भारत एक सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता वाला देश है। राष्ट्रवाद ही वह धागा है जो लोगों को उनके विभिन्न सांस्कृतिक-जातीय पृष्ठभूमि से संबंधित होने के बावजूद एकता के सूत्र में एक साथ बांधता है। यह कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी भारतीयों को एकजुट करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्रवाद पर छोटे तथा बड़े निबंध (Short and Long Essay on Nationalism in Hindi, Rashtravad par Nibandh Hindi mein)
निबंध 1 (300 शब्द)
प्रस्तावना
राष्ट्रवाद एक ऐसी अवधारणा है जिसमें राष्ट्र सर्वोपरि होता है अर्थात राष्ट्र को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जाती है। यह एक ऐसी विचारधारा है जो किसी भी देश के नागरिकों के साझा पहचान को बढ़ावा देती है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति एवं संपन्नता के लिए नागरिकों में सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से ऊपर उठकर राष्ट्र के प्रति गौरव की भावना को मजबूती प्रदान करना आवश्यक है और इसमें राष्ट्रवाद एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना
राष्ट्रवाद यानि राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना का विकास किसी भी देश के नागरिकों की एकजुटता के लिए आवश्यक है। यही वजह है कि बचपन से ही स्कूलों में राष्ट्रगान का नियमित अभ्यास कराया जाता है और आजकल तो सिनेमाघरों में भी फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाया जाता है, और साथ ही पाठ्यक्रमों में देश के महान सपूतों, वीरों एवं स्वतंत्रता सेनानियों की गाथाओं का समावेश किया जाता है।
राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो सैनिकों को देश की सीमा पर डटे रहने की ताकत देती है। राष्ट्रवाद की वजह से ही देश के नागरिक अपने देश के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटते। वह राष्ट्रवाद ही है जो किसी भी देश के नागरिकों को उनके धर्म, भाषा, जाति इत्यादि सभी संकीर्ण मनोवृत्तियों को पीछे छोड़कर देशहित में एक साथ खड़े होने की प्रेरणा देता है।
भारत समेत ऐसे कई ऐसे देश हैं जो सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई विविधता से सम्पन्न हैं और इन देशों में राष्ट्रवाद की भावना जनता के बीच आम सहमति बनाने में मदद करती है। देश के विकास के लिए प्रत्येक नागरिक को एकजुट होकर कार्य करना पड़ता है और उन्हें एक सूत्र में पिरोने का कार्य राष्ट्रवाद की भावना ही करती है।
निष्कर्ष
भारतीय नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना सर्वोपरि है और इसीलिए जब यहां के नागरिकों से देश के राष्ट्रीय ध्वज एवं राष्ट्रगान, जो कि देश की एकता एवं अखंडता के राष्ट्रीय प्रतीक हैं, के प्रति सम्मान की अपेक्षा की जाती है तो वे पूरी एकता के साथ खुलकर इन सभी के लिए अपना सम्मान प्रकट करते हैं।
निबंध 2 (400 शब्द)
प्रस्तावना
एक मां जिस प्रकार से अपने बच्चे पर प्यार, स्नेह एवं आशीर्वाद से सींचते हुए उसका लालन-पालन करती है ठीक उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हमें पालती है। जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चों की भलाई करती है और बदले में कोई अपेक्षा नहीं करती, उसी प्रकार हमारी मातृभूमि भी हम पर ममता की बारिश करते हुए बदले में कुछ भी नहीं चाहती। लेकिन हरेक भारतीय के लिए यह जरूरी है कि वे अपने राष्ट्र के प्रति गर्व एवं कृतज्ञता की भावना प्रदर्शित करें। दूसरे शब्दों में कहें तो, हमें अपने वचन एवं कार्य दोनो ही के द्वारा हम राष्ट्रवाद की भावना को अपने जीवन में उतारें।
भारत, धार्मिक एवं क्षेत्रीय विविधता के बावजूद, एक राष्ट्र है
हम सभी के अलग-अलग मान्यताओं पर विश्वास करने, भिन्न-भिन्न प्रकार के त्योहारों के मनाने एवं अलग-अलग भाषाओं के बोलने के बावजूद राष्ट्रवाद हम सभी को एकता के सूत्र में पिरोता है। यह राष्ट्रवाद की भावना ही है जो एकता और अखंडता के लिए खतरों के खिलाफ राष्ट्र की रक्षा करता है। हम सांस्कृतिक और भाषायी रूप से अलग होने के बावजूद राज्यों में रहने वाले लोग हैं एवं हमारी पहचान भी अलग है,। लेकिन एक ध्वज, राष्ट्रीय गान और राष्ट्रीय प्रतीक के तहत एक के रूप में एक साथ खड़े हो सकते हैं। हमारा देश दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है और एक वफादार नागरिक के तौर पर हमें इसपर गर्व होना चाहिए।
