राष्ट्रीय ध्वज पर भाषण

ध्वज हर राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे राष्ट्र के गौरव और प्रतिष्ठा को दर्शाता है। अगर आपने अपने ध्वज का अपमान किया, मतलब देश का कर दिया। इसलिए सोच-समझ कर ऐसा कुछ करना चाहिए। राष्ट्रीय प्रतीक के अपमान को दंडनीय अपराध की श्रेणी में रखना चाहिए। तभी लोग डरेंगे और ऐसा करने से पहले कतरायेंगे। वो कहते है न ‘भय बिन प्रीत न होय’। इस सन्दर्भ में कहीं न कहीं हमें अपने विचार व्यक्त करने ही होते है, उस वक़्त हमें असुविधा महसूस होने लगती है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम कुछ भाषण छोटे-बड़े शब्दों में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।

राष्ट्रीय ध्वज का महत्व पर 10 वाक्य || भारत के राष्ट्रीय ध्वज पर 10 वाक्य

राष्ट्रीय ध्वज पर छोटे-बड़े भाषण (Short and Long Speech on National Flag of India in Hindi)

भाषण – 1

सभी आगत विशिष्ट जनों का मैं हार्दिक स्वागत करती हूँ। मैं अपने प्रधानाध्यापक जी का बहुत-बहुत आभार व्यक्त करती हूँ, जो उन्होंने मुझे इस योग्य समझा और यह अवसर दिया कि मैं इस प्रसंग पर आपके साथ अपने विचार बाँट सकूं।

हमारे राष्ट्रीय ध्वज का नाम तिरंगा है। यह तीन रंगो से मिलकर बना है – केसरिया, सफेद और हरा। इन रंगो का महत्व है, साथ ही इनका औचित्य भी। इसमें समानान्तर तीन पट्टियां होती है। सबसे ऊपरी स्थान केसरिया ने लिया है, फिर बीच में सफेद और आखिर में गहरे हरे रंग की पट्टी है। बीच की सफेद पट्टी के बीचोंबीच गहरे नीले रंग का चक्र होता है। यह चक्र सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ से लिया गया है। इसमें चौबिस तीलियां होती है। यह हमें सिखाती है कि हमें निरंतर चलते रहना चाहिए। चलने का नाम ही जिन्दगी है। यह चौबिस तीलियां दिन के चौबिस घंटे को दर्शाती है। इसका व्यास सफेद पट्टी के समान ही है।

भारत की संविधान सभा ने हमारे ध्वज के मसौदे को 22 जुलाई 1947 को मंजूरी दी थी।

भारतीय ध्वज संहिता 2002, जो 26 जनवरी 2002 से लागू है, के अनुसार भारतीय ध्वज संहिता में विधि, परंपराओं, प्रविधियों, और अनुदेशों को एक साथ रखा गया है। भारतीय ध्वज संहिता के अनुसार, आम नागरिकों, सरकारी और निजी संस्थानों, शैक्षिक संस्थानों आदि में राष्ट्रीय ध्वज फहराने में कोई पाबंदी नहीं है। लेकिन इस संबंध में यह बात गौर करने वाली है कि कोई भी राष्ट्र-चिह्न का दुरूपयोग नहीं कर सकता। ‘अधिनियम 1950’ मे ये बात कही गयी है। साथ ही, ‘राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण, अधिनियम 1976’, के प्रावधानों के अनुसार इसका अनुपालन अनिर्वाय है।

ये हमारे ध्वज के विषय में कुछ जानकारी थी, जो मै आप लोगो के साथ बांटना चाहती थी। इन्ही शब्दों के साथ मैं अपनी बात पूरी करती हूँ।

धन्यवाद।


भाषण – 2

आदरणीय मुख्याध्यापक, सम्मानीय अतिथि महोदय, सहकर्मी शिक्षक-गण को मैं प्रणाम करती हूँ एवं अपने प्रिय छात्रों को बहुत सारा आशीर्वाद देती हूँ। मैं आप सभी की आभारी हूं, जो आप लोग अपना बहुमूल्य समय निकालकर यहां पधारें। आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद।

