भाषण देना एक आवश्यक गतिविधि है जिसे आमतौर पर, छात्र स्कूल या कॉलेज में प्रर्दशित करने के लिए अपनाते हैं। ये उनकी सार्वजनिक स्थलों पर बोलने की झिझक और डर को खत्म करके उनमें आत्मविश्वास, बोलने की क्षमता और नेतृत्व के गुण का विकास करने में मदद करता है। आजकल, भाषण देना और अन्य कौशल प्रोत्साहन गतिविधियाँ स्कूल में सामान्य हो गई है, जिसमें छात्रों को अपनी योग्यता को बढ़ाने और आगे जाने के लिए अवश्य भाग लेना चाहिये।
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर भाषण (Speech on Beti Bachao Beti Padhao in Hindi)
भाषण 1
सभी को सुबह की नमस्ते। मेरा नाम…………….है। मैं कक्षा………पढ़ता/पढ़ती हूँ। मैं यहाँ इस अवसर पर, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना लड़कियों के जीवन को बचाने और उन्हें पढ़ाने के लिए पूरे भारत में चलाया जाने वाला अभियान है। ये भारत की सरकार द्वारा भारत में जागरुकता फैलाने के साथ-साथ लड़कियों की कल्याण सेवाओं की क्षमता में सुधार लाने के लिए चलायी जाने वाली योजना है।
भारत के प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी, ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के अन्तर्गत सुकन्या समृद्धि योजना (21 जनवरी 2015) को शुरु किया था। सुकन्या समृद्धि योजना इस अभियान का समर्थन करने के साथ ही बेटी पर आवश्यक खर्चों जैसे: स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा और शादी आदि को सफलता पूर्वक पूरा करने के लिए शुरु की गई थी।
बेटियों के जीवन के लिए ये योजना एक अच्छी शुरुआत है क्योंकि ये भारत की सरकार के कुछ प्रभावशाली प्रयासों को शामिल करती है। ये अभी तक की सर्वश्रेष्ठ योजना है क्योंकि ये वार्षिक आधार पर इस छोटे से निवेश के माध्यम से माता-पिता की परेशानियों को कम करने के साथ ही वर्तमान और भविष्य में जन्म लेने वाली लड़कियों के जीवन को बचाती है। ये परियोजना 100 करोड़ की प्रारम्भिक राशि के साथ शुरु हुई है। गृह मंत्रालय ने इस योजना के अन्तर्गत बड़े शहरों में भी महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए 150 करोड़ रुपये खर्च करने की सूचना दी है। इस योजना का निर्माण और प्रारंभ बेटियों से संबंधित कुछ भयकंर सामाजिक मुद्दों के स्तर और प्रभाव को कम करने के लिए किया गया है।
1991 की जनगणना के अनुसार, भारत में लड़कियों की संख्या (0-6 आयु वर्ग की) 1000 लड़कों पर 945 थी। 2001 की जनगणना के दौरान ये घटकर 1000 लड़कों पर 927 लड़कियाँ और 2011 में 1000 लड़कों पर 918 लड़कियाँ हो गई थी। इस सन्दर्भ में, भारत को 2012 में, यूनीसेफ द्वारा 195 देशों में से 41वाँ स्थान दिया गया था। लड़कियों की संख्या में इतनी बड़ी गिरावट देश में महिला सशक्तिकरण की कमी का सूचक है। लड़कियों की संख्या में भारी कमी के मुख्य कारण जन्म से पूर्व भेदभाव, चयनात्मक लिंग आधारित परीक्षण, लैंगिक असमानता, महिलाओं के खिलाफ अत्याचार आदि सामाजिक मुद्दे हैं।
इस योजना को शुरु करने पर, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोगों से कन्या भ्रूण हत्या का उन्मूलन करने और बेटियों की भलाई के लिए बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना का अनुसरण करने को कहा। ये कार्यक्रम पी.एम. मोदी द्वारा 22 जनवरी 2015 को शुरु किया गया था। ये सर्वप्रथम पानीपत, हरियाणा में शुरु किया गया था। देश में लड़कियों की निरंतर कम होती लैंगिक प्रवृति ने इस कार्यक्रम को शुरु करना बहुत आवश्यक बना दिया था। इस योजना के उद्देश्य हैं:
