कर्म ही पूजा है – अर्थ, उदाहरण, उत्पत्ति, विस्तार, महत्त्व और लघु कथाएं

अर्थ (Meaning)

यह कहावत ‘कर्म ही पूजा है’ इश्वर और आपके कार्य में एक सम्बन्ध स्थापित करती है। चाहे आप किसी भी धर्म को मानते हों – हिन्दू, मुस्लिम, इसाई। आपके प्रतिदिन के कार्य, जो भी आप करते हैं, जो आप कहते हैं, आदि पूजा के योग्य हैं, अगर वे भगवान और मानवता के लिए भी प्रतिष्ठा लाते हैं। दुसरे शब्दों में – यदि आप श्रद्धापूर्वक काम करते हैं और आज्ञाकारी बने रहते हैं और किसी को नुकसान नहीं पहुँचाते हैं, तो आप भगवान की पूजा किए बिना भी यह कर सकते हैं।

संभव है कि, भगवान भी आपके कार्य से ज्यादा खुश रहते हैं न की आपकी ढेर सारी पूजा-पाठ से। आपका कर्म आपकी पूजा से ज्यादा श्रेष्ठकर है जो भगवान को प्रतिष्ठा दिलाता है।

उदाहरण (Examples)

किसी भी कहावत का सही मतलब समझने के लिए उदाहरण सबसे बेहतर तरीका होता है। इस बात को ध्यान में रखते हुए मैं इस कहावत ‘कर्म ही पूजा है’ पर आधारित कुछ ताजा उदाहरण आपके लिए लेकर आया हूँ जो इस कहावत को बेहतर तरह से समझने में आपकी मदद करेगा।

“एक सैनिक जो महीनों तक सीमा की रक्षा करता है, बिना किसी मंदिर या मस्जिद गए; तब भी, वो हम लोगों से ज्यादा भगवान के करीब होता है, जो रोज उनकी पूजा करते हैं। वास्तव में कर्म ही पूजा है।”

“रोनी ने अपनी डॉक्टर माँ से इस रविवार को चर्च साथ चलने को पूछा, मगर उसने कहा कि उस दिन सुबह ही उनकी बहुत महत्वपूर्ण सर्जरी है। रोनी के दिमाग में अपनी माँ को लेकर कई तरह के नास्तिक विचार भरते चले गए। धर्मोपदेश के दौरान उसने ‘कर्म ही पूजा है’ शब्दों को सुना। तब अपनी माँ को लेकर हर तरह के नकारात्मक विचार उसके दिमाग से निकल गए।”

“भगवान नहीं चाहते हैं कि आप प्रतिदिन उनकी पूजा करें वे सिर्फ इतना चाहते हैं कि आप जो भी करें मन से, साफ़ दिल से, हर किसी के लिए करें। आपके कार्य पूजा के सामान अच्छे हैं, अगर वो लगन, इमानदारी और अच्छे विचारों के साथ किया गया हो तो। जान लीजिये, कर्म ही पूजा है।”

“अगर आप दिन में पांच बार पूजा करते हैं, इसके बाद भी आपकी हरकतें बेईमानी और निंदनीय भरी हैं, तब आपको उस पूजा का कोई लाभ नहीं मिलने वाला है, यहाँ तक कि आपको ऐसा करने की सजा भी मिलती है।”

“एक व्यक्ति जो अपना कार्य पूरी निष्ठा और इमानदारी के साथ करता है, उसे इश्वर से डरने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि वो इश्वर की पूजा अपने कर्म से कर रहा है।”

उत्पत्ति (Origin)

इस कहावत ‘कर्म ही पूजा है’ की सटीक उत्पत्ति कहाँ से हुई है यह निर्धारित नहीं हो पाया है; हालाँकि इससे मिलता जुलता एक वाक्यांश पॉल अपोस्टल द्वारा ईसा मसीह के सुसमाचार में मिलती है। उन्होंने कालम 3:17 में लिखा – “और आप जो भी करते हैं, भले ही कार्य में या प्राथना में, सब कुछ करो प्रभु जीसस का नाम लेकर करो, परम पिता परमेश्वर को धन्यवाद देते हुए, उसके माध्यम से।” इसके बाद वो लिखते हैं -“चाहे तुम जो भी खाओ या जो भी पियो, सब कुछ करो इश्वर की प्रतिष्ठा के लिए।”

बाद में, यह कहावत ‘कर्म ही पूजा है’ दुनिया भर में कई विद्वानों और नेताओं द्वारा उपयोग किया जाने लगा। स्वामी विवेकानंद ने भी इसका उल्लेख किया है और यहाँ तक कि राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने भी समय समय पर अपने भाषणों में इसका इस्तेमाल किया है।

कहावत का विस्तार (Expansion of idea)

‘कर्म ही पूजा है’ इस कहावत का विस्तार हमारे द्वारा किये गए हमारे कार्यालय और अन्य जगहों के कार्य को मिला देता है, उन जगहों से जहाँ पर भगवान की पूजा की जाती है।

पेशेवर कार्यालय जाते हैं; किसान और मजदूर खेतों में जाते हैं – हर कोई अपने-अपने क्षेत्र में काम करता है। जैसे, पूजा के लिए हम मंदिर, मस्जिद, चर्च जाते हैं। यह कहावत दो कार्यों को जोड़ती है।

काम, जैसा कि हम अभी जानते हैं, वह है जो हमे अपनी जीविका चलाने के लिए, अपने चहेतों की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है। ‘पूजा’ शब्द जो हम चाहे वो करें से बन कर आया है; हमें इसे पात्रता से भी अवश्य जोड़ लेना चाहिए। आप जो भी करते हैं, अगर यह करने योग्य है और इमानदारी के साथ किया जा रहा है तो निश्चित रूप से ये आपकी पूजा के बराबर है।

महत्त्व (Importance)

यह कहावत ‘कर्म ही पूजा है’ हमें अपने लक्ष्य से बिना विचलित हुए आज्ञाकारी और ईमानदारी से काम करना सिखाती है। यह हमारे जीवन के सही मूल्य को इंगित करती है। जीवन का सच्चा सार यह है कि हम क्या करते हैं और कितने आज्ञाकारी रूप से करते हैं, लेकिन यह नहीं कि हम भगवान की पूजा करने में कितना समय देते हैं।

जो हम करते हैं, हमारे कर्मों से ईश्वर अधिक प्रसन्न होते हैं, बजाय हमारी पूजा से। वास्तव में, वह खुशी-खुशी पूजा को नजरअंदाज कर सकते है यदि हमारे कर्म महान हों। यह वाक्यांश हमें सिखाता है कि भगवान बस हमें हर समय उसकी पूजा करने की तुलना में हमारे आचरण में ईमानदारी रहे ये चाहते हैं।

हम जो कुछ भी करते हैं उसमें यह हमें सफलता की राह पर ले जाता है, जैसे – ईमानदारी और भक्ति के गुण।

‘कर्म ही पूजा है’ पर लघु कथाएं (Short Stories on ‘Work is Worship’)

किसी कहावत के नैतिक गुण को समझने के लिए कहानी एक बेहतर माध्यम होती है। आज मैं आपके लिए कुछ कहानियां लेकर आया हूँ ताकि आप ‘कर्म ही पूजा है’ कहावत का बेहतर मतलब समझ सकें।

लघु कथा 1 (Short Story 1)

एक बार एक आलसी किसान था जो खेतों में नहीं जाता था और सारा दिन मंदिर में बैठा रहता, सोचता कि वो लोगों द्वारा दिए गये रूखे सूखे से अपनी जिंदगी बिता लेगा। इसलिए लोग भगवान को जो भी अनाज, भोजन आदि चढ़ाते थे वह किसान उसे अपने घर ले जाकर रात का खाना पकाकर खा लिया करता था। वो अपने सपनों की जिंदगी जी रहा था – कोई भी काम नहीं करता था, सारा दिन आराम करता, इसके बावजूद उसे खाने के लिए पर्याप्त मिल भी जाता था।

ऐसा हुआ, कि, जब एक बार गाँव में सूखे की मार पड़ी, उसके बाद अकाल भी पड़ा। गांववालों के पास मुश्किल से थोड़ा मोड़ा खाना बचा होगा, खुशकिस्मती से उनके पास वर्षों में बचाए हुए कुछ आनाज थे। लेकिन, एक आदमी जिसके पास आनाज का एक दाना भी नहीं था, और वो था वही बेचारा आलसी किसान। अकाल के कारण, मंदिर में गांववालों की तरफ से भगवान को कोई चढ़ावा नहीं दे रहा था और इस वजह से वह किसान हर दिन भूख का सामना कर रहा था। वो खुद को काम नहीं करने और सारा वक़्त मंदिर के सामने बैठे रहने के लिए हर पल कोस रहा था। अगर वो महीनों तक सिर्फ पूजा न करके कुछ काम किया होता; निश्चित रूप से आज वो भूखमरी का शिकार नहीं होता। आखिर में उस किसान ने एक सबक सिख ही लिया कि ‘कर्म ही असली पूजा है’।

लघु कथा 2 (Short Story 2)

दूर दराज के एक भारतीय गाँव में दो दोस्त रहते थे। एक गरीब मगर मेहनती लोहार था जबकि दूसरा एक छोटे से गाँव के मंदिर में एक आलसी पुजारी था। पुजारी अक्सर उस लोहार से मजाक में कहता हैं कि चाहे वह जितनी मेहनत कर लें, भगवान केवल पुजारी का पक्ष लेंगे क्योंकि वह नियमित रूप से पूजा करता है।

लोहार अपने रोजमर्रा के काम में इतना व्यस्त रहता था कि उसे कभी भी मंदिर आने का समय नहीं मिल पाता। इन दोनों की मुलाकात केवल देर रात के समय या गाँव की बैठक में ही होती थी। समय बीतने के साथ और वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद, लोहार गांव का सबसे अमीर आदमी बन चुका था। उसने गांव के मंदिर में एक शानदार राशि दान करने का फैसला किया और उसे एक छोटे से समारोह के लिए बुलाया गया।

वहाँ वह अपने पुराने दोस्त, पुजारी से मिला, जिसने इस समय के बाद मेहनत करने के असली मूल्य का एहसास किया। जब लोहार से उसकी सफलता के रहस्य के बारे में पूछा गया, तो उसने सिर्फ चार शब्द “कर्म ही पूजा है” कहा। वास्तव में!! पुजारी सोच में पड़ गया था।

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