने अपने शुभ चरणों से धरती को छुआ था यह तय है। इस कारणवश प्रति वर्ष माघ माह के पूर्णिमा को इनके जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संत रविदास जयंती क्यों मनाया जाता है?

संत रविदास ने अपने ज्ञान से समाज को संदेश दिया, व्यक्ति बड़ा या छोटा अपने जन्म से नहीं अपितु अपने कर्म से होता है। रैदास, धर्म के पथ पर चलने वाले महान पुरुष थे। इनके विचारों, सिद्धान्तों को सदैव स्वयं में जीवित रखने के लिए और उनके जन्म दिवस को उत्सव के रूप में मनाने हेतु हर वर्ष संत रविदास जयंती मनाया जाता है।

संत रविदास जयंती का महत्व

संत रविदास जयंती के समारोह से हम सभी दुबारा एक जुट हो जाते हैं। साथ मिलकर पूजा अर्चना करना हो या सड़क पर रैली निकालना हो। हम सभी को उनके दोहों को पढ़ते हुए, इस बात का बोध होता है की धर्म के नाम पर लड़ाई करना अर्थहीन है। समाज में बड़े-छोटे का भेद नहीं होना चाहिए। संत रविदास जयंती उनके विचारों का सदैव स्मरण कराती है व उनके बताए गए मानवता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित भी करती है।

निष्कर्ष

संत रविदास निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी कवि थे। ईश्वर से प्राप्त दैविक शक्तियों को इन्होंने समाज कल्याण व सच्ची ईश्वर भक्ति में जग को सराबोर करने में लगाया। अतः हमें भी उनके बताए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

निबंध – 2 (400 शब्द)

परिचय

संभवतः समाज कल्याण हेतु अलौकिक शक्ति से संपन्न गुरु रविदास ने माघ माह के पूर्णिमा को जन्म लेकर धरती को पवित्र किया। इन्होनें अपने दोहे में डंके की चोट पर कहा है, “जाके कुटुंब सब ढोर ढोवंत फिरहिं अजहुँ बानारसी आसपास”। अर्थात इनके कुटुंब (सगे-संबंधी) आज भी बनारस के आस-पास के क्षेत्र में मुर्दे ढ़ोने का कार्य करते हैं। इसका आशय है यह शूद्र परिवार से संबंध रखते थे।

संत रविदास जयंती के पावन पर्व को देश भर में विभिन्न तरह से मनाया जाता है

लाखों श्रद्धालु संत रविदास जयंती के पावन पर्व के पुण्य तिथी पर पवित्र नदियों में स्नान करते हैं। इस दिन गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में भक्तों का तांता (भीड़) लगा होता है तथा स्नान की क्रिया समाप्त कर लोग दान आदि भी करते हैं। इस शुभ दिवस पर लोग भगवान रविदास के उपदेशों का अनुस्मरण (याद) करते हैं तथा उनके उपदेशों पर चलने का प्रयत्न करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।

बनारस में रविदास जयंती का उत्सव

रैदास का जन्म स्थान, काशी के गोवर्धनपुर गांव, में संत रविदास की जयंती के अवसर पर, गांव वासियों द्वारा भजन-किर्तन, गीत गाए जाते हैं। जगतगुरु रविदास के बनारस स्थित भव्य मंदिर में विशेष पूजा, अर्चना, पाठ किए जाते हैं। यह उत्सव तीन दिन तक हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

गुरुद्वारों में रविदास जयंती का पर्व

संत रविदास के सिद्धान्तों से प्रभावित क्षेत्र के सभी मंदिर तथा विश्व के सभी गुरुद्वारों में रविदास जयंती के पावन पर्व को बहुत धूम-धाम से मनाया जाता है। इस दिवस की तैयारी हफ्तों पहले से शुरू कर दी जाती है। मंदिरों व गुरुद्वारों की सुंदरता देखते बनती है। यहां लोग एकत्र होकर पूजा अर्चना पश्चात रविदास द्वारा रचित दोहों का पाठ करते हैं और प्रसाद स्वरूप भंडारे में भोजन करते हैं।

प्रयागराज, त्रिवेणी संगम में स्नान

माघ माह के पूर्णिमा को संत रविदास की जयंती के अवसर पर दूर-दूर से लोग भारी संख्या में एकत्र होते हैं तथा त्रिवेणी संगम में स्नान कर पुण्य की प्राप्ति करते हैं। इस समय, आस्था कड़ाके के ठंड पर भारी पड़ती दिखाई देती है। इन सब के अतिरिक्त इस तिथी से प्रयागराज में एक माह के लिए माघ मेला का आयोजन किया जाता है।

रविदास जयंती पर स्कूलों में छुट्टी

गुरु रविदास ने विश्व के कल्याण की कामना करते हुए अपना सम्पूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित कर दिया। उनके आचरण तथा कार्यों के सम्मान में रविदास जयंती को स्कूल व अनेक संस्थान बंद किए जाते हैं।

