जनरेशन गैप पर भाषण

जनरेशन गैप/पीढ़ी का अंतर अपरिहार्य है क्योंकि अलग-अलग समय पर जन्मे लोग साथ आने के लिए बाध्य हैं। इसलिए हर किसी को इस जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर का सम्मान करना चाहिए और इसके साथ सामंजस्य बैठाने का प्रयास करना चाहिए नहीं तो हर जगह दिक्कत का सामना करना होगा। वर्तमान में जहां हमें यह देखने को मिलता है युवा नए ज़माने के साथ ताल से ताल मिला कर चल रहे हैं वहीँ दूसरी ओर यह भी देखने को मिलता है कि वे अपने बुजुर्गों से दूर होते जा रहे हैं। इसलिए वास्तविक जीवन परिस्थितियों के सकारात्मक उदाहरणों देते हुए जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर पर कुछ भाषणों के माध्यम से उन्हें जानकारी देना ज़रूरी है।

जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर पर भाषण (Speech on Generation Gap in Hindi)

भाषण – 1

प्रिय छात्रों – आशा है कि आपने अपने समर कैंप का आनंद लिया होगा। विद्यार्थियों से यह सुन कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है कि हमारे द्वारा आयोजित समर कैंप ने उनके अंदर रोमांच भर दिया और सभी को इससे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। अब आपकी कक्षा और पढ़ाई में आपका फिर से स्वागत है!

आपके कक्षा अध्यापक के रूप में अगर मुझे आपके साथ अपने अनुभव को शेयर करने का मौका मिले तो मैं यह कहना चाहूंगा कि यह मेरे लिए एक मिश्रित अनुभव था। नई जगह, नई गतिविधियां, आत्मसात करने के लिए नई उमंग जिससे मुझे समृद्ध अनुभव की अनुभूति हुई। हालांकि कुछ स्तर पर शिक्षकों और छात्रों के बीच मतभेद देखने को मिले। यद्यपि आप सभी उच्च माध्यमिक कक्षाओं में पढ़ते हैं और हम शिक्षक आपके साथ एक अच्छी समझदारी के स्तर को शेयर करते हैं।

तो आज इससे पहले कि मैं आपका नियमित कोर्स शुरू करूँ मैं जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर पर एक संक्षिप्त भाषण देना चाहता हूं। यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि मुझे लगता है कि कई छात्रों को उनके शिक्षकों के संबंध में इस अंतर का सामना करना पड़ रहा है। छात्रों मैं आपको बताता हूँ कि हम शिक्षक आपकी उम्र से यह समझते हैं और आपको क्या पसंद है और क्या नापसंद हैं लेकिन क्या आप अपने आसपास के लोगों, जो आपसे बड़े हैं, उनके अनुसार ख़ुद को ढालने की कोशिश करते हैं? शायद नहीं! उम्र के इस अंतर का सम्मान करना जरूरी है और अंततः पीढ़ी के उस अंतर का जो स्वाभाविक रूप से आता है जब विभिन्न आयु के लोग एक साथ मिलते-जुलते हैं। दो लोगों में एक-दूसरे के साथ हर समय मतभेद होना जरूरी नहीं है क्योंकि वे एक-दूसरे की सोच-विचार प्रक्रिया को समझने की कोशिश कर सकते हैं और चीजों को देखने और अंत में एक दूसरे से कुछ सीखने की कोशिश कर सकते हैं।

पुरानी या पुराने समय से संबंधित सभी चीजें खराब नहीं होती हैं और जो भी नई या नए समय की चीज़ है वह अच्छी नहीं होती। किसी भी आम इन्सान को यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि क्या सही है और क्या गलत है।

जनरेशन गैप/पीढ़ी का अंतर कुछ ऐसा है जिसे आप कही भी जाएँ कभी नहीं छोड़ सकते हैं। आपको हर जगह विभिन्न आयु वर्ग और विचार के लोग मिलेंगे। यह अंतर केवल लोगों के बीच विचारों का संघर्ष है जो दो अलग-अलग पीढ़ियों से संबंध रखते हैं। कई मामलों में विचारों का संघर्ष दोनों नई और पुरानी सोचों के बीच का है। अनुभवी या जिन्हें आप उम्र के आधार पर बूढ़ा कहते हैं उन्हें आज की पीढ़ी के नौजवान युवक पुराने ढंग से सोचने वाले व्यक्ति समझते हैं।

