सादा जीवन उच्च विचार – अर्थ, उदाहरण, उत्पत्ति, विस्तार, महत्त्व और लघु कथाएं

अर्थ (Meaning)

“सादा जीवन उच्च विचार” यह कहावत जीवन की सादगी और मनोबल तथा आचरण में उच्च विचार को बढ़ावा देता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन के स्तर में सरलीकृत दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। हमें हर जगह और हर किसी के लिए अपनी पसंद और भौतिकवादी चीजों को प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए; बल्कि हमें अपनी नैतिक उच्चता और विचारों की शुद्धता के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए क्योंकि वास्तव में यही मायने रखता है।

उदाहरण (Example)

किसी भी कहावत का सही मतलब समझने के लिए उदाहरण सबसे बेहतर तरीका होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं इस कहावत “सादा जीवन उच्च विचार” पर आधारित कुछ ताजा उदाहरण आपके लिए लेकर आया हूँ जो इस कहावत को बेहतर तरह से समझने में आपकी मदद करेगा।

“भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी अपनी पूरी जिन्दगी साधारण सी लंगोट ही पहने और धार्मिक रूप से सच्चाई और अहिंसा के आदर्शों का पालन किया। सादा जीवन उच्च विचार के वो सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।”

“सादा जीवन उच्च विचार के बारे में, महात्मा गाँधी जी ने एक बार कहा था कि हमें अपने लालच से ज्यादा अपनी जरूरतों पर ध्यान देना चाहिए।”

“मनन बोला – कल मैं एक बौध मठ में गया था। यहाँ पर भिक्षु थे जिन्होंने अपने सर मुंड़ा रखे थे और साधारण कपड़े पहने हुए थे। जब मैं उनसे बात किया, ऐसा लगा कि धरती और उसके प्राणियों के बारे में उनके विचार कितने ज्यादा स्वच्छ हैं; सादा जीवन उच्च विचार के वो सच्चे उदाहरण हैं।”

“कुछ दिनों पहले, मैं एक गरीब आदमी से मिला जिसने अपने महीने भर की कमाई बच्चों के पढ़ाई के लिए दान कर दी थी; सादा जीवन उच्च विचार का ये सच्चा उदाहरण है।”

“इतिहास में कई ऐसी हस्तियाँ हैं जिन्होने सादा जीवन उच्च विचार का उदहारण दिया है। वे अपना जीवन बेहद साधारण तरीके से जीते थे, अभी तक वे दुनिया के लिए बेहतर लाने के बारे में विचारशील हैं। यह सादा जीवन उच्च विचार का एक बेहतर उदाहरण है।”

उत्पत्ति (Origin)

इस वाक्यांश की उत्पत्ति कहाँ से हुई है इसका सटीक अंदाजा नहीं है; हालाँकि, ये वाक्यांश भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है। अपने कई भाषणों और लेखन में, उन्होंने उल्लेख किया था कि एक व्यक्ति को एक सरल और यहाँ तक कि पुरस्कृत जीवन जीना चाहिए।

कुछ ने इस वाक्यांश की उत्पत्ति का श्रेय भारतीय गुरु और योगी, परमहंस योगानंद (1893-1952) को भी दिया है, जिन्होंने कहा था “सरल जीवन और ऊँचे विचार आपका लक्ष्य होना चाहिये। ध्यान के द्वारा अपनी चेतना की सभी स्थितियों को अपने भीतर ले जाना सीखें और अपनी चेतना को हमेशा के लिए, कभी-कभी, नए आनंद, जो कि ईश्वर है, को ध्यान में रखें।”

कहावत का विस्तार (Expansion of idea)

‘सादा जीवन उच्च विचार’ यह कहावत हमें इस बात के लिए प्रोत्साहित करती है कि हम अपने जीवन को समृद्ध के बजाय अधिक सार्थक बनायें। यहाँ जीने के साधारण तरीके से मतलब है जीवन जीने का एक सरल और गैर-महंगा मानक। हमें केवल सिर्फ उन चीजों के लिए ही चिंता करनी चाहिए जो हमारे जीवन के लिए बेहद आवश्यक है। उदाहरण के लिए, एक भोजन जिसमें मांस आदि मौजूद न हो और एक साधारण घर किसी के लिए भी रहने और जीने के लिए काफी है। बाकी सभी चीजें जिसकी हम इच्छा करते हैं वो हमारा लालच है न कि हमारी जरूरत।