निष्कर्ष

संत रविदास ने अपनी रचनाओं, सिद्धान्तों और ज्ञान के माध्यम से विश्व में व्याप्त समाजिक बुराई का नाश किया। इसलिए विभिन्न क्षेत्रों में लोगों द्वारा रविदास जयंती का त्योहार विभिन्न प्रकार से उन्हें आदर के साथ याद करते हुए मनाया जाता है।

निबंध – 4 (500 शब्द)

परिचय

स्वामी रामानंद के शिष्य संत रविदास आस्था में विश्वास परन्तु धर्म में आडम्बर रचने के सख्त खिलाफ, भक्तिकाल, निर्गुण धारा के ज्ञानाश्रयी शाखा, कबीरदास के समकालीन कवि थे। ऐसा कहा जाता है, संत रविदास मीरा बाई के गुरु थे। इनके अनुयायी इनका “जगतगुरु”, “सतगुरु” आदि नाम से सत्कार करते हैं।

रविदास, संत रविदास कैसे बने?

ऐसा माना जाता है, उन्हें जन्म से ही आलौकिक शक्तियां प्राप्त थी, बचपन में उनके मित्र की मृत्यु हो जाने पर उनका यह कहना, ‘उठो मित्र यह सोने का समय नहीं है’। इस वाक्य से वह बालक जीवित हो जाता है यह घटना उनके शक्तियों को प्रमाणित करता है। इसी प्रकार समाज कल्याण करते व राम और कृष्ण भक्ति में लीन होकर, वह संत की उपाधि से सम्मानित किए गए तथा संसार उन्हें संत कहने लगा।

संत रविदास जयंती पर विशेष

“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष न जुड़ सके जब तक जाति न जात रविदास जी इस दोहे से समाज को सचेत करते हुए कहते हैं, जिस प्रकार केले के वृक्ष को छीलने पर छिलके के नीचे छिलका अतः अंत में कुछ भी प्राप्त नहीं होता हैं उसी प्रकार जाति जाति का रट लगाने से अंत तक कुछ प्राप्त नही होगा। मनुष्य को आपस में जुड़ाव करने के लिए सर्वप्रथम जातिवाद का त्याग करना होगा।

“मन चंगा तो कठौती में गंगा”

एक बार की बात है गांव के सभी लोग गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। तभी किसी ने सतगुरु रविदास से कहा तुम क्यों नहीं चल रहे! तुम भी चलो। इस पर रविदास ने युवक को उत्तर देते हुए कहा, मुझे कुछ जूते बनाने हैं मैं स्नान के लिए चला भी गया तो भी मेरा सारा ध्यान यहीं लगा रहेगा। इससे स्नान के बाद भी मुझे पुण्य की प्राप्ति नहीं होगी। मेरा मन साफ है तो इस पात्र (बरतन) के पानी में ही मेरी गंगा है। “तब से मन चंगा तो कठौती में गंगा” शब्द विश्व में जाना जाने लगा।

संत रविदास का सरल स्वभाव

शिरोमणि संत रविदास का स्वभाव अत्यन्त सरल व दयालु था। इनका मानना था हम सभी ईश्वर के बच्चे हैं इसलिए हमें जात-पात, ऊंच-नीच, छुआछूत का कठोरता से खंडन (अस्वीकार करना) करना चाहिए। हम सब को भाईचारे के साथ मिल कर समाज में रहना चाहिए। रविदास आस्था में विश्वास रखने तथा भगवान राम और कृष्ण के महिमा का गुणगान करने वाले महापुरुष थे। लेकिन इन्होंने मूर्ति पूजन, पशु बलि, विविध प्रकार के पूजन विधि को आस्था के नाम पर आडम्बर (दिखावा) बताया है।

संत रविदास के अनमोल वचन

सतगुरु रविदास जाति विशेष को समाज में सम्मान प्राप्त होने के प्रथा का पुरजोर विरोध करते थे। उन्होंने मध्यकाल में ब्राह्मणवाद को चुनौती देते हुए अपनी रचना में समाज के संदेश देते हुए लिखा “रैदास बाभन मत पूजिए जो होवे गुण हीन, पूजिए चरन चंडाल के जो गुन परवीन” अर्थात केवल व्यक्ति के जन्म से ब्राह्मण होने पर उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए, वह जन्म के आधार पर श्रेष्ठ नहीं होता। व्यक्ति का कर्म उसे पूजने योग्य बनाता है अतः ऐसे व्यक्ति की पूजा करनी चाहिए जो कर्मों से श्रेष्ठ हो।

निष्कर्ष

भारत के मध्ययुगीन कवियों में गुरु रविदास को विशेष स्थान प्राप्त है। इन्होंने अपने वचनों के माध्यम से संसार को भेद-भाव की भावना से ऊपर उठ मानवता का बोध कराया।गुरु रविदास ने अपना जीवन समाज को यह उपदेश देने में लगा दिया, धर्म के नाम पर हिंसा करना निरर्थक (फलहीन) है। हम सभी ईश्वर के संतान है तथा हम सब को धर्म के नाम पर दंगा नहीं करना चाहिए और संत रविदास के बताए गए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए।

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