इसके विपरीत आज की पीढ़ी के पास जीवन का ऐसा कोई अनुभव नहीं है जो उन्हें स्वाभाविक रूप से आवेगपूर्ण बनाता है बजाए उनके निर्णय या विवेक के जो उनकी प्रवृत्ति का पालन करता है। मैं आपको एक उदाहरण देता हूं। अगर कोई परिवार कार से यात्रा कर रहा है तो बेटा, जो युवा है, वह तेजी से ड्राइव करेगा क्योंकि उसमें जोश है इससे उसे मज़ा आएगा । दूसरी ओर पिता या दादा धीमी गति और सावधानी पूर्वक ड्राइव करेंगे क्योंकि वे सड़क पर होने वाली दुर्घटनाओं के बारे में बेटे के मुकाबले अधिक चिंतित होंगे।

इसलिए दो अलग-अलग पीढ़ियों के लोगों के बीच सोचने में इस प्रकार का अंतर हमेशा मौजूद रहेगा। यह अंतर परिवार में और उन संस्थानों में देखा जाता है जहां युवा और बुज़ुर्ग लोग एक साथ रहते और काम करते हैं। ऐसी स्थिति को संभालने का सबसे अच्छा तरीका है यह है कि उम्र के अंतर का सम्मान करते हुए लोगों के साथ मिलनसार और धैर्यशील बने। बूढ़े परिपक्व होते हैं और हर जगह युवा पीढ़ी के अनुसार खुद को समायोजित कर सकते हैं। जब आप वयस्क हो जाएंगे तो मुझे यकीन है कि आप भी अपने दृष्टिकोण में बदलाव का अनुभव करेंगे और अपने बड़ों की सोच या उनके नज़रिए से चीजों को देखना शुरू करेंगे।

इसलिए स्थिति को थोड़ा सहज तरीके से लें और हर स्थिति में खुद को समायोजित करने की कोशिश करें – यह हर महान व्यक्तित्व का एक गुण है।

धन्यवाद!

 

भाषण – 2

प्रिय मित्रों – मैं आप सभी का दिल से इस विशेष समारोह में स्वागत करता हूं जहां सभी आयु वर्ग के लोग स्वतंत्र रूप से एक दूसरे के साथ अपने जीवन के अनुभवों को शेयर कर सकते हैं।

हालांकि इससे पहले कि हम अपना सेश शुरू करें मुझे आज रात के हमारे विशेष अतिथि का स्वागत करने का मौका दीजिए जिनका नाम है श्रीमती सुनीता कश्यप जो एक सामाजिक कार्यकर्ता और एक गैर सरकारी संगठन की अध्यक्ष हैं। युवा और वृद्ध, बच्चों और वयस्कों के बीच बढ़ता अंतर परिवार और विभिन्न संस्थानों में रिश्तों को प्रभावित कर रहा है। यह अंतर सोच की प्रक्रिया के संदर्भ में भी हो सकता है जिससे अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा चीजों को देखा जाता है। इसलिए हम यहाँ बातचीत और चर्चाओं के माध्यम से इस अंतर को कम करके पीढ़ी के अंतराल पर काबू पाने के लिए हैं।

इसके अलावा मैं इस विषय पर संवेदनशीलता के बारे में जागरूक होने में लोगों की सहायता के लिए इस विषय पर भी एक भाषण देना चाहूंगा। आज के युवाओं और बुजुर्गों के बीच के अंतर को पीढ़ी के अंतर के रूप में देखा जाता है। जहाँ एक ओर युवा अनुभवहीन, उग्र और आक्रामक होते हैं वहीँ दूसरी तरफ बुज़ुर्ग धैर्यशील, विवेकी और ज्ञानी होते हैं। वे अपेक्षाकृत शांत होते हैं और सावधानी के साथ काम करते हैं। जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर का यह तथ्य कुछ नया नहीं है क्योंकि यह काफी सालों से चला आ रहा है।