आज हम सभी यहां अपने राष्ट्र के गौरव का प्रतीक अपने ‘तिरंगे’ के बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए हैं। जैसा कि हम सभी जानते है कि, राष्ट्रीय ध्वज हर राष्ट्र का सिम्बल होता है। इसके साथ देश की गरिमा जुड़ी होती है। इसका सम्मान मतलब देश का सम्मान और इसके अपमान का तात्पर्य आप समझ ही गये होंगे।

हर आम आदमी का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि वो अपने देश का और उसके प्रतीकों का सम्मान करें। जब आप ही अपनी वस्तु का सम्मान नहीं करोगे, तो कोई और क्यों और कैसे करेगा। अतः यह नितांत आवश्यक है कि, हम अपने देश के प्रतीकों और धरोहरों की रक्षा और मान करें।

हमारा राष्ट्रीय ध्वज, जिसे हम ‘तिरंगे’ के नाम से भी जानते है। इसे तिरंगा इसीलिए कहते हैं क्योंकि यह तीन रंगो से मिलकर बना है। सबसे ऊपरी पट्टी केसरिया रंग, बीच में सफेद और आखिरी पट्टी गहरे हरे रंग की है। इसकी सफेद पट्टी के मध्य में अशोक चक्र विद्यमान है। यह गहरे नीले रंग का होता है। अशोक चक्र सारनाथ के अशोक स्तंभ से लिया गया है। अशोक चक्र में चौबिस तीलियाँ है जो दिन के चौबिस घंटो की सूचक हैं। ये हमें यह शिक्षा देती है कि, जीवन में चलते रहना चाहिए। रूकना मृत्यु के समान है। कैसी भी परिस्थिति आए, हमें गतिमान रहना चाहिए।

इसका हर रंग हमें कुछ न कुछ शिक्षा अवश्य देता है। केसरिया रंग देश की शक्ति और साहस का प्रतीक है। सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। हरा रंग हरियाली और वृध्दि को दर्शाता है।

अशोक चक्र को धर्म चक्र भी कहते है। ध्वज की लंबाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है। यह मानक है। इसकी लंबाई और चौड़ाई में कोई भी परिवर्तन हम अपने मन माक़िफ नही कर सकते।

ये हमारे ध्वज के संबंध में कुछ बातें थी, जो हम सभी लोगों का जानना जरूरी है। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी वाणी को यही विराम देती हूँ।

धन्यवाद।


भाषण – 3

यहाँ उपस्थित सभी लोगों को मैं सादर नमस्कार करती हूँ। यहां उपस्थित सभी महानुभावों का मैं हृदय से आदर और अभिनंदन करती हूं। ये मेरे लिए अत्यंत हर्ष की बात है, जो आप जैसे अनुभवी और विद्वानों के आगे मुझे बोलने का अवसर मिला। मैं अपने वरिष्ठ अध्यापक महोदय की ऋणी हूं, जिन्होने यह अवसर मुझे प्रदान किया। आज हम अपने देश की शान तिरंगे के बारे में कुछ बिन्दुओं पर चर्चा करेंगे।

भारत का राष्ट्रीय ध्वज जिसे हम तिरंगा के नाम से भी जानते हैं, तीन रंगो की समानान्तर पट्टियों से शोभायमान है। इसका कॉनसैप्ट पिंगली वैंकैया ने दिया था। इसे आजादी के पूर्व ही हमारी संविधान-सभा की बैठक में 22 जुलाई 1947 को ही अपना लिया गया था। और इसके कुछ दिन बाद ही हमें 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता प्राप्त हुई।

राष्ट्रीय झंडा निर्दिष्टीकरण के हिसाब से इसे केवल खादी में ही बनना चाहिए, ऐसा प्रावधान है। एक विशेष प्रकार से हाथ से काते गए कपड़े से बनता है जो महात्मा गांधी द्वारा लोकप्रिय हुआ था। कोई और कपड़ा आप इस्तेमाल नहीं कर सकते। यह गैर-कानूनी माना जाता है। केवल कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्त संघ के पास यह अधिकार सुरक्षित है कि हमारे राष्ट्रीय ध्वज का निर्माण कर सकती है। कोई और नहीं। इसे बेहद खास विधि से बनाया जाता है। और इसके सम्मान का खास ख्याल रखा जाता है।