कहावत में ‘उच्च विचार’ वाला वाक्य, विचारों और कर्मों की पवित्रता और उच्चता को दर्शाता है। अपने जीवन को समृद्ध बनाने के बजाय, हमें इसके मूल्यों पर ध्यान देना चाहिए। यह हमारे विचार और कर्म तथा दूसरों पर उसके नतीजे ही होते हैं जो सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। यह सोचना कि क्रूरता, ईर्ष्या, घृणा से रहित और प्रेम तथा सम्मान से भरा जीवन समृद्ध व भ्रष्ट जीवन से बेहतर है।

महत्त्व (Importance)

यह कहावत हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन को और भी मूल्यवान बना सकते हैं सिर्फ व्यर्थ के धन और सामान आदि चीजों को नजरंदाज करके। ये हमें सच्ची ख़ुशी और आतंरिक संतुष्टि प्रदान करता है।

ये यह भी बताता है कि सच्ची ख़ुशी हमारे विचारों में ही होती है ना कि किसी और चीजों में। ये हमें प्रेरित करती है कि हम अपनी जड़ों को पहचाने और किसी भी तरह के समृद्धि पाने वाले कार्य को नजरअंदाज करें। जीवन का सही मूल्य हमारे भौतिकवादी अधिग्रहण में नहीं है, बल्कि यह वह है जिसमें हम सोचते हैं, करते हैं, और प्रतिदिन हम कितने जीवन को छूते हैं।

सादा जीवन उच्च विचार हमेशा से हमारे भारतीय संस्कृति की नीव रही है। यह वाक्यांश संभवतः बाद में आया, मगर दार्शनिक ये है कि यह हमेशा हिंदू धार्मिक विचारधारा के मूल में था।

‘सादा जीवन उच्च विचार’ पर लघु कथाएं (Short Stories on ‘Simple Living High Thinking’)

किसी कहावत के नैतिक गुण को समझने के लिए कहानी एक बेहतर माध्यम होती है। आज मैं आपके लिए कुछ कहानियां लेकर आया हूँ ताकि आप ‘सादा जीवन उच्च विचार’ कहावत का बेहतर मतलब समझ सकें।

लघु कथा 1 (Short Story 1)

भारत के एक दूर दराज के गाँव में एक डॉक्टर रहते थे। उनका नाम डॉ प्रमोद था। वो उच्च शिक्षा प्राप्त और एक बहुत ही सम्मानित कॉलेज के मेघावी थे। वर्षों से वह डॉक्टर गाँव के लोगों का बिमारियों और कमजोरियों का इलाज करते आ रहे थे। वो एक मामूली सी झोपड़ी में रहते थे जहाँ एक पंखा था, एक बिस्तर था और बिजली थी; इसके अलवा उनके पास एक बड़ा सा बगीचा था जहाँ पर वो अपना ज्यादातर वक़्त बिताया करते थे।

डॉ प्रमोद अपने जीवन से बेहद संतुष्ट थे और जो भी वे हर रोज करते उससे संतुष्ट थे। एक बार एक पत्रकार किसी राजनितिक मुद्दे के लिए गाँव में आया हुआ था। पत्रकार ने डॉक्टर के बारे में सुना और गांववालों से उनके लिए सम्मान को देखकर काफी ज्यादा प्रभावित हुआ। पत्रकार ने उनसे मिलने का फैसला किया।

आखिरकार, पत्रकार डॉक्टर के झोपड़े में उनसे मिलने पहुँच ही गया। डॉक्टर के जीवन और उनकी शिक्षा के बारे में बातें जानकर पत्रकार निशब्द हो गया। पत्रकार जनता था कि इतनी अच्छी उपलब्धि होने पर अगर यह डॉक्टर चाहते तो देश के किसी भी बड़े शहर में जा कर लाखो रुपये कमा सकते थे, मगर बावजूद इसके उन्होंने इस गाँव में अपना जीवन बिताने की सोची जहाँ आने के लिए एक ढंग की सड़क तक नहीं है।