जो लोग पुरानी पीढ़ी से संबंध रखते हैं वे युवा पीढ़ी को हमेशा संदेह की नज़र के साथ देखते हैं। वे युवा पीढ़ी के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं। उन्हें लगता है कि उनका गुज़रा हुआ समय सबसे अच्छा समय था क्योंकि उस समय वे युवा थे और अपने बुजुर्गों का आदर करते थे तथा उनके प्रति अधिक आज्ञाकारी थे। वे ऐसा मानते थे कि अपने बुजुर्गों का अपमान करने से परिवार को अपूरणीय क्षति हो सकती है। इसके विपरीत आज के समय में युवाओं का मानना ​​है कि उन्हें वृद्धों पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहिए और उन्हें सब कुछ खुद करने के लिए आत्मनिर्भर होना चाहिए। युवा परिवार में अपने बुजुर्गों द्वारा दी सलाह का पालन करना नापसंद करते हैं।

नई और पुरानी पीढ़ी के बीच यह अंतर दिन-प्रतिदिन कई वजहों के कारण बढ़ रहा है। मुख्य रूप से आज के युवाओं का मानना ​​है कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली असली स्पष्ट दुनिया में बहुत कम प्रासंगिकता रखती है। इसका उद्देश्य नौकरी प्राप्त करने की दिशा में नहीं है। इसका परिणाम यह निकलता है कि स्कूली शिक्षा समाप्त होने के बाद उन्हें पता है कि वे किसी भी नौकरी के लिए उपयुक्त नहीं हैं। वे बेहद निराश हो जाते हैं।

दूसरा जीवन की गति इतनी तेज हो गई है कि माता-पिता अपने बच्चों के लिए थोड़ा सा समय ही निकाल पाते हैं। युवा और बुज़ुर्ग पीढ़ी के बीच समझ और अंतरंगता को विकसित करने के प्रयास कम किए जा रहे हैं।

तीसरा युवाओं को यह पता है कि वास्तव में हमारे देश की स्थिति क्या है। समर्पण, कर्तव्य, नैतिकता आदि पर चर्चाओं ने युवाओं को एक बड़ी दुविधा में डाल दिया है। आज के युवाओं को जो कुछ भी उनके बुजुर्ग उन्हें सिखाएंगे उसे वे आंख बंद कर स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। जब युवाओं को यह पता चलता है कि भ्रष्टाचार और राजनीति ने हर क्षेत्र में प्रवेश कर लिया है। जिसके वजह से वे हमेशा सामाजिक और आर्थिक भेदभाव के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहते हैं। इसलिए वे गंभीरता से समाज में बदलाव देखना चाहते हैं।

और मुझे उम्मीद है कि हमारी युवा पीढ़ी द्वारा लाया जाने वाला परिवर्तन केवल अच्छाई के लिए होगा और शायद हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार को दूर करने का प्रयास करेगा।

धन्यवाद!

 

भाषण – 3

प्रिय सोसाइटी के सदस्यों – हमारी गोकुलधाम सोसाइटी के सचिव के रूप में मैं आप सभी का अपने सोसाइटी क्लब हाउस मीटिंग में स्वागत करता हूं!

सबसे पहले आप सभी को मेरी ओर से नमस्कार! आज हमारे दिन-प्रतिदिन मुद्दों पर चर्चा करने के अलावा मैंने जनरेशन गैप/पीढ़ी के अंतर पर एक भाषण तैयार किया है जिसे मैं अब संबोधित करने जा रहा हूं। हाल ही की ख़बर जिसे हर कोई जानता है, जो वायरल हो गया था, उसमें कहा गया था कि एक युवा लड़के ने निराशा में अपने पिता को इतनी ज़ोर से मारा कि उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। यह ख़बर सुन कर मुझे इतना अजीब लगा कि आज की युवा पीढ़ी के साथ क्या हो रहा है। क्या यह पूरी तरह से उनकी गलती है या फ़िर यह उनके माता-पिता की भी गलती है कि वे अपने बच्चों की अच्छी तरह से परवरिश करने में विफल रहे हैं और उनकी सोचने की प्रक्रिया को समझ नहीं सके?