हमारा राष्ट्रीय झंडा देश की एकता और अखंडता का प्रतीक है। इसका समानांतर स्वरूप बेहद आकर्षक लगता है। सबसे ऊपरी पट्टी पर स्थित केसरिया रंग निस्वार्थ और समर्पण को दर्शाता है। मध्य की पट्टी पर स्थित श्वेत रंग शांति और सद्भावना को दर्शाता है। मध्य में ही गहरे नीले रंग का धर्म-चक्र है, जिसे सारनाथ के अशोक-स्तंभ से लिया गया है। तीसरी पट्टी गहरे हरे रंग की है, जो हरियाली और सम्पन्नता का प्रतीक है।

किसी भी खास मौके, जैसे स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस पर झंडा फहराया जाता है। आम नागरिक को यह स्वतंत्रता है कि वो अपने घरों, कार्यालयों आदि में झंडा लहरा सकता है। किंतु किसी भी सूरत में हमारे ध्वज का अनादर नहीं होना चाहिए।

आइए तिरंगे के बारे में कुछ खास और रोचक बातें जानते है।

देश पर मर मिटने वाले शहीदों और देश की महान हस्तियों को सम्मान देने के लिए उन्हें तरंगे में लपेटा जाता है। यह बड़े ही फक़्र की बात होती है। हर जवान की यही कामना है कि उसे तिरंगे में लिपटने का मौका मिले। हम तो ऐसा सोच भी नहीं सकते और हमारे देश के वीर ज़वान हंसते-हंसते देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर देते है।

जब ज़वान को तिरंगे में रैप किया जाता है, तो कई बातों का खास ध्यान रखा जाता है। ध्वज के ऊपरी हिस्से (केसरिया वाले भाग) को सिर की तरफ और हरी पट्टी वाले भाग को पैर की तरफ किया जाता है। शव के जलाने के पूर्व ही तिरंगे को ससम्मान हटा लिया जाता है।

भारत के झारखंड राज्य की राजधानी ‘रांची’ में देश का सबसे ऊंचा झण्डा 493 मीटर की ऊंचाई पर फहराया जाता है।

राष्ट्रीय ध्वज के आदर और सम्मान के लिए एक कमिटि का गठन किया गया है, जो जन साधारण को उसके प्रयोग के संबंध में जानकारी दे सके। इसे भारतीय ध्वज संहिता (फ्लैग कोर्ट ऑफ इंडिया) के नाम से जाना जाता है। यह केवल ध्वज नहीं, हमारी आशाओं और आकांक्षाओं का भी प्रतीक है। भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, निर्देशों और औपचारिकताओं को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है।

झंडे को फहराने के भी आधारभूत नियम है –

  • हमेशा ध्वज को ऐसी जगह फहराना चाहिए, जहां से वह साफ-साफ दिखे।
  • राष्ट्रीय ध्वज को जितने जोश और उल्लास के साथ फहराया जाता है, उतने ही सम्मान के साथ आहिस्ता-आहिस्ता नीचे उतारना चाहिए।
  • ध्वज को अन्यत्र कही भी फेका नहीं जा सकता।
  • मैला या गंदा हो जाने पर, उसे अकेले में समाप्त किया जाना चाहिए।
  • राष्ट्रीय ध्वज को केवल राष्ट्रीय शोक के टाइम ही आधा झुकाया जाता है।
  • झंडे पर कुछ भी छपा या लिखा नहीं होना चाहिए।
  • इसको किसी और झंडे से कम्पेयर नहीं कर सकते।
  • इसका स्थान सदैव सर्वोपरि होगा, उसके ऊपर अन्य ध्वज नहीं लहरा सकते।
  • राष्ट्रीय ध्वज के समान किसी भी झंडे को खड़ा नहीं कर सकते।
  • मानक आकार में ही राष्ट्रीय ध्वज को होना चाहिए। कोई भी अपने मन से उसे कोई आकार या स्वरूप नहीं दे सकता।

यह हमारे राष्ट्रीय झंडे के बारे कुछ महत्वपूर्ण बातें हैं, जो हम सभी को भारत का नागरिक होने के नाते पता होना चाहिए। इन्ही बातों के साथ मै अपना बात को यही समाप्त करने की आज्ञा चाहती हूँ।

धन्यवाद।

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