अर्थ (Meaning)
यह कहावत ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’ सिखाती है कि किसी अनचाही स्थिति से बचने के लिए झूठ बोलने से बेहतर है कि आप हमेशा सच बोलें। इमानदारी एक मनोभाव है, जीने का तरीका है, जिसमे एक व्यक्ति संकल्प लेता है कि किसी भी परिस्थिति में वह कभी झूठ नहीं बोलेगा और किसी भी प्रकार की घातक गतिविधियों में शामिल नहीं होगा। वहीं दूसरी तरफ, यहाँ पर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो क्षणिक लाभ के लिए झूठ बोलने और मनगड़ंत बातें बनाने में जरा भी नहीं हिचकते हैं।
लेकिन एक बात एकदम साफ़ है, वह झूठ शायद आपको कुछ लाभ दिला दे, लेकिन वो केवल कुछ निश्चित समय के लिए ही होता है। आराम कुछ वक़्त के लिए ही होता है और निश्चित रूप से सच तो सामने आना ही है, लेकिन समय के साथ ये और भी ज्यादा तीव्र होता जायेगा। इसलिए, यह कहावत हमें सिखाती है कि ‘सच’ के साथ बने रहना चाहिए ‘झूठ’ बोलने से बचना चाहिए चाहे परिस्थिति कैसी भी हो।
उदाहरण (Example)
किसी भी कहावत का सही मतलब समझने के लिए उदाहरण सबसे बेहतर तरीका होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं इस कहावत ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’ पर आधारित कुछ ताजा उदाहरण आपके लिए लेकर आया हूँ जो इस कहावत को बेहतर तरह से समझने में आपकी मदद करेगा।
“एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी के आगमन द्वार पर, एक पोस्टर लगा था जिसपर लिखा था – ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है।”
“राहुल पर चिल्लाते हुए डॉक्टर बोले – इलाज करने से पहले तुमने मुझे बताया क्यों नहीं? तुमने अपनी बीमारी को और भी ज्यादा बद्दतर बना दिया है! शायद तुम्हे पता होना चाहिए ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है।”
“एक इमानदार कर्मचारी समय आने पर विधिवत पुरस्कृत किया जायेगा; शायद ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है।”
“लाखों लोग महात्मा गाँधी पर भरोसा करते थे केवल इसलिए क्योंकि वे हमेशा अपने साथ ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’ को लेकर चलते थे।”
“मैं इस शर्मनाक स्थिति में नहीं फंसना चाहता हूँ, हालाँकि बाद में, मुझे समझ आ गया कि ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है।”
उत्पत्ति (Origin)
यह कहावत ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’ सर्वप्रथम अंग्रेज राजनितिक और उद्यमी, सर एडविन सैंडिस द्वारा इस्तेमाल किया गया था। वो वर्ष 1589 और 1626 के बीच कई बार हाउस ऑफ कॉमन्स में थे।
उन्होंने इस कहावत को युरोप के धार्मिक शहर के लिए लिखी गयी संधि में इस्तेमाल किया था। इस संधि का नाम यूरोपा स्पेकुलम रखा गया था और इसे 1605 में ‘यूरोप में धर्म की स्थिति का संबंध’ नाम से प्रकाशित किया गया था। उस पुस्तक को 1629 में हेग में दुबारा से छापा गया था
तब से यह कहावत – ‘ईमानदारी सर्वश्रेष्ठ नीति है’, दुनियाभर में मशहूर हो गयी और आज हर किसी के बीच जोरों से इस्तेमाल हो रही है।
कहावत का विस्तार (Expansion of idea)
इस कहावत ‘इमानदारी सर्वश्रेष्ठ निति है’ में – जहाँ ईमानदारी का तात्पर्य केवल अपने और दूसरों के प्रति सच्चा होने से नहीं है, बल्कि आपके प्रतिदिन के आचरण में भी ईमानदार होने से है। इसका मतलब है कि अगर आप किसी के लिए काम करने वाले कर्मचारी हैं, तो आपको अपने कार्य के प्रति ईमानदार होना चाहिए। आपको जालसाजी और भ्रष्ट आचरण से दूर और एकदम साफ़ रहना चाहिए।
यहाँ एक कारण है कि आखिर क्यों यह कहावत आपको ईमानदार होने के लिए कहता है अगर आप नहीं हैं तो, बाद में आपको और भी अधिक कठिन और शर्मनाक परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। आप जिस स्थिति से बचने के लिए एक झूठ बोलते हैं, वह आपको अपने चारों ओर झूठ का एक जाल बनाने के लिए मजबूर कर देता है और अंततः एक दिन आपको उसका भुगतान करना ही पड़ता है। एक झूठ को छिपाने के लिए एक और झूठ और फिर उसके बाद एक और झूठ बोलते जाना होता है। दूसरी ओर, सच्चाई अंततः बाहर आ ही जाएगी, जिससे बचने का कोई रास्ता नहीं है।
महत्त्व (Importance)
यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण कहावत है जो हमें हमारे व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में बड़ी परशानी में पड़ने से बचाती है अगर हम इसकी कही बात को मानें।
अगर आप अपने व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन में इमानदार हैं, आप कई परेशानियों का सामना करते हैं, लेकिन आखिर में, आप खुश और संतुष्ट होंगे। लोग, दोस्त, चहेते, सहकर्मी सभी आपपर भरोसा करते हैं और आपका विश्वास करते हैं।
वहीं दूसरी तरफ, अगर आप किसी भी बारे में झूठ बोलते हैं, तो सच बाहर आ जाने का डर हमेशा बना रहता है, जो हर वक़्त आपके साथ रहता है, यहाँ तक की सोते वक़्त भी। यह एक इतनी ज्यादा भारी वाली भावना होती है जो आपके सर का बोझ बन जाती है जिसे आप हटाना तो चाहते हैं मगर अफसोस ऐसा कर नहीं पाते। जितनी भी कोशिश कर लीजिये सच कभी छुप नहीं सकता, इसमें सिर्फ देरी हो सकती है। इस बार जब सच सामने आता है, आप उन सभी का विश्वास खो देते हैं जिसे-जिसे आप जानते हैं।
‘इमानदारी सर्वश्रेष्ठ निति है’ पर लघु कथाएं (Short Stories on ‘Honesty Is the Best Policy’)
जैसा की मैं पहले भी बताता आया हूँ कि किसी कहावत के नैतिक गुण को समझने के लिए कहानी एक बेहतर माध्यम होती है। आज मैं आपके लिए कुछ कहानियां लेकर आया हूँ ताकि आप ‘इमानदारी सर्वश्रेष्ठ निति है’ कहावत का मतलब और भी सही तरह से समझ सकें।
लघु कथा 1 (Short Stories 1)
एक बार भारत में एक राजा रहते थे जिनका नाम कृष्ण देव राय था। उनका राजा बहुत ही धनी था और वहां हर कोई खुश और संपन्न था। एक दिन, उनके एक दरबारी ने सुझाव दिया कि उन्हें एक इमानदार व्यक्ति चाहिए जो उनका राजसी खजाना संभाल सके। यह इस बड़े से राज्य में इमानदार व्यक्ति को खोजने का काम था। यह बड़ा सवाल था कि, इसे वो कैसे करेंगे? राजा के चतुर दरबारियों में से एक, जिनका नाम तेनालीराम था, वह एक ज्ञानपूर्ण योजना के साथ आया। उसने सुझाव दिया कि वे शहर के कई स्थानों पर, रात के अंधेरे में, सोने का एक बर्तन छोड़ देते हैं, और अगली सुबह घोषणा करते हैं, कि जो कोई भी खोए हुए बर्तन को वापस करेगा, उसकी प्रशंसा स्वयं राजा करेंगे। उसका विचार था कि वह व्यक्ति, जो सिर्फ राजा द्वारा प्रशंसा के लिए सोने का बर्तन लौटा देता है, वह वास्तव में ईमानदार होगा।
राजा तैयार हो जाता है, सैनिक रात के अंधरे में, शहर के अलग अलग हिस्सों में, सोने के पांच बर्तन रख देते हैं। अगली सुबह शहर में घोषणा करा दी जाती है और बहुत ही बेसब्री से इमानदार व्यक्ति का सोने के बर्तन के साथ वापिस लौटने का इन्तजार होने लगता है। पाँच में से चार बर्तन तो नहीं लौटे, क्योंकि जिन व्यक्ति को वह मिला वह इतने इमानदार नही थे जो हाथ आई किस्मत को लौटा दें। तब एक दुर्बल सा, बेचारा सा किसान राजा के दरबार में चलते हुए आता है और राजा को सोने का वह बर्तन लौटा देता है। राजा उस किसान की इमानदारी देख खुश होते हैं और तत्काल ही उसे राजसी खजाने का प्रबंधक बना देते हैं। गरीब किसान ने पूरी दुनिया को दिखा दिया कि वास्तव में, इमानदारी सर्वश्रेष्ठ निति है।
लघु कथा 2 (Short Story 2)
एक लड़का था जिसका नाम अंकित का। वह बहुत ही मेहनती छात्र था और उसके शिक्षक भी उसे काफी प्यार करते थे। वह हमेशा सच बोलने के लिए भी जाना जाता था, चाहे जो हो जाए।
एक रोज, परीक्षाएं आ गई, और प्रश्न पत्र के वितरण से ठीक पहले, ऐसा हुआ कि अंकित अपनी पुस्तक से महत्वपूर्ण विषयों को दोहरा रहा था। अचानक घंटी बजी और जल्दबाजी में अंकित किताब को अपनी मेज के नीचे ही रख कर भूल गया।
जब परीक्षा समाप्त होने वाली थी, तो अंकित को अचानक महसूस हुआ कि उसकी मेज के नीचे किताब है। इसका पता चलते ही उसे काफी ग्लानी महसूस हुई, उसने परीक्षक को बुलाया और पूरी स्थिति से अवगत कराया। परीक्षक काफी गुस्से में था, लेकिन यह सोचकर भी हैरान था कि अगर अंकित के इरादे कुछ और होते, तो वह उसे किताब के बारे में नहीं बताता।
हालांकि, परीक्षक अंकित को प्रिंसिपल के पास ले गया, जो अंकित को अच्छी तरह से जानते था। प्रिंसिपल ने अंकित की बात को धैर्य से सुना और फिर आश्चर्य की बात ये थी कि, बिना कोई सजा दिए उन्होंने उसे जाने दिया।
शायद, प्रधानाचार्य अच्छी तरह से जानते थे कि अंकित एक ईमानदार छात्र है और इमानदारी सर्वश्रेष्ठ निति है।