वो कर क्या रहे हैं? यहाँ तक कि आखिर कोई संपन्न और समृद्ध जीवन को छोड़कर क्यों इस तरह का जीवन चुनेगा? ये सभी सवाल पत्रकार को काफी परेशान कर रहे थे। वो अपनी उत्सुकता को दबा नहीं पाया और डॉक्टर से पूछ बैठा – आपने इस तरह के जीवन का चुनाव क्यों किया? डॉक्टर ने जवाब दिया कि वो एक संपन्न किसान घराने से ताल्लुख रखते थे जिन्होंने समय के साथ-साथ अपनी सारी जमीन खो दी। उसने बहुत ही कम समय के अंतराल में अमीरी और गरीबी दोनो ही देखी है। वो जानता था कि समय के साथ मौद्रिक धन खो देगा और एक ऐसा जीवन बिताने का फैसला किया है जो अधिक मूल्यवान है और दूसरों के जीवन को भी प्रभावित करता है। यही वह मुख्य वजह है कि वह इस गाँव में है और लोगों की मदद कर रहा है।

पत्रकार काफी ज्यादा प्रभावित हुआ और अगले दिन उसने डॉक्टर के बारे में एक आर्टिकल बनाया। प्रमोद के बारे में वहां के एक स्थानीय अखबार में छपा था जिसकी मुख्य लाइन थी “सादा जीवन उच्च विचार”।

लघु कथा 2 (Short Story 2)

एक बड़े से बंगले में एक अमीर व्यवसायी अपने इकलौते बेटे के साथ रहता था। उस व्यवसायी के पास अपने परिवार के लिए जरा भी वक़्त नहीं रहता था, यहाँ तक कि, उसके घर में दुनियाभर की हर वो चीजें मौजूद थी जो कि पैसे से खरीदी जा सकती थीं। उसके लड़के को अपना ज्यादातर वक़्त अकेले ही बिताना पड़ता था, अपने कार और उपकरणों आदि के साथ, लेकिन वो उसके साथ खुश था। उसने इंसानी भावनाओं और संबंधो की बजाय वस्तुओं को ज्यादा महत्त्व देना शुरू कर दिया था। वह लड़का अपने तमाम सामानों को लेकर गर्व से बातें करने लगा था और अपने दोस्तों को खुद से नीचा समझने लगा था क्योंकि वो उसके जितने अमीर नहीं थे।

धीरे-धीरे उसके दोस्त उससे दूर होते चले गए, मगर वह लड़का अभी भी खुश था क्योंकि वो अमीर था। व्यवसायी अपने बेटे के स्वास्थ्य सलाह को लेकर और उसके संबंधों को लेकर चिंतित रहता था मगर उसके पास इस सबके लिए समय ही नहीं होता था।

एक दिन, कुछ ऐसा हुआ, उस व्यवसायी के बचपन का एक दोस्त गाँव से उससे मिलने आया। व्यवसायी बहुत ही खुश हुआ और उससे अपने बंगले में ही एक रात रुकने का निवेदन किया। बेटा भी अपने पिता के दोस्त से मिला मगर उसने उन्हें नीचे देखा और उनका सम्मान नहीं किया क्योंकि वो गरीब थे और गाँव से आये हुए थे।

यह उनके दिल को चुभ गया, तब व्यवसायी ने अपने बेटे को एक सबक सिखाने का विचार बनाया। उसने उसे कहा कि वह उसके व्यापार में एक प्रशिक्षु के तौर पर शामिल हो जाये और उसे यह भी कहा कि वह एक कमरे वाले कर्मचारी घर में रहे। लड़के को गुस्सा आया मगर उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। भव्यता से निकल कर दुःख, दर्द, ख़ुशी से भरी इस दुनिया में आने के बाद वह लड़का काफी ज्यादा बदल गया। जल्दी ही वह अमीरों की तरह ही गरीबों का भी सम्मान करने लगा। वह अब एक बदला हुआ इंसान था। अब वो लोगों को प्यार करता था और बदले में लोग भी उसे प्यार और सम्मान देते थे।

अपने बेटे के बारे में इस बदलाव को देख कर व्यवसायी को काफी ख़ुशी हुई, और अब उन्होंने उसे वापिस से घर में जाने को कहा। बेटे ने पिता को एक चिट्ठी लिखी जिसमे उसने कहा की वे सप्ताहांत पर मिलेंगे मगर उसने बंगले में जाने से मना कर दिया। उसने आगे यह भी लिखा कि इस सादे जीवन और उच्च विचार वाली जिंदगी से उसे प्यार हो गया है और वो ऐसा ही रहना पसंद करेगा।

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