हमारी मातृभूमि का महत्व जाति, पंथ, धर्म और अन्य सभी बातों से बढ़कर है। हम अपनी स्वतंत्रता जिसे हमने भारत के लाखो बेटों एवं बेटियों के सर्वोच्च बलिदान के फलस्वरूप हासिल किया है वह केवल राष्ट्रवाद और देशभक्ति की वजह से ही संभव हो पाया है। इसलिए हमें राष्ट्रवाद की भावना को कभी कमजोर नहीं करना चाहिए ताकि हम सर्वदा अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रह सकें।
निष्कर्ष
कुछ ऐसी ताकतें हैं जो अलगाववादी भावनाओं के साथ आजादी के लिए आवाज उठा रहे हैं (जैसा कि कश्मीर और उत्तर-पूर्व भारत के अशांत इलाकों में देखा जा रहा है) एवं अपनी गतिविधियों द्वारा देश को कमजोर करना चाहते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत में कुछ शैक्षिक संस्थान भी भारत विरोधी नारेबाजी और विरोध प्रदर्शन द्वारा भारत को दो हिस्सों में बाँटने की घिनौनी विचारधारा फैलाते हुए नजर आए हैं। केवल राष्ट्रवाद की एक अटूट भावना द्वारा ही भारत को राष्ट्र-विरोधी ताकतों की चपेट में आने से बचाया जा सकता है।
निबंध 3 (450 शब्द)
प्रस्तावना
हमारे हृदय में अपने वतन के प्रति सम्मान एवं प्रेम की भावना का होना ही राष्ट्रवाद कहलाता है। वैसे तो यह भावना प्राकृत्तिक रूप से हर व्यक्ति के अंदर होनी ही चाहिए, लेकिन कुछ बाहरी कारणों एवं लालन-पालन में हुई अनदेखी की वजह से बच्चों के अंदर राष्ट्र विरोधी भावनाएं पनप सकती हैं।
राष्ट्र सर्वोपरि है
प्रत्येक नागरिक के लिए अपने राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता प्रदर्शन करना अनिवार्य है क्योंकि हमारा देश अर्थात हमारी जन्मभूमि हमारी मां ही तो होती है। जिस प्रकार माता बच्चों को जन्म देती है तथा अनेक कष्टों को सहते हुए भी अपने बच्चों की खुशी के लिए अपने सुखों का परित्याग करने में भी पीछे नहीं हटती है उसी प्रकार अपने सीने पर हल चलवाकर हमारे राष्ट्र की भूमि हमारे लिए अनाज उत्पन्न करती है, उस अनाज से हमारा पोषण होता है।
कुछ विद्वानों ने भी कहा है कि जो व्यक्ति जहां जन्म लेता है वहां की आबोहवा, वहां की वनस्पती, नदियां एवं अन्य सभी प्रकृति प्रदत्त संसाधन मिलकर हमारे जीवन को विकास के पथ पर अग्रसर करती है और हमें शारीरिक एवं मानसिक स्तर पर बलिष्ठ बनाती है। मातृभूमि के स्नेह एवं दुलार में इतनी ताकत होती है कि वह हमें अन्य राष्ट्रों के सामने मजबूती से खड़ा होने की शक्ति प्रदान करती है।
जाति, धर्म और क्षेत्रीयता की संकीर्ण मानसिकता से उपर उठकर देश के प्रति गर्व की एक गहरी भावना महसूस करना ही राष्ट्रवाद है। राम ने रावण को हराने के बाद अपने भाई लक्ष्मण से कहा था कि स्वर्ण नगरी लंका उनकी मातृभूमि के सामने तुच्छ है। उन्होंने कहा था ‘जननी-जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’ अर्थात् जननी (माता) और जन्मभूमि का स्थान स्वर्ग से भी श्रेष्ठ एवं महान है।
हमारा देश किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करता एवं वे अपने सभी अधिकारों और विशेषाधिकारों का उपयोग बिना किसी रोकटोक के करते हैं। यह हम सब की जिम्मेदारी है कि हम क्षेत्रीयता, धर्म और भाषा आदि सभी बाधाओं से उपर उठकर अपने देश में एकता और अखंडता को बढ़ावा दें।
राष्ट्रवाद का जन्म
वास्तव में, एक राष्ट्र का जन्म तभी होता है जब इसकी सीमा में रहने वाले सभी नागरिक सांस्कृतिक विरासत एवं एक दूसरे के साथ भागीदारी में एकता की भावना महसूस कर सकें। राष्ट्रवाद की भावना ही कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत को एक धागे में बांधता है। भारत जैसे विशाल देश में राष्ट्रवाद की भावना हमेशा जात-पात, पंथ और धर्म के मतभेदों से उपर उठ रही है। राष्ट्रवाद की भावना की वजह से ही भारतीयों को दुनिया के उस सबसे बड़े लोकतंत्र में रहने का गौरव प्राप्त है जो शांति, मानवता भाईचारे और सामूहिक प्रगति के अपने मूल्यों के लिए जाना जाता है।