चलिए एक माता-पिता होने के नज़रिए से ये उचित प्रश्न अपने आप से पूछें और हमारे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने और हमारे बच्चों की सोच के साथ अपनी सोच मिलाने की कोशिश करे। लेकिन साथ ही हमारे बच्चों में नैतिक मूल्यों और अच्छे नैतिक व्यवहारों का बीज बोना बहुत महत्वपूर्ण है। उन्हें बचपन से ही यह सिखाया जाना चाहिए कि अपने बुजुर्गों का सम्मान करें और अपने से छोटों को प्यार दें। यदि हम अपने बच्चों से शारीरिक और भावनात्मक रूप से दूरी बनाए रखना शुरू करेंगे तो उनके जीवन को बहुत बड़ी भावनात्मक पीड़ा होगी और वे हर किसी के प्रति असंवेदनशील हो जाएंगे खासकर बड़ी उम्र के लोगों की ओर।

हमें इस अंतर को व्यापक और बड़ा करने की बजाए इसे कम करने की कोशिश करनी चाहिए क्योंकि यह पहले से ही बहुत व्यापक है जहाँ युवा और बुज़ुर्ग लोग पहले से ही एक दूसरे को ज्यादा परेशान किए बिना दो अलग-अलग दुनिया में रह रहे हैं। अगर आप इस पीढ़ी के अंतर को खत्म करना चाहते हैं तो बड़ों के रूप में हमें हमारे युवाओं और बच्चों के प्रति एक सहानुभूति दृष्टिकोण का सहारा लेना होगा और समझने की कोशिश करनी होगी कि उन्हें क्या पसंद है या क्या नापसंद है और साथ ही उनकी इच्छाएं और आकांक्षाएं भी जाननी होगी।

युवाओं को यह भी महसूस करना चाहिए कि उनके पास जीवन में कोई अनुभव नहीं है इसलिए अपने बुजुर्गों की बातें मानना और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। उनके पास उन अनुभवों का धन है जिनका लाभ आप उनसे उठा सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर और मूल्यवान बना सकते हैं। युवाओं को अपने बुजुर्गों की बात सुनना और उनकी ज़िंदगी के हर महत्वपूर्ण निर्णय पर उनकी सलाह लेनी चाहिए। यदि युवा किसी भी बिंदु से असहमत हैं तो वे शांति से और सम्मान के साथ अपनी राय रख सकते हैं।

अमेरिका और यूरोप जैसे विदेशी देशों में पीढ़ी का अंतर इतना बड़ा है कि युवा और बुज़ुर्ग लोग एक छत के नीचे रहना भी पसंद नहीं करते हैं। जब युवा पैसा कमाना शुरू करते हैं तो वे अपनी ज़िंदगी को स्वतंत्र रूप से शुरू करना चाहते हैं। इसी तरह बुज़ुर्ग लोग भी अपने पुराने घरों या पेंशनभोगी घरों में युवाओं से अलग रहते हैं। इसलिए यही पीढ़ी का अंतर संयुक्त परिवारों और घरों को टूटने की ओर ले जाता है।

हमें कोशिश करनी चाहिए कि स्थिति इस हद तक नहीं पहुंचे जहाँ भारतीय परिवार एक ही छत के नीचे अलग-अलग रहना शुरू कर दे। चलिए अपनी युवा पीढ़ी को अच्छी शिक्षा प्रदान करें ताकि वे अपनों से दूर न जाएं और उनसे जुड़े रहें। मैं केवल इतना ही कहना चाहता था!

धैर्यपूर्वक मेरी बात सुनने के लिए आप सभी का धन्यवाद!


 

भाषण – 4

प्रिय माता-पिता – पेरेंट्स-टीचर्स मीटिंग में आपका स्वागत है! आप सभी को नमस्कार!