- बेटियों के जीवन की रक्षा, सुरक्षा और उच्च शिक्षा को सुनिश्चित करना।
- उच्च शिक्षा और सभी कार्यक्षेत्रों में समान भागीदारी के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित करना।
- लिंग आधारित चयनात्मक परीक्षण का उन्मूलन करके बेटियों की रक्षा करना।
- पूरे भारत में कन्याओं के स्तर को ऊँचा उठाना, विशेषतः 100 प्रमुख चुने गए जिलों में (जिनकी सी.एस.आर. कम है)।
- लड़कियों के कल्याण के लिए एक साथ काम करने के लिए स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय, महिला एंव बाल विकास मंत्रालय और मानव संसाधन विकास मंत्रालय को एक साथ लाना।
सभी को धन्यवाद।
भाषण 2
आदरणीय अध्यापक, अध्यापिका और मेरे प्यारे मित्रों को सुबह की नमस्ते। हम सभी यहाँ पर इस कार्यक्रम को मनाने के लिए एकत्र हुए हैं, इसलिए मैं आज बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। ये कार्यक्रम मोदी सरकार द्वारा पूरे देश में बेटियों की रक्षा और सुरक्षा के सन्दर्भ में शुरु किया गया है। ये योजना आज के समय की तत्कालीन जरुरत थी क्योंकि देश में महिलाओं की रक्षा और सशक्तिकरण के बिना, विकास किसी भी कीमत पर संभव नहीं है। महिलाएं देश की लगभग आधी जनसंख्या को अधिकृत करती है इसलिए वो देश की आधी शक्ति है। यही कारण है कि, उन्हें आगे बढ़ने और भारत के विकास में योगदान के लिए समान अधिकार, सुविधाओं और अवसरों की आवश्यकता है।
ये योजना माता-पिता पर बिना किसी बोझ के, भविष्य में लड़कियों की रक्षा, सुरक्षा और बेहतर शिक्षा के सन्दर्भ में है। इस अभियान का समर्थन करने के लिए, भारत की सरकार ने एक अन्य कार्यक्रम चलाया है जिसका नाम सुकन्या समृद्धि योजना है। ये योजना बेटी की किशोरावस्था में माता-पिता के बोझ को कम करने में शामिल है।
क्योंकि, इस योजना के अनुसार, माता-पिता को कुछ धन मासिक आधार पर बैंक में जमा करना पड़ता है जिसके लिए उन्हें भविष्य में लड़की की किशोरावस्था में शिक्षा या शादी के समय पर लाभ मिलेगा। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के रूप में सरकार का इस तरह का महत्वाकांक्षी दृष्टिकोण निश्चित रूप से भारत में महिलाओं की स्थिति में सकारात्मक परिवर्तन लयेगा। ये सरकार द्वारा पूरे योजनाबद्ध उद्देश्यों, रणनीतियों और कार्ययोजनाओं को वास्तव में प्रभावशाली बनाने के लिए शुरु किया गया है।
यह दलित लड़कियों के जीवन को बचाने और उन्हें उच्च शिक्षा के अवसर देने के लिए है जिससे कि उनका सशक्तिकरण और सभी कार्यक्षेत्रों में भागीदारी को सुनिश्चित किया जा सके। इस योजना के अनुसार, लगभग 100 जिलों (जिनका सी.एस.आर. कम है) को, सबसे पहले कार्यवाही करने के लिए चुना गया है। ये योजना समाज में लैंगिक भेदभाव के बारे में जागरुकता का निर्माण करके बेटियों के कल्याण में सुधार के लिए है।
भारतीय मुद्रा की बहुत बड़ी राशि का प्रस्ताव नगरों और देश के बड़े शहरों में महिलाओं की सुरक्षा के लिए पारित कर दिया गया है। ये योजना केवल सहयोग कर सकती है, हांलाकि, बेटियों की समस्याओं को पूरी तरह से हल नहीं कर सकती, इसके लिए सभी भारतीयों के सहयोग की आवश्यकता है। लड़कियों के खिलाफ अपराधों को कम करने वाले नियमों और कानूनों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिये और हिंसा के लिए भी कड़ा दंड दिया जाना चाहिये।
धन्यवाद।
भाषण 3
आदरणीय प्रधानाचार्य, शिक्षक, शिक्षिका और मेरे प्यारे सहपाठियों, सुबह की नमस्ते। मेरा नाम…………….है। मैं कक्षा………पढ़ता/पढ़ती हूँ। हम सभी यहाँ इस विशेष कार्यक्रम को मनाने के लिए इकट्ठा हुए है, आज मैं बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं विषय पर एक भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। मैं अपने कक्षा अध्यापक/अध्यापिका का/की बहुत आभारी हूँ, जिन्होंने इस महान अवसर पर आप सभी के सामने मुझे इस अच्छे विषय पर भाषण देने का अवसर प्रदान किया। मेरे प्यारे मित्रों, जैसा कि हम सभी, भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों के बारे में बहुत अधिक जानते हैं, ये योजना उन्हें समर्थन देने और समाज में बिना किसी भेदभाव के एक सामान्य जीवन जीने के, उनके जन्म के अधिकार के साथ सशक्त बनाने के लिए है। ये योजना बाल लिंग अनुपात में निरंतर हो रही गिरावट की प्रवृति के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण आवश्यकता थी।
0-6 वर्ष की आयु समूह की लड़कियों की संख्या लगातार कम हो रही है, 1991 की जनगणना के अनुसार 1000 लड़को के अनुपात में 945 लड़कियाँ थी, 2001 में 1000 लड़को के अनुपात में 927 लड़कियाँ थी और 2011 में 1000 लड़को के अनुपात में 918 लड़कियाँ थी। ये भारत की सरकार के लिए हल करने के लिए तेजी से बढ़ता खतरा है। ये योजना लड़कियों की संख्या कम होने के खतरे के सन्दर्भ में आया परिणाम है। ये खतरा देश में कुल महिला सशक्तिकरण की कमी का सूचक था। बाल लिंग अनुपात में कमी के कारण जन्म से पहले भेदभाव, चयनात्मक लिंग परीक्षण और उन्मूलन, जन्म के बाद भेदभाव, अपराध आदि है।
22 जनवरी 2015 को, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना, भारतीय सरकार द्वारा, देश में लड़कियों की कम होती संख्या के मुद्दे को, संबोधित करते हुए शुरु की गई थी। ये विशेष रूप से कम सीएसआर वाले 100 चयनित जिलों के साथ ही पूरे देश में मुख्य लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करने के लिए शुरू किया गया एक राष्ट्रीय अभियान है। ये स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा समर्थित एक संयुक्त पहल है।
इस अभियान का मुख्य लक्ष्य पूरे भारत में बेटियों के जीवन की रक्षा करना और उन्हें पढ़ाना है। इसके अन्य उद्देश्य पक्षपातपूर्ण सेक्स चयनात्मक गर्भपात को नष्ट करने और बालिकाओं के जीवन और सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। ये उन्हें उचित शिक्षा और सुरक्षित जीवन जीने के योग्य बनाने के लिए है। लगभग 100 जिलों में, जो कन्या लिंग अनुपात में कम है (2011 की जनसंख्या के अनुसार), इस अभियान को बेहतर बनाने और सकारात्मक प्रभावों को लाने के लिए चुने गए हैं। इस योजना को प्रभावशाली बनाने के लिए बहुत सी रणनीतियों का अनुसरण की आवश्यकता है।
लड़कियों को बराबर महत्व देने और उनकी शिक्षा के लिए सामाजिक गतिशीलता और तीव्र संचार की आवश्यकता है। कम सीएसआर वाले जिलों की हालत में बेहतर सुधार करने के लिए, सबसे पहले लक्षित किया जाना चाहिए। इस सामाजिक बदलाव के लिए सभी नागरिकों विशेषरुप से युवाओं और महिलाओं के समूह को, इसके अन्त के लिए जागरुक, प्रशंसा और समर्थन करने की आवश्यकता है।
ये देश व्यापी अभियान लोगों के बीच में लड़कियों को बचाने और पढ़ाने की जागरुकता को बढ़ाने के लिए शुरु किया गया है। इसका उद्देश्य लड़कियों का जन्म, पोषण और शिक्षा को बिना किसी भेदभाव के किया जा रहा है या नही, सुनिश्चित करना है। ये उन्हें समान अधिकार देकर इस देश की लगभग आधी आबादी को सशक्त बनाने के लिए है। इस अभियान के लिए सी.एस.आर. के मुद्दे पर त्वरित प्रभाव के लिए राष्ट्रीय, राज्य, जिला और समुदाय स्तर पर लोगों और विभिन्न हितधारकों के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
धन्यवाद।
भाषण 4
सभी को सुबह की नमस्ते। मेरा नाम…………….है। मैं कक्षा………पढ़ता/पढ़ती हूँ। मैं बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं आभियान पर भाषण देना चाहता/चाहती हूँ। मेरे प्रिय मित्रों, ये योजाना भारत के पी.एम., नरेंन्द्र मोदी द्वारा, 22 जनवरी 2015 को, पूरे देश में बेटियों के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए शुरु की गई है। ये एक अनोखी योजना है जो अन्य सहायक कार्यक्रमों जैसे सुकन्या समृद्धि योजना आदि के साथ शुरु की गई है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना बालिकाओं को बचाने और पढ़ाने के लिए लागू की गई है। इस योजना के अनुसार, कार्य योजना और रणनीतियों को विशेष रूप से कम कन्या बाल लिंगानुपात वाले जिलों में सकारात्मक परिणाम के लिए बनाया गया है।
भारत में कम सी.एस.आर. (बाल लिंग अनुपात) वाले लगभग 100 जिले हैं, जिनमें सबसे पहले कार्य करने के लिए लक्ष्य बनाया है। हरियाणा राज्य के कुछ जिले निम्न सी.एस.आर. वाले, रिवारी, भिवानी, कुरुक्षेत्र, अंबाला, महेन्द्र गढ, सोनीपत, झांझर, पानीपत, करनाल, काईथल, रोहतक और यमुना नगर है। ये अभियान लड़कियों की स्थिति में सुधार के साथ-साथ उचित और उच्च शिक्षा के माध्यम से उन्हें सामाजिक और आर्थिक रुप से स्वतंत्र बनाने के उद्देश्य से शुरु किया गया था। महिला कल्याण सेवाओं की दक्षता में सुधार करने के लिए ये एक सकारात्मक जागरुकता कार्यक्रम है।
ये योजना बालिकाओं के कल्याण के बारे में समस्याओं को दूर करने के लिए समाज की तत्काल आवश्यकता थी। यदि हम 2011 की जनगणना को देखें, तो लड़कियों की संख्या (0-6 आयु वर्ग वाले समूह की) 1000 लड़कों के अनुपात में 918 लड़कियाँ बची है। लड़कियों की लगातार गिरती जनसंख्या खतरनाक संकेत है जिसमें तत्काल सुधार की आवश्यकता है। ये उनके खिलाफ समाज में प्रचलित बुरी प्रथाओं के कारण जैसे: जन्म से पूर्व लिंग निर्धारण परीक्षण, अस्पतालों में आधुनिक यंत्रों के द्वारा चयनात्मक लिंग गर्भपात। यहाँ तक कि, यदि गलती से बेटी ने जन्म ले लिया तो, जीवन भर उसे लैंगिक भेदभाव जैसी पुरानी सामाजिक प्रवृतियों को सहन करना पड़ता है और कभी उसे एक लड़के की तरह कार्य करने के समान अवसर नहीं दिये जाते।
ये कार्यक्रम समाज में लड़कों के समर्थन में सामाजिक पक्षपात को हटाने के साथ-साथ लड़कियों की सुरक्षा और शिक्षा के माध्यम से उनके स्तर में सुधार करने के लिए शुरु किया गया है। ये योजना इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने की दवा नहीं है, हांलाकि, ये एक सहयोगी योजना है। ये केवल तभी सफल हो सकती है जब ये हमारे द्वारा समर्थित हो। हमेशा के लिए लड़कियों के प्रति नजरिया और मानसिकता बदलने (विशेषरुप से माता-पिता) की आवश्यकता है जिससे कि वो भी जन्म के बाद सुरक्षा, स्वास्थ्य, देखभाल, शिक्षा आदि के समान अवसर प्राप्त कर सके। इस प्रकार, लड़की स्वतंत्र इकाई बन जायेगी और अपने माता-पिता पर बोझ नहीं रहेगी। मैं लड़कियों के सन्दर्भ में, अपने द्वारा लिखी गई एक अच्छी पंक्ति को साझा करना चाहता/चाहती हूँ:
“लड़कियों को परिवार, समाज और देश की शक्ति बनाओ; न कि परिवार, समाज और देश पर बोझ, कमजोर और असहाय इकाई।”
धन्यवाद।