निष्कर्ष
यह राष्ट्रवाद की भावना के साथ वर्षों तक किए गए कठिन संघर्षों एवं असंख्य बलिदानों का ही परिणाम है कि अंग्रेजों से भारत को आजादी मिल पायी। उस समय भारत कई रियासतों में विभाजित होने का बवजूद स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में एक राष्ट्र के रूप में खड़ा था। आजादी के सात दशकों बाद भी हमें राष्ट्रवाद की इस अटूट भावना को ऐसे ही बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि आज भारत के भीतर और बाहर अलगाववादी एवं विघटनकारी ताकतों से राष्ट्रीय सुरक्षा और एकता पर खतरा मंडरा रहा है। केवल राष्ट्रवाद की गहरी जड़ें ही भारत को कश्मीर या उत्तर-पूर्व भारत में चल रहे विघटनकारी आंदोलनों को परास्त करने की शक्ति दे रही है और आत्मनिर्णय के अधिकार के छद्म प्रचार के नाम पर आगे होने वाले विभाजन से भारत को बचा रही है।
निबंध 4 (500 शब्द)
प्रस्तावना
अपने देश के प्रति लगाव एवं समर्पण की भावना राष्ट्रवाद कहलाती है। राष्ट्रवाद ही तो है जो किसी भी देश के सभी नागरिकों को परम्परा, भाषा, जातीयता एवं संस्कृति की विभिन्नताओं के बावजूद उन्हें एकसूत्र में बांध कर रखता है।
मां के साथ राष्ट्र की तुलना
हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में राष्ट्र की तुलना मां से की जाती रही है। जिस प्रकार मां अपने बच्चों का भरण-पोषण करती है उसी प्रकार एक राष्ट्र भी अपने नागरिकों के जीवन की विभिन्न आवश्यकताओं को अपने प्राकृतिक संसाधनो द्वारा पूरा करती है। हम राष्ट्रवाद की भावना द्वारा ही वर्गीय, जातिगत एवं धार्मिक विभाजनों कई मतभेदों को भुलाने में कामयाब होते हैं और ऐसा देखा गया है कि जब भी किन्हीं दो देशों में युद्ध की स्थिति पैदा होती है तो उन देशों के सभी नागरिक एकजुट होकर देशहित में राष्ट्रवाद की भावना के साथ अपने-अपने देश के सैनिकों की हौसला अफजाई करते हैं।
राष्ट्रवाद देश को एकसूत्र में बांधता है
राष्ट्रवाद एक ऐसी सामूहिक भावना है जिसकी ताकत का अंदाज़ा इस हकीकत से लगाया जा सकता है कि इसके आधार पर बने देश की सीमाओं में रहने वाले लोग अपनी विभिन्न अस्मिताओं के ऊपर राष्ट्र के प्रति निष्ठा को ही अहमियत देते हैं और आवश्यकता पड़ने पर देश के लिए प्राणों का बलिदान भी देने में नहीं हिचकिचाते। राष्ट्रवाद की भावना की वजह से ही एक-दूसरे से कभी न मिलने वाले और एक-दूसरे से पूरी तरह अपरिचित लोग भी राष्ट्रीय एकता के सूत्रमें बँध जाते हैं। विश्व के सभी देशों मे राष्ट्रवाद के ज़रिये ही नागरिकों में राष्ट्र से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर सहमति बनाने में कामयाब हो पाए हैं।
राष्ट्रवाद एवं वैश्वीकरण
कुछ विद्वानों के अनुसार भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया ने राष्ट्रवादी चिंतन को काभी हद तक प्रभावित किया है और अब क्योंकि राष्ट्रीय सीमाओं के कोई ख़ास मायने नहीं रह गये हैं और इस स्थिति ने राष्ट्रवाद की भावना को चुनौती पेश की है। उनका तर्क यह है कि भूमण्डलीकरण के अलावा इंटरनेट और मोबाइल फोन जैसी प्रौद्योगिकीय प्रगति ने दुनिया में फासलों को बहुत कम कर दिया है, हालांकि राष्ट्रवाद की यह व्याख्या सारहीन है।
निष्कर्ष
किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए उसके नागरिकों में राष्ट्रवाद की भावना का होना जरूरी है। राष्ट्रवाद की महत्ता को समझते हुए और अपने नागरिकों में देशप्रेम की भावना की पुनरावृत्ति करने के उद्देश्य से पूरे विश्व में सभी सरकारें अनिवार्य रूप से राष्ट्रीय पर्वों का आयोजन करती है। इन कार्यक्रमों के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के प्रति सम्मान व्यक्त किया जाता है। कुल मिलाकर किसी भी राष्ट्र की प्रगति के लिए नागरिकों की एकता एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और राष्ट्रवाद ही वह भावना है जो लोगों को धर्म, जाति एवं ऊंच-नीच के बंधनों को समाप्त करते हुए एकता के सूत्र में पिरोती है।
संबंधित जानकारी: