बेटी पर कविता

बेटी बचाओ

नीचे दिए गए कविताओं में बेटी पर हो रहे अत्याचारों और जमाने की जंजीरों में जकड़े हुयी उन बेटिओं के बारे में बताया गया है, जो की न सिर्फ बेटियां है बल्कि समाज और देश का भविष्य भी हैं। लेखक ने अपने शब्दों को कविताओं का रूप देकर समाज को समझाने की कोशिश की है की बेटियां भी बेटों से कम नहीं। नीचे दी गयी सारी कवितायेँ मनमोहक है। और बेटियों की खूबियों का वर्णन है जो की, लेखक ने अपने अनुभव के अनुसार लिखा है। इन कविताओं में समाज के सबसे खूबसूरत रिश्ता “बेटी” पर प्रकाश डाला गया है।

बेटी पर कवितायें (Poems on Daughter in Hindi)

कविता 1

“बेटी का हर रुप सुहाना”

बेटी का हर रुप सुहाना, प्यार भरे हृदय का,

ना कोई ठिकाना, ना कोई ठिकाना।।

 

ममता का आँचल ओढे, हर रुप में पाया,

नया तराना, नया तराना।।

 

जीवन की हर कठिनाई को, हसते-हसते सह जाना,

सीखा है ना जाने कहाँ से उसने, अपमान के हर घूँट को,

मुस्कुराकर पीते जाना, मुस्कुराकर पीते जाना।।

 

क्यों न हो फिर तकलीफ भंयकर, सीखा नहीं कभी टूटकर हारना,

जमाने की जंजीरों में जकड़े हुये, सीखा है सिर्फ उसने,

आगे-आगे बढ़ते जाना, आगे-आगे बढ़ते जाना।।

 

बेटी का हर रुप सुहाना, प्यार भरे हृदय का,

ना कोई ठिकाना, ना कोई ठिकाना।।

                  ———- वन्दना शर्मा

 

कविता 2

“बेटी हूँ मैं”

क्या हूँ मैं, कौन हूँ मैं, यही सवाल करती हूँ मैं,

लड़की हो, लाचार, मजबूर, बेचारी हो, यही जवाब सुनती हूँ मैं।।

 

बड़ी हुई, जब समाज की रस्मों को पहचाना,

अपने ही सवाल का जवाब, तब मैंने खुद में ही पाया,

लाचार नही, मजबूर नहीं मैं, एक धधकती चिंगारी हूँ,

छेड़ों मत जल जाओगें, दुर्गा और काली हूँ मैं,

 

परिवार का सम्मान, माँ-बाप का अभिमान हूँ मैं,

औरत के सब रुपों में सबसे प्यारा रुप हूँ मैं,

जिसकों माँ ने बड़े प्यार से हैं पाला,

उस माँ की बेटी हूँ मैं, उस माँ की बेटी हूँ मैं।।

 

सृष्टि की उत्पत्ति का प्रारंभिक बीज हूँ मैं,

नये-नये रिश्तों को बनाने वाली रीत हूँ मैं,

रिश्तों को प्यार में बांधने वाली डोर हूँ मैं,

जिसकों हर मुश्किल में संभाला,

उस पिता की बेटी हूँ मैं, उस पिता की बेटी हूँ मैं।।

                              ———— वन्दना शर्मा

 

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