इस स्कूल का प्राचार्य होने की वजह से मैं इन बच्चों के प्रति जिम्मेदार हूं और मैं इनके भविष्य को सही रूप देने के लिए ईमानदारी से अपना प्रयास कर रहा हूं। इनकी शिक्षा के अलावा मैं पूर्ण रूप से इनके व्यक्तित्व का विकास सुनिश्चित करना चाहता हूं ताकि वे परिपक्व व्यक्तियों के रूप में बड़े हो सकें जो अपने नैतिक मूल्यों को बरकरार रख उनसे दूरी ना बनाएं।

तो यह कदम यानी माता-पिता और शिक्षकों के बीच इंटरैक्टिव सत्र आयोजित करना, इस लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में एक कदम है। कोई भी माता-पिता या शिक्षक नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चों में उनका अनादर करना या अलगाव की भावना पैदा हो। हालांकि चाहे हम विश्वास करे या ना करें पर पीढ़ी का अंतर जिसे कहा जाता है वह एक सार्वभौमिक घटना है और दुनिया भर में लगभग हर परिवार में किसी ना किसी तरह इसे देखा जाता है।

इस तथ्य के बावजूद कि माता-पिता और बच्चे एक छत के नीचे रह रहे हैं या नहीं – वे एक अच्छा संवादात्मक स्तर साझा नहीं करते हैं या उनमें बहुत कम बातचीत होती है। बच्चों, उनके माता-पिता या बुजुर्गों के जीने का अपने अलग-अलग तरीके हैं। बच्चे अपने माता-पिता को सख्त, डराने-धमकाने और अनुशासनात्मक के रूप में देखते हैं जबकि माता-पिता अपने बच्चों को बहुत ढीट, बदतमीज़ और हिंसक देखते हैं। ऐसी स्थिति में रिश्ते कैसे अच्छे रह सकते हैं? या किस आधार पर परिवारों का गठन किया जा सकता है। जब व्यापक जनरेशन गैप/पीढ़ी का अंतर बढ़ता रहेगा तो यह कैसे मजबूत हो सकता है।

मुझे प्रतिदिन ऐसी कई ख़बरें सुनने को मिलती हैं जहाँ बाल दुर्व्यवहार की विभिन्न घटनाएँ या बच्चे अपने बड़ों के खिलाफ हिंसा भरा कदम उठाने में संकोच नहीं करते हैं। इतनी सारी खबरें पढ़ने को मिलती हैं जहां एक बेटा अपने पिता को संपत्ति के लिए मार देता है या बेटी आत्महत्या कर लेती है। ये भयावह ख़बरें वास्तव में हमारे समाज का प्रतिबिंब देती हैं और एक मजबूत संकेत देती हैं कि हमारा समाज या आने वाली पीढ़ी किस ओर बढ़ रही है। परिपक्व और अनुभवी व्यक्ति के रूप में हमें अपने समाज में बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए और यह परिवर्तन केवल बड़े स्तर पर तभी लाया जा सकता है जब हम अपने परिवार को बदलना शुरू कर देते हैं तो हमारे परिवेश में रहने वाले युवाओं की मानसिकता बदलती है।

बड़ों के रूप में हमें हमेशा अपने बच्चों के प्रति कठोर नहीं होकर उनके दृष्टिकोण को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए। उनकी सोच हमसे अलग हो सकती है लेकिन हर समय गलत नहीं हो सकती। हमें उनके माता-पिता के रूप में उनके साथ सख्त व्यवहार करने की बजाए उनके दोस्त, मार्गदर्शक और संरक्षक के रूप में कार्य करना चाहिए। हमें उनकी छोटी सी दुनिया का हिस्सा बनने की कोशिश करनी चाहिए जिसका वे स्वयं के लिए निर्माण करते हैं और उनकी इच्छाओं और तमन्नाओं के बारे में जानने का प्रयत्न करना चाहिए। अगर हम उन्हें समझने की दिशा में कदम उठाते हैं तो मुझे यकीन है कि वे इस अंतर को पूरा करने के लिए एक कदम उठाएंगे। इस तरह से हम अपने समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं और अपनी ऊर्जा को सही दिशा में प्रभावी ढंग से स्थानांतरित कर सकते हैं। पीढ़ी के अंतर का वास्तविक अर्थ नई और पुरानी पीढ़ी के बीच एक उच्च स्तर की असंगति है। यह दोनों पीढ़ियों की जिम्मेदारी है कि वे एक-दूसरे की राय का सम्मान करें और उसे समझें। तभी तो यह अंतर को कम किया जा सकता है और शांति और सद्भाव फिर से लाया जा सकता है।

धन्यवाद

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *